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हाई बीपी को काबू करने के प्रभावशाली घरेलू उपाय

              हाई बीपी को काबू करने के प्रभावशाली घरेलू उपाय

• ठीक रक्तयचाप के लिए स्यं)रेल को शारीरिक रूप से अधिक सक्रिय बनायें।
• तैलीय व अधिक नमक वाले आहार से करें पूरी तरह परहेज।
• नींबू पानी का सेवन करने से रक्तरचाप रहता है नियंत्रित।
• डॉक्ट र से पूछकर ही किसी उपाय को अपनी दिनचर्या में करें शामिल।

आजकल लोगों की जिंदगी का ढंग काफी बदल गया है। मशीनों पर बढ़ती निर्भरता ने बेशक हमारी जिंदगी को आसान बना दिया है, लेकिन इससे हमें कई बीमारियां भी मिली हैं। उच्चं रक्तसचाप इनमें से एक है। यह बीमारी भले ही छोटी लगती हो, लेकिन हृदयाघात और अन्यै हृदय रोग होने का यह प्रमुख कारण है। ऐसे में जरूरी है कि उच्चत रक्तंचाप को नियंत्रित रखा जाए। आइए जानते हैं कुछ ऐसे घरेलू उपाय जो आपके रक्तर चाप को संतुलित और नियंत्रित रखते हैं।
हाई ब्लपड प्रेशर के सामान्यप लक्षण
हाई ब्लड प्रेशर में चक्कर आने लगते हैं, सिर घूमने लगता है। रोगी का किसी काम में मन नहीं लगता। उसमें शारीरिक काम करने की क्षमता नहीं रहती और रोगी अनिद्रा का शिकार रहता है। इस रोग का घरेलू उपचार भी संभव है, जिनके सावधानीपूर्वक इस्तेमाल करने से बिना दवाई लिए इस भयंकर बीमारी पर पूर्णत: नियंत्रण पाया जा सकता है। जरूरत है संयमपूर्वक नियम पालन की। आइए जानें हाई ब्लड प्रेशर के लिए घरेलू उपाय।
हाई ब्लड प्रेशर के लिए घरेलू उपाय
• नमक ब्लड प्रेशर बढाने वाला प्रमुख कारक है। इसलिए हाई बी पी वालों को नमक का प्रयोग कम कर देना चाहिए।
• लहसुन ब्लड प्रेशर ठीक करने में बहुत मददगार घरेलू उपाय है। यह रक्त का थक्का नहीं जमने देता है। और कोलेस्ट्रॉ ल को नियंत्रित रखता है।
• एक बडा चम्मच आंवले का रस और इतना ही शहद मिलाकर सुबह-शाम लेने से हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होता है।
• जब ब्लड प्रेशर बढा हुआ हो तो आधा गिलास मामूली गर्म पानी में काली मिर्च पाउडर एक चम्मच घोलकर 2-2 घंटे के अंतराल पर पीते रहें।
• तरबूज के बीज की गिरी तथा खसखस अलग-अलग पीसकर बराबर मात्रा में मिलाकर रख लें। इसका रोजाना सुबह एक चम्म च सेवन करें

• बढे हुए ब्लड प्रेशर को जल्दी कंट्रोल करने के लिये आधा गिलास पानी में आधा नींबू निचोड़कर 2-2 घंटे के अंतर से पीते रहें।
• पांच तुलसी के पत्ते तथा दो नीम की पत्तियों को पीसकर 20 ग्राम पानी में घोलकर खाली पेट सुबह पिएं। 15 दिन में लाभ नजर आने लगेगा।
• हाई ब्लडप्रेशर के मरीजों के लिए पपीता भी बहुत लाभ करता है, इसे प्रतिदिन खाली पेट चबा-चबाकर खाएं।
• नंगे पैर हरी घास पर 10-15 मिनट चलें। रोजाना चलने से ब्लड प्रेशर नार्मल हो जाता है।
• सौंफ, जीरा, शक्क1र तीनों बराबर मात्रा में लेकर पाउडर बना लें। एक गिलास पानी में एक चम्मच मिश्रण घोलकर सुबह-शाम पीते रहें।
• पालक और गाजर का रस मिलाकर एक गिलास रस सुबह-शाम पीयें, लाभ होगा।
• करेला और सहजन की फ़ली उच्च रक्त चाप-रोगी के लिये परम हितकारी हैं।
• गेहूं व चने के आटे को बराबर मात्रा में लेकर बनाई गई रोटी खूब चबा-चबाकर खाएं, आटे से चोकर न निकालें।
• ब्राउन चावल उपयोग में लाएं। यह उच्च रक्त चाप रोगी के लिये बहुत ही लाभदायक भोजन है।
• प्याज और लहसुन की तरह अदरक भी काफी फायदेमंद होता है। इनसे धमनियों के आसपास की मांसपेशियों को भी आराम मिलता है जिससे उच्च रक्तचाप नीचे आ जाता है।
• तीन ग्राम मेथीदाना पावडर सुबह-शाम पानी के साथ लें। इसे पंद्रह दिनों तक लेने से लाभ मालूम होता है।

याद रखें उच्च रक्तडचाप हमारी सेहत के लिए बेहद खतरनाक होता है। लेकिन, रक्तूचाप अगर सामान्यं से कम हो, तो वह भी सेहत के लिए कम खतरनाक नहीं होता। इसलिए किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सरक से सलाह जरूर लें।
यहां ऐसे सरल घरेलू उपचारों की चर्चा कररह हूँ जिनके सावधानीपूर्वक इस्तेमाल करने से बिना गोली केप्सुल लिये इस भयंकर बीमारी पर पूर्णत: नियंत्रण पाया जा सकता है-
• सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रोगी को नमक का प्रयोग बिल्कुल कम कर देना चाहिये। नमक ब्लड प्रेशर बढाने वाला प्रमुख कारक है।
• उच्च रक्तचाप का एक प्रमुख कारण है रक्त का गाढा होना। रक्त गाढा होने से उसका प्रवाह धीमा हो जाता है। इससे धमनियों और शिराओं में दवाब बढ जाता है।लहसुन ब्लड प्रेशर ठीक करने में बहुत मददगार घरेलू वस्तु है।यह रक्त का थक्का नहीं जमने देती है। धमनी की कठोरता में लाभदायक है। रक्त में ज्यादा कोलेस्ट्ररोल होने की स्थिति का समाधान करती है।
• एक बडा चम्मच आंवला का रस और इतना ही शहद मिलाकर सुबह -शाम लेने से हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होता है।
• जब ब्लड प्रेशर बढा हुआ हो तो आधा गिलास मामूली गरम पानी में काली मिर्च पावडर एक चम्मच घोलकर 2-2 घंटे के फ़ासले से पीते रहें। ब्लड प्रेशर सही मुकाम पर लाने का बढिया उपचार है।
• तरबूज का मगज और पोस्त दाना दोनों बराबर मात्रा में लेकर पीसकर मिला लें। एक चम्मच सुबह-शाम खाली पेट पानी से लें। 3-4 हफ़्ते तक या जरूरत मुताबिक लेते रहें।
• बढे हुए ब्लड प्रेशर को जल्दी कंट्रोल करने के लिये आधा गिलास पानी में आधा निंबू निचोडकर 2-2 घंटे के अंतर से पीते रहें। हितकारी उपचार है।
• तुलसी की 10 पती और नीम की 3 पत्ती पानी के साथ खाली पेट 7 दिवस तक लें।
• पपीता आधा किलो रोज सुबह खाली पेट खावें। बाद में 2 घंटे तक कुछ न खावें। एक माह तक प्रयोग से बहुत लाभ होगा।
• नंगे पैर हरी घास पर 15-20 मिनिट चलें। रोजाना चलने से ब्लड प्रेशर नार्मल हो जाता है।
• सौंफ़, जीरा, शकर तीनों बराबर मात्रा में लेकर पावडर बनालें। एक गिलास पानी में एक चम्मच मिश्रण घोलकर सुबह-शाम पीते रहें।
• उबले हुए आलू खाना रक्त चाप घटाने का श्रेष्ठ उपाय है। आलू में सोडियम (नमक) नही होता है।
• पालक और गाजर का रस मिलाकर एक गिलास रस सुबह-शाम पीयें। अन्य सब्जीयों के रस भी लाभदायक होते हैं।
• नमक दिन भर में 3 ग्राम से ज्यादा न लें।
• अण्डा और मांस ब्लड प्रेशर बढाने वाली चीजें हैं। ब्लड प्रेशर रोगी के लिये वर्जित हैं।
• करेला और सहजन की फ़ली उच्च रक्त चाप-रोगी के लिये परम हितकारी हैं।
• केला,अमरूद,सेवफ़ल ब्लड प्रेशर रोग को दूर करने में सहायक कुदरती पदार्थ हैं।

• मिठाई और चाकलेट का सेवन बंद कर दें।
सूखे मेवे :-- जैसे बादाम काजू, आदि उच्च रक्त चाप रोगी के लिये लाभकारी पदार्थ हैं।
चावल:- (भूरा) उपयोग में लावें। इसमें नमक ,कोलेस्टरोल और चर्बी नाम मात्र की होती है। यह उच्च रक्त चाप रोगी के लिये बहुत ही लाभदायक भोजन है। इसमें पाये जाने वाले केल्शियम से नाडी मंडल की भी सुरक्षा हो जाती है।
अदरक:-प्याज और लहसून की तरह अदरक भी काफी फायदेमंद होता है। बुरा कोलेस्ट्रोल धमनियों की दीवारों पर प्लेक यानी कि कैलसियम युक्त मैल पैदा करता है जिससे रक्त के प्रवाह में अवरोध खड़ा हो जाता है और नतीजा उच्च रक्तचाप के रूप में सामने आता है। अदरक में बहुत हीं ताकतवर एंटीओक्सीडेट्स होते हैं जो कि बुरे कोलेस्ट्रोल को नीचे लाने में काफी असरदार होते हैं। अदरक से आपके रक्तसंचार में भी सुधार होता है, धमनियों के आसपास की मांसपेशियों को भी आराम मिलता है जिससे कि उच्च रक्तचाप नीचे आ जाता है।
लालमिर्च:-धमनियों के सख्त होने के कारण या उनमे प्लेक जमा होने की वजह से रक्त वाहिकाएं और नसें संकरी हो जाती हैं जिससे कि रक्त प्रवाह में रुकावटें पैदा होती हैं। लेकिन लाल मिर्च से नसें और रक्त वाहिकाएं चौड़ी हो जाती हैं, फलस्वरूप रक्त प्रवाह सहज हो जाता है और रक्तचाप नीचे आ जाता है।

Dr. Mahendra R. Sethia

घर पर हीटिंग पैड बनाने के तरीके

घर पर हीटिंग पैड बनाने के तरीके

• हीटिंग पैड के इस्तेकमाल से दर्द से तुरंत राहत मिलती है।
• पैड तनावपूर्ण मांसपेशियों के दर्द को कम करता है।
• दर्दनाक अंगों में ब्लिड सर्कुलेशन को बढ़ाता है हीटिंग पैड।
• पीरियड्स की ऐंठन या यूरिन ट्रैक्ट् इंफेक्शान से राहत।

शरीर में किसी भी दर्द के होने पर हमें सबसे पहले हीटिंग पैड का ख्यारल आता है। और हो भी क्योंब न! हीटिंग पैड के इस्ते माल से दर्द से तुरंत राहत जो मिल जाती है। गर्दन और पीठ में दर्द से राहत पाने के लिए हीटिंग पैड का इस्ते्माल सबसे अच्छेद उपायों में से एक है। हीटिंग पैड की मदद से तनावपूर्ण मांसपेशियों के दर्द को कम करने में मदद मिलती है। लेकिन क्याच आप जानते हैं कि मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द को शांत करने के लिए घर में मौजूद सामग्री की मदद से खुद से बनाये जाने वाले हीटिंग पैंड बहुत ही आसान और जल्दक राहत देने वाला तरीका है। आप घर में मौजूद सामग्री की मदद से आसानी से हीटिंग पैड बना सकते हैं। आइए घर पर हीटिंग पैड बनाने के उपायों के बारे में जानें। 

कैसे काम करता है हीटिंग पैड
दर्दनाक अंगों में ब्लंड सर्कुलेशन को बढ़ाने की क्षमता हीट थेरेपी का सबसे महत्वपपूर्ण पहलू है। हीट ब्लमड वेसल को खोलता है, जिससे दर्द वाले अंगों में आसानी से ब्लतड  और ऑक्सी‍जन को सर्कुलेट होने में मदद मिलती है। हीट थेरेपी मांसपेशियों की ऐंठन को कम करने के साथ-साथ मांसपेशियों, लिगमेंट और टेंडन को आराम देने में मदद करती है। डॉक्टिर कभी-कभी पीरियड्स की ऐंठन या यूरिन ट्रैक्टा इंफेक्शंन से राहत पाने के लिए हीटिंग पैड का उपयोग करने की सलाह देते हैं। इन समस्याीओं में हीटिंग पैड पेट पर लगाया जाता है।

खुद का हीटिंग पैड बनाने की विधि 1
आइए जानें वह विधि क्याड है और इसके लिए किन-किन चीजों की जरूरत पड़ती है। इसके लिए आपको दो छोटे तौलिये, एक जिपलॉक बैग और माइक्रोवेव की जरूरत होती है।

बनाने का तरीका
• दोनों तौलिये को पानी से गीला करके हल्काो नम रखने के लिए बाकी के पानी को निचोड़ दें।
• एक तौलिये को जिपलॉक बैग में डाले, लेकिन बैग को बंद न करें।
• फिर इसे माइक्रोवेव में रखकर दो मिनट के लिए गर्म करें।
• माइक्रोवेव से बैग निकाले। लेकिन सावधान रहे-क्योंबकि यह गर्म होता है।
• अब जीपलॉक बैग को सील करें और बैग के आसपास अन्यम गीले तौलिये को लपेटें।
• इस होममेड पैड को हीट लेने के लिए दर्द वाले अंग पर कम से कम 20 मिनट के लिए लगाये।
 
खुद का हीटिंग पैड बनाने की विधि 2
ज्याकदातर लोगों के घर की दराज में एक अकेला मोजा मिल ही जाता है। खैर, आप इस अकेले मोजे का अच्छाे उपयोग कर सकते है। अगर आपको गर्दन और कंधे का दर्द परेशान कर रहा है तो आपको एक जुर्राब और कुछ चावल की जरूरत है। बड़ा मोजा यानी ट्यूब जुर्राब होने यह पैड अच्छीक तरह से काम करता है।

बनाने का तरीका

• चावल को जुर्राब में भरें आप इसे इतना भरे ताकी आप इसे सिलाई, रबर बैंड या तार से अच्छे  से बंद सकें।  
• इसे माइक्रोवेव में दो मिनट के लिए रखें।
• फिर इसे माइक्रोवेव से निकालें और अपनी गर्दन और कंधे पर लगाये। लेकिन सावधान रहें क्योंाकि यह ज्याेदा गर्म हो सकता है। अगर आपका हीटिंग पैड ठंडा हो गया है और आपको कुछ और समय गर्मी की जरूरत है तो इसे फिर से 1 मिनट के लिए माइक्रोवेव करके दोबारा लगाये।

खुद का हीटिंग पैड बनाना सस्ताि और प्रभावी होने के साथ इलेक्ट्रिक हीटिंग पैड की तुलना में सुरक्षित भी होता है। साथ ही दर्द के दौरान आपको बाजार भी नहीं जाना पड़ता। लेकिन अगर आपके मांसपेशियों और जोड़ों का दर्द कई दिनों में तक बना रहता है तो अपने डॉक्टंर से संपर्क करें।

अलसी से सेक्स समस्याओं का बचाब

अलसी से सेक्स समस्याओं का बचाब

अलसी या फ्लैक्सीड की मदद से सेक्स से जुड़ी समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है। महिलाओं व पुरूषों में सेक्सुअली सक्षम न हो पाने का एक प्रमुख कारण है पेल्विस की रक्त वाहिनियों में रक्त का सही तरीके से प्रवाह न होना। फ्लैक्सीड के लगातार प्रयोग से रक्त वाहिनियां खुल जाती हैं। नब्बे के दशक में फ्लैक्सीड को एक अच्छा एफरोडाइसियेक्स माना जाता था एफरोडाइसियेक्स उत्तेजित करने वाले प्राकृतिक पदार्थ होते हैं।
 
पिछले कुछ दशकों से किसी भी बीमारी के प्राकृतिक तरीके से उपचार पर ज़्यादा जोर दिया जा रहा है, जिसके लिए जड़ी बूटियों व पौधों की मदद से उपचार  के तरीकों को अपनाया जा रहा है।  फ्लैक्सीड के प्रयोग से भी बहुत सी बीमारियों का उपचार खोजा जा रहा है। सेक्स से जुड़ी समस्याओं मे फ्लैक्सीड का उपयोग बहुत समय से किया जा रहा है।

अलसी लाभदायी क्यों है
 
• अलसी बहुत से कारणों से लाभदायी है, इन सभी कारणों में से एक कारण है अलसी में अल्फा लिनोलेनिक एसिड का पाया जाना जो कि ओमेगा 3 फैटी एसिड ग्रुप का एक भाग है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए ओमेगा 3 फैटी एसिड बहुत ही महत्वपूर्ण है।
• अलसी में लिग्नाज़ भी होते हैं जिनमें कि एण्टीआक्सिडेंट होने की वजह से ये कुछ प्रकार के कैंसर से भी सुरक्षा करते हैं जैसे प्रोसट्रेट कैंसर।
• 65 वर्ष से अधिक उम्र में पुरूषों में यह सबसे ज़्यादा पाया जाने वाला कैंसर है, हालांकि अगर समय रहते इस बीमारी का इलाज शुरू हो गया तो इससे बच पाना सम्भव होता है।
• इस बीमारी से सेक्स में समस्याएं आ सकती हैं। प्रोसट्रेट कैंसर का पता लगाने के बहुत से तरीके है लेकिन सबसे अच्छा और सबसे मुश्किल तरीका है डिजिटल रेक्टल परीक्षण। दूसरा तरीका है प्रोसट्रेट स्पेसिफिक एन्टीजन टेस्ट। इस टेस्ट में व्यक्ति के खून में एक खास एन्टीजन के पाये जाने से प्रोसट्रेट कैंसर के होने की पुष्टि होती है। लेकिन यह टेस्ट थोड़ा प्रतिद्वंदी होने के कारण बहुत ज़्यादा नहीं सराहा गया है क्योंकि कई बार यह कैंसर की पुष्टि ठीक तरीके से नहीं कर पाता।
• प्रोसट्रेट कैंसर की चिकित्सा से सेक्स पर प्रभाव पड़ने के साथ साथ ब्लैडर का नियंत्रण भी खो जाता है ा फ्लैक्सीड की मदद से सेक्स से जुड़ी समस्याओं के साथ साथ कैंसर की रोकथाम भी हो सकती है। अभी भी इस बात की पूरी तरह से पुष्टि नहीं हो पायी है कि फ्लैक्सीड की मदद से कैंसर कैसे ठीक हो सकता है लेकिन सालों से लोग इसका इस्तेमाल करते आ रहे है और इससे लाभ पाकर लोग इसे अपने खाने में शामिल करते हैं।
 
अलसी का सेवन करने वालों को एक बार डाक्टर से ज़्रूरूर सम्पर्क करना चाहिए। यह प्राकृतिक है लेकिन इसके साइड एफेक्ट हो सकते है और फ्लैक्सीड को पावडर या गोली के रूप में लेने वालो के लिए तो डाक्टर से सम्पर्क करना अनिवार्य है।

अलसी के असरकारी नुस्खे

अलसी के असरकारी नुस्खे 


 अलसी में कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, केरोटिन, थायमिन, राइबोफ्लेविन और नियासिन पाए जाते हैं। यह गनोरिया, नेफ्राइटिस, अस्थमा, सिस्टाइटिस, कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, कब्ज, बवासीर, एक्जिमा के उपचार में उपयोगी है। अलसी को धीमी आँच पर हल्का भून लें। फिर मिक्सर में दरदरा पीस कर किसी एयर टाइट डिब्बे में भरकर रख लें। रोज सुबह-शाम एक-एक चम्मच पावडर पानी के साथ लें। इसे सब्जी या दाल में मिलाकर भी लिया जा सकता है।
इसे अधिक मात्रा में पीस कर नहीं रखना चाहिए, क्योंकि यह खराब होने लगती है। इसलिए थोड़ा-थोड़ा ही पीस कर रखें। अलसी सेवन के दौरान पानी खूब पीना चाहिए। इसमें फायबर अधिक होता है, जो पानी ज्यादा माँगता है। एक चम्मच अलसी पावडर को 360 मिलीलीटर पानी में तब तक धीमी आँच पर पकाएँ जब तक कि यह पानी आधा न रह जाए। थोड़ा ठंडा होने पर शहद या शकर मिलाकर सेवन करें।
सर्दी, खाँसी, जुकाम में यह चाय दिन में दो-तीन बार सेवन की जा सकती है। अस्थमा में भी यह चाय बड़ी उपयोगी है। अस्थमा वालों के लिए एक और नुस्खा भी है। एक चम्मच अलसी पावडर आधा गिलास पानी में सुबह भिगो दें। शाम को इसे छानकर पी लें। शाम को भिगोकर सुबह सेवन करें। गिलास काँच या चाँदी का होना चाहिए।
अलसी के लड्डू 
सर्दियों के मौसम ने दस्तक दे दी है. इस मौसम में आपके परिवार को अधिक केयर की जरूरत है. अलसी (Linseeds or Flax Seeds) से बने खाद्य पदार्थ (Alsi Recipes) आपके परिवार को सर्दी जुकाम खांसी आदि से लड़ने की प्रतिरोधात्मक शक्ति देते हैं.

अलसी में ओमेगा-3 और ओमेगा-6 नाम के अम्ल होते हैं जो आपके शरीर के कोलोस्ट्रोल को संतुलित करते हैं.अपने पदार्थ गुण में अलसी के बीज अखरोट और बादाम को मात देते हैं लेकिन मूल्य में बहुत सस्ते. आयुर्वेद के अनुसार अलसी के बीज (Linseed or Flax Seeds) वात, पित्त और कफ को संतुलित करते हैं
अलसी की पिन्नी (Alsi Pinni) सर्दियो में खाई जाने वाली पारम्परिक पौष्टिक मिठाई है. अलसी की पिन्नी सर्दियों में बनाकर रख लीजिये, रोजाना 1-2 अलसी की पिन्नी (Alsi Ki Pinni) खाइये, सर्दी, जुकाम, खासी, जोड़ों के दर्द सभी में फायदा पहुंचाती है., तो आइये अलसी की पिन्नी बनाना (Alsi Ladoo or Alsi Ki Barfi) शुरू करें.
आवश्यक सामग्री – Imgredients for Alsi Ki Pinni
अलसी – 500 ग्राम ( 4 कप)
गेहूं का आटा – 500 ग्राम ( 4 कप)
देशी घी – 500 ग्राम ( 2/1/2 कप)
गुड़ या चीनी – 800 ग्राम ( 4 कप)
काजू – 100 ग्राम
बादाम – 100 ग्राम
पिस्ता – 1 टेबल स्पून
किशमिश – 1 टेबल स्पून
गोंद – 100 ग्राम
इलाइची – 15 (छील कर कूट लीजिये)
विधि – How to make Alsi Ki Pinni
अलसी (Linseeds or Flax Seeds) को थाली में डालकर अच्छी तरह छान बीन कर साफ कर लीजिये.

अलसी को सूखी कढ़ाई में डालिये, रोस्ट कीजिये (अलसी रोस्ट करते समय चट चट की आवाज करती है) औरमिक्सी से पीस लीजिये. इन्हें थोड़े दरदरे पीसिये, एकदम बारीक मत कीजिये.
गेंहू के आटे को आधा घी डाल कर ब्राउन होने तक और अच्छी महक आने तक भून लीजिये. भुने आटे को किसी थाली या ट्रे में निकाल कर रख लीजिये.
गोंद को बारीक तोड़ कर बचे हुये घी में तलिये, गरम घी में थोड़ा गोंद डालिये, गोंद फूल जाता है, हल्का ब्राउन होने पर थाली में निकालिये और सारा गोंद इसी तरह तल कर निकाल लीजिये. ठंडा होने पर तले हुये गोंद को चकले पर या किसी थाली में बेलन की सहायता से दबा दबा और बारीक कर लीजिये.
गोद तलने के बाद जो घी बचा हुआ है उसमें पिसी हुई अलसी को डालिये और कलछी से चला चला कर मीडियम और धीमी आग पर अच्छी महक आने तक भूनिये और थाली में निकाल लीजिये.
काजू, बादाम और पिस्ते छोटा छोटा काट लीजिये.
गुड़ या चीनी चीनी की मात्रा का आधा पानी मिलाकर कढ़ाई में डालिये और चाशनी बनने के लिये रखिये. चीनी घुलने तक चमचे से चलाइये और 1 तार की चाशनी तैयार कर लीजिये(चाशनी के टैस्ट के लिये चमचे से 1 बूंद चाशनी प्याली में गिरायें और ऊंगली अंगूठे के बीच चिपका कर देंखें कि जब ऊंगली और अंगूठे को अलग करें तो चाशनी से तार निकलना चाहिये). आग बन्द कर दीजिये.

चाशनी में भुना आटा, भुनी अलसी, काटे हुये मेवे, गोंद और इलाइची डाल कर अच्छी तरह मिला दीजिये. हल्का गरम रहने पर हाथ से थोड़ा थोड़ा (एक नीबू के बराबर) मिश्रण निकाल कर लड्डू बनाकर थाली में रखिये. सारे मिश्रण से लड्डू बनाकर तैयार कर लीजिये या हाथ से चौकोर आकार देते हुये बरफी बना लीजिये.
अगर आप बरफी जमाना चाहते हैं तब आप गरम मिश्रण को घी से की चिकनी की गई थाली में डालिये और एकसार करके जमा दीजिये. आधा घंटे या बरफी के जमने के बाद अपने मन पसन्द टुकड़ों में काट लीजिये.
अलसी की पिन्नी तैयार है, अलसी की पिन्नी को खाइये और बची हुई पिन्नी किसी एअर टाइट कन्टेनर में भर कर रख लीजिये और 1 महिने तक रोजाना अलसी की पिन्नी (Alsi Ki Pinni) खाइये.
सावधानियां
गोंद को तलते समय आग धीमी और मीडियम ही रखें, तेज आग पर गोंद अच्छा नहीं फूलता, ऊपर से भुनता है और अन्दर से कच्चा निकल आता है.
पिसी अलसी को मीडियम और धीमी आग पर ही भूनें (तेज आग पर भूनने से जलने का खतरा है).
चाशनी बनाते समय ध्यान रखें कि वह सही बने, चीनी पानी में घुलने के बाद ही चाशनी का टैस्ट कीजिये और 1तार की चाशनी बना लीजिये, चाशनी ज्यादा होने पर, वह तुरन्त जमने लगेगी और पिन्नी नहीं बन सकेगी, अगर चाशनी में तार नहीं बन रहा हो तो वह जमेगी ही नहीं और पिन्नी नरम रहेगी.
सूखे मेवे आप अपने पसन्द से कम ज्यादा कर सकते हैं, आपको जो मेवा पसन्द हो वह डाल सकते हैं और जो मेवा न पसन्द हो वह हटा सकते हैं.
अलसी का एक और चमत्कार
अलसी के एक और चमत्कार से डा.मनोहर भंडारी ने विगत दिनों साक्षात्कार कराया। जबलपुर-नागपुर रोड पर पाँच किलो मीटर दूर एक जैन तीर्थ है, पिसनहारी मांडिया। यह तीन सौ फुट ऊँची एक पहाड़ी पर बना है। चार सौ सीढ़ियाँ चढ़ कर उपर पहुँचना पड़ता है। डा.भंडारी जबलपुर मेडिकल कालेज में प्राध्यापक हैं और अक्सर पिसनहारी जाते रहते हैं। वहाँ एक मुनीमजी हैं, जिनके घुटनों में दर्द रहता था। एक दिन बोले डाक्टर साहब कोई दवा बताइए। सीढ़ियाँ चढ़ने में बड़ी तकलीफ होती है। डा.भंडारी ने उन्हें अलसी खाने की सलाह दी। मुनीमजी ने दूसरे ही दिन से अलसी का नियमित सेवन शुरू कर दिया। कुछ दिनों बाद जब डाक्टर भंडारी पिसनहारी मांडिया गए तो, मुनीमजी ने बड़ी प्रसन्नता के साथ बताया-डाक्टर सा.आपका अलसी वाला नुस्खा तो बड़ा कारगर रहा। आपके बताए अनुसार करीब तीन चम्मच अलसी रोज पीस कर खाता हूँ। घुटनों का दर्द गायब हो चुका है। चार सौ सीढ़ियाँ रोज चढ़ता हूँ। अब कोई कष्ट नहीं होता।
लाभकारी अलसी
अलसी, तीसी, अतसी, कॉमन फ्लेक्स और वानस्पतिक लिनभयूसिटेटिसिमनम नाम से विख्यात तिलहन अलसी के पौधे बागों और खेतों में खरपतवार के रूप में तो उगते ही हैं, इसकी खेती भी की जाती है। इसका पौधा दो से चार फुट तक ऊंचा, जड़ चार से आठ इंच तक लंबी, पत्ते एक से तीन इंच लंबे, फूल नीले रंग के गोल, आधा से एक इंच व्यास के होते हैं।
इसके बीज और बीजों का तेल औष्ाधि के रूप में उपयोगी है। अलसी रस में मधुर, पाक में कटु (चरपरी), पित्तनाशक, वीर्यनाशक, वात एवं कफ वर्घक व खांसी मिटाने वाली है। इसके बीज चिकनाई व मृदुता उत्पादक, बलवर्घक, शूल शामक और मूत्रल हैं। इसकातेल विरेचक (दस्तावर) और व्रण पूरक होता है।
अलसी की पुल्टिस का प्रयोग गले एवं छाती के दर्द, सूजन तथा निमोनिया और पसलियों के दर्द में लगाकर किया जाता है। इसके साथ यह चोट, मोच, जोड़ों की सूजन, शरीर में कहीं गांठ या फोड़ा उठने पर लगाने से शीघ्र लाभ पहुंचाती है। एंटी फ्लोजेस्टिन नामक इसका प्लास्टर डॉक्टर भी उपयोग में लेते हैं। चरक संहिता में इसे जीवाणु नाशक माना गया है। यह श्वास नलियों और फेफड़ों में जमे कफ को निकाल कर दमा और खांसी में राहत देती है।
इसकी बड़ी मात्रा विरेचक तथा छोटी मात्रा गुर्दो को उत्तेजना प्रदान कर मूत्र निष्कासक है। यह पथरी, मूत्र शर्करा और कष्ट से मूत्र आने पर गुणकारी है। अलसी के तेल का धुआं सूंघने से नाक में जमा कफ निकल आता है और पुराने जुकाम में लाभ होता है। यह धुआं हिस्टीरिया रोग में भी गुण दर्शाता है। अलसी के काढ़े से एनिमा देकर मलाशय की शुद्धि की जाती है। उदर रोगों में इसका तेल पिलाया जाता हैं।
अलसी के घरेलू उपयोग
अलसी के तेल और चूने के पानी का इमल्सन आग से जलने के घाव पर लगाने से घाव बिगड़ता नहीं और जल्दी भरता है।
पथरी, सुजाक एवं पेशाब की जलन में अलसी का फांट पीने से रोग में लाभ मिलता है।
अलसी के कोल्हू से दबाकर निकाले गए (कोल्ड प्रोसेस्ड) तेल को फ्रिज में एयर टाइट बोतल में रखें। स्नायु रोगों, कमर एवं घुटनों के दर्द में यह तेल पंद्रह मि.ली. मात्रा में सुबह-शाम पीने से काफी लाभ मिलेगा।
इसी कार्य के लिए इसके बीजों का ताजा चूर्ण भी दस-दस ग्राम की मात्रा में दूध के साथ प्रयोग में लिया जा सकता है। यह नाश्ते के साथ लें।
बवासीर, भगदर, फिशर आदि रोगों में अलसी का तेल (एरंडी के तेल की तरह) लेने से पेट साफ हो मल चिकना और ढीला निकलता है। इससे इन रोगों की वेदना शांत होती है।
n अलसी के बीजों का मिक्सी में बनाया गया दरदरा चूर्ण पंद्रह ग्राम, मुलेठी पांच ग्राम, मिश्री बीस ग्राम, आधे नींबू के रस को उबलते हुए तीन सौ ग्राम पानी में डालकर बर्तन को ढक दें। तीन घंटे बाद छानकर पीएं। इससे गले व श्वास नली का कफ पिघल कर जल्दी बाहर निकल जाएगा। मूत्र भी खुलकर आने लगेगा।
इसकी पुल्टिस हल्की गर्म कर फोड़ा, गांठ, गठिया, संधिवात, सूजन आदि में लाभ मिलता है।
- वैद्य हरिमोहन शर्मा
प्राकृतिक सुपर फूड : अलसी
ताजगी देता है अलसी का सेवन
अलसी के बीज हल्की तैलीय गंधयुक्त होते हैं जिनमें मुख्य रूप से ग्लिसराइड्स व अनेक महत्वपूर्ण वसीय अम्ल जैसे लिनोलिक व लिनोलेनिक एसिड, पामिटिक, स्टियरिक, ओलिक एसिड के अलावा आमेगा 3 फेटी एसिड जो हृदय को स्वस्थ रखते हैं आदि पाए जाते हैं। इसके अलावा अलसी में कुछ मात्रा में चीनी, प्रोटीन, कैल्शियम,पोटेशियम, लोहा, जिंक फॉस्फोरस भी पाया जाता है। इसमें कोलेस्ट्रॉल व सोडियम की मात्रा अत्यंत कम तथा रेशे की मात्रा प्रचुर होती है।
यूनाइटेड स्ट्रेट्रम के कृषि विशेषज्ञों के अनुसार अलसी के बीजों में 27 प्रकार के कैंसररोधी तत्व खोजे जा चुके हैं। अलसी में पाए जाने वाले ये तत्व कैंसररोधी हार्मोन्स को प्रभावी बनाते हैं, विशेषकर पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर व महिलाओं में स्तन कैंसर की रोकथाम में अलसी का सेवन कारगर है।
अलसी के सेवन से इतने लाभ प्राप्त होने के कारण ही इसे आजकल ‘सुपर-फूड‘ की श्रेणी में रखा जाने लगा है। शोध अध्ययन बताते हैं कि अन्य भोज्य पदार्थों की तुलना में अलसी के बीजों में प्लांट हार्मोन लिगनन्म की मात्रा 800 गुना अधिक होती है। जो कैंसर से बचाव व ह्रदय को स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं।
फायदे 
ऊर्जा, स्फूर्ति व जीवटता प्रदान करता है।
तनाव के क्षणों में शांत व स्थिर बनाए रखने में सहायक है।
कैंसररोधी हार्मोन्स की सक्रियता बढ़ाता है।
रक्त में शर्करा तथा कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करता है।
जोड़ों का कड़ापन कम करता है।
प्राकृतिक रेचक गुण होने से पेट साफ रखता है।
हृदय संबंधी रोगों के खतरे को कम करता है।
उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करता है।
त्वचा को स्वस्थ रखता है एवं सूखापन दूर कर एग्जिमा आदि से बचाता है।
बालों व नाखून की वृद्धि कर उन्हें स्वस्थ व चमकदार बनाता है।
इसका नियमित सेवन रजोनिवृत्ति संबंधी परेशानियों से राहत प्रदान करता है। मासिक धर्म के दौरान ऐंठन को कम कर गर्भाशय को स्वस्थ रखता है।
अलसी का सेवन त्वचा पर बढ़ती उम्र के असर को कम करता है।
अलसी का सेवन भोजन के पहले या भोजन के साथ करने से पेट भरने का एहसास होकर भूख कम लगती है। इसके रेशे पाचन को सुगम बनाते हैं, इस कारण वजन नियंत्रण करने में अलसी सहायक है।
चयापचय की दर को बढ़ाता है एवं यकृत को स्वस्थ रखता है।
प्राकृतिक रेचक गुण होने से पेट साफ रख कब्ज से मुक्ति दिलाता है।
डायबिटीज के नियंत्रण की कुंजी- अलसी
पिछले कुछ दशकों में भारत समेत पूरे विश्व में डायबिटीज टाइप-2 के रोगियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है व अब तो यह किशोरों और बच्चों को भी अपना शिकार बना रही है। डायबिटीज एक महामारी का रुप ले चुकी है। आइये हम जानने की कोशिश करते हैं कि पिछले कुछ दशकों में हमारे खान-पान, जीवनचर्या या वातावरण में ऐसा क्या बदलाव आया है।
शोधकर्ताओं के अनुसार जब से परिष्कृत यानी “रिफाइन्ड तेल” (जो बनते समय उच्च तापमान, हेग्जेन, कास्टिक सोडा, फोस्फोरिक एसिड, ब्लीचिंग क्ले आदि घातक रसायनों के संपर्क से गुजरता है), ट्रांसफेट युक्त पूर्ण या आंशिक हाइड्रोजिनेटेड वसा यानी वनस्पति घी (जिसका प्रयोग सभी पैकेट बंद खाद्य पदार्थों व बेकरी उत्पादनों में धड़ल्ले से किया जाता है), रासायनिक खाद, कीटनाशक, प्रिजर्वेटिव, रंग, रसायन आदि का प्रयोग बढ़ा है तभी से डायबिटीज के रोगियों की संख्या बढ़ी है। हलवाई और भोजनालय भी वनस्पति घी या रिफाइन्ड तेल का प्रयोग भरपूर प्रयोग करते हैं और व्यंजनों को तलने के लिए तेल को बार-बार गर्म करते हैं जिससे वह जहर से भी बदतर हो जाता है। शोधकर्ता इन्ही को डायबिटीज का प्रमुख कारण मानते हैं।
पिछले तीन-चार दशकों से हमारे भोजन में ओमेगा-3 वसा अम्ल की मात्रा बहुत ही कम हो गई है और इस कारण हमारे शरीर में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 वसा अम्ल यानी हिंदी में कहें तो ॐ-3 और ॐ-6 वसा अम्लों का अनुपात 1:40 या 1:80 हो गया है जबकि यह 1:1 होना चाहिये। यह भी डायबिटीज का एक बड़ा कारण है। डायबिटीज के नियंत्रण हेतु आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक व दैविक भोजन अलसी को “अमृत“ तुल्य माना गया है।

अलसी की फाइबर युक्त स्वास्थयप्रद रोटीः
अलसी ब्लड शुगर नियंत्रित रखती है व डायबिटीज से शरीर पर होने वाले दुष्प्रभावों को कम करती है। डायबिटीज के रोगी को कम शर्करा व ज्यादा फाइबर खाने की सलाह दी जाती है। अलसी व गैहूं के मिश्रित आटे में (जहां अलसी और गैहूं बराबर मात्रा में हो) 50 प्रतिशत कार्ब, 16 प्रतिशत प्रोटीन व 20 प्रतिशत फाइबर होते हैं यानी इसका ग्लायसीमिक इन्डेक्स गैहूं के आटे से काफी कम होता है। जबकी गैहूं के आटे में 72 प्रतिशत कार्ब, 12.5 प्रतिशत प्रोटीन व 12 प्रतिशत फाइबर होते हैं। डायबिटीज पीडित के लिए इस मिश्रित आटे की रोटी सर्वोत्तम मानी गई है।
डायबिटीज के रोगी को रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स जैसे आलू, सफेद चावल, मेदा, चीनी और खुले हुए या पैकेट बंद सभी खाद्य पदार्थ, जंक फूड, फास्ट फूड, सोफ्ट ड्रिंक आदि का सेवन कतई नहीं करना चाहिये। रोज 4 से 6 बार परन्तु थोड़ा-थोड़ा भोजन करना चाहिये। सांयकालीन भोजन सोने के 4-5 घण्टे पहले ग्रहण करना चाहिये। प्याज, लहसुन, गोभी, टमाटर, पत्तागोभी, मेथी, भिण्डी, पालक, बैंगन, लौकी, ऑवला, गाजर, नीबू आदि हरी सब्जीयां भरपूर खानी चाहिये। फलों में जामुन, सेब, संतरा, अंगूर, पपीता, आम, केला आदि सभी फल खाने चाहिये। खाद्यान्न व दालें भी छिलके समेत खाएं। छिलकों में फाइबर व महत्वपूर्ण विटामिन होते हैं। अंकुरित दालों का सेवन अवश्य करें।
रोज सुबह एक घण्टा व शांम को आधा घण्टा पैदल चलना चाहिये। सुबह कुछ समय प्राणायाम, योग व व्यायाम करना चाहिये। रोजाना चुटकी भर पिसी हुई दालचीनी सब्जी या चाय में मिला कर लेना चाहिये। सर्व विदित है कि क्रोमियम और अल्फा-लाइपोइक एसिड शर्करा के चयापचय में सहायक हैं अतः डाटबिटीज के रोगी को रोज 200 माइक्रोग्राम क्रोमियम और 100 माइक्रोग्राम अल्फा-लाइपोइक एसिड लेना ही चाहिये। अधिकतर एंटीऑक्सीडेंट केप्स्यूल में ये दोनो तत्व होते हैं। मेथीदाना, करेला, जामुन के बीज, आंवला, नीम के पत्ते, घृतकुमारी (गंवार पाठा) आदि का सेवन करें। एक कप कलौंजी के बीज, एक कप राई, आधा कप अनार के छिलके और आधा कप पितपाप्र को पीस कर चूर्ण बना लें। आधी छोटी चम्मच कलौंजी के तेल के साथ रोज नाश्ते के पहले एक महीने तक लें।
डायबिटीज के दुष्प्रभावों में अलसी का महत्वः-
हृदय रोग एवं उच्च रक्तचापः-
डायबिटीज के रोगी को उच्च रक्तचाप, कोरोनरी आर्टरी डिजीज, हार्ट अटेक आदि की प्रबल संभावना रहती हैं। अलसी हमारे रक्तचाप को संतुलित रखती हैं। अलसी हमारे रक्त में अच्छे कॉलेस्ट्राल (HDL Cholesterol) की मात्रा को बढ़ाती है और ट्राइग्लीसराइड्स व खराब कोलेस्ट्रोल (LDL Cholesterol) की मात्रा को कम करती है। अलसी दिल की धमनियों में खून के थक्के बनने से रोकती है और हृदयाघात से बचाव करती हैं। हृदय की गति को नियंत्रित कर वेन्ट्रीकुलर एरिद्मिया से होने वाली मृत्यु दर को बहुत कम करती है।
नैत्र रोगः-
डायबिटीज के दुष्प्रभावों के कारण आँखों के दृष्टि पटल की रक्त वाहिनियों में कहीं-कहीं हल्का रक्त स्राव और रुई जैसे सफेद धब्बे बन जाते हैं। इसे रेटीनोपेथी कहते हैं जिसके कारण आँखों की ज्योति धीरे-धीरे कम होने लगती है। दृष्टि में धुंधलापन आ जाता है। अंतिम अवस्था में रोगी अंधा तक हो जाता है। अलसी इसके बचाव में बहुत लाभकारी पाई गई है। डायबिटीज के रोगी को मोतियाबिन्द और काला पानी होने की संभावना ज्यादा रहती है। ऑखों में रोजाना एक बूंद अलसी का तेल डालने से हम इन तकलीफों से बच सकते हैं। इससे नजर अच्छी हो जाती हैं, रंग ज्यादा स्पष्ट व उजले दिखाई देने लगते हैं तथा धीरे-धीरे चश्मे का नम्बर भी कम हो सकता है।
वृक्क रोगः-
डायबिटीज का बुरा असर गुर्दों पर भी पड़ता है। गुर्दों में डायबीटिक नेफ्रोपेथी नामक रोग हो जाता है, जिसकी आरंम्भिक अवस्था में प्रोटीन युक्त मूत्र आने लगता है, बाद में गुर्दे कमजोर होने लगते हैं और अंत में गुर्दे नाकाम हो जाते हैं। फिर जीने के लिए डायलेसिस व गुर्दा प्रत्यारोपण के सिवा कोई रास्ता नहीं बचता हैं। अलसी गुर्दे के उत्तकों को नयी ऊर्जा देती है। शिलाजीत भी गुर्दे का कायाकल्प करती है, डायबिटीज के दुष्प्रभावों से गुर्दे की रक्षा करती है व रक्त में शर्करा की मात्रा कम करती है। डायबिटीज के रोगी को शिलाजीत भी लेना ही चाहिये।
पैरः-
डायबिटीज के कारण पैरों में रक्त का संचार कम हो जाता है व पैरों में एसे घाव हो जाते हैं जो आसानी से ठीक नहीं होते। इससे कई बार गेंग्रीन बन जाती है और इलाज हेतु पैर कटवानाक पड़ जाता हैं। इसी लिए डायबिटीज पीड़ितों को चेहरे से ज्यादा अपने पैरों की देखभाल करने की सलाह दी जाती है। पैरों की नियमित देखभाल, अलसी के तेल की मालिश व अलसी खाने से पैरों में रक्त का प्रवाह बढ़ता हैं, पैर के घाव व फोड़े आदि ठीक होते हैं। पैर व नाखुन नम, मुलायम व सुन्दर हो जाते हैं।
अंतिम दो शब्दः-
डायबिटीज में कोशिका स्तर पर मुख्य विकृति इन्फ्लेमेशन या शोथ हैं। जब हम स्वस्थ आहार-विहार अपना लेते हैं और अलसी सेवन करते हैं तो हमें पर्याप्त ओमेगा-3 ए.एल.ए. मिलता हैं और हमारे शरीर में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 वसा अम्ल का अनुपात सामान्य हो जाता है व डायबिटीज का नियंत्रण आसान हो जाता है और इंसुलिन या दवाओं की मात्रा कम होने लगती है।

चेहरे की झुर्रियाँ ख़त्म हो जाएँगी, अग

चेहरे की झुर्रियाँ ख़त्म हो जाएँगी, अगर करेंगे ये उपाय!

यूँ तो झुर्रियों का आना, एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और बढ़ती उम्र के साथ-साथ चेहरे पर झुर्रियाँ आ जाना एक आम बात है, परंतु त्वचा की सही देखभाल न होने पर समय से पहले ही झुर्रियाँ नज़र आने लगती हैं। ऐसे तो आधुनिकता के इस युग में बोटॉक्स और लेज़र तकनीक जैसे कई उपाय मौजूद हैं, जो आपकी बढ़ती उम्र के असर को छुपा सकते हैं। परंतु ये उपाय बहुत महँगे होने के साथ-साथ बहुत ख़तरनाक भी हैं, क्यूँकि अगर ये कुशल चिकित्सक की देखरेख में ना किए जाएँ तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
बढ़ती उम्र को रोकना बेशक हमारे हाथ में नहीं है, परंतु कुछ घरेलू उपायों से हम बढ़ती उम्र को दर्शाने वाली इन झुर्रियों को कम ज़रूर कर सकते हैं। बढ़ती उम्र के साथ-साथ अन्य कई कारण भी होते हैं जो कि असमय ही चेहरे पर झुर्रियों को न्यौता दे देते हैं। इन कारणों पर अगर समय रहते क़ाबू पा लिया जाए तो हम झुर्रियों को चेहरे पर झलकने से रोक सकते हैं।
 झुर्रियों के कारण-
• एजिंग-एजिंग यानी की बढ़ती उम्र। हम सभी जानते हैं कि बढ़ती उम्र के साथ झुर्रियों का आना आम बात है।
• धूम्रपान-बीड़ी, सिगरेट इत्यादि के सेवन से त्वचा कांतिहीन हो जाती है, मुरझाई-सी दिखने लगती है। त्वचा रूखी पड़ जाती है और झुर्रियाँ नज़र आने लगती हैं।
• फ़्री-रेडिकल्स-फ़्री रेडिकल्स ऐसे परमाणु या परमाणु समूह होते हैं, जिनमें odd या unpaired इलेक्ट्रॉन होता है। ऐसे परमाणु ऑक्सिजन के सम्पर्क में आने से बेहद रीऐक्टिव हो जाते हैं और हमारे DNA, रक्त वाहिकाओं और सेल मेम्ब्रेन को नुक़सान पहुँचा सकते हैं। फ़्री रेडिकल्स की वजह से एजिंग, कैन्सर  हो सकता है।
• धूप में ज़्यादा रहना-अत्यधिक धूप में रहने के कारण हमारे चेहरे पर अनेक प्रकार की समस्याएँ होने लगती हैं, उनमें झुर्रियाँ भी शामिल हैं।
• तनाव-अत्यधिक तनाव की वजह से भी हमारा शरीर असमय बुढ़ापे के लक्षण दिखाने लगता है। चेहरे की त्वचा कांतिहीन हो जाती है और झुर्रियाँ आने लगती हैं।
• पोषण का अभाव-समय से पहले एजिंग की प्रॉब्लम का सबसे बड़ा कारण है असंतुलित खानपान। आजकल जंक फ़ूड के बढ़ते हुए चलन और तली हुई चीज़ें अधिक खाने से शरीर में वसा जमा होती जाती है, शरीर को आवश्यक विटामिन और मिनरल नहीं मिल पाते हैं और हमारी त्वचा समय से पहले ही बूढ़ी होने लगती है।
• डिहाइड्रेशन-शरीर में पानी की कमी होने से त्वचा की नमी ख़त्म होने लगती है और त्वचा रूखी सूखी नज़र आने लगती हैं। ज़रूरी नमी ना मिलने की वजह से त्वचा में झुर्रियाँ पड़ने लगती हैं।
• प्रदूषण-प्रदूषण का ना सिर्फ़ हमारे स्वास्थ्य बल्कि हमारी त्वचा पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। त्वचा पर दाग़ धब्बे, मुहाँसे और रूखापन आ जाता है। असमय झुर्रियाँ आने लगती हैं।
• त्वचा की देखभाल न करना-त्वचा की सही तरीक़े से देखभाल ना करना भी झुर्रियों के लिए ज़िम्मेदार है। त्वचा की नियमित रूप से साफ़ सफ़ाई व उचित पोषण बेहद ज़रूरी है।
झुर्रियों के लक्षण-
• चेहरे का बेजान होना।
• त्वचा का रूखापन।
• माथे में छोटी-छोटी लकीरों का पड़ना।
• आँखों के पास महीन सिलवटें पड़ना।
• होंठों के पास महीन रेखाएँ पड़ना।
झुर्रियों को रोकने के उपाय-
• संतुलित आहार लें-अच्छी सेहत के साथ-साथ स्वस्थ त्वचा के लिए संतुलित भोजन खाना अतिआवश्यक होता है। हमारे भोजन में फल, सब्ज़ियाँ, अनाज, दूध, दालें इत्यादि हर चीज़ शामिल होनी चाहिए. फलों और सब्ज़ियों में सभी प्रकार के विटामिन और मिनरल मौजूद होते हैं, जो की हमें बीमारियों से दूर रखने के साथ-साथ हमारी त्वचा को भी कांतिमय बनाए रखते हैं और एजिंग की प्रॉब्लम को हमसे दूर रखते हैं। आँवला, पपीता, तरबूज़, संतरा, अंकुरित दालें इत्यादि खाने से शरीर को पोषक तत्व मिलते हैं, जो की त्वचा को सुंदर और कोमल बनाए रखने के लिए ज़रूरी होते हैं।
• पानी अधिक पिएँ-दिन में कम से कम आठ दस गिलास पानी ज़रूर पिएँ। शरीर में पानी की सही मात्रा होने से हमारा पाचन तंत्र सही रहता है और त्वचा में नमी बनी रहती है। त्वचा में नमी बने रहने से असमय उम्र बढ़ने के लक्षण यानी झुर्रियाँ नहीं दिखाई देती।
• नारियल पानी पिएँ-रोज़ाना एक नारियल का पानी पिएँ। एक नारियल में क़रीब दो सौ मिलीलीटर पानी होता है। नारियल पानी एक कम कैलोरी वाला पेय है, इसमें एंटीऑक्सिडेंटस्, अमीनो ऐसिडस्, एंजाईमस्, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, विटामिन-सी और कई तरह के सॉल्ट भी होते हैं। नारियल पानी पीने से शरीर में पानी की कमी नहीं होती और इसमें मौजूद cytokinin त्वचा की कोशिकाओं और उत्तकों पर सकारात्मक प्रभाव डाल कर बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करता है। फ़्री रेडिकल्स के ख़तरनाक प्रभाव को कम करने के लिए एंटीऑक्सिडेंटस् बेहद आवश्यक होते हैं।
• नशीले पदार्थों से तौबा करें-धूम्रपान और शराब के सेवन से तौबा करें, इससे आपकी त्वचा असमय बूढ़ी होने से बचेगी।
• नियमित व्यायाम करें-नियमित सैर, योगा और व्यायाम करने से शरीर स्वस्थ रहता है और टॉक्सिक पदार्थ पसीने के साथ शरीर से बाहर निकल जाते हैं। इससे आपकी त्वचा कांतिमय बनी रहती है, ढीली नहीं पड़ती। त्वचा में उचित कसाव रहने से झुर्रियों को समस्या नहीं होती है।
झुर्रियां दूर करने के 10 घरेलू उपाय (Top 10 Home Remedies For Wrinkles)
झुर्रियां आना मतलब बुढ़ापे की दस्तक। त्वचा में मौजूद कोलाजेन (Collagen) उम्र बढ़ने के साथ कम होने लगता है परिणाम स्वरुप त्वचा पर झुर्रियां नज़र आती हैं। हालांकि झुर्रियां आना बायोलॉजिकल प्रोसेस है लेकिन त्वचा की सही देखभाल न होने पर समय से पहले ही झुर्रियां नज़र आने लगती हैं।
आजकल झुर्रियों से निपटने के लिए बोटॉक्स और कई तरह के लेज़र तकनीक इस्तेमाल की जा रही हैं लेकिन अगर यह ठीक तरह से ने की जाएं या कुशल चिकित्सक के नेतृत्व में न हो तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। साथ ही सबकी त्वचा पर यह ट्रीटमेंट सूट करें यह भी संभव नहीं है। इनके लिए मोटी रकम भी खर्च करनी पड़ती है जो हरेक के लिए संभव नहीं। ऐसे में कुछ घरेलू उपाय ऐसे हैं जिनसे बिना नुकसान, बिना खर्च के झुर्रियों से निजात संभव है।
झुर्रियों के कारण (Reason of Wrinkles)
- एजिंग
- धूम्रपान
- फ्री रेडिकल्स
- धूप में ज्यादा रहना
- तनाव
- पोषण का अभाव
- जेनेटिक्स
- डिहाइड्रेशन
- प्रदूषण
- त्वचा की देखभाल न करना
लक्षण (Symptoms for Wrinkles)
- माथे पर लकीरों का दिखना
- आँखों के आस पास सिलवटें नजर आना
- होंठो के पास महीन रेखाएं
- बेजान चेहरा
घरेलू उपाय- (Top 10 Home Remedies for Wrinkles)
1. मिल्क पाउडर (Milk Powder)- 2 बड़े चम्मच शहद, 4 बड़े चम्मच  मिल्क पाउडर और 2 बड़े चम्मच गर्म पानी। सभी को मिलाकर चेहरे और गर्दन पर लगाएं। शहद से चेहरे पर ग्लो आता है और मिल्क पाउडर से चेहरा स्मूथ और रिंकल फ्री होगा।
2. अनानास (Pineapple)- अनानास में विटामिन सी पाया जाता है जो त्वचा के लिए बहुत अच्छा है, खासकर झुर्रियों वाली त्वचा के लिए। अनानास के पल्प को 10 मिनट चेहरे पर लगाएं और चेहरा धो दें। अनानास का रस भी इस्तेमाल किया जा सकता है। रस से सर्कुलर मोशन में मालिश करें और कुछ देर बाद चेहरा धो दें। जब तक चेहरा सूख ना जाए उसे रगड़ें नहीं।
3. नारियल तेल (Coconut Oil)- नारियल का तेल गर्म करके चेहरे की मसाज करें। झुर्रियों से निजात के लिए बेहतरीन उपाय है। साथ ही चेहरे में कसाव भी आता है।
4. केला (Banana)- पके हुए केले को अच्छी तरह मसलकर क्रीम जैसी कंसिस्टेंसी बनाएं। आधा घंटा चेहरे पर लगा रहने दें। सादे पानी से चेहरा धो दें। चेहरे को पोंछे नहीं, अपने आप सूखने दें।
5. बादाम का तेल (Almond Oil)- बादाम का तेल भी झुर्रियां हटाने में कारगर है। रोज रात में बादाम के तेल से चेहरे की मसाज करें। इस तेल से आँखों के काले घेरे भी कम हो जाते हैं।
6. पानी (Water)- सबसे आसान और लाभकारी उपाय है पानी। दिन की शुरुआत 2 गिलास पानी से करें। हर एक घंटे पर पानी पीने का नियम बनाएं। इस तरह एक दिन में 10 से 12 गिलास पानी जरूर पीयें। पानी से त्वचा पर नेचुरल ग्लो आता है और झुर्रियां नहीं पड़तीं।
7. मुल्तानी मिट्टी (Fuller's Earth)- चेहरे पर कसाव लाने और महीन रेखाओं से निजात दिलाने में मुल्तानी मिट्टी काफी फायदेमंद है। मुल्तानी मिट्टी को आधा घंटे पहले पानी में भिगा दें जब यह गल जाए इसमें खीरे का रस, टमाटर का रस और शहद मिलाएं। इस मिश्रण को चेहरे पर लगायें। ध्यान रखें कि इस पैक को हमेशा लेट कर लगाएं और पैक लगाने के बाद हँसें या बोले नहीं।
8. उड़द की दाल (Urad Dal)- उड़द की दाल को रातभर दूध में भिगाकर सुबह पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को चेहरे पर लगाएं। समय से पहले आने वाली एजिंग से बचाव होगा, साथ ही रंगत भी निखरेगी।
9. ऑलिव ऑयल (Olive Oil)- ऑलिव ऑयल भी चेहरे के लिए बेहद फायदेमंद है। इसकी मालिश भी चेहरे में चमक लाती है। रंग निखरता है और फाइन लाइन्स कम होती हैं।
10. मलाई और शहद (Cream and Honey)- मलाई, शहद और नींबू को मिलकर चेहरे की मसाज करें। 10 मिनट बाद चेहरा धो दें। झुर्रियों से निजात मिलेगी और चेहरे पर चमक आएगी।
यह भी रखें ध्यान-
- सनस्क्रीन लगाकर ही घर से बाहर जाएं
- आँखों पर चश्मा पहनें
- भरपूर नींद लें
- त्वचा को हमेशा मॉइश्चराज्ड रखें
- धूम्रपान और तनाव से दूर रहें

अनन्नास के औषधीय प्रयोग

अनन्नास के औषधीय प्रयोग 

"1 अजीर्ण (अपच) होने पर:-*पके अनन्नास के बारीक टुकड़े को सेंधानमक और कालीमिर्च मिलाकर खाने से अजीर्ण दूर होता है।
*पके अनन्नास के 100 ग्राम रस में 1-2 पीस अंगूर और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग सेंधानमक मिलाकर खाने से 
अजीर्ण दूर होता है।
*भोजन के बाद यदि पेट फूल जाये, बैचेनी हो तो अनन्नास के 20-50 ग्राम रस के सेवन से लाभ होता है।
*अनन्नास और खजूर के टुकड़े बराबर-बराबर लेकर उसमें घी और शहद मिलाकर कांच के बरतन में भरकर रखें। इसे नित्य 6 या 12 ग्राम की मात्रा में खाने से बहुमूत्र रोग दूर होता है और शक्ति बढ़ती है।"

2 पेट में बाल चला जाने पर:-*पका हुआ अनन्नास खाने से पेट में बाल चले जाने से उत्पन्न हुई पीड़ा खत्म हो जाती है।
*पके अनन्नास के छिले हुए टुकड़ों पर कालीमिर्च और सेंधानमक डालकर खाने से खाया हुआ बाल कांटा या कांच पेट में गल जाता है।"

3 बहुमूत्र (पेशाब का बार-बार आना) का रोग:-*पके हुए अनन्नास को काटकर उसमें कालीमिर्च का चूर्ण और चीनी मिलाकर खाना चाहिए।
*अनन्नास के छोटे-छोटे टुकड़ों पर पीपर का चूर्ण छिड़कर खाने से बहुमूत्र का रोग दूर हो जाता है। पके अनन्नास का छिलका और उसके भीतर का अंश निकालकर शेष भाग का रस निकाल लें फिर इसमें जीरा, जायफल, पीपर कालानमक और थोड़ा-सा अम्बर डालकर पीने से भी बहुमूत्र का रोग मिटता है।
*अनन्नास के टुकड़ों पर पीपर का चूर्ण डालकर खाने से बहुमूत्र के विकार में बहुत लाभ होता "

4 अनन्नास का मुरब्बा:-पके अनन्नास के ऊपर का छिलका और बीच का सख्त हिस्सा निकाल लें, उसके बाद फल के छोटे-छोटे टुकड़े करके उन्हें एक दिन चूने के पानी में रखें। दूसरे दिन उन्हें चूने के पानी में से बाहर निकालकर सुखा दें। उसके बाद चीनी की चाशनी बनाकर अनन्नास के टुकड़ों को उसमें डाल दें। इसके बाद नीचे उतार लें और ठंडा होने पर उसमें थोड़ी-सी इलायची पीसकर, थोड़ा गुलाब जल को डालकर मुरब्बा बनाकर सुरक्षित रख लें। यह मुरब्बा पित्त का शमन करता है और मन को प्रसन्न करता है।

5 शरीर की गर्मी को शांत करने वाला:-पके अनन्नास के छोटे-छोटे टुकड़े करके उनको कुचलकर रस निकालें उसके बाद इस रस से दुगुनी चीनी लेकर उसकी चासनी बनाएं। इस चाशनी में अनन्नास का रस डालकर शर्बत बनाएं। यह योग गर्मी को नष्ट करता है, हृदय को बल प्रदान करता है और पित्त को प्रसन्न करता है।

6 रोहिणी या कण्ठ रोहिणी:-अनन्नास का रस रोहिणी की झिल्ली को काट देता है, गले को साफ रखता है। इसकी यह प्रमुख प्राकृतिक औषधि है। ताजे अनन्नास में पेप्सिन पित्त का एक प्रधान अंश होता है जिसमें गले की खराश में लाभ होता है।

7 सूजन:-*शरीर की सूजन के साथ पेशाब कम आता हो, एल्बब्युमिन मूत्र के साथ जाता हो, मंदाग्नि हो, आंखों के आस-पास और चेहरे पर विशेष रूप से सूजन हो तो ऐसी दशा में नित्यप्रति अनन्नास खायें और खाने में सिर्फ दूध पर रहें। तीन सप्ताह में लाभ हो जाएगा।
*100 ग्राम की मात्रा में रोजाना अनन्नास का जूस (रस) पीने से यकृत वृद्धि के कारण होने वाली सूजन खत्म हो जाती है।
*रोजाना पका हुआ अनन्नास खाने और भोजन में केवल दूध का प्रयोग करने से पेशाब के कम आने के कारण, यकृत बढ़ने के कारण, भोजन के अपच आदि कारणों से आने वाली सूजन दूर हो जाती है। ऐसा लगभग 21 दिनों तक करने से सूजन पूरी तरह से खत्म हो जाती है।
*अनन्नास के पत्तों पर एरंड तेल चुपड़कर कुछ गर्म करें और सूजन पर बांध दें। इससे सूजन विशेषकर पैरों की सूजन तुरंत दूर हो जाती है।
*अनन्नास का रस पीने से 7 दिनों में ही शारीरिक सूजन नष्ट होती है।"

8 शक्तिवर्द्धक:-अनन्नास घबराहट को दूर करता है। प्यास कम करता है, शरीर को पुष्ट करता है और तरावट देता है। खांसी-जुकाम नहीं करता। दिल और दिमाग को ताकत देता है। अनन्नास का रस पीने से शरीर के अस्वस्थ अंग स्वस्थ हो जाते हैं। गर्मियों में अनन्नास का शर्बत पीने से तरी, ताजगी और ठंडक मिलती है, प्यास बुझती है, पेट की गर्मी शांत होती है, पेशाब खुलकर आता है पथरी में इसीलिए यह लाभकारी है।

9 फुन्सियां:-अनन्नास का गूदा फुन्सियों पर लगाने से लाभ होता है।

10 मोटापा होने पर:-प्रतिदिन अनन्नास खाने से स्थूलता नष्ट होती है, क्योंकि अनन्नास वसा (चर्बी) को नष्ट करता है।

11 अम्लपित्त की विकृति:-अनन्नास को छीलकर बारीक-बारीक टुकड़े करके, उनपर कालीमिर्च का चूर्ण डालकर खाने से अम्लपित्त की विकृति नष्ट होती है।

12 खून की कमी (रक्ताल्पता):-यदि शरीर में खून की कमी हो तो अनन्नास खाने व रस पीने से बहुत लाभ होता है। अनन्नास से रक्तवृद्धि होती है और पाचन क्रिया तीव्र होने से अधिक भूख लगती है।

13 बच्चों के पेट में कीडे़ होने पर:-कुछ दिनों तक सुबह-शाम अनन्नास का रस पिलाएं। इससे कीडे़ शीघ्र नष्ट होते हैं

14 गुर्दे की पथरी:-अनन्नास खाने व रस पीने से बहुत लाभ होता है।

15 आंतों से अम्लता का निष्कासन:-अनन्नास के रस में अदरक का रस और शहद मिलाकर सेवन करने से आंतों से अम्लता का निष्कासन होता है।

16 स्मरणशक्ति:-अनन्नास के रस के सेवन से स्मरणशक्ति विकसित होती है।

17 खांसी एवं श्वास रोग:-*श्वास रोग में अनन्नास फल के रस में छोटी कटेरी की जड़, आंवला और जीरा का समभाग चूर्ण बनाकर शहद के साथ सेवन करें।
*पके अनन्नास के 10 ग्राम रस में पीपल मूल, सोंठ और बहेड़े का चूर्ण 2-2 ग्राम तथा भुना हुआ सुहागा व शहद मिलाकर सेवन करने से खांसी एवं श्वास रोग में लाभ होता है।
*अनन्नास के रस में मुलेठी, बहेड़ा और मिश्री मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।"

18 मधुमेह (शूगर):-अनन्नास मधुमेह में बहुत लाभकारी है। अनन्नास के 100 ग्राम रस में तिल, हरड़, बहेड़ा, आंवला, गोखरू और जामुन के बीजों का चूर्ण 10-10 ग्राम मिला दें। सूखने पर पाउडर बनाकर रखें। इस चूर्ण को सुबह-शाम तीन ग्राम की मात्रा में सेवन करने से बहुमूत्ररोग तथा मधुमेह ठीक हो जाता है। भोजन में दूध व चावल लेना चाहिए तथा लालमिर्च, खटाई और नमक से परहेज रखना चाहिए।

19 उदर (पेट) रोग में:-*पके अनन्नास के 10 ग्राम रस में भुनी हुई हींग लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग, सेंधानमक और अदरक का रस लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से उदर शूल और गुल्म रोग में लाभ होता है।
*अनन्नास के रस में यवक्षार, पीपल और हल्दी का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिलाकर सेवन करने से प्लीहा, पेट के रोग और वायुगोला 7 दिनों में नष्ट हो जाता है।
*अनन्नास के रस में, रस से आधी मात्रा में गुड़ मिलाकर सेवन करने से पेट एवं बस्तिप्रदेश (नाभि के नीचे के भाग) में स्थित वातरोग नष्ट होता है। पेट में यदि बाल चला गया हो तो, अनन्नास के खाने से वह गल जाता है।"

20 जलोदर (पेट में पानी की अधिकता) होना:-अनन्नास के पत्तों के काढ़े में बहेड़ा और छोटी हरड़ का चूर्ण मिलाकर देने से दस्त और मूत्र साफ होकर, जलोदर में आराम होता है।

अनार खाने के फायदे

अनार खाने के  फायदे 

आज यहाँ चर्चा करेंगे अनार खाने के फायदे अनार का जूस पीने के फायदे वैसे ही हैं जैसे अनार खाने के होते हैं, साथ अनार के छिलके खाने के भी अनेको लाभ होते हैं :
अनार के बारे में सामान्य बातें
हमारे देश में इसका पेड़ सभी जगह उगाया जाता है । कन्धार, काबुल और भारत के उत्तरी भाग में पैदा होने वाले अनार बहुत रसीले और अच्छी किस्म के होते है ।
इसका कई शाखाओं से युक्त पेड़ 20 फीट तक ऊंचा होता है । इसकी छाल चिकनी,  पतली, पीली या गहरे भूरे रंग की होती है । पत्ते कुछ लंबे व कम चौड़े होते हैँ ।
इसके फूल नारंगी व लाल वर्ण, कभी-कभी पीले 5-7 पंखुड़ियों युक्त एकल या 3-4 के गुच्छों में होते है । फल गोलाकार, लगभग दो इंच व्यास का होता है | इसका आवरण लाल या पीलापन लिए हुए काफी कड़ा और मजबूत होता है । फल का छिलका हटाने के बाद सफेद, लाल ताल या गुलाबी आभा वाले रसीले दाने होते है । रस की द्रष्टि से यह फल मीठा, खट्टा-मीठा और खट्टा तीन प्रकार का होता है ।
अनार के विभिन्न भाषाओं में नाम 
संस्क्रत – दाड़िम ।
हिन्दी – अनार ।
मराठी – डालिंब  ।
गुजराती- दाडम ।
बंगाली – दालिम ।
अग्रेजी – पोमेग्रेनेट  (pomegranate) ।
लेटिन – प्यूनिका  ग्रेनेटम  (punica granatum)।
अनार के औषधीय गुण 
रोगियों के लिए शक्तिदायक और रोग प्रतिरोधक सिद्ध होने के कारण यह फल ‘एक अनार और सौ बीमार’ वाली कहावत को चरितार्थ करता है । यों तो अनार एक स्वादिष्ठ, पौष्टिक आहार है, लेकिन इसका उपयोग फल के रूप में कम व औषधि के रूप में अधिक किया जाता है। इसके पत्ते, जड़, छाल, फूल, बीज, फल के छिलके सभी उपयोगी होते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार मीठी अनार वात, पित्त, कफ तीनो का नाश करता है। यह शीतल, तृप्तिकारक, वीर्यवर्धक, स्निग्ध, पौष्टिक, हलका, संकोचक, क्रमिनाश्क होने के साथ – साथ प्यास, जलन, ज्वर, ह्दय रोग, कंठ रोग, मुख की दुर्गध को भी दूर करता है। जबकि खट्टा-मीठा अनार पित्त, जठराग्निवर्द्धक, रुचिकारी, हलका व थोड़ा पित्तकारक होता है। खट्टा अनार खट्टे स्वाद का, वात, कफ को नाश करने वाला, पित्त को उत्पन्न करने वाला होता है।
यूनानी चिकित्सकों के अनुसार मीठा अनार पहले दर्जे का शीतल, स्निग्ध, हृदय और यकृत के लिए बलदायक, दाह शांत करने वाला, गले और छाती में मृदुता लाने वाला फल है। पत्तों की अपेक्षा गूदा, गूदे की अपेक्षा छाल, फूल की अपेक्षा कली और जड़ की छाल में अधिक औषधीय गुण होते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार रासायनिक संगठन ज्ञात करने पर अनारदाना में आर्द्रता 78, कार्बोहाइड्रेट14.5, प्रोटीन 1.6, वसा  0.1 प्रतिशत होती है। इसके अलावा फास्फोरस, कैल्शियम, सोडियम, तांबा, मैगनेसियम, पोटेशियम, ओक्जेलिक अम्ल, लोहा, गंधक, टेनिन, शर्करा, विटामिन्स होते हैं। फल की छाल में 25 प्रतिशत, तने के गूदे में 25 प्रतिशत तक, पत्तियों में 11 प्रतिशत और जड़ की छाल में 28 प्रतिशत टैनिन होता है।
अनार के हानिकारक प्रभाव
 यह फल शीत प्रकृति वालों के लिए नुकसानदेह है। इसलिए जिन लोगों की प्रकृति शीत है वे इसका सेवन कम से कम करें |
एक बार में अनार खाने की मात्रा – फल का रस 20 से 25 मिलीलीटर, बीजों का चूर्ण 6 से 9 ग्राम, छाल का चूर्ण 3 से 5 ग्राम, पुष्प कलिका 4 से 5 ग्राम।
अनार के फायदे विभिन्न रोगों में 
1. नाक से खून (नकसीर) : अनार का रस नथुनों में डालें।
2. मूत्र की अधिकता : एक चम्मच अनार के छिलकों का चूर्ण एक कप पानी के साथ दिन में 3 बार सेवन करें।
3. चेहरे का सौंदर्य : गुलाब जल में अनार के छिलकों का बारीक चूर्ण का अच्छी तरह बनाए लेप को सोते समय नियमित रूप से लगाकर सुबह चेहरा धो लें। इससे दाग के निशान, झांइयों के धब्बे दूर हो जाएंगे।
4. पेट दर्द : नमक और काली मिर्च का पाउडर अनार के दानों में मिलाकर सेवन करें।
5. शरीर की गर्मी : अनार का रस पानी में मिलाकर पीने से गर्मी के दिनों में बढ़ी शरीर की गर्मी दूर होती है।
6. अजीर्ण : 3 चम्मच अनार के रस में एक चम्मच जीरा और इतना ही गुड़ मिलाकर भोजन के बाद सेवन कराएं। अजीर्ण (अपच) का घरेलु उपचार 
7. दांत से खून आना : अनार के फूल छाया में सुखाकर बारीक पीस लें। इसे मंजन की तरह दिन में 2-3 बार मलें । खून आना बंद होकर दांत मजबूत हो जाएंगे।
8. खांसी : अनार के छिलकों पर सेंधानमक लगाकर चूसें।
9. अरुचि : अनार दानों पर सेंधानमक, काली मिर्च, जीरा, हींग अल्प मात्रा में डालकर मिला लें, फिर चबाकर सेवन करें।
10. कृमि रोग : अनार के सूखे छिलकों का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार नियमित रूप से कुछ दिन सेवन करें। यही प्रयोग खूनी दस्त, खूनी बवासीर, स्वप्नदोष, अत्यधिक मासिकस्राव में भी लाभप्रद है। पेट के कीड़े का घरेलू इलाज Pet Ke Kide Marne Ke Gharelu Upay
11. वमन : अनार के बीज पीसकर उसमें थोड़ी-सी काली मिर्च और नमक मिलाकर खाने से पित्त की वमन और घबराहट में आराम मिलता है।

पेशाब में आने वाली पस सेल्स (मवाद कोशि

पेशाब में आने वाली पस सेल्स (मवाद कोशिकाओं) की घरेलू चिकित्सा


मूत्र पथ का संक्रमण
मूत्र पथ का संक्रमण एक सामान्य समस्या है। औरत को अपनी ज़िन्दगी में मूत्र संक्रमण की ५०% संभावना है। यह काफ़ी परेशानदायक है और कभी कभी ज़िन्दगी के लिये खतरा बन सकता है। मूत्र मार्ग (यूरेथरा) छोटा होने के वजह से और यौन क्रिया के दौरान चोट लगने के कारण भी पुरुषों की तुलना में महिलओं में मूत्र पथ का संक्रमण अधिक सम्भव है। आम लोगों में और डॉक्टरों में भी मूत्र पथ के संक्रमण के बारे में काफी गलतफहमी है। मूत्र पथ में जन्तुओं के पनपने (कॉलोनी) को बनाना मूत्र पथ के संक्रमण कहा जाता है। मूत्र संग्रह की प्रणाली (गुर्दे), यूरेटर (गुर्दे से मूत्राशय तक जानेवाली (ट्यूब) नली), मूत्राशय, और अंत में मूत्र मार्ग (यूरेथरा) - ये मूत्र पथ के हिस्से होते हैं। गुर्दे और यूरेटर मूत्र पथ के ऊपरी हिस्से हैं। मूत्राशय और यूरेथरा मूत्र पथ के निचले हिस्से हैं। मूत्र पथ का अंतिम भाग जो हवा के संपर्क में है – यहाँ तक मूत्र पथ जन्तु-विहीन है। जन्तु जब मूत्राशय और गुर्दे की ओर बढते हैं, तब संक्रमण होता है। पुरुषों में या तो जन्म से मूत्राशय की विकृति के कारण पहले साल में ही या साठ साल के बाद जब प्रोस्टेट ग्रंथि मूत्र मार्ग में अवरोध करती है, मूत्र पथ का संक्रमण हो सकता है। यौन सक्रिय अवधि में मूत्र पथ का संक्रमण ज़्यादातर महिलाओं में पाया जानेवाला रोग है।
मूत्र पथ के संक्रमण के कारण
मूत्र पथ का संक्रमण समुदाय-प्राप्त हो सकता है या अस्पताल में मूत्र पथ में उपयोग किये जानेवाले उपकरण (मूत्राशय कैथीटेराइजेशन) के जरिये भी प्राप्त हो सकता है। समुदाय-प्राप्त संक्रमण बैक्टीरिया के द्वारा होते है। इनमें सबसे सामान्य जन्तु ‘ई. कोलई’ कहा जाता है। प्रतिरोधी बैक्टीरिया और फंगस (कवक) से अस्पताल-प्राप्त संक्रमण हो सकते हैं।
मूत्र पथ के संक्रमण के लक्षण
पीड़ायुक्त पेशाब (डायसुरिया) और पेशाब करने की आवृत्ति में बढौती — ये मूत्र पथ के संक्रमण के बिशिष्ट लक्षण हैं। यह मूत्राशय और मूत्र नलि (यूरेथरा) में जलन होने का नतीज़ा है। सामान्यतः इन लक्षणों की अनुपस्थिति में मूत्र पथ के संक्रमण का निदान नहीं करना चाहिये। पेशाब के रंग परिवर्तन और सिर्फ मूत्र में रक्त की मौजूदगी (बिना डायसुरिया के) मूत्र पथ के संक्रमण का संकेत नहीं करते। ऊपरी मूत्र पथ संक्रमण में बुखार और कमर दर्द होते हैं। सिर्फ पेट के निचले भाग में दर्द और बार-बार पेशाब करना ही निचले मूत्र पथ के संक्रमण का संकेत करते हैं। अगर रोग के कोई लक्षण बिना, प्रयोगशाला में जन्तु मूत्र में विकसित होता है, उसे अलक्षणिक बैक्टीरियूरिया कहते हैं। यह एक प्रयोगशाला परीक्षण है और दुर्लभ स्थितियों के अलावा चिकित्सा की कोई ज़रूरत नहीं होती। डायसुरिया या दर्दनाक मूत्र विसर्जन मूत्र पथ के संक्रमण के अभाव में भी हो सकता है जैसे कि यूरेथरा को चोट लगने पर या यूरेथरा की सूजन से। इसे ‘यूरेथ्रल सिन्ड्रोम’ कहते हैं। ऊपरी तथा निचले मूत्र पथ संक्रमण और ‘यूरेथ्रल सिन्ड्रोम’ के बीच अंतर पहचानना चिकित्सा क्रम तय करने के लिये ज़रूरी है।
रोगनिर्णय
दर असल रोगनिर्णय लक्षणों से किया जाता है जैसे कि पीड़ायुक्त पेशाब (डायसुरिया) और पेशाब करने की आवृत्ति में बढौती। प्रयोगशाला में परीक्षण सिर्फ रोगनिर्णय की पुष्टीकरण के लिये है और सही दवाई चुनने में मदद करता है।
मूत्र रिपोर्टों की व्याख्या
अगर मूत्र में मवाद कोशिकायें (pus cells) मौजूद हो, तब यह मूत्र पथ में सुजन का संकेत करता है। संक्रमण का यह एक सामान्यतम कारण है। लेकिन, पथरी, गांठ (ट्यूमर), नेफ्रैटिस (गुर्दे की सुजन) होने पर भी मूत्र में मवाद कोशिकाओं (pus cells) का उत्पादन हो सकता है। आल्बयुमिन की मौजूदगी मूत्र पथ के संक्रमण का निर्णय लेने के लिये सीधा लक्षण नहीं है। यह आमतौर पर गुर्दो की बीमारी का संकेत है। एपिथीलियल कोशिकाओं (epithelial cells) की मौजूदगी मूत्र का नमूना लेते समय संदूषण का संकेत करता है। मूत्र के नमूने का संग्रह करने का सही तरीका: गुप्तांग पानी से साफ करने के बाद, शुरुआत के मूत्र की कुछ मात्रा छोड़ देनी चाहिये। इसके बाद मूत्र का संग्रह एक साफ / स्टेरिलाइज किया हुआ (जीवाणुरहित किया हुआ) पात्र में करना चाहिये। इसे मध्य-धारा नमूना या ‘क्लीन कैच’ नमूना कहते हैं। इसे फौरन प्रयोगशाला में पहुँचाना चाहिये।
मूत्र की अभिवृद्धि (कल्चर)
मूत्र के दोषपूर्ण संग्रह की वजह से, इस परीक्षण में बहुत सारी गलतियाँ होती हैं। मूत्र की अभिवृद्धि (कल्चर) का परिणाम देते समय, जन्तुओं की सामुहिक गिनती देना अनिवार्य है। केवल १०-५ से ज्यादा कॉलोनी गिनती ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। कॉलोनी गिनती के बिना जो मूत्र अभिवृद्धि (कल्चर) रिपोर्ट दिये जाते हैं उनसे सचेत रहें। मूत्र अभिवृद्धि (कल्चर) रिपोर्ट में जीवाणओं (बैक्टीरिया) के प्रकार के अलावा, उन दवाओं की सूची भी दी जानी चाहिये, जिनमें जीवाणुरोधी संवेदनाशीलता है। इससे चिकित्सा के लिये दवाइयों का निर्णय करने में मदद मिलती है। जिस दवा में कम से कम विषाक्तता हो, संकीर्ण दायरे में असर देने की क्षमता हो, और जो ऊतक में घुस सके, ऐसी दवाई को चुनना चाहिये।
अन्य जांच
निम्नलिखित खास स्थितियों में अल्ट्रासाउण्ड, एक्स-रे, सिस्टोस्कोपी जैसे विस्तृत जांच की ज़रूरत होती है।
• सभी पुरुष जिन्हें मूत्र पथ का संक्रमण हो
• बाल्यावस्था की लडकियाँ या ६० वर्ष से ऊपर की महिलायें
• यौन सक्रिय महिलायें, जिन्हें मूत्र पथ का संक्रमण बार-बार होता हो
मूत्र पथ के संक्रमण की चिकित्सा
संक्रमण समुदाय-प्राप्त है या ऊपरी मूत्र पथ का है या निचले मूत्र पथ का है – चिकित्सा इस पर निर्भर करती है। निचले मूत्र पथ का संक्रमण जो समुदाय प्राप्त हो, इसकी चिकित्सा एक मात्रा (डोज़) एंटिबायोटिक सहित सामान्य दवाओं से कर सकते है। अन्य संक्रमणों की चिकित्सा के लिये लम्बी अवधि तक दिये जानेवाले एंटिबायोटिक दवाओं की ज़रूरत होती है।
यौन सक्रिय महिलाओं में मूत्र पथ के संक्रमण की रोक-थाम
• अच्छी व्यक्तिगत स्वच्छता तथा संभोग के बाद पेशाब करना
• संभोग के बाद कम मात्रा (डोज़) की एंटिबायोटिक लेना
• दीर्घकालीन रात में लिये जानेवाला कम मात्रा (डोज़) की एंटिबायोटिक लेना
मूत्र पथ के संक्रमण में पानी की भूमिका
बडी मात्रा में पानी पीने से मूत्र पथ में जलन कम हो सकता है। मगर, इससे संक्रमण जड़ से समाप्त नहीं किया जा सकता।
क्षारीय मिश्रण की भूमिका
क्षाक्रीय मिश्रण भी लक्षणानुसार मूत्र पथ में जलन को कम कर सकता है। मगर इससे भी संक्रमण को जड़ से समाप्त नहीं किया जा सकता।
आहार
आहार में अत्यधिक पशु प्रोटीन होने से मूत्र अम्लीय बनता है। इससे मूत्र पथ में जलन बढ सकती है। सब्जियाँ मूत्र में अम्लीयता को कम करके मूत्र को क्षारीय बनाती हैं।
प्रमुखताएँ
• मूत्र पथ का संक्रमण एक नैदानिक निदान (क्लिनिकल डायगनोसिस) है। प्रयोगशाला सिर्फ पुष्टीकरण के लिये इस्तेमाल किया जाता है। अगर लक्षण मौजूद न हो, खास स्थितियों के अलावा मूत्र पथ के संक्रमण का इलाज नहीं करना चाहिये।
• प्रयोगशाला के परीक्षण में बहुत सारी गल्तियाँ पायी जाती हैं।
• ऊपरी तथा निचले मूत्र पथ संक्रमण के बीच अंतर पहचानना।
• उनकी जाँच करना जो कमजोर नहीं हों (यौन सक्रिय महिलाओं के अलावा)
• सरल उपायों के जरिये मूत्र पथ संक्रमण को होने से रोकना।

यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन, पेशाब में पस सेल्स का आना इन्फेक्शन को दर्शाता है। यूरिन इन्फेक्शन के लक्षण, पस या मवाद जो गाढे सफ़ेद या हल्का पीला या हल्का हरा रंग लिये होता है, अगर पेशाब से आने लगे तो इसका मतलब है आपके ऊपरी या निचले मूत्र मार्ग में इन्फेक्शन (peshab ki problem) है। बॉडी में पस सेल्स, मृत श्वेत रक्त कणिकाओं और अन्य मृत कोशिकाओं से बनती हैं।
अगर मूत्र के नमूने में अतिरिक्त मात्रा में पस की कोशिकाएं दिखती हैं तो इस स्थिति को प्युरिया (pyuria) के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसा चरण है जहां से आपको मूत्राशय, फेफड़ों और मूत्र निकासी के रास्ते की समस्याएं सता सकती हैं। यह स्थिति तब जन्म लेती है जब वहाँ पर काफी मात्रा में मृत सफ़ेद रक्त कोशिकाएं और बैक्टीरिया (bacteria) पाए जाते हैं। इससे कई तरह के संक्रमणों का जन्म होता है।
अगर पस कोशिकाओं की गिनती 5 तक हो तो पुरुषों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। पर महिलाओं के लिए यह संख्या 10 होनी चाहिए। पस आमतौर पर एक गाढ़े द्रव्य का नाम होता है जो कि गोंद की तरह प्रतीत होता है। पस का रंग पीला, सफ़ेद और हरा रंग लिए हुए हो सकता है। इस समस्या के कुछ कारण होते हैं जैसे मूत्र निकासी के भाग का संक्रमण और यौन संचारित रोग आदि।
पेशाब के रोग – पस सेल्स के आने के कारण (Causes of pus cells in urine)
पेशाब में पस सेल्स के आने के दो मुख्य कारण हैं।
• मूत्रनली में इन्फेक्शन या यू.टी.आई. – महिलाओ का मूत्राशय छोटा होने के कारण महिलाओं में इसके होने की सम्भावना अधिक होती है।
• सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज (यौन संचारित रोगों) या एस. टी. आई. – एस. टी. आई के मरीजों, में इसकी सम्भावना अधिक होती है।
मूत्र रोग – अन्य कारण (Other causes)
पुरुषों और महिलाओं में पेशाब के दौरान दर्द और जलन के कारण
• फंगल इन्फेक्शन (फफूंद संक्रमण)
• केमिकल प्वाईजनिंग (रासायनिक विषाक्तता)
• वायरल इन्फेक्शन (वायरल संक्रमण)
• एनारोबिक बैक्टीरियल इन्फेक्शन (अवायवीय जीवाणु संक्रमण)
• गुर्दे की पथरी
• मर्दों में प्रोस्टेट ग्रंथि में इन्फेक्शन
• मूत्रनली में टी.बी.
• मूत्रान्गों या प्रजननान्गों में कैंसर
बढ़ती उम्र या प्रेगनेंसी की वजह से भी मूत्र में पस सेल्स आने लगती हैं।
पस सेल्स या मवाद की समस्या से बचने के घरेलु उपाय हिंदी में (Remedies for pus cells in urine during pregnancy in Hindi)
प्रेगनेंसी की अवस्था में मूत्रमार्ग से पस या मवाद का आन एक आम समस्या है जो साधारण तौर पर दिक्कत की वजह नहीं बनती लेकिन अगर यह मात्रा सामान्य से अधिक हो जाये तो ज़रूरी परेशानी का कारण हो सकती है. इस अवस्था में डॉक्टर एंटीबायोटिक्स और अन्य तरह कीई कुछ ख़ास दवाओं द्वारा इसके इलाज की कोशिश करते हैं लेकिन अगर आपकी समस्या सामान्य है लेकिन आप इसे घरेलु उपचार द्वारा ठीक करना चाहती हैं तो कुछ ख़ास बातों का ध्यान रख के पेशाब में पास और यूरिन इन्फेक्शन की भी कुछ समस्याओं का इलाज किया जा सकता है.
• तली भुनी और ज्यादा मिर्च मसालेदार चीज़ों का सेवन न करें.
• अधिक मात्रा में तरल पेय लें.
• अपने जननांगों से मवाद या अन्य तरह के तरल को साफ़ करने के लिए बार बार पानी का प्रयोग ना करें. कई बार महिलाएं इस हिस्से में कठोर साबुन या शावर जेल आदि का इस्तेमाल करती हैं इससे त्वचा का पीएच बेलेंस असामान्य हो जाता है साथ ही अच्छे बैक्टीरिया भी नष्ट हो जाते हैं. इससे बचने के लिए इन खास अंगों पर कठोर और खुशबूदार प्रसाधनों का प्रयोग ना करें.
• पस या मवाद की वजह से इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है इसीलिए नियमित रूप से अंतर्वस्त्र बदलते रहे.
• प्रोटीनयुक्त और सेहतमंद भोजन लें. दूध का प्रयोग नियमित रूप से करें. यह शारीरिक कमजोरी को भी दूर करने में मदद करता है.
• सिगरेट, शराब जैसी बुरी आदतों से दूर रहे.
• चाय काफी की जगह ग्रीन टी का इस्तेमाल करें.
यूरिन इन्फेक्शन का इलाज – घरेलू उपचार (Home remedies for pus cells in urine)
पानी और अन्य पेय पदार्थ – हम जितना अधिक पेय लेते है, पेशाब उतना ही ज्यादा बनता है और शरीर से टोक्सिन और बैक्टीरिया बाहर निकलते जाते हैं। पानी के अलावा हमें फलों के जूस, सब्जियों के जूस, तरबूज, ककड़ी, नारियल पानी आदि लेते रहना चाहिये।
बेकिंग सोड़ा – बेकिंग सोड़ा बॉडी में अम्ल और क्षार का बैलेंस बनाये रखने में सहायक होता है। एक ग्लास पानी के साथ आधा चम्मच सोड़ा, दिन में दो बार लेने से शुरूआती दौर के इन्फेक्शन को ठीक किया जा सकता है।
करौंदे का जूस – यह जूस यू.टी.आई. के रोगियों को इन्फेक्शन रोकने के लिए दिया जाता है । इसमें मिलने वाले तत्व बैक्टीरियल इन्फेक्शन और पस सेल्स से बचाते है।
विटामिन C – इन्फेक्शन से लड़ने वाले सुरक्षाचक्र के लिए विटामिन C एक अत्यावश्यक कॉम्पोनेन्ट है। खट्टे फलों जैसे संतरा, आवंला, केला, अमरुद पाइनएप्पल आदि फलों एवं सब्जियों का सेवन अवश्य करें।
सामान्य यौन संक्रमित बिमारियां (एसटीडी) और उनके सामान्य लक्षण
बेल – आयुर्वेद में बेल का प्रयोग कई तरह की बीमारियों का इलाज करने के लिए किया जाता है। बेल में साइट्रिक, मैलिक और टेंनिक एसिड कई सारे विटामिन्स और मिनरल्स के साथ अच्छी मात्रा में पाया जाता है यह बॉडी को वायरल इन्फेक्शन से बचाने में मदद करता है। मूत्र सम्बंधित परेशानियों के लिए दूध और शक्कर के साथ बेल का गूदा अत्यंत लाभदायक होता है।
मूत्र विकार – ककड़ी – ककड़ी के जूस में 95% पानी और पोषक तत्व पाए जाते है जो बॉडी से टोक्सिन और पस सेल्स को बाहर निकलने में सहायक होते हैं।
धनियाँ – धनियाँ के बीज सिर्फ एक मसाला न होकर बहुत अच्छी औषधि भी है जिसमे अच्छी मात्रा में विटामिन्स और मिनरल्स पाए जाते हैं। सालों से इनका प्रयोग आयुर्वेद और चीनी चिकित्सा पद्धतियों में गुर्दे सम्बंधित बीमारियों को ठीक करने में होता आया है।
प्याज – अपने कई गुणों के साथ प्याज भी अत्यधिक लाभदायक होती है और बॉडी टोक्सिन को शरीर से बाहर निकालने में सहायता करती है।
मूत्र विकार – तुलसी – अपने आयुर्वेदिक गुणों के लिए मशहूर तुलसी एक अतिलाभकारी औषधि है इसका उपयोग गुर्दे की पथरी को ठीक करने में किया जाता है।
दही – दही में बहुत सारे अच्छे बैक्टीरिया पाए जाते हैं जो हानिकारक बैक्टीरियाज को नष्ट करते हैं और शरीर से पस सेल्स को बाहर निकालते हैं।
लहसुन – लहसुन को प्राचीन काल से एक प्राक्रतिक एंटीबायोटिक के रूप में जाना जाता है जो शरीर के रोगप्रतिरक्षण क्षमता को बढ़ाता है।
मूत्र में पस कोशिकाओं के घरेलू नुस्खे (Home remedies for pus cells in urine)
युवा उर्सी (Uvaursi)
ब्रोंकाइटिस का उपचार के घरेलू नुस्खे
इसका भारतीय नाम युवा उर्सी है और इसे बेयरबेरी (bearberry) के नाम से भी जाना जाता है। यह घरेलू नुस्खा काफी प्रभावी है और इसकी मदद से पायेलोनेफ्राइटीस, युरेथ्राइटीस, सिस्टाइटीस (pyelonephritis, urethritis, cystitis) आदि समस्याएं दूर हो सकती हैं। यह हमारे मूत्र के संक्रमण के विषैलेपन को दूर करने में भी सहायता करता है। यह आपकी मूत्र निकासी की प्रक्रिया को बेहतर और सुचारू रूप से चलाने का काम करता है। इसके लिए एक कप पानी को उबालें और इसमें एक चम्मच सूखी हुई युवा उर्सी की पत्तियाँ डालें। इसे 15 मिनट तक इसी तरह डुबोकर रखें। इस पानी का सेवन रोजाना करके मूत्र में पस की कोशिकाओं को कम करें। इस समस्या से पीड़ित पुरुष और महिलाओं दोनों के लिए यह नुस्खा काफी उपयोगी साबित होता है।
जलकुम्भी (Water cress)
यह एक और प्रभावी घरेलू नुस्खा है जो आपको पस की कोशिकाओं के संक्रमण से दूर रखता है। क्योंकि इस उत्पाद में विटामिन डी, ए और सी (vitamin D, A and C) के साथ फॉस्फोरस, मैग्नीशियम और कैल्शियम (phosphorous, magnesium and calcium) भी मौजूद होते हैं। यह आपके लिए काफी स्वास्थ्यकर साबित होता है। इसके लिए एक कप पानी उबाल लें  और इसमें जलकुम्भी की 2 पत्तियों को डुबो दें। अब ओवन (oven) को बंद कर दें तथा पात्र को ढक लें। इसे 10 मिनट तक इसी तरह डुबोये रखें। समय समाप्त होने के बाद पानी को छानकर इसका सेवन कर लें।
खीरे का रस (Cucumber juice)
खीरे में बेहतरीन गुण होते हैं जो मूत्र में मौजूद पस की कोशिकाओं की समस्याओं का उपचार करते हैं। यह एक प्राकृतिक फल है जिसमें पोटैशियम, सिलिका, मैग्नीशियम, सोडियम और कई विटामिन्स (potassium, silica, magnesium, sodium and various vitamins) पाए जाते हैं। यह आपके मूत्र में मौजूद एसिड (acid) को निष्प्रभाव कर देता है। एक ब्लेंडर (blender) की मदद से खीरे का रस निकालें। अब इसमें आधा चम्मच नींबू और शहद का मिश्रण करें। इस मिश्रण का सेवन दिन में 3 बार करें और इस तरह के मूत्र के संक्रमण से कोसों दूर रहें। यह औषधि तथा अन्य दवाइयों से कई गुना असरदार होता है। इससे आपको प्राकृतिक रूप से पस की कोशिकाओं की समस्या से मुक्ति मिलेगी।
[6:32 PM, 2/5/2018] Rahul Sir: अमरूद व् अमरुद की पत्तियों के लाभ 
डॉ.महेंद्र सेठिया

इसका प्राचीन नाम अमृतफल है| जिसका अपभ्रंश ही अमरूद है | आयुर्वेदानुसार यह कसेला, स्वादु, अम्ल, शीतल, भारी, कफ करक तीक्ष्ण, ह्रद्य, शुक्रजनक तथा वातपित्त, उन्माद, भ्रम, मूर्च्छा, कृमि, तृषा, शोष, विषमज्वरहर है| आमातिसार और संग्रहणी में भोजन के साथ ही थोड़ी मात्रा में सेवन क्षुधावर्धक है | यह पेट को साफ़ करने के लिए अत्यंत लाभप्रद है| भोजन के पूर्व खाने से अतिसार में लाभप्रद है | भोजन के बाद सेवन करने से पाचन क्रिया में सुधार होकर पेट साफ़ करता है| अमरुद के फल को काटकर उस पर कालीमिर्च, कालानमक लगाकर खाने में स्वाद बढ़ता है | पेट साफ़ हो कर पेट का अफरा, गैस, अपच, अजीर्ण में लाभ होता है | पागलपन में अमरुद का फल लाभदायक है| इससे मस्तिष्क के स्नायुओ को ताक़त मिलाती है तथा मस्तिष्क की गर्नी शांत होती है अतः पार्टी कार्यक्रमों के भोजन में अमरुद अवश्य खिलाना चाहिए |
अमरुद खाने का समय ८ – ९ बजे दिन का है दोपहर के भोजन के बाद व् तीसरे पहर बभी खा सकते है, जिनके शारीर में पित्त प्रकोप के कारन दाह हो उन्हें भोजन के बाद खाना चाहिए | छोटे बच्चो को अमरुद पीसकर पानी में घोलकर पिलाना चाहिए| वृद्धो को कालीमिर्च और नमक लगाकर खाना चाहिए | बिबंध (कब्ज) को दूर करने के लिए भोजन के पूर्व व् दोपहर ४ बजे खाना चाहिए| अमरुद को शहद के साथ खाने से ह्रदय, मस्तिष्क, आमाशय को बल देता है | पके अमरुद को कुचलकर दूध में मिलाकर छान ले ताकि बिज निकल जायें, चीनी मिलाकर पीवे, शक्ति स्फूर्तिदायक है, इससे बल-वीर्य की असाधारण वृद्धि होती है |
शिरःशूल में – सूर्योदय से पूर्व कच्चे अमरुद को पिरस्कर ललाट पर लेप करने से शिरः शूल (आधाशीशी) में लाभ होता है| २-३ दिनों तक प्रयोग करावें |
अमरुद के कुछ अन्य प्रयोग –
१. मुख के रोग – अमरुद के कोमल पत्ते चबाने से मुह के छले ठीक होते है| मुख की दुर्गन्ध दूर होती है |   
२. दांत दर्द – अमरुद के पत्तो का क्वाथ बनाकर उसके कुल्ले करने से दांत दर्द में तत्काल लाभ होता है| पत्तो को चबाने से दांत एवं मसुढे मजबूत होते है, पर अमरुद का फल खाते समय बड़ी सावधानी बरतनी चाहिए| इसके बीज दांतों में फंस जाने पर वह कृमि वाले दांत के खड्डे में फंस जाने से बड़ा भयंकर द्नात्शुल होता है |
३. कब्ज – अमरुद के फल का सेवन कब्ज नाशक है | अमरुद के फल को काटकर उस पर कालीमिर्च, नमक, सोंठ छिड़ककर खाने से स्वाद बढ़ता है| पेट का अफरा, गैस, अपच दूर होते है |
४. अमरुद की चाय – खांसी में अमरुद के पत्ते पानी में उबालकर दूध + चीनी मिलाकर चाय की तरह पिने से आराम होता है|
५. पागलपन – पागलपन में अमरुद का फल लाभदायक है | इससे मस्तिष्क की गर्मी शांत होती है | अतः पागल व्यक्तियों के भोजन में अमरुद की मात्रा बढानी चाहिए | एक अमरुद रात में पानी में भिगो दें तथा प्रातः काल खाली पेट चबाकर खा ले |
६. गुदभ्रंश – अमरुद के पत्ते, छाल का चूर्ण २५० ग्राम को २ लीटर पानी में उबालकर ५०० मिली वचा ले, इस क्वाथ से बार-बार गुदा को धोने से यह क्वाथ अपने संकोच एवं रोचक प्रभाव से गुद्भ्रंश में लाभप्रद है| 
७. नेत्र विकार – आँख आने, आँखों की लाली, आँख से पानी आना, नेत्र पीड़ा आदि विकारो में अमरुद की कोमल पत्तियों को  पीसकर आँखों के ऊपर लेप करने से लाभ होता है|
८. अतिसार और हैजा – अतिसार और हैजा में अमरुद के पत्ते एवं अंतर्छाल का क्वाथ थोडा-थोडा दिन में ३-४ बार पिलाने से लाभ होता है|
९. कास – अमरुद को हल्की आग पर भुनकर खाने से कफ युक्त कास में लाभ होता है|
१०. दुर्बलता में – मीठे अमरुद को कुचलकर पीसकर उसमे दूध मिलाकर छान ले, जिससे उसके सारे बिज निकल जावें, बाद में उसमे आवश्यकतानुसार चीनी मिलाकर शर्बत बनालें| यह शर्बत अत्यंत शक्ति वर्धक होता है|
अमरुद की पतियों से करें कई लाइलाज बिमारिओं का इलाज..!!
अमरुद की पतियों से करें कई लाइलाज बिमारिओं का इलाज..!!
अमरूद खाना स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि अमरूद की पत्ति यां भी कुछ कम नहीं होती हैं. त्वचा की देखभाल से लेकर बालों की खूबसूरती बनाए रखने तक के लिए अमरूद की पत्तिबयों का इस्तेमाल किया जाता है.
अमरुद की पत्तियों से कई बिमारिओं का इलाज किया जा सकता है | अमरुद कई औषधीय गुणों से भरपूर फल है |इसकी पत्तियां भी बहुत उपयोगी होती हैं या यूं कहें कि अमरूद के फल से ज्यादा इसकी पत्तियां फायदेमंद है|अमरुद की पतियों के फायदे के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं ये कई बिमारिओं में फायदेमंद होते हैं | आज हम आपको अमरुद की पतियों के ऐसे फायदे बताएँगे जो आपने कभी सोचे नही होंगे
अमरुद की पतियों के फायदे /guava leaves benefits :-
1.वजन घटाएं
अमरूद की पत्तियां जटिल स्टार्च को शुगर में बदलने से रोकती हैं। जिससे शरीर के वज़न को कम में सहायता मिलती है। यही कारण है कि वजन घटाने के लिए अमरूद की पत्तियों का चूर्ण उपयोग में लाया जाता है।
2. गठिया दर्द
अमरूद के पत्तों को कूटकर, लुगदी बनाएं। इसे गर्म करके गठिया प्रभावित स्थानों पर लगाने से सूजन दूर हो जाएगी।
3.स्वप्नदोष में लाभ
अमरूद के पत्तों को पीसकर उसका रस निकाल लें। इसके बाद रस में स्वादानुसार चीनी मिलाकर रोजाना सेवन करें। स्वप्नदोष की बीमारी में लाभ होगा
4.ल्यूकोरिया में लाभ
अमरूद की ताजी पत्तियों का रस 10 से 20 मिलीलीटर तक रोजाना सुबह-शाम पीने से ल्यूकोरिया नामक बीमारी में अप्रत्याशित लाभ होता है।
5.कोलेस्ट्रॉल कम करें
अमरूद की पत्तियों का जूस लिवर साफ करने में मदद करता है। यह बीमारी पैदा करने वाले कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करता है।
6.डायरिया मिटाए
यह पेट की कई बीमारियों को ठीक करने में असरदार है। एक कप खौलते हुए पानी में अमरूद की पत्तियों को डाल कर उबालिए और फिर इस पानी को ठंडा करके छान कर पी लीजिए। डायरिया में लाभ होगा।
7.पाचन तंत्र ठीक करे
अमरूद की पत्तियां या फिर उससे तैयार जूस पी कर आप पाचन तंत्र को ठीक कर सकते हैं। इससे फूड प्वाइजनिंग में भी काफी राहत मिलती है।
8.दांतों की समस्या के लिए
दांत दर्द, गले में दर्द, मसूड़ों की बीमारी आदि अमरूद की पत्तियों के रस से दूर हो जाती है। अमरूद की पत्तियों को पीस कर पेस्ट बना कर उसे मसूड़ों या दांत पर लगा सकते हैं।
9.डेंगू बुखार
डेंगू बुखार में अमरूद की पत्तियों का रस पिएं। यह डेंगू के संक्रमण को दूर करता है।
10.एलर्जी दूर करे
अमरूद की पत्तियों का रस किसी भी प्रकार की एलर्जी को दूर कर सकता है। यह एलर्जी पैदा करने वाली वायरस को ख़तम करता है |
11. मुंह के छाले
अमरूद के पत्तों पर कत्था लगाकर चबाएं। केवल अमरूद के पत्ते चबाने से भी छाले ठीक हो जाते हैं।
12. मुंहासे मिटाए
इन पत्तियों में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं। इसलिए ताजी पत्तियों को पीस कर पिंपल्स पर लगाएं कुछ ही दिनों में पिंपल्स खत्म हो जाएंगे।
13.बालों की ग्रोथ बढाए
अमरूद की पत्तियों में बहुत सारा पोषण और एंटीऑक्सीडेंट होता है, जो कि बालों की ग्रोथ को बढ़ाता है।
14. डायबिटीज रोगियों के लिए
एक शोध के अनुसार अमरूद की पत्तियां एल्फा-ग्लूकोसाइडिस एंज़ाइम की क्रिया द्वारा रक्त शर्करा को कम करती है। दूसरी तरफ सुक्रोज़ और लैक्टोज़ को सोखने से शरीर को रोकती है जिससे शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है। इसलिए डायबिटीज के रोगियों के लिए अमरूद के पत्तों का चूर्ण लाभदायक होता है।
15.खुजलाहट
अमरूद की पत्तियों में एलर्जी अवरोधक गुण पाया जाता है। एलर्जी खुजलाहट का मुख्य कारण है। अत: एलर्जी को कम करने से खुजलाहट अपने आप कम हो जाएगी।
16. सिर में दर्द
आधे सिर में दर्द होने पर सूर्योदय के पूर्व ही कच्चे हरे ताजे अमरूद के पत्ते लेकर पत्थर पर घिसकर लेप बनाएं और माथे पर लगाएं। कुछ

गैस समस्या: जाने सब कुछ, कारणों से लेकर

गैस समस्या: 
जाने सब कुछ, कारणों से लेकर इसके इलाज तक

    
    
गैस क्या है?
अत्यधिक गैस, गैस की समस्या पैदा कर देती है और इसे कई तरह से वर्णित किया जाता है जैसे डकार आना, उबकाई आना, पादना या पेट फूलना। उदाहरण के लिए, आपके मुँह से निकलने वाले गैस को डकार और उबकाई कहते हैं, जबकि पेट फूलने पे, या पादने में गैस मलाशय से निकलती है। जब आपके पेट में अतिरिक्त गैस जमा हो जाए और उसके कारण पेट में सनसनी महसूस हो तो उसे पेट फूलना कहते हैं। कुछ गैस खाने के बाद बनते हैं और उनका उबकाई और पाद के माध्यम से निकलना आम बात हैं। हालांकि, यदि आप दर्दनाक गैस का सामना करते हैं और बदबूदार पाद की शरमिन्दगी से बचना चाहते हैं, तो आप उसे ख़तम करने के लिए उसका कारण ढूँढना शुरू कर दें।
गैस कैसे बनती है?
पेट में अतिरिक्त गैस कई कारणों से हो सकती है, जैसे अत्यधिक पीने, हवा को निगलने, अच्छी तरह से अपने भोजन को न चबाने, मसालेदार और गैस बनाने वाले भोजन, बहुत अधिक तनाव, किसी प्रकार के जीवाणु संक्रमण, या पाचन विकार ( आईबीएस या क़ब्ज ) के कारण। जब जीवाणु काबोर्हाइड्रेट का खमीर उठता है और उसे आपकी छोटी आंत पचा नहीं पाती तो भी आपके पेट में गैस बन सकता है।
गैस की समस्या से बचने के लिए घरेलू उपचार
आहार और जीवन शैली में सरल बदलाव, गैस को कम करने या उसे राहत देने में मदद कर सकती है

• जब आप जल्दी-जल्दी खाते या पीते हैं, तो आप साथ साथ बहुत सारे हवा को भी निगल जाते हैं, जो गैस का कारण बन सकती है। इसलिए गैस की समस्या से बचने के लिए धीरे-धीरे खाएं।
• पेट को हवा से न भरें। आदतें जैसे धूम्रपान, चबाने वाली गम और पाइप के माध्यम से पीने से आपका पेट वायु से भर जाता है, जिससे गैस की समस्या हो जाती है।
• थोड़ा-थोड़ा खाएं। कई खाद्य पदार्थ जो एक स्वस्थ आहार का हिस्सा होते हैं गैस का कारण भी बन सकते हैंI तो, आमाशयिक खाद्य पदार्थों को थोड़े-थोड़े हिस्से में लें और देखें की क्या आपका शरीर बिना अतिरिक्त गैस बनाये छोटे हिस्से को नियत्रिंत कर सकता है या नहीं। पाचन तंत्र फ़ाइबर को तोड़ नहीं सकता, और अत्यधिक गैस अक्सर इसका एक परिणाम होता है। लेकिन अपने आहार में उच्च फ़ाइबर वाले खाद्य पदार्थों में धीरे-धीरे वृद्धि से पाचन तंत्र में मौजूद बैक्टीरिया अतिरिक्त फ़ाइबर के प्रति समंजन हो जाता है और गैस समस्या को रोकने में मदद करता है।
• यदि आप खाने के ठीक बाद लेटते हैं, तो ऐसी स्थिति में शरीर का खाना पचाना बहुत चुनौतीपूर्ण हो जाता है। जब पाचन अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है या अधिक समय लेता है, तो इससे आंत्रीय सूजन और गैस उत्पादन में वृद्धि हो सकती है। इसके बजाय, बैठ जाएं या खाने के बाद कम से कम एक घंटे खड़े रहें फिर लेटें।
• भोजन के बाद कोई भी शारीरिक सक्रियता शरीर को भोजन को बेहतर तरीके से पचाने में मदद करती है। खाने के बाद थोड़ा पैदल चलने से, आंत्र पारगमन को गति देने में, पाचन की दर में वृद्धि, और गैस उत्पादन में कटौती करने में मदद कर सकता है।
• खाने के साथ के बजाये खाने से पहले पानी पीएं। खाने के साथ पानी पीने से आप पाचन के रस को पतला कर देते हैं जो पाचन क्रिया को ख़राब कर सकता है। इसलिए खाते समय कभी भी पानी न पिये, यह बेहतर है अगर आप अपने भोजन से पहले पानी पी लें। हर दिन बहुत सारे तरल पदार्थ पीने की कोशिश करें
• यदि आप लैक्टोज असहिष्णु हैं, तो दूध की जगह दही लेना शुरू कर दें। या लैक्टोज को तोड़ने में मदद करने के लिए किण्वक उत्पाद का उपयोग करें। दूध उत्पादों की छोटी मात्रा लेना या उन्हें अन्य खाद्य पदार्थों के साथ लेने से भी मदद मिल सकती है। हालांकि, कुछ मामलों में, आपको डेयरी खाद्य पदार्थ पूरी तरह छोड़ना पर सकता है। यदि हां, तो अन्य स्रोतों से प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन बी प्राप्त करें।
खाद्य पदार्थ जिनसे गैस उत्पादन होती है
• सब्जियां: गोभी, मूली, प्याज, ब्रोकोली, आलू, फूल गोभी, खीरे
• फल: सूखा आलूबुखारा, खुबानी, सेब, किशमिश, केले
• अनाज, ब्रेड: सभी खाद्य पदार्थ जिनमें गेहूँ और गेहूँ के उत्पाद के साथ अनाज, ब्रेड और पेस्ट्री शामिल हैं।
• फैटी खाद्य पदार्थ: कड़ाही में तले हुए या गहरे तले हुए खाद्य पदार्थ, फैटी मांस, रिच क्रीम, सौस और शोरबा, पेस्ट्री (जबकि फैटी खाद्य पदार्थ काबोर्हाइड्रेट नहीं होता, फिर भी वो आंत्र गैस का कारण बन सकते हैं।)
• तरल पदार्थ: कार्बनेटिड पेय पदार्थ
गैस समस्या का उपचार
आप पेट फूलना कम कर सकते हैं:
• निवारक कदम
• प्रोबायोटिक्स अनुपूरक या ऐसा खाना जिसमें प्रोबायोटिक्स हो का सेवन गैस की समस्या से छुटकारा पाने का अच्छा तरीका है। इसे लेने से पहले अपने चिकित्सक से चर्चा करें।
• गैर-प्रेषण वाली दवाएं जिसमें सिम्मिथिकोन (गेलुसील) और कोयला हो।
• ओवर-द-काउंटर गोलियां या तरल पदार्थों जिसमें ऐनजाइम लैक्टोज हो, को दूध वाले उत्पादों को खाने या पीने से पहले लें।
• आज कल लैक्टोज-रहित डेयरी उत्पाद आते हैं जो आपको किराने की दुकान पे मिलसकता है।
आयुर्वेद में चिकित्सा .
१.चित्रकादी वटी 
२-२ गोली खाने के १५ मिनट पहले चूर लें.
लावन भास्कर चूर्ण 
२ चम्मच १ ग्लास छास में मिलाकर दोपहर के खाने के साथ घूंट घूंट कर पियें.
पंचकोल चूर्ण 
१ चम्मच मुंग की दाल बनाते समय पोटली बनाकर दाल में डाल दें. दाल पाक जाये तब पायली निकाल कर फेक दें घी का वघार कर दाल खाए.

टमाटर के फायदे: आपके स्वस्थ शरीर के लि

टमाटर के फायदे: 
आपके स्वस्थ शरीर के लिए एक अद्भुत फल
 
    
टमाटर एक फल है जिसे हम सब्जी के तौर पे जानते हैं। टमाटर में भरपूर मात्रा में कैल्शियम, आयरन, फॉस्फोरस व विटामिन ए और सी पाए जाते हैं। टमाटर एक बहुत बढ़िया ओक्सिडेंट है। भारत में टमाटर का ज्यादातर व्यंजनों में उपयोग किया जाता है। भारत में इसकी अधिक मात्रा मे खेती होती है इसलिए इसके उपलब्धता में कोई कठिनाई नहीं होती और हर जगह आसानी से मिल जाता है।
टमाटर के फायदे
टमाटर का रोजाना अपने आहार में सेवन करने से आपको बहुत सारे लाभ होते हैं, जैसे।
• टमाटर खाने से हृदय संबंदी समस्यायों में काफी फ़ायदा मिलता है।
• टमाटर का सेवन रक्तवाहिनियों में थक्का जमने से रोकता है इससे हार्टअटैक और स्ट्रोक का खतरा कम हो जाता है।
• शरीर में खून की कमी है तो रोजाना इसका रस पीने से भी लाभ होता है।
• पेट मे कीड़े हों तो टमाटर के टुकड़ो पर कालीमिर्च और सेंधा नमक का चूर्ण डालकर खाएं इससे पेट के कीड़े मर जाते हैं।
• टमाटर आँखों की रौशनी को भी बढ़ाता है।
• टमाटर कब्ज़ की शिकायत को दूर करता है और पाचन क्रिया को ठीक रखता है।
• टमाटर स्वस्थ त्वचा और बालों के लिए बहुत लाभदायक होता है।
• ये कैंसर के सेल्स को भी बढ़ने से रोकता है।
• धूम्रपान से हुए नुकसान को भी ठीक करने मे सहायता करता है।
• हड्डियों को मजबूत बनाता है।
• ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है।
• हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
• चर्बी को कम करता है और शरीर के वजन को नियंत्रित रखता है।
• भूख बढ़ाने मे सहायता करता है।
टमाटर को कैसे खाये
• सलाद: टमाटर को खाने के बहुत से तरीके हैं जिसमे से सलाद सबसे आसान तरीका है। ध्यान रहे जब भी आप सलाद या फिर ऐसे ही कच्चा टमाटर खाते हैं तो इसका छिलका ना निकाले, क्योकि इसकी त्वचा मै ही इसके सबसे ज्यादा गुण पाए जाते हैं।
• टमाटर का जूस: आप अपने दिन की शुरुवात काला नमक सहित ताजा कच्चे टमाटर के जूस को पीकर कर सकते हैं इससे आपके शरीर मे फुर्ती बानी रहेगी, लेकिन याद रहे कि टमाटर का जूस आप खाली पेट न लें।
• टमाटर का सूप: आप टमाटर को हल्का सा उबाल कर उसे पीस लें और उसमे काली मिर्च डाल के उसका सूप बनाकर पियें यह बहुत ही स्वादिस्ट लगता है।
• सब्जी में टमाटर: इसके अलावा आप सब्जी का स्वाद बढ़ाने के लिए उसमे में कच्चा टमाटर या टमाटर प्यूरी का उपयोग भी कर सकते हैं। और इसका उपयोग आप घर पर ही टमाटर की चटनी व सॉस बनाकर कर सकते है। पैकेट में मिलने वाले टमाटर के सूप और सॉस का उपयोग नही करें अच्छा है।
वृक्क के मरीज को टमाटर का सेवन नही करना चाहिए।

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