*आज की प्रेरणा ....*
*प्रवचनकार – आचार्य श्री महाश्रमण ....*
*प्रस्तुति – अमृतवाणी .....*
*आलेखन – संस्कार चेनेल के श्रवण से –*
आर्हत वाड्मय में कहा गया है – साधु जीवन भर के लिए सर्व प्रणातिपात, सर्व मृषावाद, सर्व अदत्तादान, सर्व मैथुन्य व सर्व परिग्रह का त्याग करने वाला होता है | वह रात्रि भोजन भी नहीं करता | श्रावकों के लिए अणुव्रत अर्थात छोटे छोटे व्रतों का प्रावधान होता है | इस समय हम लोग अहिंसा यात्रा कर रहे है| उसका पहला सूत्र है – सद्भावना | एक शहर में अनेकों धर्मों के लोग मिल सकते हैं,पर आपस में सौहार्द व सद्भावना रहे, किसी प्रकार का झगड़ा या विवाद न हो | दूसरा सूत्र है – नैतिकता | यह मार्ग कठिन तो हो सकता है पर मंजिल सुखद है | हम कठिनाई के लिए अच्छे मार्ग को छोड़ दें, यह उचित नहीं | कुछ लोग कठिनाइयों से डरकर कार्य को प्रारंभ ही नहीं करते | कुछ लोग प्रारंभ तो कर