पेशाब में आने वाली पस सेल्स (मवाद कोशिकाओं) की घरेलू चिकित्सा
मूत्र पथ का संक्रमण
मूत्र पथ का संक्रमण एक सामान्य समस्या है। औरत को अपनी ज़िन्दगी में मूत्र संक्रमण की ५०% संभावना है। यह काफ़ी परेशानदायक है और कभी कभी ज़िन्दगी के लिये खतरा बन सकता है। मूत्र मार्ग (यूरेथरा) छोटा होने के वजह से और यौन क्रिया के दौरान चोट लगने के कारण भी पुरुषों की तुलना में महिलओं में मूत्र पथ का संक्रमण अधिक सम्भव है। आम लोगों में और डॉक्टरों में भी मूत्र पथ के संक्रमण के बारे में काफी गलतफहमी है। मूत्र पथ में जन्तुओं के पनपने (कॉलोनी) को बनाना मूत्र पथ के संक्रमण कहा जाता है। मूत्र संग्रह की प्रणाली (गुर्दे), यूरेटर (गुर्दे से मूत्राशय तक जानेवाली (ट्यूब) नली), मूत्राशय, और अंत में मूत्र मार्ग (यूरेथरा) - ये मूत्र पथ के हिस्से होते हैं। गुर्दे और यूरेटर मूत्र पथ के ऊपरी हिस्से हैं। मूत्राशय और यूरेथरा मूत्र पथ के निचले हिस्से हैं। मूत्र पथ का अंतिम भाग जो हवा के संपर्क में है – यहाँ तक मूत्र पथ जन्तु-विहीन है। जन्तु जब मूत्राशय और गुर्दे की ओर बढते हैं, तब संक्रमण होता है। पुरुषों में या तो जन्म से मूत्राशय की विकृति के कारण पहले साल में ही या साठ साल के बाद जब प्रोस्टेट ग्रंथि मूत्र मार्ग में अवरोध करती है, मूत्र पथ का संक्रमण हो सकता है। यौन सक्रिय अवधि में मूत्र पथ का संक्रमण ज़्यादातर महिलाओं में पाया जानेवाला रोग है।
मूत्र पथ के संक्रमण के कारण
मूत्र पथ का संक्रमण समुदाय-प्राप्त हो सकता है या अस्पताल में मूत्र पथ में उपयोग किये जानेवाले उपकरण (मूत्राशय कैथीटेराइजेशन) के जरिये भी प्राप्त हो सकता है। समुदाय-प्राप्त संक्रमण बैक्टीरिया के द्वारा होते है। इनमें सबसे सामान्य जन्तु ‘ई. कोलई’ कहा जाता है। प्रतिरोधी बैक्टीरिया और फंगस (कवक) से अस्पताल-प्राप्त संक्रमण हो सकते हैं।
मूत्र पथ के संक्रमण के लक्षण
पीड़ायुक्त पेशाब (डायसुरिया) और पेशाब करने की आवृत्ति में बढौती — ये मूत्र पथ के संक्रमण के बिशिष्ट लक्षण हैं। यह मूत्राशय और मूत्र नलि (यूरेथरा) में जलन होने का नतीज़ा है। सामान्यतः इन लक्षणों की अनुपस्थिति में मूत्र पथ के संक्रमण का निदान नहीं करना चाहिये। पेशाब के रंग परिवर्तन और सिर्फ मूत्र में रक्त की मौजूदगी (बिना डायसुरिया के) मूत्र पथ के संक्रमण का संकेत नहीं करते। ऊपरी मूत्र पथ संक्रमण में बुखार और कमर दर्द होते हैं। सिर्फ पेट के निचले भाग में दर्द और बार-बार पेशाब करना ही निचले मूत्र पथ के संक्रमण का संकेत करते हैं। अगर रोग के कोई लक्षण बिना, प्रयोगशाला में जन्तु मूत्र में विकसित होता है, उसे अलक्षणिक बैक्टीरियूरिया कहते हैं। यह एक प्रयोगशाला परीक्षण है और दुर्लभ स्थितियों के अलावा चिकित्सा की कोई ज़रूरत नहीं होती। डायसुरिया या दर्दनाक मूत्र विसर्जन मूत्र पथ के संक्रमण के अभाव में भी हो सकता है जैसे कि यूरेथरा को चोट लगने पर या यूरेथरा की सूजन से। इसे ‘यूरेथ्रल सिन्ड्रोम’ कहते हैं। ऊपरी तथा निचले मूत्र पथ संक्रमण और ‘यूरेथ्रल सिन्ड्रोम’ के बीच अंतर पहचानना चिकित्सा क्रम तय करने के लिये ज़रूरी है।
रोगनिर्णय
दर असल रोगनिर्णय लक्षणों से किया जाता है जैसे कि पीड़ायुक्त पेशाब (डायसुरिया) और पेशाब करने की आवृत्ति में बढौती। प्रयोगशाला में परीक्षण सिर्फ रोगनिर्णय की पुष्टीकरण के लिये है और सही दवाई चुनने में मदद करता है।
मूत्र रिपोर्टों की व्याख्या
अगर मूत्र में मवाद कोशिकायें (pus cells) मौजूद हो, तब यह मूत्र पथ में सुजन का संकेत करता है। संक्रमण का यह एक सामान्यतम कारण है। लेकिन, पथरी, गांठ (ट्यूमर), नेफ्रैटिस (गुर्दे की सुजन) होने पर भी मूत्र में मवाद कोशिकाओं (pus cells) का उत्पादन हो सकता है। आल्बयुमिन की मौजूदगी मूत्र पथ के संक्रमण का निर्णय लेने के लिये सीधा लक्षण नहीं है। यह आमतौर पर गुर्दो की बीमारी का संकेत है। एपिथीलियल कोशिकाओं (epithelial cells) की मौजूदगी मूत्र का नमूना लेते समय संदूषण का संकेत करता है। मूत्र के नमूने का संग्रह करने का सही तरीका: गुप्तांग पानी से साफ करने के बाद, शुरुआत के मूत्र की कुछ मात्रा छोड़ देनी चाहिये। इसके बाद मूत्र का संग्रह एक साफ / स्टेरिलाइज किया हुआ (जीवाणुरहित किया हुआ) पात्र में करना चाहिये। इसे मध्य-धारा नमूना या ‘क्लीन कैच’ नमूना कहते हैं। इसे फौरन प्रयोगशाला में पहुँचाना चाहिये।
मूत्र की अभिवृद्धि (कल्चर)
मूत्र के दोषपूर्ण संग्रह की वजह से, इस परीक्षण में बहुत सारी गलतियाँ होती हैं। मूत्र की अभिवृद्धि (कल्चर) का परिणाम देते समय, जन्तुओं की सामुहिक गिनती देना अनिवार्य है। केवल १०-५ से ज्यादा कॉलोनी गिनती ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। कॉलोनी गिनती के बिना जो मूत्र अभिवृद्धि (कल्चर) रिपोर्ट दिये जाते हैं उनसे सचेत रहें। मूत्र अभिवृद्धि (कल्चर) रिपोर्ट में जीवाणओं (बैक्टीरिया) के प्रकार के अलावा, उन दवाओं की सूची भी दी जानी चाहिये, जिनमें जीवाणुरोधी संवेदनाशीलता है। इससे चिकित्सा के लिये दवाइयों का निर्णय करने में मदद मिलती है। जिस दवा में कम से कम विषाक्तता हो, संकीर्ण दायरे में असर देने की क्षमता हो, और जो ऊतक में घुस सके, ऐसी दवाई को चुनना चाहिये।
अन्य जांच
निम्नलिखित खास स्थितियों में अल्ट्रासाउण्ड, एक्स-रे, सिस्टोस्कोपी जैसे विस्तृत जांच की ज़रूरत होती है।
• सभी पुरुष जिन्हें मूत्र पथ का संक्रमण हो
• बाल्यावस्था की लडकियाँ या ६० वर्ष से ऊपर की महिलायें
• यौन सक्रिय महिलायें, जिन्हें मूत्र पथ का संक्रमण बार-बार होता हो
मूत्र पथ के संक्रमण की चिकित्सा
संक्रमण समुदाय-प्राप्त है या ऊपरी मूत्र पथ का है या निचले मूत्र पथ का है – चिकित्सा इस पर निर्भर करती है। निचले मूत्र पथ का संक्रमण जो समुदाय प्राप्त हो, इसकी चिकित्सा एक मात्रा (डोज़) एंटिबायोटिक सहित सामान्य दवाओं से कर सकते है। अन्य संक्रमणों की चिकित्सा के लिये लम्बी अवधि तक दिये जानेवाले एंटिबायोटिक दवाओं की ज़रूरत होती है।
यौन सक्रिय महिलाओं में मूत्र पथ के संक्रमण की रोक-थाम
• अच्छी व्यक्तिगत स्वच्छता तथा संभोग के बाद पेशाब करना
• संभोग के बाद कम मात्रा (डोज़) की एंटिबायोटिक लेना
• दीर्घकालीन रात में लिये जानेवाला कम मात्रा (डोज़) की एंटिबायोटिक लेना
मूत्र पथ के संक्रमण में पानी की भूमिका
बडी मात्रा में पानी पीने से मूत्र पथ में जलन कम हो सकता है। मगर, इससे संक्रमण जड़ से समाप्त नहीं किया जा सकता।
क्षारीय मिश्रण की भूमिका
क्षाक्रीय मिश्रण भी लक्षणानुसार मूत्र पथ में जलन को कम कर सकता है। मगर इससे भी संक्रमण को जड़ से समाप्त नहीं किया जा सकता।
आहार
आहार में अत्यधिक पशु प्रोटीन होने से मूत्र अम्लीय बनता है। इससे मूत्र पथ में जलन बढ सकती है। सब्जियाँ मूत्र में अम्लीयता को कम करके मूत्र को क्षारीय बनाती हैं।
प्रमुखताएँ
• मूत्र पथ का संक्रमण एक नैदानिक निदान (क्लिनिकल डायगनोसिस) है। प्रयोगशाला सिर्फ पुष्टीकरण के लिये इस्तेमाल किया जाता है। अगर लक्षण मौजूद न हो, खास स्थितियों के अलावा मूत्र पथ के संक्रमण का इलाज नहीं करना चाहिये।
• प्रयोगशाला के परीक्षण में बहुत सारी गल्तियाँ पायी जाती हैं।
• ऊपरी तथा निचले मूत्र पथ संक्रमण के बीच अंतर पहचानना।
• उनकी जाँच करना जो कमजोर नहीं हों (यौन सक्रिय महिलाओं के अलावा)
• सरल उपायों के जरिये मूत्र पथ संक्रमण को होने से रोकना।
यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन, पेशाब में पस सेल्स का आना इन्फेक्शन को दर्शाता है। यूरिन इन्फेक्शन के लक्षण, पस या मवाद जो गाढे सफ़ेद या हल्का पीला या हल्का हरा रंग लिये होता है, अगर पेशाब से आने लगे तो इसका मतलब है आपके ऊपरी या निचले मूत्र मार्ग में इन्फेक्शन (peshab ki problem) है। बॉडी में पस सेल्स, मृत श्वेत रक्त कणिकाओं और अन्य मृत कोशिकाओं से बनती हैं।
अगर मूत्र के नमूने में अतिरिक्त मात्रा में पस की कोशिकाएं दिखती हैं तो इस स्थिति को प्युरिया (pyuria) के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसा चरण है जहां से आपको मूत्राशय, फेफड़ों और मूत्र निकासी के रास्ते की समस्याएं सता सकती हैं। यह स्थिति तब जन्म लेती है जब वहाँ पर काफी मात्रा में मृत सफ़ेद रक्त कोशिकाएं और बैक्टीरिया (bacteria) पाए जाते हैं। इससे कई तरह के संक्रमणों का जन्म होता है।
अगर पस कोशिकाओं की गिनती 5 तक हो तो पुरुषों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। पर महिलाओं के लिए यह संख्या 10 होनी चाहिए। पस आमतौर पर एक गाढ़े द्रव्य का नाम होता है जो कि गोंद की तरह प्रतीत होता है। पस का रंग पीला, सफ़ेद और हरा रंग लिए हुए हो सकता है। इस समस्या के कुछ कारण होते हैं जैसे मूत्र निकासी के भाग का संक्रमण और यौन संचारित रोग आदि।
पेशाब के रोग – पस सेल्स के आने के कारण (Causes of pus cells in urine)
पेशाब में पस सेल्स के आने के दो मुख्य कारण हैं।
• मूत्रनली में इन्फेक्शन या यू.टी.आई. – महिलाओ का मूत्राशय छोटा होने के कारण महिलाओं में इसके होने की सम्भावना अधिक होती है।
• सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज (यौन संचारित रोगों) या एस. टी. आई. – एस. टी. आई के मरीजों, में इसकी सम्भावना अधिक होती है।
मूत्र रोग – अन्य कारण (Other causes)
पुरुषों और महिलाओं में पेशाब के दौरान दर्द और जलन के कारण
• फंगल इन्फेक्शन (फफूंद संक्रमण)
• केमिकल प्वाईजनिंग (रासायनिक विषाक्तता)
• वायरल इन्फेक्शन (वायरल संक्रमण)
• एनारोबिक बैक्टीरियल इन्फेक्शन (अवायवीय जीवाणु संक्रमण)
• गुर्दे की पथरी
• मर्दों में प्रोस्टेट ग्रंथि में इन्फेक्शन
• मूत्रनली में टी.बी.
• मूत्रान्गों या प्रजननान्गों में कैंसर
बढ़ती उम्र या प्रेगनेंसी की वजह से भी मूत्र में पस सेल्स आने लगती हैं।
पस सेल्स या मवाद की समस्या से बचने के घरेलु उपाय हिंदी में (Remedies for pus cells in urine during pregnancy in Hindi)
प्रेगनेंसी की अवस्था में मूत्रमार्ग से पस या मवाद का आन एक आम समस्या है जो साधारण तौर पर दिक्कत की वजह नहीं बनती लेकिन अगर यह मात्रा सामान्य से अधिक हो जाये तो ज़रूरी परेशानी का कारण हो सकती है. इस अवस्था में डॉक्टर एंटीबायोटिक्स और अन्य तरह कीई कुछ ख़ास दवाओं द्वारा इसके इलाज की कोशिश करते हैं लेकिन अगर आपकी समस्या सामान्य है लेकिन आप इसे घरेलु उपचार द्वारा ठीक करना चाहती हैं तो कुछ ख़ास बातों का ध्यान रख के पेशाब में पास और यूरिन इन्फेक्शन की भी कुछ समस्याओं का इलाज किया जा सकता है.
• तली भुनी और ज्यादा मिर्च मसालेदार चीज़ों का सेवन न करें.
• अधिक मात्रा में तरल पेय लें.
• अपने जननांगों से मवाद या अन्य तरह के तरल को साफ़ करने के लिए बार बार पानी का प्रयोग ना करें. कई बार महिलाएं इस हिस्से में कठोर साबुन या शावर जेल आदि का इस्तेमाल करती हैं इससे त्वचा का पीएच बेलेंस असामान्य हो जाता है साथ ही अच्छे बैक्टीरिया भी नष्ट हो जाते हैं. इससे बचने के लिए इन खास अंगों पर कठोर और खुशबूदार प्रसाधनों का प्रयोग ना करें.
• पस या मवाद की वजह से इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है इसीलिए नियमित रूप से अंतर्वस्त्र बदलते रहे.
• प्रोटीनयुक्त और सेहतमंद भोजन लें. दूध का प्रयोग नियमित रूप से करें. यह शारीरिक कमजोरी को भी दूर करने में मदद करता है.
• सिगरेट, शराब जैसी बुरी आदतों से दूर रहे.
• चाय काफी की जगह ग्रीन टी का इस्तेमाल करें.
यूरिन इन्फेक्शन का इलाज – घरेलू उपचार (Home remedies for pus cells in urine)
पानी और अन्य पेय पदार्थ – हम जितना अधिक पेय लेते है, पेशाब उतना ही ज्यादा बनता है और शरीर से टोक्सिन और बैक्टीरिया बाहर निकलते जाते हैं। पानी के अलावा हमें फलों के जूस, सब्जियों के जूस, तरबूज, ककड़ी, नारियल पानी आदि लेते रहना चाहिये।
बेकिंग सोड़ा – बेकिंग सोड़ा बॉडी में अम्ल और क्षार का बैलेंस बनाये रखने में सहायक होता है। एक ग्लास पानी के साथ आधा चम्मच सोड़ा, दिन में दो बार लेने से शुरूआती दौर के इन्फेक्शन को ठीक किया जा सकता है।
करौंदे का जूस – यह जूस यू.टी.आई. के रोगियों को इन्फेक्शन रोकने के लिए दिया जाता है । इसमें मिलने वाले तत्व बैक्टीरियल इन्फेक्शन और पस सेल्स से बचाते है।
विटामिन C – इन्फेक्शन से लड़ने वाले सुरक्षाचक्र के लिए विटामिन C एक अत्यावश्यक कॉम्पोनेन्ट है। खट्टे फलों जैसे संतरा, आवंला, केला, अमरुद पाइनएप्पल आदि फलों एवं सब्जियों का सेवन अवश्य करें।
सामान्य यौन संक्रमित बिमारियां (एसटीडी) और उनके सामान्य लक्षण
बेल – आयुर्वेद में बेल का प्रयोग कई तरह की बीमारियों का इलाज करने के लिए किया जाता है। बेल में साइट्रिक, मैलिक और टेंनिक एसिड कई सारे विटामिन्स और मिनरल्स के साथ अच्छी मात्रा में पाया जाता है यह बॉडी को वायरल इन्फेक्शन से बचाने में मदद करता है। मूत्र सम्बंधित परेशानियों के लिए दूध और शक्कर के साथ बेल का गूदा अत्यंत लाभदायक होता है।
मूत्र विकार – ककड़ी – ककड़ी के जूस में 95% पानी और पोषक तत्व पाए जाते है जो बॉडी से टोक्सिन और पस सेल्स को बाहर निकलने में सहायक होते हैं।
धनियाँ – धनियाँ के बीज सिर्फ एक मसाला न होकर बहुत अच्छी औषधि भी है जिसमे अच्छी मात्रा में विटामिन्स और मिनरल्स पाए जाते हैं। सालों से इनका प्रयोग आयुर्वेद और चीनी चिकित्सा पद्धतियों में गुर्दे सम्बंधित बीमारियों को ठीक करने में होता आया है।
प्याज – अपने कई गुणों के साथ प्याज भी अत्यधिक लाभदायक होती है और बॉडी टोक्सिन को शरीर से बाहर निकालने में सहायता करती है।
मूत्र विकार – तुलसी – अपने आयुर्वेदिक गुणों के लिए मशहूर तुलसी एक अतिलाभकारी औषधि है इसका उपयोग गुर्दे की पथरी को ठीक करने में किया जाता है।
दही – दही में बहुत सारे अच्छे बैक्टीरिया पाए जाते हैं जो हानिकारक बैक्टीरियाज को नष्ट करते हैं और शरीर से पस सेल्स को बाहर निकालते हैं।
लहसुन – लहसुन को प्राचीन काल से एक प्राक्रतिक एंटीबायोटिक के रूप में जाना जाता है जो शरीर के रोगप्रतिरक्षण क्षमता को बढ़ाता है।
मूत्र में पस कोशिकाओं के घरेलू नुस्खे (Home remedies for pus cells in urine)
युवा उर्सी (Uvaursi)
ब्रोंकाइटिस का उपचार के घरेलू नुस्खे
इसका भारतीय नाम युवा उर्सी है और इसे बेयरबेरी (bearberry) के नाम से भी जाना जाता है। यह घरेलू नुस्खा काफी प्रभावी है और इसकी मदद से पायेलोनेफ्राइटीस, युरेथ्राइटीस, सिस्टाइटीस (pyelonephritis, urethritis, cystitis) आदि समस्याएं दूर हो सकती हैं। यह हमारे मूत्र के संक्रमण के विषैलेपन को दूर करने में भी सहायता करता है। यह आपकी मूत्र निकासी की प्रक्रिया को बेहतर और सुचारू रूप से चलाने का काम करता है। इसके लिए एक कप पानी को उबालें और इसमें एक चम्मच सूखी हुई युवा उर्सी की पत्तियाँ डालें। इसे 15 मिनट तक इसी तरह डुबोकर रखें। इस पानी का सेवन रोजाना करके मूत्र में पस की कोशिकाओं को कम करें। इस समस्या से पीड़ित पुरुष और महिलाओं दोनों के लिए यह नुस्खा काफी उपयोगी साबित होता है।
जलकुम्भी (Water cress)
यह एक और प्रभावी घरेलू नुस्खा है जो आपको पस की कोशिकाओं के संक्रमण से दूर रखता है। क्योंकि इस उत्पाद में विटामिन डी, ए और सी (vitamin D, A and C) के साथ फॉस्फोरस, मैग्नीशियम और कैल्शियम (phosphorous, magnesium and calcium) भी मौजूद होते हैं। यह आपके लिए काफी स्वास्थ्यकर साबित होता है। इसके लिए एक कप पानी उबाल लें और इसमें जलकुम्भी की 2 पत्तियों को डुबो दें। अब ओवन (oven) को बंद कर दें तथा पात्र को ढक लें। इसे 10 मिनट तक इसी तरह डुबोये रखें। समय समाप्त होने के बाद पानी को छानकर इसका सेवन कर लें।
खीरे का रस (Cucumber juice)
खीरे में बेहतरीन गुण होते हैं जो मूत्र में मौजूद पस की कोशिकाओं की समस्याओं का उपचार करते हैं। यह एक प्राकृतिक फल है जिसमें पोटैशियम, सिलिका, मैग्नीशियम, सोडियम और कई विटामिन्स (potassium, silica, magnesium, sodium and various vitamins) पाए जाते हैं। यह आपके मूत्र में मौजूद एसिड (acid) को निष्प्रभाव कर देता है। एक ब्लेंडर (blender) की मदद से खीरे का रस निकालें। अब इसमें आधा चम्मच नींबू और शहद का मिश्रण करें। इस मिश्रण का सेवन दिन में 3 बार करें और इस तरह के मूत्र के संक्रमण से कोसों दूर रहें। यह औषधि तथा अन्य दवाइयों से कई गुना असरदार होता है। इससे आपको प्राकृतिक रूप से पस की कोशिकाओं की समस्या से मुक्ति मिलेगी।
[6:32 PM, 2/5/2018] Rahul Sir: अमरूद व् अमरुद की पत्तियों के लाभ
डॉ.महेंद्र सेठिया
इसका प्राचीन नाम अमृतफल है| जिसका अपभ्रंश ही अमरूद है | आयुर्वेदानुसार यह कसेला, स्वादु, अम्ल, शीतल, भारी, कफ करक तीक्ष्ण, ह्रद्य, शुक्रजनक तथा वातपित्त, उन्माद, भ्रम, मूर्च्छा, कृमि, तृषा, शोष, विषमज्वरहर है| आमातिसार और संग्रहणी में भोजन के साथ ही थोड़ी मात्रा में सेवन क्षुधावर्धक है | यह पेट को साफ़ करने के लिए अत्यंत लाभप्रद है| भोजन के पूर्व खाने से अतिसार में लाभप्रद है | भोजन के बाद सेवन करने से पाचन क्रिया में सुधार होकर पेट साफ़ करता है| अमरुद के फल को काटकर उस पर कालीमिर्च, कालानमक लगाकर खाने में स्वाद बढ़ता है | पेट साफ़ हो कर पेट का अफरा, गैस, अपच, अजीर्ण में लाभ होता है | पागलपन में अमरुद का फल लाभदायक है| इससे मस्तिष्क के स्नायुओ को ताक़त मिलाती है तथा मस्तिष्क की गर्नी शांत होती है अतः पार्टी कार्यक्रमों के भोजन में अमरुद अवश्य खिलाना चाहिए |
अमरुद खाने का समय ८ – ९ बजे दिन का है दोपहर के भोजन के बाद व् तीसरे पहर बभी खा सकते है, जिनके शारीर में पित्त प्रकोप के कारन दाह हो उन्हें भोजन के बाद खाना चाहिए | छोटे बच्चो को अमरुद पीसकर पानी में घोलकर पिलाना चाहिए| वृद्धो को कालीमिर्च और नमक लगाकर खाना चाहिए | बिबंध (कब्ज) को दूर करने के लिए भोजन के पूर्व व् दोपहर ४ बजे खाना चाहिए| अमरुद को शहद के साथ खाने से ह्रदय, मस्तिष्क, आमाशय को बल देता है | पके अमरुद को कुचलकर दूध में मिलाकर छान ले ताकि बिज निकल जायें, चीनी मिलाकर पीवे, शक्ति स्फूर्तिदायक है, इससे बल-वीर्य की असाधारण वृद्धि होती है |
शिरःशूल में – सूर्योदय से पूर्व कच्चे अमरुद को पिरस्कर ललाट पर लेप करने से शिरः शूल (आधाशीशी) में लाभ होता है| २-३ दिनों तक प्रयोग करावें |
अमरुद के कुछ अन्य प्रयोग –
१. मुख के रोग – अमरुद के कोमल पत्ते चबाने से मुह के छले ठीक होते है| मुख की दुर्गन्ध दूर होती है |
२. दांत दर्द – अमरुद के पत्तो का क्वाथ बनाकर उसके कुल्ले करने से दांत दर्द में तत्काल लाभ होता है| पत्तो को चबाने से दांत एवं मसुढे मजबूत होते है, पर अमरुद का फल खाते समय बड़ी सावधानी बरतनी चाहिए| इसके बीज दांतों में फंस जाने पर वह कृमि वाले दांत के खड्डे में फंस जाने से बड़ा भयंकर द्नात्शुल होता है |
३. कब्ज – अमरुद के फल का सेवन कब्ज नाशक है | अमरुद के फल को काटकर उस पर कालीमिर्च, नमक, सोंठ छिड़ककर खाने से स्वाद बढ़ता है| पेट का अफरा, गैस, अपच दूर होते है |
४. अमरुद की चाय – खांसी में अमरुद के पत्ते पानी में उबालकर दूध + चीनी मिलाकर चाय की तरह पिने से आराम होता है|
५. पागलपन – पागलपन में अमरुद का फल लाभदायक है | इससे मस्तिष्क की गर्मी शांत होती है | अतः पागल व्यक्तियों के भोजन में अमरुद की मात्रा बढानी चाहिए | एक अमरुद रात में पानी में भिगो दें तथा प्रातः काल खाली पेट चबाकर खा ले |
६. गुदभ्रंश – अमरुद के पत्ते, छाल का चूर्ण २५० ग्राम को २ लीटर पानी में उबालकर ५०० मिली वचा ले, इस क्वाथ से बार-बार गुदा को धोने से यह क्वाथ अपने संकोच एवं रोचक प्रभाव से गुद्भ्रंश में लाभप्रद है|
७. नेत्र विकार – आँख आने, आँखों की लाली, आँख से पानी आना, नेत्र पीड़ा आदि विकारो में अमरुद की कोमल पत्तियों को पीसकर आँखों के ऊपर लेप करने से लाभ होता है|
८. अतिसार और हैजा – अतिसार और हैजा में अमरुद के पत्ते एवं अंतर्छाल का क्वाथ थोडा-थोडा दिन में ३-४ बार पिलाने से लाभ होता है|
९. कास – अमरुद को हल्की आग पर भुनकर खाने से कफ युक्त कास में लाभ होता है|
१०. दुर्बलता में – मीठे अमरुद को कुचलकर पीसकर उसमे दूध मिलाकर छान ले, जिससे उसके सारे बिज निकल जावें, बाद में उसमे आवश्यकतानुसार चीनी मिलाकर शर्बत बनालें| यह शर्बत अत्यंत शक्ति वर्धक होता है|
अमरुद की पतियों से करें कई लाइलाज बिमारिओं का इलाज..!!
अमरुद की पतियों से करें कई लाइलाज बिमारिओं का इलाज..!!
अमरूद खाना स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि अमरूद की पत्ति यां भी कुछ कम नहीं होती हैं. त्वचा की देखभाल से लेकर बालों की खूबसूरती बनाए रखने तक के लिए अमरूद की पत्तिबयों का इस्तेमाल किया जाता है.
अमरुद की पत्तियों से कई बिमारिओं का इलाज किया जा सकता है | अमरुद कई औषधीय गुणों से भरपूर फल है |इसकी पत्तियां भी बहुत उपयोगी होती हैं या यूं कहें कि अमरूद के फल से ज्यादा इसकी पत्तियां फायदेमंद है|अमरुद की पतियों के फायदे के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं ये कई बिमारिओं में फायदेमंद होते हैं | आज हम आपको अमरुद की पतियों के ऐसे फायदे बताएँगे जो आपने कभी सोचे नही होंगे
अमरुद की पतियों के फायदे /guava leaves benefits :-
1.वजन घटाएं
अमरूद की पत्तियां जटिल स्टार्च को शुगर में बदलने से रोकती हैं। जिससे शरीर के वज़न को कम में सहायता मिलती है। यही कारण है कि वजन घटाने के लिए अमरूद की पत्तियों का चूर्ण उपयोग में लाया जाता है।
2. गठिया दर्द
अमरूद के पत्तों को कूटकर, लुगदी बनाएं। इसे गर्म करके गठिया प्रभावित स्थानों पर लगाने से सूजन दूर हो जाएगी।
3.स्वप्नदोष में लाभ
अमरूद के पत्तों को पीसकर उसका रस निकाल लें। इसके बाद रस में स्वादानुसार चीनी मिलाकर रोजाना सेवन करें। स्वप्नदोष की बीमारी में लाभ होगा
4.ल्यूकोरिया में लाभ
अमरूद की ताजी पत्तियों का रस 10 से 20 मिलीलीटर तक रोजाना सुबह-शाम पीने से ल्यूकोरिया नामक बीमारी में अप्रत्याशित लाभ होता है।
5.कोलेस्ट्रॉल कम करें
अमरूद की पत्तियों का जूस लिवर साफ करने में मदद करता है। यह बीमारी पैदा करने वाले कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करता है।
6.डायरिया मिटाए
यह पेट की कई बीमारियों को ठीक करने में असरदार है। एक कप खौलते हुए पानी में अमरूद की पत्तियों को डाल कर उबालिए और फिर इस पानी को ठंडा करके छान कर पी लीजिए। डायरिया में लाभ होगा।
7.पाचन तंत्र ठीक करे
अमरूद की पत्तियां या फिर उससे तैयार जूस पी कर आप पाचन तंत्र को ठीक कर सकते हैं। इससे फूड प्वाइजनिंग में भी काफी राहत मिलती है।
8.दांतों की समस्या के लिए
दांत दर्द, गले में दर्द, मसूड़ों की बीमारी आदि अमरूद की पत्तियों के रस से दूर हो जाती है। अमरूद की पत्तियों को पीस कर पेस्ट बना कर उसे मसूड़ों या दांत पर लगा सकते हैं।
9.डेंगू बुखार
डेंगू बुखार में अमरूद की पत्तियों का रस पिएं। यह डेंगू के संक्रमण को दूर करता है।
10.एलर्जी दूर करे
अमरूद की पत्तियों का रस किसी भी प्रकार की एलर्जी को दूर कर सकता है। यह एलर्जी पैदा करने वाली वायरस को ख़तम करता है |
11. मुंह के छाले
अमरूद के पत्तों पर कत्था लगाकर चबाएं। केवल अमरूद के पत्ते चबाने से भी छाले ठीक हो जाते हैं।
12. मुंहासे मिटाए
इन पत्तियों में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं। इसलिए ताजी पत्तियों को पीस कर पिंपल्स पर लगाएं कुछ ही दिनों में पिंपल्स खत्म हो जाएंगे।
13.बालों की ग्रोथ बढाए
अमरूद की पत्तियों में बहुत सारा पोषण और एंटीऑक्सीडेंट होता है, जो कि बालों की ग्रोथ को बढ़ाता है।
14. डायबिटीज रोगियों के लिए
एक शोध के अनुसार अमरूद की पत्तियां एल्फा-ग्लूकोसाइडिस एंज़ाइम की क्रिया द्वारा रक्त शर्करा को कम करती है। दूसरी तरफ सुक्रोज़ और लैक्टोज़ को सोखने से शरीर को रोकती है जिससे शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है। इसलिए डायबिटीज के रोगियों के लिए अमरूद के पत्तों का चूर्ण लाभदायक होता है।
15.खुजलाहट
अमरूद की पत्तियों में एलर्जी अवरोधक गुण पाया जाता है। एलर्जी खुजलाहट का मुख्य कारण है। अत: एलर्जी को कम करने से खुजलाहट अपने आप कम हो जाएगी।
16. सिर में दर्द
आधे सिर में दर्द होने पर सूर्योदय के पूर्व ही कच्चे हरे ताजे अमरूद के पत्ते लेकर पत्थर पर घिसकर लेप बनाएं और माथे पर लगाएं। कुछ