नमस्कार महामंत्र
ऋषभ ने अपने ज्येष्ठ पुत्र
भरत को ७२ कलाएं सिखलाई। कनिष्ठ पुत्र बाहुबली को प्राणी की लक्ष- विद्या का उपदेश
दिया। बड़ी पुत्री ब्राही को अठारह लिपियों और सुन्दरी को गणित का अध्ययन कराया।
धनुर्वेद, अर्थशास्त्र, चिकित्सा-शास्त्र, क्रीड़ाविधि आदि-आदि विधाओ का प्रवर्तन
कर लोगो को सुव्यवस्थित और सुसंस्कृत बना दिया।
अग्नि की उत्पति ने विकास का स्त्रोत खोल
दिया। पात्र, औजार, वस्त्र, चित्र आदि शिल्पों का जन्म हुआ। अन्न्पाक के लिए
पात्र-निर्माण आवश्यक हुआ। कृषि, गृह-निर्माण आदि के लिए औजार आवश्यक थे इसलिए
लोहकार-शिल्प का आरंभ हुआ। सामाजिक जीवन ने वस्त्र-शिल्प और गृह-शिल्प को जन्म
दिया।