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Pravachan

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*आज की प्रेरणा ....*
*प्रवचनकार – आचार्य श्री महाश्रमण ....*
*प्रस्तुति – अमृतवाणी .....*
*आलेखन – संस्कार चेनेल के श्रवण से –*

आर्हत वाड्मय में कहा गया है   –  मनुष्य के शरीर में पांच इन्द्रिया होती है | कान से सुना जाता है, आँख से देखा जाता है, नाक से सुंघा जाता जा सकता है, जीभ से चखा जा सकता है और शरीर से स्पर्श किया जा सकता है| अनंत अनंत प्राणी ऐसे हैं जिन्हें पांचों इन्द्रियां प्राप्त नहीं हैं | इन पांचों इन्द्रियों को हम ज्ञान का माध्यम बनाएं| श्रोत व चक्षु दो कामी इंद्रियां हैं और बाकि घ्राण, रस व स्पर्श भोगी इन्द्रियां है | आदमी को इन्द्रयों का संयम करना चाहिए | साधु व श्रावक को तो संयम करना ही चाहिए शासक के लिए भी एक सीमा तक संयम ज- रूरी है वरना भोग विलासिता शासन के संचालन में भी वाधक  हो सकती है | हाथ पैरों का अनावश्यक हिलाना डुलाना भी न करें | वाणी का ??

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जे एगं जाणइ , से सव्वं जाणइ
====================
आत्मा भिन्न है और पुद्गल भिन्न है,
यही तत्त्व है |
जिसने आत्मा को समझ लिया,
उसने परमात्मा को समझ लिया |
जिसने आत्मा को समझ लिया,
उसने बंधन को समझ लिया |
जिसने आत्मा को समझ लिया,
उसने बंधन के हेतु को समझ लिया |
जिसने आत्मा को समझ लिया,
उसने संवर को समझ लिया |
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*आज की प्रेरणा ....*
*प्रवचनकार – आचार्य श्री महाश्रमण ....*
*प्रस्तुति – अमृतवाणी .....*
*आलेखन – संस्कार चेनेल के श्रवण से –*
*पुंनः प्रसारण 16 दिसम्बर के प्रवचन का*-

आर्हत वाड्मय में कहा गया है  –  जो अविनीत होता है उसे  सदैव विपत्ति और सुविनीत होता है उसे सम्पत्ति मिलती है | सफलता और विकास का एक तत्व है  –  विनय का प्रयोग | संस्कृत में कहा गया है – विद्या विनय से सुशोभित होती है | विनय के आभाव में विद्या शोभित नहीं होती | अहंकार कोई बढ़िया चीज नहीं । यह मदिरा पान के सामान है । प्रतिष्ठा की कॉमना व घमंड जितना कम हो सके यह काम्य है । हो आदमी अभिवादन शील होता है व वृद्धों की सेवा करने वाला होता है, उसके जीवन में चार बातों का विकास होता है | पहला - दीर्घ आयुष्य, दूसरी - विद्या, तीसरा - यश और चौथी – शक्ति | विनयपूर्वक ग्रहण की गई विद्या अधिक कारगर होती है | विद्य??

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*आज की प्रेरणा ....*
*प्रवचनकार – आचार्य श्री महाश्रमण ....*
*प्रस्तुति – अमृतवाणी .....*
*आलेखन – संस्कार चेनेल के श्रवण से –*

आर्हत वाड्मय में कहा गया है – साधु जीवन भर के लिए सर्व प्रणातिपात, सर्व मृषावाद, सर्व अदत्तादान, सर्व मैथुन्य व सर्व परिग्रह का त्याग करने वाला होता है | वह रात्रि भोजन भी नहीं करता | श्रावकों के लिए अणुव्रत अर्थात छोटे छोटे व्रतों का प्रावधान होता है | इस समय हम लोग अहिंसा यात्रा कर रहे है| उसका पहला सूत्र है – सद्भावना | एक शहर में अनेकों धर्मों के लोग मिल सकते हैं,पर आपस में सौहार्द व सद्भावना रहे, किसी प्रकार का झगड़ा या विवाद न हो | दूसरा सूत्र है – नैतिकता | यह मार्ग कठिन तो हो सकता है पर मंजिल सुखद है | हम कठिनाई के लिए अच्छे मार्ग को छोड़ दें, यह उचित नहीं | कुछ लोग कठिनाइयों से डरकर कार्य को प्रारंभ ही नहीं करते | कुछ लोग प्रारंभ तो कर

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*आज की प्रेरणा ....*

*प्रवचनकार – आचार्य श्री महाश्रमण ....*
*प्रस्तुति – अमृतवाणी .....*
*संप्रसारण – संस्कार चेनेल के माध्यम से –*

आर्हत वाड्मय में कहा गया है – गुणों से व्यक्ति साधू व अगुणों से असाधु होता है | इसलिए सद्गुणों को ग्रहण करो व अवगुणों को छोडो | छोटे छोटे गुणों को भी ग्रहण कर लिया जाय तो चित्त शुद्ध व चेतना निर्मल रहती है | किसी में कोई विशेषता हो तो हम उसका सम्मान करें व उसे ग्रहण करने का प्रयास करें | सज्जन और दुर्जन की पहचान उसके कपड़ों से नहीं होती बल्कि उसका अंकन उसके गुणों से होता है | दरजी कपड़े तो बना सकता है पर आचरण नहीं | शिविर के बालक बालिकाएं मेरे सामने बैठे हैं | उन्हें संस्कार व आचार पर ध्यान देना चाहिए न कि कपड़ों पर |आभूषणों से भी गुणों का महत्व ज्यादा होता है | आभूषणों की तो चोरी भी हो सकती है पर गुणों की नहीं | शास्त्रकार ने ६ आभूषण बतलाए ह?

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hello

जिस प्रकार पशु को घास तथा मनुष्य को आहार के रूप में अन्न की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार भगवान को भावना की जरूरत होती है। प्रार्थना में उपयोग किए जा रहे शब्द महत्वपूर्ण नहीं बल्कि भक्त के भाव महत्वपूर्ण होते हैं।

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