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40 को कर गए हैं पार तो इस लेख पर करें विचा

40 को कर गए हैं पार तो इस लेख पर करें विचार !
                                           
जीवन की यात्रा  में बाल्यावस्था,युवावस्था ,प्रौढावस्था और वृद्धावस्था नाम से जाने जाने वाले पड़ाव आते हैं I शरीर एक गाड़ी की भांति इस यात्रा को संपन्न कराता है ,जिसमें मन और इन्द्रियाँ एक चालक की भांति हैं और आत्मा एक निर्मल,नश्वर यात्री की तरह है I इस यात्रा में आनेवाले पड़ावों को ठीक प्रकार से तय करने में हमारे द्वारा सेवित आहार-विहार का अपना महत्व है I हाँ,बाल्यावस्था और युवावस्था प्रायः निर्माण के पड़ाव हैं,जबकि प्रौढावस्था साम्यावस्था का पड़ाव है और इसी उम्र में हमें अपने खान-पान और दिनचर्या सहित ऋतुचर्या पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है,ताकि आनेवाले वृद्धावस्थारूपी पड़ाव को अच्छी तरह से पार किया जा सके I  आयुर्वेद में वृद्धावस्था को स्वाभाविक रोग का काल माना गया है और इस उम्र को ठीक प्रकार से गुजरने की बुनियाद तो  पिछले पड़ावों से ही सामने आ जाती है ,40  वर्ष से उपर की उम्र में हमारी जीवनशैली का अपना विशेष महत्व है I
आज हम आपको चालीस की उम्र के बाद अपने खान-पान में किये जानेवाले परिवर्तनों की वैज्ञानिक चर्चा करेंगे :-
-चालीस के उम्र के पार हमारे हृदय रोगी होने की संभावना भी बढ़ जाती है,तो हमें अपने भोजन में रेशेदार आहार के सेवन को बढ़ा देना चाहिए, इसमें गेहूं के जवारे प्रमुख रूप से सेव्य है ,इनमें पर्याप्त मात्रा में  बीटा-ग्लूकान्स पाया जाता है, जो खून में पायी जानेवाली  अनावश्यक चर्बी एल.डी.एल की मात्रा को कम कर देता है Iइसके अलावा जौ में पाया जानेवाला एवेंथ्रामाईड एक एंटी-आक्सीडेंट का काम करता है ,जो अन्य धान्यों की अपेक्षा अधिक कारगर रूप से धमनियों की कठिनता (एथेरोस्केलेरोसिस ) को कम कर देता है I इस उम्र में चेरी का सेवन   गठिया की संभावना को कम कर देता है ,इनमें एन्थोसायनिन नामक एंटी-आक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में पाया जाता है I इस उम्र में बादाम का सेवन रक्तगत शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने के साथ कोलेस्टेरोल के स्तर को भी सामान्य करता  है  I इस उम्र में ओमेगा-थ्री-फेटी एसिड से युक्त आहार का सेवन रक्तचाप को नियंत्रित करने के साथ हृदय की अनियमित गति (एरीदमीया) को भी ठीक करने में मददगार होता है I सोयाबीन का सेवन भी आइसोफ्लेवोंस के पाए जाने के कारण चालीस के उम्र के बाद रक्त में कोलेस्टेरोल की मात्रा को नियंत्रित करने के साथ मीनोपौज के उम्र के करीब की महिलाओं में हड्डियों के घनत्व को ठीक  करता है ,साथ ही पुरुषों में फर्टीलिटी को बढाता है ,बस ध्यान रहे की इसकी निश्चित मात्रा का ही सेवन किया जाय I इस उम्र में टमाटर का सेवन  लाइकोपीन एंटी -ओक्सिडेंट  के कारण हमारे शरीर के क्षय कम कर देता है ,जिससे हृदय रोगों सहित कैंसर जैसे रोगों से पीड़ित होने के खतरे को भी कम कर देता है I चालीस की उम्र के बाद नियमित रूप से एक ग्लास दूध के सेवन  का सेवन मांसपेशियों में आये ढीलेपन (झुर्रियां ) कम करने में मददगार होता है I ये तो कुछ टिप्स हैं, जिनसे आप अपने वृद्धावस्था के स्वाभाविक शारीरिक क्षय को थोड़ा आगे  बढ़ा सकते हैं, इसके अलावा नियमित व्यायाम,योग एवं प्राणयाम का अभ्यास सकारात्मक  सोच मानसिक स्वास्थ्य को बरकार रख शारीरिक रूप से भी मजबूती देता है I तो बस जीवन के अंतिम पड़ाव की यात्रा को सुख पूर्वक बिताने के लिए कुछ महत्वपूर्ण टिप्स हमने आपको बताये हैं ,आशा है ये आपके लिए काम के होंगे !

दाढ़ी के सफेद बालों को काला करता है आल

दाढ़ी के सफेद बालों को काला करता है आलू का ऐसा प्रयोग

हालांकि आप मूछ और दाढ़ी के सफेद बालों को कई विधियों से हटा सकते हैं। लेकिन ऐसे कई घरेलू नुस्खे भी हैं जो सफेद बालों से छुटकारा पाने में आपकी मदद कर सकते हैं। आइए ऐसे ही कुछ घरेलू उपायों के बारे में जानकारी लेते हैं।
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मूछ और दाढ़ी के सफेद बाल हटाने के घरेलू नुस्खे 
उम्र बढ़ने के साथ मेलेनिन की मात्रा कम होने के कारण मूछ और दाढ़ी के बाल सफेद होने लगते हैं। मेलेनिन ऐसा पिग्मेंोट है जो आपके बालों और त्व चा के रंग को सही रखने में मदद करता है। लेकिन उम्र के साथ शरीर में मेलेनिन की मात्रा कम होने से बालों और त्वाचा का रंग फीका पड़ने लगता है। इसके अलावा तनाव, खराब खानपान, स्वास्थ्य समस्याएं और बुढ़ापा आदि के कारण भी बाल सफेद होने लगते हैं। लेकिन मूछ और दाढ़ी के बाल सफेद दिखने से आप उम्रदराज लगने लगते हैं। ऐसे में अनचाही सफेदी से छुटकारा पाना स्वाेभाविक है। लेकिन आपकी मूछ पर दिखने वाले बाल छिप नहीं सकते। अतः आपको मूछ के सफेद बालों को हटाने का नुस्खा ढूंढना पड़ेगा। यह सही है कि आप सफेद बाल कई विधियों से हटा सकते हैं। लेकिन ऐसे कई घरेलू नुस्खे भी हैं जो कि आपके बालों को सफेद होने से बचा सकते हैं। आइए हम आपको मूछ और दाढ़ी के सफेद बालों से छुटकारा पाने घरेलू उपायों के बारे में बताते हैं। 


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दाल और आलू का पेस्टे
इस बेहतरीन आयुर्वेदिक नुस्खेे से आप मूछ के सफेद बालों से छुटकारा पा सकते हैं। आलू और दाल को साथ मिलाकर लगाने से आप मूछ के सफेद बालों से छुटकारा पा सकते हैं। आलू और दाल से बना पेस्टो मूछ के अनचाहे बाल को हटाने के काफी काम आता है। आलू में ब्लीचिंग के प्राकृतिक गुण होने के कारण आलू को दाल के साथ मिलाकर मूछ पर लगाने से बालों का प्राकृतिक रंग वापस आ जाता है।

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फिटकरी और गुलाबजल का कमाल
फिटकरी और गुलाबजल से बने पेस्टत को अपनी मूछ के बालों पर लगाकर आप मनचाहा रंग प्राप्त् कर लंबे समय तक जवां बने रह सकते हैं। इसके लिए फिटकरी को पीसकर इसके पाउडर को गुलाबजल के साथ मिलाकर मूछ पर लगा लें। 
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हल्दी का जादू
हल्दी  त्वचा की लगभग हर समस्या बहुत अच्छाक उपाय है। इसमें मौजूद एंटीसेप्टिक और एंटी बैक्टीरियल गुणों के कारण यह बालों की बढ़त को रोकने का काफी प्रभावी तत्व भी माना जाता है। इस प्रभावी उपाय से आप मूछ के सफेद बाल को आसानी से हटा सकते हैं। आप इसे पतले, घने या किसी अन्य प्रकार के बालों पर भी प्रयोग कर सकते हैं।

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कच्चा पपीता
कच्चा पपीता त्वचा की समस्याफओं और अनचाहे बालों को हटाने में काफी मददगार होता है। अगर आपकी त्वचा संवेदनशील है तो पपीता आपके लिए सबसे बेहतरीन प्राकृतिक तत्व है। कच्चे पपीते में पपेन (papain) नामक एंजाइम बालों की बढ़त को रोकता है तथा ऐसा वह बालों की बढ़त की जगह से फॉलिकल्स को तोड़कर करता है। इसके अलावा यह त्वचा को बेहतरीन तरीके से एक्सफोलिएट करता है तथा मृत कोशिकाओं को हटाने में आपकी सहायता करता है।

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गुलाबजल और मूंग की दाल
आप गुलाबजल एवं मूंग का पेस्ट बनाकर भी मूछ और दाढ़ी के सफेद बालों को हटा सकते हैं। मूंग में मौजूद एक्सफोलिएटिंग गुणों के कारण चेहरे के अनचाहे बालों को जड़ से निकाला जा सकता है। इसके अलावा गुलाबजल को त्वचा को साफ करने के साथ बालों को हटाने में मदद करता है। आप इन दोनों चीजों को मिक्सज करके प्रभावी रूप से अनचाहे सफेद बालों को हटा सकते हैं। ये त्वचा की गुणवत्ता को बढाने में भी मदद करता है।

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पुदीने की चाय का प्रभाव
इस चाय में बालों को प्राकृतिक दिखाने के सारे गुण मौजूद होते हैं तथा यही कारण है कि आपको इसका सेवन ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए। पुदीने की चाय का सेवन करके मूछ के बालों की असली रंगत वापस मिलती है। इससे भी आप मूछ और दाढ़ी के बालों के सफेद होने के कारण बूढ़ा नहीं दिखना पड़ता।

सेहत के लिए वरदान से कम नहीं है जौ, फायद

सेहत के लिए वरदान से कम नहीं है जौ, फायदे जानकर हो जाएंगे हैरान
वैसे तो जौ एक अनाज है। लेकिन अगर हम इसके फायदे के बारे में बात करें तो शायद उंगलियों में गिन नहीं पाएंगे।
 
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जौ के फायदे
वैसे तो जौ एक अनाज है। लेकिन अगर हम इसके फायदे के बारे में बात करें तो शायद उंगलियों में गिन नहीं पाएंगे। जौ ऐसा अनाज है जिसके सेवन से हमारे शरीर को कई पोषक तत्व तो मिलते ही हैं साथ ही हैं साथ ही ये हमें कई बीमारियों से भी बचाता है। जौ, गेंहू की ही जाति का एक अनाज है। लेकिन ये गेंहू की अपेक्षा हल्का और मोटा अनाज है। जौ में मुख्य रूप से लेक्टिक एसिड, सैलिसिलिक एसिड, फास्फोरिक एसिड, पोटेशियम और कैल्शियम उपलब्ध होता है। आइए जानते हैं जौ के 5 बड़े फायदें।

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गर्भपात
जिन लोगों को गर्भपात होता है उनके लिए जौ अमृत से कम नहीं हैं। इसके सेवन से गर्भपात की समस्या दूर होती है। जौ के आटे को घी और ड्राई फ्रूट के साथ मिलाकर लड्डू बना कर खाया जा सकता है। इसके अलावा जौ का छना हुआ आटा, तिल और शक्कर के मिश्रण को शहद के साथ मिलाकर खाने से भी गर्भपात रुकता है।

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पथरी
खराब और दूषित खानपान के चलते अधिकतर लोग पथरी की समस्या से परेशान रहते हैं। इस बीमारी से पीड़ित लोग जौ को पानी में उबालें। इसे ठण्डा करने के बाद रोज 1 ग्लास पीएं। ऐसा नियमित करने से पेट की पथरी गलती है। इसके अलावा ऐसे लोग जौ की रोटी, धाणी और जौ का सत्तू भी ले सकते हैं।

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डायबिटीज
डायबिटीज को अगर धीमी मौत कहें तो कुछ गलत नहीं होगा। ये बीमारी लोगों की लाइफस्टाइल पर निर्भर करती है। इसके लिए कोई एलोपेथी दवा काम नहीं करती। इसलिए इस बीमारी से छुटकारे के लिए आपको हेल्दी डाइट लेने की जरूरत है। डायबिटीज के रोगी जौ के आटे की रोटी और सत्तू बनाकर खा सकते हैं। जौ के आटे में चने का आटा मिलाकर भी खाया जा सकता है।

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मोटापा
लगभग 95 प्रतिशत लोग मोटापे की समस्या से परेशान रहते हैं। जौ के सत्तू और त्रिफले के काढ़े में शहद मिलाकर पीने से मोटापा समाप्त हो जाता है। इसके अलावा जो व्यक्ति कमजोर हैं वे जौ को दूध के साथ खीर बना कर खाने से मोटे हो जाते हैं।

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रंग निखारना
जौ सिर्फ आंतरिक ही नहीं बल्कि बाहरी रूप से भी लाभकारी है। ये रंग को निखारने के लिए वरदान है। जौ का आटा, पिसी हुई हल्दी और सरसों के तेल को पानी में मिलाकर लेप बना लें। रोजाना शरीर में इसका लेप करके गर्म पानी से नहाने से रंग निखरता है।

आलू के गुण और लाभ

आलू के गुण और लाभ

आलू प्रोटीन और खनिज से भरपूर होता है। आलू में स्टॉर्च, पोटाश और विटामिन ए व डी की पर्याप्त मात्रा होती है। यह वजन भी बढ़ाता है। आलू को तलकर तीखे मसाले, घी आदि लगाकर खाने से जो चिकनाई पेट में जाती है, वह चिकनाई मोटापा बढ़ाती है। आलू को उबालकर अथवा गर्म रेत या राख में भूनकर खाना लाभदायक और निरापद है। आलू में विटामिन काफी मात्रा में पाया जाता है। इसे छिलके सहित गरम राख में भूनकर खाना बहुत गुणकारी है।
* भुना हुआ आलू पुरानी कब्ज और अंतड़ियों की सड़ांध दूर करता है। आलू में पोटेशियम होता है जो अम्ल-पित्त को घटाता है।
* चार आलू सेंक लें और फिर उनका छिलका उतार कर नमक, मिर्च डालकर नित्य खाने से से गठिया ठीक हो सकता है।
* आलू में 8.5 प्रतिशत प्रोटीन होता है। आलू का प्रोटीन बूढ़ों के लिए बहुत ही शक्ति देने वाला और बुढ़ापे की कमजोरी दूर करने वाला होता है।
* आलू में कैल्शियम, लोहा, विटामिन-बी तथा फास्फोरस बहुतायत में होता है। आलू खाते रहने से रक्त वाहिनियां बड़ी आयु तक लचकदार बनी रहती हैं तथा कठोर नहीं होने पातीं।
* दो-तीन आलू उबालकर छिलके सहित थोड़े से दही के साथ खा लिए जाएं, तो ये एक संपूर्ण आहार का काम करते हैं।
* चोट लगने पर नील पड़ी जगह पर कच्चा आलू पीसकर लगाने से फायदा होता है।
* जलना, तेज धूप से त्वचा झुलसना, त्वचा पर झुर्रियां या त्वचा रोग होने पर कच्चे आलू का रस निकालकर लगाने से फायदा होता है।
* गुर्दे की पथरी में केवल आलू खाते रहने पर लाभ होता है। पथरी के रोगी को केवल आलू खिलाकर, बार-बार अधिक पानी पिलाते रहने से, गुर्दे की पथरियाँ और रेत आसानी से निकल जाता हैं।
* उच्च रक्तचाप के रोगी भी आलू खाएँ तो रक्तचाप को सामान्य बनाने में आसानी होती है।
* आलू को पीसकर त्वचा पर मलने से रंग गोरा होता है।
सावधानी:
हरा भाग सोलेनाइन नामक विषैला पदार्थ होने से खतरनाक बन जाता है। इसके अंकुरित हिस्से का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए।

वीर्य दोष दूर करे

वीर्य दोष दूर करे


* अश्वगंधा, विधारा, शतावरी ५०-५० ग्राम लेकर पीस लें, अब इसमें १५० ग्राम मिश्री मिलाकर रोज प्रातः एक छ्म्मच चूर्ण पानी या गो के दूध से खाते रहें! खटाई कुछ्दिन नहीं खाएं और कब्ज न हो तो शरीर शक्तीशाली बन जायेगा.

* रोज सवेरे एक बताशे में ५-७ बूंदें बड के दूध की डालकर खाने से लडके, लडकियों, बडे, बूढों के वीर्य दोष रोग ठीक होजाते हैं और शरीर सुन्दर व शक्तीशाली बनता है!

नपुंसकता परिचय :
जो व्यक्ति यौन संबन्ध नहीं बना पाता या जल्द ही शिथिल हो जाता है वह नपुंसकता का रोगी होता है। इसका सम्बंध सीधे जननेन्द्रिय से होता है। इस रोग में रोगी अपनी यह परेशानी किसी दूसरे को नहीं बता पाता या सही उपचार नहीं करा पाता मगर जब वह पत्नी को संभोग के दौरान पूरी सन्तुष्टि नहीं दे पाता तो रोगी की पत्नी को पता चल ही जाता है कि वह नंपुसकता के शिकार हैं। इससे पति-पत्नी के बीच में लड़ाई-झगड़े होते हैं और कई तरह के पारिवारिक मन मुटाव हो जाते हैं बात यहां तक भी बढ़ जाती है कि आखिरी में उन्हें अलग होना पड़ता है।

कुछ लोग शारीरिक रूप से नपुंसक नहीं होते, लेकिन कुछ प्रचलित अंधविश्वासों के चक्कर में फसकर, सेक्स के शिकार होकर मानसिक रूप से नपुंसक हो जाते हैं

 मानसिक नपुंसकता के रोगी अपनी पत्नी के पास जाने से डर जाते हैं। सहवास भी नहीं कर पाते और मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है।

कारण :
नपुंसकता के दो कारण होते हैं- शारीरिक और मानसिक। चिन्ता और तनाव से ज्यादा घिरे रहने से मानसिक रोग होता है। नपुंसकता शरीर की कमजोरी के कारण होती है। ज्यादा मेहनत करने वाले व्यक्ति को जब पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता तो कमजोरी बढ़ती जाती है और नपुंसकता पैदा हो सकती है। हस्तमैथुन, ज्यादा काम-वासना में लगे रहने वाले नवयुवक नपुंसक के शिकार होते हैं। ऐसे नवयुवकों की सहवास की इच्छा कम हो जाती है।

लक्षण :
मैथुन के योग्य न रहना, नपुंसकता का मुख्य लक्षण है। थोड़े समय के लिए कामोत्तेजना होना, या थोड़े समय के लिए ही लिंगोत्थान होना-इसका दूसरा लक्षण है। मैथुन अथवा बहुमैथुन के कारण उत्पन्न ध्वजभंग नपुंसकता में शिशन पतला, टेढ़ा और छोटा भी हो जाता है। अधिक अमचूर खाने से धातु दुर्बल होकर नपुंसकता आ जाती है।

हेल्थ टिप्स :
* नपुंसकता से परेशान रोगी को औषधियों खाने के साथ कुछ और बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसे सुबह-शाम किसी पार्क में घूमना चाहिए, खुले मैदान में, किसी नदी या झील के किनारे घूमना चाहिए, सुबह सूर्य उगने से पहले घूमना ज्यादा लाभदायक है। सुबह साफ पानी और हवा शरीर में पहुंचकर शक्ति और स्फूर्ति पैदा करती है। इससे खून भी साफ होता है। 

* नपुंसकता के रोगी को अपने खाने (आहार) पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। आहार में पौष्टिक खाद्य-पदार्थों घी, दूध, मक्खन के साथ सलाद भी जरूर खाना चाहिए। फल और फलों के रस के सेवन से शारीरिक क्षमता बढ़ती है। नपुंसकता की चिकित्सा के चलते रोगी को अश्लील वातावरण और फिल्मों से दूर रहना चाहिए क्योंकि इसका मस्तिष्क पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इससे बुरे सपने भी आते हैं जिसमें वीर्यस्खलन होता है।

वाजीकरण
चिकित्सा :
1. असगंध: 25-25 ग्राम असगंध, ब्रह्मदण्डी और निर्गुण्डी को एकसाथ मिलाकर अच्छी तरह से पीसकर और छानकर इसमें 75 ग्राम खांड मिलाकर रख लें। इसे 5-5 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम दूध के साथ सेवन करने से बाजीकरण के रोग में (यौन शक्ति का कम होना) लाभ मिलता है।
2. इन्द्रजौ: 50-50 ग्राम इन्द्रजौ, तारा मीरा के बीज और उटंगन के बीजों को एकसाथ कूटकर और छानकर 5-5 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम शहद में मिलाकर चाटने से बाजीकरण का रोग (यौन शक्ति का कम होना) दूर हो जाता है।
3. बिदारीकंद: 100 ग्राम बिदारीकंद को कूटकर और छानकर इसमें 100 ग्राम खांड मिलाकर 5-5 ग्राम की मात्रा में घी में डालकर सुबह-शाम सेवन करने के बाद ऊपर से खांड मिला दूध पीने से यौनशक्ति के कम होने का रोग समाप्त हो जाता है।
4. सफेद मूसली: 50 ग्राम सफेद मूसली, 100 ग्राम तालमखाना और 150 ग्राम देसी गोखरू को एकसाथ कूटकर और छानकर रख लें। फिर इसमें 300 ग्राम खांड मिलाकर 5-5 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम हल्के गुनगुने पानी से लेना बाजीकरण (यौन शक्ति का कम होना) रोग में लाभ होता है।
5. उड़द :
25 ग्राम उड़द की दाल की पिट्ठी या सिंघाढ़े के आटे को देसी घी में भूनकर लगभग 400 ग्राम दूध में मिलाकर पकायें। पकने के बाद गाढ़ा होने पर कम गर्म में दूध में चीनी मिलाकर सुबह सेवन करने से बाजीकरण के रोग में आराम होता है।
उड़द की दाल का एक लड्डू रोजाना खाकर उसके बाद दूध पीने से वीर्य बढ़कर धातु पुष्ट होता है संभोग करने की शक्ति बढ़ती है।
6. काले तिल : काले तिल और गोखरू को 20-20 ग्राम की मात्रा में पीसकर 400 ग्राम दूध में चीनी डालकर अच्छी तरह से पकायें। गाढ़ा होने पर गुनगुने रूप में बाजीकरण से पीड़ित रोगी को सुबह के समय खिलाने से लाभ होता हैं।
7. खजूर: 25 से 50 ग्राम खजूर या पिण्डखजूर को 100 से 250 मिलीलीटर दूध के साथ दिन में 3 बार लेने से संभोगशक्ति बढ़ जाती है।
8. भांग:
एक चौथाई से आधा ग्राम भांग के पत्तों का चूर्ण 4 से 6 ग्राम शहद और 100-250 मिलीलीटर दूध के साथ लेने से संभोगशक्ति बढ़ जाती है।
6 ग्राम भांग, 6 ग्राम अफीम, 10 ग्राम, छुहारे, 6 ग्राम पोस्तदाना, 10 ग्राम बादाम गिरी, 10 ग्राम मोठ की जड़ और 6 ग्राम धतूरे के बीजों को एकसाथ बारीक पीसकर 3 ग्राम की मात्रा में लेने से बाजीकरण रोग में लाभ मिलता है।
9. जातीफल: जातीफल का चूर्ण 1 से 3 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीलीटर दूध के साथ वीर्य स्खलन की स्थिति में दिन में 2 बार सेवन करने से लाभ होता है
10. जावित्री:
1 से 3 ग्राम जावित्री के चूर्ण को 100 से 250 मिलीलीटर दूध के साथ दिन में 2 बार लेने से वीर्य का जल्दी निकलने का रोग दूर हो जाता है।
जावित्री, सफेद कनेर की छाल, समुद्रशोष, अफीम, खुरासानी अजवायन, जायफल, पीपल, मिश्री को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसकर गुड़ के साथ 4-4 ग्राम की गोलियां बनाकर रख लें। इसमें से एक गोली रात को सोते समय खाने से संभोगशक्ति बढ़ जाती है।
11. नमक: 1 से 3 ग्राम नमक के चूर्ण को 100 से 250 मिलीलीटर दूध के साथ दिन में 2 बार देने से वीर्य स्खलन नहीं होता है।
12. जायफल: 3 ग्राम जायफल, 6 ग्राम रूमी मस्तगी, 6 ग्राम लौंग तथा 6 ग्राम इलायची को पीसकर शहद में मिलाकर बेर के बराबर गोलियां बना लें। यह 1 गोली रात को सोते समय खाना बाजीकरण रोग में लाभदायक होता है।
13. लौंग :
लौंग, अफीम, भांग, इलायची के दाने, जायफल, जावित्री और कमलगट्टा आदि को बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर 2-2 ग्राम की गोली बनाकर खुराक के रूप में सेवन करने से संभोग शक्ति बढ़ जाती है।
लौंग, अकरकरा, जायफल, जावित्री और अफीम को बराबर मात्रा में लेकर 2-2 ग्राम की गोली बना लें। रात को सोने से पहले यह 1 गोली खाने से बाजीकरण रोग में लाभ होता है।
14. अदरक: सूखी अदरक, तेजबल, नकछिकनी तथा गुड़ को एकसाथ मिलाकर पीस लें। फिर इसकी चने के बराबर के आकार की गोलियां बना लें। इस एक गोली को रात को सोते समय खाने से संभोग शक्ति बढ़ जाती है।
15. अकरकरा: अकरकरा, सोंठ, लौंग, केसर, पीपल, जायफल, जावित्री, और सफेद चन्दन को 6-6 ग्राम की मात्रा में लेकर बारीक पीसकर उसमें 20 ग्राम अफीम मिला लें। फिर इसमें शहद मिलाकर उड़द के आकार की गोलियां बनाकर एक-एक गोली खा लें और ऊपर से दूध पी लें। इससे संभोग करने की कमजोरी दूर होती है।
16. गूलर : 
एक छुहारे की गुठली को निकालकर छुहारे में गूलर के दूध की 25 बूंदे भरकर रोजाना सुबह खाने से वीर्य में शुक्राणु बढ़ते हैं तथा संतानोत्पत्ति में शुक्राणुओं की कमी का दोष दूर हो जाता है।
1 चम्मच गूलर के दूध में 2 बताशों को पीसकर रोजाना सुबह-शाम खाकर उसके ऊपर से गर्म दूध पीने से वीर्य की कमजोरी दूर हो जाती है।
एक बताशे में 10 बूंद गूलर का दूध डालकर सुबह-शाम सेवन करने और एक चम्मच की मात्रा में गूलर के फलों का चूर्ण रात में सोने से पहले लेने से वीर्य की कमजोरी, दुर्बलता और स्तम्भन के रोग में लाभ मिलता है।
गोखरू और शतावरी का चूर्ण 1-1 चम्मच की मात्रा में, 1 कप पानी में कुछ देर तक उबालकर छान लेते हैं। फिर इसे छानकर पी लेते हैं। इससे शीघ्रपतन की शिकायत दूर हो जाती है और यौनशक्ति भी बढ़ जाती है।
गोखरू, तालमखाला, असगंध, शतावरी, मूसली, कौंच के बीज, मुलहठी, गंगेरन और खिरैटी को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें। इन औषधियों के चूर्ण के वजन से 8 ग्राम ज्यादा दूध लेकर उसमें यह चूर्ण डालकर हल्की-हल्की आंच पर पकाना चाहिए। फिर उपरोक्त औषधियों की मात्रा के बराबर गाय का घी लेकर इस घी में इन औषधियों के लड्डू बना लेते हैं। यह योग पौरुष शक्ति को बढ़ाने वाला होता है।
पके हुआ गूलर को सुखाकर और पीसकर चूर्ण बना लेते हैं। गूलर के चूर्ण में उसके बराबर की मात्रा में मिश्री को मिलाकर रोजाना सुबह 2 चम्मच गर्म दूध के साथ फंकी लेने से मर्दाना शक्ति बढ़ जाती है। 2-2 घंटे के अंतराल पर गूलर का दूध या गूलर का यह चूर्ण सेवन करने से दम्पत्ति वैवाहिक सुख को भोगते हुए स्वस्थ संतान को जन्म देते हैं।
4 से 6 ग्राम गूलर के फल का चूर्ण और बिदारीकंद का चूर्ण एकसाथ मिलाकर उसमें बराबर मात्रा मे मिश्री मिलाकर घी मिले हुए दूध के सुबह-शाम सेवन करने से पौरुष शक्ति की वृद्धि व बाजीकरण की शक्ति बढ़ जाती है। अगर स्त्रियां इस मिश्रण को सेवन करती है तो उनके सारे रोग दूर हो जाते हैं।
17. अकरकरा:
अकरकरा, सफेद मूसली और असगन्ध को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। इस चूर्ण को 1-1 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम एक कप दूध के साथ नियमित रूप से लेने से संभोगशक्ति बढ़ जाती है।
अकरकरा, अश्वगंधा और सफेद मूसली को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसकर रोजाना सुबह-शाम 1-1 चम्मच की मात्रा में एक कप दूध के साथ लेने से संभोग करने की कम हुई शक्ति दुबारा बढ़ जाती है।
18. प्याज:
प्याज को किसी बर्तन में भरकर, बर्तन का मुंह इस प्रकार बंद कर देना चाहिये कि उसमें हवा न जाने पाये। फिर इस बर्तन को जहां गाय बंधती हो उस जमीन में गाड़ देना चाहिए। 4 महीने बाद इसे निकालकर 1 प्याज रोजाना खाने से कामशक्ति तेज होती है।
आधा किलो प्याज का रस, 2 किलो शहद और 250 ग्राम चीनी, को मिलाकर शर्बत के रूप में रोजाना 25 ग्राम की मात्रा में पीने से संभोगशक्ति तेज हो जाती है।
लगभग 15-20 ग्राम प्याज का रस, शहद और शराब को एकसाथ मिलाकर पीने से कमजोरी दूर होकर शरीर में चुस्ती-फुर्ती आती है।
30 प्याज लेकर इतनें दूध में डालें कि प्याज दूध में अच्छी तरह डूब जायें। फिर इसे आग पर इतना पकायें की प्याज गल जाये। पकने के बाद इसे आग से नीचे उतार लें, अब इसे प्याज की मात्रा के बराबर गाय के घी और शहद में मिलाकर थोड़ी देर तक पकायें और अंत में इसमें 60-60 ग्राम कुलंजन डालकर 3-4 चम्मच की मात्रा में खाने से शरीर में कामशक्ति तेज होती है।
प्याज खाने से कामवासना जगती है, प्याज वीर्य को पैदा तथा उत्तेजित करता है। यह देर तक संभोग करने की ताकत को बढ़ाता है।
60 ग्राम लाल प्याज के बारीक टुकड़े को इतने ही घी और 250 ग्राम दूध में मिलाकर गर्म करके गाढ़ा कर लें। फिर इसे ठंडा करके इसमें मिश्री मिलाकर 20 दिन तक रोजाना सेवन करने से खोई हुई मर्दानगी वापस आ जाती है।
1 चम्मच प्याज के रस को आधा चम्मच शहद में मिलाकर पीने से वीर्य का पतलापन दूर होता है तथा वीर्य में बढ़ोतरी होती हैं।
19. दूधी: दूधी को पीसकर और छानकर इसके 2 से 5 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच शक्कर के साथ खाने से कामशक्ति बढ़ती है। छोटी दूधी को रोजाना उखाड़कर साफ करके 15 ग्राम की मात्रा में लेकर 6 बादाम की गिरी के साथ अच्छी तरह से पानी के साथ पीसकर एक गिलास में मिश्री मिलाकर दोपहर के समय सेवन करने से गर्मी और शुक्रप्रमेह आदि दूर होकर वीर्यकोष को शक्ति प्राप्त होती है।
20. अलसी: 50 ग्राम अलसी के बीजों और 10 ग्राम काली मिर्च को मिलाकर पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें। फिर चूर्ण में से 1-1 चम्मच को शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
21. धतूरा:
धतूरा के बीज, अकरकरा और लौंग को एकसाथ मिलाकर पीसकर गोलियां बनाकर खाने से संभोग शक्ति बढ़ जाती है।
धतूरा के बीजों के तेल की पैरों के तलुवों पर मालिश करने के बाद स्त्री के साथ संभोग करने से बहुस्तम्भन होता है।
धतूरा के 15 फलों को बीज सहित लेकर पीसकर बने बारीक चूर्ण को 20 किलोग्राम दूध में डालकर दही जमा देते हैं। अगले दिन दही को मथकर घी निकाल लेते हैं। इस घी की एक चौथाई ग्राम से कम मात्रा को पान में रखकर खाने से बाजीकरण (संभोग शक्ति तेज होना) होता है तथा लिंग पर इस घी की मालिश करने से उसकी शिथिलता दूर हो जाती है।
22. विदारीकन्द:
विदारीकन्द के 3 ग्राम चूर्ण को विदारीकन्द के ही 10 ग्राम रस में मिलाकर तथा 5 ग्राम घी व 10 ग्राम शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से संभोग शक्ति बढ़ती है।
विदारीकन्द के 2 चम्मच चूर्ण में 1 चम्मच घी मिलाकर दूध के साथ रोजाना कुछ दिनों तक सेवन करने से वीर्य पुष्ट होता है।
23. निर्गुण्डी:
40 ग्राम निर्गुण्डी और 40 ग्राम शुंठी को एकसाथ पीसकर 8 खुराक बनाकर एक खुराक के रूप में रोजाना दूध के साथ सेवन करने से कामशक्ति में वृद्धि होती हैं।
निर्गुण्डी को घिसकर लिंग पर लगाने से लिंग की कमजोरी दूर हो जाती हैं।
24. सेहुंड:
सेहुंड को पकाकर सेवन करने से अथवा दूध के साथ इसके चूर्ण की खीर बनाकर खाने से संभोग करने की शक्ति बढ़ती है।
सेहुंड और शतावरी के घी के द्वारा शरीर की मालिश करने से कमजोरी समाप्त होती है और बल-वीर्य बढ़ता है।
25. भांगरा: 10 ग्राम शुद्ध गंधक के बारीक चावल जैसे टुकड़े करके उन्हें 7 दिन तक धूप में रखकर भांगरा के रस की भावना देते हैं। फिर उसमें जायफल, जावित्री, कपूर और लौंग का 2-2 ग्राम चूर्ण मिलाकर गुड़ के साथ घोटकर आधे-आधे ग्राम की गोलियां बना लेते हैं। प्रतिदिन सुबह 1 या 2 गोली खाकर उसके ऊपर से 3 कालीमिर्च चबाकर, 250 ग्राम दूध पीने से संभोग करने की शक्ति बढ़ जाती है।
26. पीपल:
पीपल के फल का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार दूध के साथ सेवन करते रहने से नपुंसकता दूर होकर, बल, वीर्य तथा पौरूष बढ़ता है।
पीपल के फल को छाया में सुखाकर और पीसकर छान लें। इस चौथाई चम्मच चूर्ण को 250 ग्राम गर्म दूध में मिलाकर रोजाना पीने से वीर्य की बढ़ोतरी होती है और नपुंसकता दूर होती है। इसका सेवन यदि बांझ स्त्री करें, तो उसे सन्तान उत्पन्न होती है।
27. अनार: प्रतिदिन मीठा अनार खाने से पेट मुलायम रहता है और कामेन्द्रियों को बल मिलता है।
28. बरगद:
बरगद के पके फलों को छाया में सुखाकर कूटकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को इतनी ही मात्रा में मिश्री के साथ पीस लें। एक चम्मच की मात्रा में यह चूर्ण सुबह खाली पेट और सोने से पहले एक कप दूध से रोजाना सेवन करते रहने से कुछ हफ्तों में ही यौनशक्ति बढ़ जाती है।
बरगद के पेड़ के फल को सुखाकर बारीक पाउडर बनाकर इसमें मिश्री पाउडर मिला लें। इसे सुबह 6 ग्राम की मात्रा मे दूध के साथ सेवन करने से वीर्य का पतलापन, शीघ्रपतन आदि रोग दूर होते हैं।
बरगद के पके फल और पीपल के फल को सुखाकर बारीक पाउडर बना लें। इस 25 ग्राम चूर्ण को 25 ग्राम घी में भूनकर, हलवा बनाकर सुबह-शाम खाने से तथा ऊपर से बछड़े वाली गाय का दूध पीने से विशेष बल वृद्धि होती है। अगर इसे स्त्री-पुरुष दोनों खायें तो रस वीर्य शुद्ध होकर सुन्दर सन्तान जन्म लेती है।
बरगद की सूखी कोपलों के पाउडर मे मिश्री मिलाकर 7 दिन तक रोजाना खाली पेट 7 से 10 ग्राम की मात्रा में दूध की लस्सी के साथ खाने से वीर्य का पतलापन मिट जाता है।
29. पलास:
पलास की जड़ के रस को 5-6 बूंद की मात्रा में प्रतिदिन 2 बार सेवन करने से वीर्य का अपने आप निकलने का रोग मिट जाता है और कामशक्ति बढ़ती है।
पलास के बीजों के तेल की 2 से 4 बूंदे जननेन्द्रिय के ऊपर सुपारी छोड़कर मालिश करने से कुछ ही दिनों में हर तरह की नपुंसकता दूर होती है और कामशक्ति बहुत बढ़ती है।

वात नाशक 50 सबसे असरकारक आयुर्वेदिक घर

वात नाशक 50 सबसे असरकारक आयुर्वेदिक घरेलु उपचार 

वात रोग होने का कारण • वात रोग होने का सबसे प्रमुख कारण पक्वाशय, आमाशय तथा मलाशय में वायु का भर जाना है।
• भोजन करने के बाद भोजन के ठीक तरह से न पचने के कारण भी वात रोग हो सकता है।
• जब अपच के कारण अजीर्ण रोग हो जाता है और अजीर्ण के कारण कब्ज होता है तथा इन सबके कारण गैस बनती है तो वात रोग पैदा हो जाता है।
• पेट में गैस बनना वात रोग होने का कारण होता है।
• जिन व्यक्तियों को अधिक कब्ज की शिकायत होती है उन व्यक्तियों को वात रोग अधिक होता है।
• जिन व्यक्तियों के खान-पान का तरीका गलत तथा सही समय पर नहीं होता है उन व्यक्तियों को वात रोग हो जाता है।
• ठीक समय पर शौच तथा मूत्र त्याग न करने के कारण भी वात रोग हो सकता है।
वात रोग के लक्षण : 
• रोगी व्यक्ति को अपने शरीर में जकड़न तथा दर्द महसूस होता है।
• वात रोग से पीड़ित रोगी के सिर में भारीपन होने लगता है तथा उसके सिर में दर्द होने लगता है।
• रोगी व्यक्ति का पेट फूलने लगता है तथा उसका पेट भारी-भारी सा लगने लगता है।
• रोगी व्यक्ति के शरीर में दर्द रहता है।
• वात रोग से पीड़ित रोगी के जोड़ों में दर्द होने लगता है।
• रोगी व्यक्ति का मुंह सूखने लगता है।
• वात रोग से पीड़ित रोगी को डकारें या हिचकी आने लगती है।
• वात रोग से पीड़ित रोगी के शरीर में खुश्की तथा रूखापन होने लगता है।
• वात रोग से पीड़ित रोगी के शरीर की त्वचा का रंग मैला सा होने लगता है।
भोजन तथा परहेज : 
★ गेहूं की रोटी, घी और शक्कर (चीनी) डाला हुआ हलुवा, साठी चावल-पुनर्नवा के पत्तों का साग, अनार, आम, अंगूर, अरण्डी का तेल और अग्निमान्द्य (पाचनक्रिया का मन्द होना) न हो तो उड़द की दाल ले सकते हैं।
★ वातरोग में चना, मटर, सोयाबीन, आलू, मूंग, तोरई, कटहल, ज्यादा मेहनत, रात में जागना, व्रत करना, ठंड़े पानी से नहाना जैसे कार्य नहीं करने चाहिए। रोगी को उड़द की दाल, दही, मूली आदि चीजें नहीं खानी चाहिए क्योंकि यह सब चीजें कब्ज पैदा करती है।
वातरोग का आयुर्वेदिक घरेलु उपचार : 
1. मेथी :
• मेथी घी में भूनकर पीसकर छोटे-छोटे लड्डू बनाकर 10 दिन सुबह खाने से वात की पीड़ा में लाभ होता है। मेथी के पत्तों की भुजिया या सूखा साग बनाकर खाने से पेट के वात-विकार और पेट की सर्दी में लाभ होता है।
• दानामेथी को सेंककर और पीसकर 4 चम्मच की मात्रा में एक गिलास पानी मे उबालकर रोजाना पीनें से वातरोग में लाभ मिलता है।
• मेथी के हरे पत्तों की पकौड़ी खाने से पेट की सर्दी और वायु-विकार ठीक हो जाते हैं।
• वातरोग में मेथी की सब्जी और मेथी के साथ बनी दूसरी सब्जियां खाने से बहुत लाभ होता है। 2 चम्मच कुटी हुई मेथी को गर्म पानी के साथ लेने से वात-कफ के कारण होने वाला शरीर का दर्द ठीक हो जाता है। गुड़ में मेथी-पाक बनाकर खाने से गठिया ठीक हो जाता है।
• मेथीदाने को महीन पीसकर उसमें सेंधानमक और कालीमिर्च मिलाकर चूर्ण बनाया जाता है जो कि वात रोग, पेट दर्द तथा जोड़ों के दर्द में लाभदायक होता है। मेथी को घी में भूनकर, पीसकर, छोटे-छोटे लड्डू बनाकर 10 दिन सुबह-शाम खाने से वातरोग में लाभ होता है। मेथी के पत्तों की भुजिया या सूखा साग बनाकर खाने से पेट के वात-विकार और आंतों की सर्दी में लाभ होता है।
• मेथी वायुनाशक, पित्तनाशक और पौष्टिक होती है। मेथी का रस पीने या सब्जी बनाकर सेवन करने से वायु विकार और पित्त विकार में आराम मिलता है।
• सर्दी के दिनों में मेथी की सब्जी खाने से वात विकार, जोड़ों का दर्द (संधिशूल) और सूजन समाप्त हो जाती है।
• नारियल, मूंगफली या सरसों के साथ 100 ग्राम दानामेथी को कूटकर अच्छी तरह उबाल लें। फिर इसे छानकर शीशी में भर लें और जोंड़ों में जहां-जहां दर्द हो, मालिश करें। 2 चम्मच दाना मेथी की सुबह-शाम पानी से फंकी के साथ लेने से वातरोग में आराम मिलता है। यह प्रयोग करते समय घी-तेल कम-से-कम खाना होगा क्योंकि यह सब शरीर को नुकसान कर सकते हैं।
• पिसी मेथी, सोंठ और गुड़ को बराबर मात्रा में एकसाथ मिलाकर और पीसकर 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम खाने से वातरोग दूर होता है।
• 50-50 ग्राम दाना मेथी, हल्दी, सोंठ और 25 ग्राम अश्वगंधा को बराबर मात्रा में एकसाथ मिलाकर पीस ले। सुबह नाश्ते के बाद तथा रात को खाने के आधा घंटे बाद गर्म पानी के साथ इस मिश्रण की 1-1 चम्मच फंकी लेने से कमरदर्द, गठिया और जोड़ों के दर्द में लाभ होता है।
• मेथी को घी में सेंककर और पीसकर आटा बना लें। गुड़ और घी की चाशनी बनाकर उसमें मेथी का आटा डालकर हिलाएं और चूल्हें से उतारकर छोटे-छोटे लड्डू बना लें। रोजाना सुबह यह 1-1 लड्डू खाने से वातरोग से अकड़े हुए अंगों को राहत मिलती है और वात के कारण हाथ-पैरों में होने वाला दर्द दूर होता है।
2. महुआ : महुआ के पत्तों को गर्म करके वात रोग से पीड़ित अंगों पर बांधने से पीड़ा कम होती हैं।
3. मूली : मूली के रस में नींबू का रस और सेंधानमक को मिलाकर सेवन करने से वायु विकार से उत्पन्न पेट दर्द समाप्त होता है।
4. प्याज : वायु के कारण फैलने वाले रोगों के उपद्रवों से बचने के लिए प्याज को काटकर पास में रखने या दरवाजे पर बांधने से बचाव होता हैं।
5. अजमोद : मूत्राशय (वह स्थान जहां पेशाब एकत्रित होता हैं) में वायु का प्रकोप होने पर अजमोद और नमक को साफ कपड़े में बांधकर नलों पर सेंक करने से वायु नष्ट हो जाती है।
6. अमलतास :
• अमलतास के 10-15 पत्तों को गरम करके उनकी पुल्टिस बांधने से सुन्नवात, गठिया और अर्दित मे फायदा होता है।
• अमलतास के पत्तो का रस पक्षाघात से पीड़ित स्थान पर मालिश करने से भी लाभ होता है।
• 5 से 10 ग्राम अमलतास की जड़ को 250 मिलीलीटर दूध में उबालकर सेवन करने से वातरक्त का नाश होता है।
7. पोदीना : 
• पोदीना, तुलसी, कालीमिर्च और अदरक का काढ़ा पीने से वायु रोग (वात रोग) दूर होता है और भूख भी बहुत लगती है।
• पुदीना पाचक (हाजमेदार) होता है व वायुविकार, पेट का दर्द, अपच (भोजन) आदि को ठीक करता है।
8. फालसे : पके फालसे के रस में पानी को मिलाकर उसमें शक्कर और थोड़ी-सी सोंठ की बुकनी डालकर शर्बत बनाकर पीने से पित्तविकार यानि पित्तप्रकोप मिटता है। यह शर्बत हृदय (दिल) के रोग के लिए लाभकारी होता है।
9. तेजपत्ता : तेजपत्ते की छाल के चूर्ण को 2 से 4 ग्राम की मात्रा में फंकी लेने से वायु गोला मिट जाता है।
10. इमली : इमली के पत्तों को ताड़ी के साथ पीसकर गर्म करके दर्द वाले स्थान पर बांधने से लाभ होता है।
11. अखरोट : अखरोट की 10 से 20 ग्राम की ताजी गिरी को पीसकर वातरोग से पीड़ित अंग पर लेप करें। ईंट को गर्म करके उस पर पानी छिड़क कर कपड़ा लपेटकर पीड़ित स्थान पर सेंक देने से पीड़ा शीघ्र मिट जाती है। गठिया पर इसकी गिरी को नियमपूर्वक सेवन करने से रक्त साफ होकर लाभ होता है।
12. पुनर्नवा : श्वेत पुनर्नवा की जड़ को तेल में शुद्ध करके पैरो में मालिश करने से वातकंटक रोग दूर हो जाता है।
13. शतावर : 
• शतावर के हल्के गर्म काढ़े में पीपल के 1 ग्राम चूर्ण को मिलाकर दिन में 3 बार पीने से वातज कास और दर्द दूर हो जाता है।
• 10 ग्राम शतावर और 10 मिलीलीटर गिलोय के रस में थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर खाने से या दोनों के 50 से 60 मिलीलीटर काढ़े में 2 चम्मच शहद मिलाकर पीने से वातज्वर खत्म हो जाता है।
14. कुलथी : 60 ग्राम कुलथी को 1 लीटर पानी में उबालें। पानी थोड़ा बचने पर उसे छानकर उसमें थोड़ा सेंधानमक और आधा चम्मच पिसी हुई सौठ को मिलाकर पीने से वातरोग और वातज्वर में आराम आता है।
15. नागरमोथा : नागरमोथा, हल्दी और आंवला का काढ़ा बनाकर ठंड़ा करके शहद के साथ पीने से खूनी वातरोग में लाभ पहुंचता है।
16. वायबिडंग : आधा चम्मच वायबिड़ंग के फल का चूर्ण और एक चम्मच लहसुन के चूर्ण को एकसाथ मिलाकर सुबह-शाम रोजाना खाने से सिर और नाड़ी की कमजोरी से होने वाले वात के रोग में फायदा होता है।
17. तुलसी : तुलसी के पत्तों को उबालते हुए इसकी भाप को वातग्रस्त अंगों पर देने से तथा इसके गर्म पानी से पीड़ित अंगों को धोने से वात के रोगी को आराम मिलता है। तुलसी के पत्ते, कालीमिर्च और गाय के घी को एकसाथ मिलाकर सेवन करने से वातरोग में बहुत ही जल्दी आराम मिलता है।
18. सोंठ :
• सोंठ तथा एरण्ड की जड़ के काढे़ में हींग और सौवर्चल नमक का प्रक्षेप देकर पीने से वात शूल नष्ट होता है।
• सोंठ का रस एक तिहाई कप पानी में मिलाकर आधा कप की मात्रा में भोजन करने के बाद सुबह-शाम पीने से वात रोगों में आराम होता है।
• 50 ग्राम सोंठ और 50 ग्राम गोखरू को मोटा-मोटा कूटकर 5 खुराक बना लें। सोने से पहले इसे 200 मिलीलीटर पानी में उबाल लें। जब पानी थोड़ा-सा रह जाये तब इसे छानकर गुनगुना करके पीने से कुछ ही समय में वातरोग दूर होता है।
19.लहसुन : 
• बूढ़े व्यक्ति अगर सुबह के समय 3-4 कलियां लहसुन खाते रहे तो वात रोग उन्हे परेशान नहीं करता है।
• लहसुन के तेल से रोजाना वात रोग से पीड़ित अंग पर मालिश करे। लहसुन की बडी गांठ को साफ करके उसके 2-2 टुकड़े करके 250 मिलीलीटर दूध में उबाल लें। इस बनी खीर को 6 हफ्ते तक रोजाना खाने से वात रोग दूर हो जाता है। लहसुन को दूध में पीसकर भी उपयोग में ले सकते हैं। परन्तु ध्यान रहें कि वातरोग में खटाई, मिठाई आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
• लगभग 40 ग्राम लहसुन को लेकर उसका छिलका निकाल लें। फिर लहुसन को पीसकर उसमें 1 ग्राम हींग, जीरा, सेंधानमक, कालानमक, सोंठ, कालीमिर्च और पीपर का चूर्ण डालकर उसके चने की तरह की छोटी-छोटी गोलियां बनाकर खाने से और उसके ऊपर से एरण्ड की जड़ का काढ़ा बनाकर पीने से लकवा, सर्वांगवायु, उरूस्तम्भ, पेट के कीड़े, कमर के दर्द, और सारे वायु रोग ठीक हो जाते हैं।
• 400 ग्राम लहसुन का सूखा चूर्ण और 6-6 ग्राम सेंधानमक, कालानमक, विड़नमक, सोंठ, कालीमिर्च, छोटी पीपल और हीरा हींग को ले लें। इसके बाद घी में हींग को भूनकर अलग रख लें और सभी चीजो को कूटकर पीसकर रख लें और उसमें भूनी हुई हींग भी मिला लें। इस चूर्ण को 3-3 ग्राम की खुराक के रूप में सुबह-शाम पानी के साथ वात रोग के रोगी को देने से आराम मिलता है।
20. एरण्ड : 
• वातरक्त में एरण्ड का 10 मिलीलीटर तेल एक गिलास दूध के साथ सेवन करना चाहिए।
• एरण्ड के बीजों को पीसकर लेप करने से छोटी संधियों (हडि्डयों) और गठिया यानी घुटनों की सूजन मिटती है।
• वातरोग में एरण्ड का तेल उत्तम गुणकारी होता है। कमर व जोड़ों का दर्द, हृदय शूल, कफजशूल आमवात और संधिशोथ, इन सब रोगों में एरण्ड की जड़ 10 ग्राम और सौंठ का चूर्ण 5 ग्राम का काढ़ा बनाकर सेवन करना चाहिए तथा वेदना स्थल पर एरण्ड के तेल की मालिश करनी चाहिए।
• 2 चम्मच एरण्ड के तेल को गर्म दूध में मिलाकर सेवन करने से वातरोग में लाभ होता है।
• एरण्ड के तेल में गाय का मूत्र मिलाकर 1 महीने तक सेवन करने से हर तरह के वातरोग खत्म हो जाते हैं।
• एरण्ड की जड़ को घी या तेल में पीसकर गर्म करके लगाने से वात विद्रधि रोग खत्म हो जाते हैं।
• एरण्ड की लकड़ी जलाकर उसकी 10 ग्राम राख को पानी के साथ खाने से वातरोग मे लाभ होता है।
21. तिल : 
• तिल के तेल में लहसुन का काढ़ा और सेंधानमक को मिलाकर खाने से वातरोग खत्म हो जाता है।
• तिल के तेल की मालिश करने से वातरोग में लाभ होता है।
• पैरों पर तिल के तेल की मालिश करके 1 घण्टे तक गर्म पानी में रखनें से वात की बीमारी में लाभ होता है।
• काले तिल और एरण्ड की मिंगी 50-50 ग्राम की मात्रा में लेकर भेड़ के दूध में पीसकर लेप करने से वात-बादी रोग खत्म हो जाता है।
22. निर्गुण्डी :
• दमा, खांसी और ठंड़ में वात रोग होने पर 10 ग्राम निर्गुण्डी को गोमूत्र (गाय के मूत्र) में पीसकर खाने से लाभ होता है।
• 10 ग्राम निर्गुण्डी और मीठे तेल को मिलाकर मालिश करने से 84 तरह के वात रोग दूर हो जाते हैं।
• निर्गुण्डी के पत्तों को गर्म करके बांधने से बादी की गांठें बैठ जाती है।
23. गाय का घी : 10 ग्राम गाय के घी में 10 ग्राम निर्गुण्डी के चूर्ण को मिलाकर खाने से कफ और वायु रोग दूर हो जाते हैं।
24. भेड़ का दूध : भेड़ के दूध में एरण्ड का तेल मिलाकर मालिश करने से घुटने, कमर और पैरों का वात-दर्द खत्म हो जाता है। तेल को गर्म करके मालिश करें और ऊपर से पीपल, एरण्ड या आक के पत्ते ऊपर से लपेट दें। 4-5 दिन की मालिश करने से दर्द शान्त हो जाता है।
25. काकजंगा : घी में काकजंगा को मिलाकर पीने से वातरोग से पैदा होने वाले रोग खत्म हो जाते हैं।
26. समुद्रफल :
• समुद्रफल के साथ गुड़ खाने से बादी मिट जाती है।
• समुद्रफल के साथ नींबू खाने से बादी मिट जाती है।
• समुद्रफल को बासी पानी के साथ खाने से सभी प्रकार के वात रोग खत्म हो जाते हैं।
27. जायफल : जायफल, अंबर और लौंग को मिलाकर खाने से हर तरह के वातरोग दूर होते हैं।
28. कौंच : कौंच के बीजों की खीर बनाकर खाने से वातरोग दूर हो जाते हैं।
29. नींबू : 
• वात के कारण होने वाले घुटने के दर्द, पैरों की सूजन और शरीर के मोटापे को कम करने के लिये रोगी को रोजाना सुबह उठकर कुल्ला करके एक गिलास ठंडे पानी में एक नींबू निचोड़कर पीने से वायु रोग और मोटापे के रोगी को लाभ होता है।
• नींबू को 2 टुकड़ों में काटकर गर्म करके जोड़ों को सेंककर वातरोग से पीड़ित अंग पर लगाएं।
• 2 चम्मच नींबू के रस को एक गिलास गर्म पानी में मिलाकर पीने से पेट की गैस में राहत मिलती है।
30. असगन्ध :
• 100 ग्राम असगंध और 100 ग्राम मेथी को बराबर मात्रा में लेकर बने बारीक चूर्ण में गुड़ मिलाकर 10-10 ग्राम के लड्डू बना लें। 1-1 लड्डू सुबह-शाम खाकर ऊपर से दूध पी लें। यह प्रयोग वात रोगों में अच्छा आराम दिलाता है। जिन्हे डायबिटीज हो, उन्हे गुड़ नहीं खिलाना चाहियें, सिर्फ अश्वगंध और मेथी का चूर्ण पानी के साथ लेना चाहिए।
• असगंध के पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) को खाने से फायदा होता है।
31. विधारा : 500-500 ग्राम असगंध और विधारा को कूटकर और पीसकर रख लें। यह 10 ग्राम दवा सुबह के समय गाय के दूध के साथ खाने से वातरोग खत्म हो जाते हैं।
32. नारियल :
• ताजे नारियल के खोपरे के रस को आग पर सेंक लें, सेकने के बाद जो तेल निकले, उसमें कालीमिर्च की बुकनी डालकर शरीर पर लगाने से वायु के कारण अकड़े हुए अंग वायुमुक्त होते हैं और वातरोग दूर होते हैं।
• 1 नारियल के साथ 20 ग्राम भिलावा को पीसकर आग पर चढ़ा दें। जब तेल ऊपर आ जाये तो उसे छानकर शीशी में रख लें। इस तेल की मालिश और नीचे की बची हुई लुग्दी को एक चौथाई ग्राम से कम की मात्रा में रोजाना खुराक के रूप में लेने से सारे वातरोग दूर होते हैं।
• 70 ग्राम कच्चे नारियल का रस, 3 ग्राम त्रिफला कुटा हुआ और 2 ग्राम कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम पीने से सारे वायुरोग खत्म हो जाते हैं।
33. आलू : कच्चे आलू को पीसकर, वातरक्त में अंगूठे और दर्द वाले स्थान पर लगाने से दर्द कम होता है।
34. राई :
• 4 ग्राम पिसी हुई राई और 4 ग्राम गुड़ को मिलाकर सुबह और शाम गुनगुने पानी में मिलाकर पीने से वातरोगों में आराम मिलता हैं।
• राई के तेल में पूरी या पकौड़े तलकर रोगी को खिलाये और इस तेल से वातरोग से पीड़ित भाग की मालिश करें, गुनगुने पानी से स्नान करें। ध्यान रहें कि सिर, आंख आदि कोमल भागों पर राई के तेल की मालिश नहीं करनी चाहिए।
• जवान व्यक्ति के इस्तेमाल हेतु 10 ग्राम अलसी के चूर्ण और 10 ग्राम राई को ठंड़े पानी में घोटकर पोटली बनाकर दर्द वाले स्थान पर लगाने से रोगी को दर्द और रोग में लाभ दिखाई देता है।
• बच्चों के लिए 10 ग्राम राई का चूर्ण और अलसी चूर्ण 10 से 15 गुणा अधिक मात्रा में लें।
• 10 ग्राम राई का बारीक चूर्ण और 30 ग्राम गेहूं या चावल के आटे को ठंड़े पानी में घोलकर आवश्यकतानुसार बनाकर लेप को बनाकर पीड़ित अंग पर लगाने से लाभ होता है।
• राई की पोटली या लेप कपड़े पर लगाकर प्रयोग करने से वातरोग से पीड़ित अंग पर मालिश करने से लाभ होता है।
• राई के तेल की मालिश करने से वायुरोग में राहत मिलती है।
• राई और चीनी को पीसकर कपड़े में डालकर पट्टी के रूप में वातरोग के कारण दर्द वाले अंग पर लगाने से रोगी को आराम मिलता है।
• राई और सहजने की छाल को मट्ठे यानी छाछ में पीसकर पतला-पतला लेप करके पीड़ित भाग पर लगाने से लाभ होता हैं।
35. चमेली : चमेली की जड़ का लेप या चमेली के तेल को पीड़ित स्थान पर लगाने या मालिश करने से वात विकार में लाभ मिलता है।
36. इन्द्रजौ : इन्द्रजौ का काढ़ा बनाकर उसमें संचन और सेंकी हुई हींग को डालकर वातरोगी को पिलाने से लाभ होता है।
37. आक :
• 10 ग्राम आक की जड़ की छाल में 1-1 ग्राम कालीमिर्च, कुटकी और कालानमक आदि को मिलाकर पानी के साथ बारीक पीसकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर रख लें। किसी भी अंग में वातजन्य पीड़ा हो तो सुबह और शाम यह 1-1 गोली गर्म पानी के साथ मरीज को सेवन कराने से लाभ होता हैं।
• तिल के तेल में आक की जड़ को पकाकर अच्छी तरह से छानकर इस तेल को वातरोग से पीड़ित अंगो पर मलने से रोगी को आराम मिलता है।
• आक की एक किलो जड़ (छाया में सुखाई हुई) को कूटकर 8 लीटर जल में पकाए। पकने पर 2 लीटर शेष रहने पर उसमें 1 लीटर एरण्ड के तेल को मिलाकर पकाए। तेल शेष रहने पर छानकर शीशी में भरकर रख लें। इसकी मालिश से भी दर्द में शीघ्र लाभ होता है।
• वात रोगी को आक की रूई से भरे वस्त्र पहनने तथा इसकी रूई की रजाई व तोसक में सोने से बहुत लाभ होता है। वात व्याधि वाले अंग पर वायुनाशक तेल की मालिश करके ऊपर से इस रूई को बांधने से बहुत लाभ होता है।
38. मुलेठी : 
• वात रक्त में मुलेठी और गंभारी से सिद्ध किये हुये तेल की मालिश करने से लाभ होता है।
• मुलेठी और गंभारी फल का 50 से 100 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर दिन मे 3 बार पीने से वातरक्त में लाभ होता है।
39. आंवला : आंवला, हल्दी तथा मोथा के 50 से 60 मिलीलीटर काढ़े में 2 चम्मच शहद को मिलाकर दिन में 3 बार पीने से वातरक्त शान्त हो जाता है।
40. चित्रक : चित्रक की जड़, इन्द्रजौ, काली पहाड़ की जड़, कुटकी, अतीस और हरड़ को बराबर मात्रा में लेकर खुराक के रूप में सुबह-शाम सेवन करने से सभी प्रकार के वात रोग नष्ट हो जाते है।
41. अदरक : अदरक के रस को नारियल के तेल में मिलाकर वातरोग से पीड़ित अंग पर मालिश करना लाभकारी रहता है।
42. गाजर : गाजर का रस संधिवात (हड्डी का दर्द) और गठिया के रोग को ठीक करता है। गाजर, ककड़ी और चुकन्दर का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से जल्दी लाभ होता है। यदि ये तीनों सब्जियां उपलब्ध न हो तो उन्ही का मिश्रित रस पीने से शीघ्र लाभ होता है।
43. अड़ूसा (वासा) : अड़ूसा के पके हुए पत्तो को गर्म करके सिंकाई करने से संधिवात, लकवा और वेदनायुक्त उत्सेध में आराम पहुंचता है।
44. अगस्ता : अगस्ता के सूखे फूलों के 100 ग्राम बारीक चूर्ण को भैंस के एक किलो दूध में डालकर दही जमा दें। दूसरे दिन उस दही में से मक्खन निकालकर वातरोग से पीड़ित अंग पर मालिश करें। इस मक्खन की मालिश खाज पर करने से भी लाभ होता है।
45. गिलोय : 
• गिलोय के 40 से 60 मिलीलीटर काढ़े को रोजाना सुबह-शाम पीने से वातरक्त का रोग दूर होता है।
• गिलोय के 5 से 10 मिलीलीटर रस अथवा 3 से 6 ग्राम चूर्ण या 10 से 20 मिलीलीटर कल्क अथवा 40 से 60 मिलीलीटर काढ़े को प्रतिदिन निरन्तर कुछ समय तक सेवन करने से रोगी वातरक्त से मुक्त हो जाता है।
• गिलोय, बिल्व, अरणी, गम्भारी, श्योनाक (सोनापाठा) तथा पाढ़ल की जड़ की छाल और आंवला, धनिया ये सभी बराबर मात्रा में लेकर इनके 20 से 30 मिलीलीटर काढ़े को दिन में 2 बार वातज्वर के रोगी को देने से लाभ होता है।
46. अजवायन :
• खुरासानी अजवायन का प्रयोग घुटने की सूजन में बहुत ही फायदेमन्द होता है।
• 5 ग्राम पिसी हुई अजवायन को 20 ग्राम गुड़ में मिलाकर छाछ के साथ लेने से वातरोग में लाभ होता है।
• एक चम्मच अजवायन और काला नमक को पीसकर इसे छाछ में मिलाकर पीने से पेट की गैस की शिकायत दूर होती है।
47. कूट : कूट 80 ग्राम, चीता 70 ग्राम, हरड़ का छिलका 60 ग्राम, अजवायन 50 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, छोटी पीपल 30 ग्राम और बच 20 ग्राम के 10 ग्राम भूनी हुई हींग को कूटकर छानकर रख लें। फिर इसमें 5 ग्राम चूर्ण को सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ लेने से वायु की बीमारी में लाभ होता है।
48. सौंफ : सौंफ 20 ग्राम, सोंठ 20 ग्राम, विधारा 20 ग्राम, असंगध 20 ग्राम, कुंटकी 20 ग्राम, सुरंजान 20 ग्राम, चोबचीनी 20 ग्राम और 20 ग्राम कडु को कूटकर छान लें। इस चूर्ण को 5-5 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम खाना खाने के बाद गुनगुने पानी के साथ लेने से वात के रोगों में आराम मिलता है।
49. रास्ना : 50 ग्राम रास्ना, 50 ग्राम देवदारू और 50 ग्राम एरण्ड की जड़ को मोटा-मोटा कूटकर 12 खुराक बना लें। रोजाना रात को 200 मिलीलीटर पानी में एक खुराक को भिगों दें। सुबह इसे उबाल लें। जब पानी थोड़ा-सा बच जायें तब इसे हल्का गुनगुना करके पीने से वातरोग में आराम मिलता है।
50. नमक : 
• 10 ग्राम सेंधानमक और 10 ग्राम बूरा (देशी चीनी) को एकसाथ मिलाकर मिश्रण बना लें। इस मिश्रण में से आधा चम्मच गर्म पानी के साथ रोजाना दिन में सुबह, दोपहर और शाम (तीन बार) पीने से पेट की गैस मिट जाती है।
• सेंधानमक, संचार नमक, त्रिकुटा और हींग को 4-4 ग्राम की मात्रा में लेकर 40 ग्राम सूखे लहसुन के साथ पीसकर 1 महीने तक 1 ग्राम की मात्रा में रोजाना खाने से सारे वात रोग और लकवा रोग ठीक हो जाते हैं।
• 10 ग्राम, काला नमक, 10 ग्राम कफे दरिया, 10 ग्राम समुद्रफल की गिरी, 10 ग्राम सज्जी सफेद, 10 ग्राम जवाखार, 10 ग्राम सुहागा, 10 ग्राम पीपल, 10 ग्राम सोंठ, 10 ग्राम हींग, 10 ग्राम बड़ी मुनक्का को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें। फिर इसमें 40 ग्राम अम्लश्वेत को कूटकर छोटी-छोटी गोली बना लें। इन गोलियों का नियमित रूप से सेवन करने से वातरोग में आराम मिलता है।

निरोगी व तेजस्वी आँखों के लिए प्रयोग

निरोगी व तेजस्वी आँखों के लिए प्रयोग 


आँख हमारे शरीर के सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण व कोमल अंगों में से एक है | वर्तमान समय में आँखों की समस्याओं से बहुत लोग ग्रस्त देखे जाते हैं , जिनमे विद्यार्थियों की भी बड़ी संख्या है | निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाय तो आँखों को जीवनभर स्वस्थ रख सकते हैं और चश्मे से भी छुटकारा पा सकते हैं | इस आज हम जानेंगे आँखों की शक्ति कैसे बढ़ाई जाए  व नेत्र देखभाल की युक्तियाँ 

आँखों के लिए हानिकारक 

★ कम प्रकाश में, लेटे –लेटे व चलते वाहन में पढना आँखों के लिए बहुत हानिकारक हैं |

★ मोबाइल, टीवी, लैपटॉप, कम्प्यूटर आदि की स्क्रीन को अधिक समय तक लगातार देखने व हेयरड्रायर के उपयोग से आँखों को बहुत नुकसान होता है |

★ आँखों को चौंधिया देनेवाले अत्यधिक तीव्र प्रकाश में देखना, ग्रहण के समय सूर्य या चन्द्रमा को देखना आँखों को हानि पहुँचता है |

★ सूर्योदय के बाद सोये रहने, दिन में सोने और रात में देर तक जागने से आँखों पर तनाव पड़ता है और धीरे-धीरे आँखों की रोशनी कम तथा वे रुखी व तीखी होने लगती है |
★ तेज रफ्तार की सवारी के दौरान आँखों पर सीधी हवा लगने से तथा मल-मूत्र और अधोवायु के वेग को रोकने एवं ज्यादा देर तक रोने आदि से आँखें कमजोर होती है |

★ सिर पर कभी भी गर्म पानी न डालें और न ही ज्यादा गर्म पानी से चेहरा धोया करें |

★ खट्टे, नमकीन, तीखे, पित्तवर्धक पदार्थों का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए |
आखों की रक्षा के उपाय 

★ पढ़ते समय ध्यान रखें कि आँखों पर सामने से रोशनी नहीं आये, पीठ के पीछे से आये, आँख तथा पुस्तक के बीच की दूरी ३० से.मी. से अधिक हो | 
पुस्तक आँखों के सामने नहीं, नीचे की ओर हो | 
देर रात तक पढने की अपेक्षा प्रात: जल्दी उठकर पढ़ें |

★ तेज धूप में धूप के चश्मे या छाते का उपयोग करें | धूप में से आकर गर्म शरीर पर तुरंत ठंडा पानी न डालें |

★ चन्द्रमा व हरियाली को देखना आँखों के लिए विश्रामदायक हैं |

★ सुबह हरी घास पर १५ – २० मिनट तक नंगे पैर टहलने से आँखों को तरावट मिलती है |
कुछ विशेष प्रयोग 

★ अंजन : प्रतिदिन अथवा कम-से- सप्ताह में एक बार शुद्ध काले सुरमे  से अंजन करना चाहिए |
 इससे नेत्ररोग विशेषत: मोतियाबिंद का भय नहीं रहता |

★ जलनेति : विधिवत जलनेति करने से नेत्रज्योति बढती है | इससे विद्यार्थियों का चश्मा भी छूट सकता हैं | 

★ नेत्रों के लिए विशेष हितकर पदार्थ : आँवला, गाय का दूध व घी, शहद, सेंधा नमक, बादाम, सलाद, हरी सब्जियाँ – विशेषत: पालक, पुनर्नवा, हरा धनिया, गाजर, अंगूर, केला, संतरा, मुलेठी, सौंफ, गुलाबजल, त्रिफला चूर्ण |

★ सर्वांगासन नेत्र-विकारों को दूर करने और नेत्रज्योति बढ़ानेवाला सर्वोत्तम आसन है |

प्रकाश लेख ज्ञान वृद्धि के लिये है ।
प्रयोग अपने वैद्य की सलाह अनुसार कारण चाहिए

नागकेसर के गुण और उससे होने वाले आयुर्

नागकेसर के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

परिचय 
नागकेसर को नागपुष्प, पुष्परेचन, पिंजर, कांचन, फणिकेसर, स्वरघातन के नाम से जाना जाता है। इसका रंग पीला होता है। नागकेसर खाने में कषैला, रूखा और हल्का होता है। यह एक पेड़ का फूल है। इसकी सुगंध तेज होती है।
गुण (Property)
यह गर्मी को विरेचन (दस्त के द्वारा) बाहर निकाल देता है। तृषा (प्यास), स्वेद (पसीना), वमन (उल्टी), बदबू, कुष्ठ, बुखार, खुजली, कफ, पित्त और विष को दूर करता है। नागकेसर ठड़ी प्रकृति वाले व्यक्तियों के लिए लाभकारी है। यह मोटापे को दूर करके रक्तशोधक (खून को साफ करता है) होता है। दांतों को मजबूत और ताकतवर बनता है।
हानिकारक प्रभाव 
नागकेसर गर्म होती है।
विभिन्न रोगों में उपचार 
खांसी:
• नागकेसर की जड़ और छाल को लेकर काढ़ा बनाकर पीने से खांसी के रोग में लाभ मिलता है।
• ऐसी खांसी जिसमें बहुत अधिक कफ आता हो उसमें लगभग आधा ग्राम से 1 ग्राम नागकेसर (पीला नागकेसर) की मात्रा को मक्खन और मिश्री के साथ सुबह-शाम रोगी को सेवन कराने से अधिक कफ वाली खांसी नष्ट हो जाती है।
गुदा पाक:
नागकेसर (पीली नागकेसर) का चूर्ण लगभग आधा ग्राम से 1 ग्राम की मात्रा में मिश्री और मक्खन के साथ मिलाकर रोजाना खिलाएं। इसको खाने से गुदा द्वार की जलन (प्रदाह) दूर होती है।
कांच निकलना (गुदाभ्रंश) :
नागकेसर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग को एक अमरूद के साथ मिलाकर बच्चे को खिलायें। इससे गुदाभ्रंश (कांच निकलना) बन्द हो जाता है।
बांझपन:
नागकेसर (पीला नागकेशर) का चूर्ण 1 ग्राम गाय (बछड़े वाली) के दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करें और यदि अन्य कोई प्रदर रोग सम्बन्धी रोगों की शिकायत नहीं है तो निश्चित रूप से गर्भस्थापन होगा। गर्भाधान होने तक इसका नियमित रूप से सेवन करने से अवश्य ही सफलता मिलती है।
गर्भधारण (गर्भ ठहराने के लिए):
पिसी हुई नागकेसर को लगभग 5 ग्राम की मात्रा में सुबह के समय बछड़े वाली गाय या काली बकरी के 250 ग्राम कच्चे दूध के साथ माहवारी (मासिक-धर्म) खत्म होने के बाद सुबह के समय लगभग 7 दिनों तक सेवन कराएं। इससे गर्भधारण के उपरान्त पुत्र का जन्म होगा।
हिचकी का रोग:
4-10 ग्राम पीला नागकेसर मक्खन और मिश्री के साथ सुबह-शाम रोगी को देने से हिचकी मिट जाती है।
गर्भपात (गर्भ का गिरने) से रोकना:
यदि तीसरे महीने गर्भपात की शंका हो तो नागकेशर के चूर्ण में मिश्री मिलाकर दूध के साथ खाना चाहिए। इससे गर्भपात की संभावना समाप्त हो जाती है।
बवासीर (अर्श):
• नागकेसर और सुर्मा को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें। आधा ग्राम चूर्ण को 6 ग्राम शहद के साथ मिलाकर चाटने से सभी प्रकार की बवासीर ठीक हो जाती है।
• नागकेशर का चूर्ण 6 ग्राम, मक्खन 10 ग्राम और मिश्री 6 ग्राम लेकर मिला लें। इस मिश्रण को 6 से 7 दिनों तक रोजाना चाटने से रक्तार्श (खूनी बवासीर) से खून का गिरना बन्द हो जाता है।
खूनी अतिसार:
3 ग्राम नागकेसर के चूर्ण को 10 ग्राम गाय के मक्खन में मिलाकर खाने से खूनी दस्त (रक्तातिसार) के रोगी का रोग कम हो जाता है।
मासिक-धर्म सम्बन्धी परेशानियां:
नागकेसर, सफेद चन्दन, पठानी लोध्र, अशोक की छाल सभी को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, फिर इसमें से 1 चम्मच चूर्ण सुबह-शाम 1 चम्मच ताजे पानी के साथ सेवन करने से मासिक-धर्म के विकारों में लाभ मिलता है।
चोट लगने पर:
नागकेशर का तेल शरीर की पीड़ा और जोड़ों के दर्द में बहुत उपयोगी होता है।
अन्न नली (आहार नली) में जलन:
नागकेसर (पीला नागकेसर) की जड़ और छाल को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसे रोजाना 1 दिन में 2 से 3 बार खुराक के रूप में सेवन करने से आमाशय की जलन (गैस्ट्रिक) में लाभ होता है।
घाव:
नागकेसर का तेल घाव पर लगाते रहने से घाव शीघ्र भर जाता है।
प्रदर रोग:
• 3 ग्राम नागकेसर का चूर्ण ताजे पानी के साथ सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ होता है।
• लगभग 40 ग्राम नागकेसर, 30-30 ग्राम मुलहठी और राल, 100 ग्राम मिश्री लेकर कूट-छानकर चूर्ण बना लें। इसे 3-4 ग्राम की मात्रा में मिश्री मिले गर्म दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से सभी प्रकार के प्रदर रोग मिट जाते हैं।
• लगभग 1 चम्मच नागकेसर लेकर प्रतिदिन 20 दिनों तक मठ्ठे के साथ सेवन करने से सफेद प्रदर मिट जाता है।
• 10-10 ग्राम की मात्रा में नागकेशर, सफेद चन्दन, लोध्र और अशोक की छाल को लेकर सबका चूर्ण बना लें। इसमें से 1 चम्मच चूर्ण दिन में 4 बार ताजे पानी के साथ सेवन करने से प्रदर में लाभ होता है।
• नागकेशर को 3 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
• नागकेशर का चूर्ण चावलों के साथ सेवन करने से प्रदर में लाभ होता है।
• नागकेशर को पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें। इसे आधे ग्राम की मात्रा में रोजाना मठ्ठे के साथ सेवन करने से प्रदर रोग मिट जाता है। इससे शारीरिक शक्ति भी बढ़ती है।
• आधा से 1 ग्राम पीला नागकेसर सुबह-शाम मिश्री और मक्खन के साथ खाने से सफेद प्रदर और रक्त (खूनी) प्रदर दोनों मिट जाते हैं।
• नागकेसर (पीलानागकेसर) आधा से एक ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है। यह औषधि श्वेत (सफेद) प्रदर के लिए भी लाभकारी है।
• नागकेशर चूर्ण 1-3 ग्राम को 50 मिलीलीटर चावल धोवन (चावल का धुला हुआ पानी) के साथ सुबह-शाम सेवन करने से रक्त (खूनी) प्रदर में आराम मिलता है।
शीतपित्त:
• नागकेसर 5 ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम खाने से शीतपित्त में बहुत लाभ होता है।
• आधा चुटकी नागकेसर को 25 ग्राम शहद में मिलाकर खाने से लाभ होता है।
नाक के रोग:
नागकेसर (पीला नागकेसर) के पत्तों का उपनाह (लेप) सिर पर लगाने से बहुत तेज जुकाम भी ठीक हो जाता है।
वीर्य रोग:
नागकेसर 2 ग्राम को पीसकर मक्खन के साथ खाना चाहिए।
जोड़ों के (गठिया रोग) दर्द में:
• जोड़ों के दर्द के रोगी को नागकेसर के तेल की मालिश करने से आराम मिलता है।
• नागकेशर के बीजों के तेल की मालिश करने से गठिया रोग दूर हो जाता है।
हैजा:
बड़ी इलायची, धान की खील, लौंग, पीली नागकेसर, मेंहदी, बेर की गुठली की गिरी, नागरमोथा तथा सफेद चन्दन-इन सबको बराबर मात्रा में लेकर, कूट-पीस छानकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण के एक भाग में पिसी हुई मिश्री मिला दें। इस चूर्ण को शहद के साथ चटाने से तीनों दोषों के कारण उत्पन्न भयंकर वमन (उल्टी) भी दूर हो जाती है।
चेहरे के दाग और खाज खुजली:
पीले नागकेसर के तेल को लगाने से खाज-खुजली दूर हो जाती है।

उड़द की दाल के गुण और उससे होने वाले आयु

उड़द की दाल के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

  

परिचय 
उड़द की दाल का उत्पादन पूरे भारत में होता है। इसकी दाल का रंग सफेद होता है। इसकी दाल व बाजरे की रोटी मेहनती लोगों का प्रिय भोजन है। यह पौष्टिक और शीतल (ठण्डा) होती है। उड़द पाक अपने पौष्टिक गुणों के कारण ज्यादा ही प्रसिद्ध है। इसकी दाल वायुकारक होती है। इसके इस दोष को दूर करने के लिए उड़द में लहसुन और हींग पर्याप्त मात्रा में डालना चाहिए। उड़द खिलाने से पशु स्वस्थ रहते हैं। दूध देने वाली गाय या भैंस को उड़द खिलाने से दूध अधिक मात्रा में देती हैं। इसके पत्तों और डण्डी का चूरा भी पशुओं को खिलाया जाता है।
गुण 
उड़द एक पौष्टिक दाल है। यह भारी, रुचिकारक, मल (पैखाना) रोगी के लिए लाभकारी, प्यास बढ़ाने वाला, बल बढ़ाने वाला, वीर्यवर्धक, अत्यन्त पुष्टिदायक, मल-मूत्र को मुक्त करने वाला, दूध पिलाने वाली माता का दूध बढ़ाने वाला और मोटापा बढ़ाने वाला है। उड़द पित्त और कफ को बढ़ाता है। बवासीर, गठिया, लकवा और दमा में भी इसकी दाल का सेवन करना लाभदायक है।
विभिन्न रोगों में उपचार 
शक्तिदायक:
उड़द में शक्ति को बढ़ाने (शक्तिवर्द्धक) का गुण है। उड़द का प्रयोग किसी भी तरह से करने पर शक्ति बढ़ती है। रात्रि को 30 ग्राम उड़द की दाल पानी में भिगो दें और सुबह इसे पीसकर दूध व मिश्री के साथ मिलाकर पीने से मस्तिष्क व वीर्य के लिए बहुत ही लाभकारी है। ध्यान रहें : इसे अच्छी पाचन शक्ति वाले ही इस्तेमाल करें। छिलके सहित उड़द खाने से मांस बढ़ता है। उड़द दाल में हींग का छौंका देने से इसके गुणों में अधिक वृद्धि हो जाती है। भीगी हुई उड़द दाल को पीसकर एक चम्मच देशी घी व आधा चम्मच शहद में मिलाकर चाटने के बाद मिश्री मिला हुआ दूध पीना लाभदायक है। इसका प्रयोग लगातार करते रहने से पुरुष घोड़े की तरह ताकतवर हो जाता है।
उड़द दाल को पानी में भिगोकर और उसे पीसकर उसमें नमक, कालीमिर्च, हींग, जीरा, लहसुन और अदरक मिलाकर उसके `बड़े´ (एक पकवान) बनायें। ये बड़े घी या तेल में डालकर खाने से वायु, दुर्बलता, बेस्वाद (अरुचि), टी.बी. व दर्द दूर हो जाता है। उड़द दाल को पीसकर दही में मिलाकर व तलकर सेवन से पुरुषों के बल और धातु में बढ़ोत्तरी होती है।
उड़द दाल का आटा 500 ग्राम, गेहूं का आटा 500 ग्राम व पीपर का चूर्ण 500 ग्राम लें और उसमें 100 ग्राम घी मिलाकर चूल्हे पर पकाकर 40-40 ग्राम वजन का लड्डू बना लें। रात को सोने के समय एक लड्डू सेवन करके ऊपर से 250 मिलीलीटर दूध पी लें। इसके प्रयोग में खट्टे, खारे व तेल वाले चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए जिससे शरीर क्षीण नहीं होता और शारीरिक ताकत बढ़ती है।
सफेद दाग:
उड़द के आटे को भिगोकर व पीसकर सफेद दाग पर नित्य चार महीने तक लगाने से सफेद दाग खत्म हो जाते हैं।
काले उड़द को पीसकर सफेद दागों पर दिन में 3-4 बार दागों में लगाने से सफेद दागों का रंग वापस शरीर के बाकी रंग की तरह होने लगता है।
गंजापन :
उड़द दाल को उबालकर पीस लें। रात को सोने के समय सिर पर लेप करें। इससे गंजापन धीरे-धीरे दूर होकर नये बाल आने शुरू हो जाते हैं।
मर्दाना शक्ति:
उड़द का एक लड्डू रोजाना खाकर उसके बाद दूध पीने से वीर्य बढ़कर धातु पुष्ट होता है और रति शक्ति (संभोग) बढ़ती है।
हिचकी:
साबूत उड़द जले हुए कोयले पर डालें और इसका धुंआ सूंघे। इससे हिचकी खत्म हो जाती है।
उड़द और हींग का चूर्ण मिलाकर अग्नि में जलाकर इसका धूम्रपान करने से हिचकी में फायदा होता है।
नकसीर, सिरदर्द:
उड़द दाल को भिगोकर व पीसकर ललाट पर लेप करने से नकसीर व गर्मी से हुआ सिरदर्द ठीक हो जाता है।
फोडे़:
फोड़े से गाढ़ी पीव निकले तो उड़द की पट्टी बांधने से लाभ होता है।
पेशाब के साथ वीर्य का जाना :
उड़द दाल का आटा 10 से 15 ग्राम लेकर उसे गाय के दूध में उबालें, फिर उसमें घी डालकर थोड़ा गर्म-गर्म 7 दिनों तक लगातार पीने से मूत्र के साथ धातु का निकलना बन्द हो जाता है।
पेशाब का बार-बार आना:
आंवले का रस, शहद से या अडूसे का रस जवाक्षार डालकर पीने से पेशाब का बार बार आना बन्द होता है।
अगर एक चम्मच आंवले के रस में, आधा चम्मच हल्दी और 1 चम्मच शहद मिलाकर खाये तो पूरा लाभ होता है।
नपुंसकता:
उड़द की दाल 40 ग्राम को पीसकर शहद और घी में मिलाकर खाने से पुरुष कुछ ही दिनों में मैथुन करने के लायक बन जाता है।
उड़द की दाल के थोड़े-से लड्डू बना लें। उसमें से दो-दो लड्डू खायें और ऊपर से दूध पी लें। इससे नुपंसकता दूर हो जाती है।
बालों के रोग:
200 ग्राम उड़द की दाल, 100 ग्राम आंवला, 50 ग्राम शिकाकाई, 25 ग्राम मेथी को कूटकर छान लें। इस मिश्रण में से 25 ग्राम दवा 200 मिलीलीटर पानी के साथ एक घंटा भिगोकर रख दें और इसके बाद इसको मथ-छानकर बालों को धो लें, इससे बालों के रोगों में लाभ होता है।
उड़द की दाल उबालकर पीस लें और इसको रात को सोते समय सिर के गंजेपन की जगह पर लगायें। इससे बाल उग आते हैं।
स्तनों में दूध की वृद्धि:
उड़द की दाल में घी मिलाकर खाने से स्त्रियों के स्तनों में पर्याप्त मात्रा में दूध की वृद्धि होती है।
कमजोरी:
उड़द की दाल का लड्डू रोजाना सुबह खाकर ऊपर से दूध पीने से कमजोरी कम होती है।
मोटापा बढ़ाना:
उड़द की दाल छिलके सहित खाने से शरीर मोटा होता है।
सभी प्रकार के दर्द:
उड़द की दाल की बड़ियां (पकौड़ी) को तेल में पकाकर बना लें, फिर इन बड़ियों को शहद और देशी घी में डालकर खाने से `अन्नद्रव शूल´ यानी अनाज के कारण होने वाले दर्द में लाभ देता हैं।
नकसीर:
उड़द की दाल को भिगोकर पीस लें। इस पिसी हुई दाल को माथे पर लगाने से नकसीर (नाक से खून बहना) बन्द हो जाती है।
गठिया (जोड़ों का दर्द):
उड़द की दाल को अरण्ड की छाल के साथ उबालकर उबले उड़द के दाने चबाने से गठिया में हड्डी के अन्दर होने वाली कमजोरी दूर हो जाती है।
मुंहासे:
उड़द और मसूर की बिना छिलके की दाल को सुबह दूध में भिगो दें। शाम को बारीक से बारीक पीसकर उसमें नींबू के रस की थोड़ी बूंदे और शहद की थोड़ी बूंदे डालकर अच्छी तरह मिला लें और लेप बना लें। फिर इस लेप को चेहरे पर लगा लें। सुबह इसे गर्म पानी से धो लें। ऐसा लगातार कुछ दिनों तक करने से चेहरे के मुंहासे और दाग दूर हो जाते है और चेहरे में नयी चमक पैदा हो जाती है।
सिर का दर्द:
उड़द की दाल को पानी में भिगोकर फुला लें और इसको पीसकर सिर पर लेप की तरह से लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
याददास्त कमजोर होना:
रात को सोते समय लगभग 60 ग्राम उड़द की दाल को पानी में भिगोकर रख दें। सुबह इस दाल को पीसकर दूध और मिश्री मिलाकर पीने से याददास्त मजबूत होती है और दिमाग की कमजोरी खत्म हो जाती है।

ठंड में जरूर खाएं ये चीजें, इनसे मिलती

ठंड में जरूर खाएं ये  चीजें, इनसे मिलती है शरीर को गर्मी

: ठंड के मौसम में सर्दी के असर से बचने के लिए लोग गर्म कपड़ों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन शरीर को चाहे कितने ही गर्म कपड़ों से ढक लिया जाए ठंड से लड़ने के लिए बॉडी में अंदरूनी गर्मी होनी चाहिए। शरीर में यदि अंदर से खुद को मौसम के हिसाब से ढालने की क्षमता हो तो ठंड कम लगेगी और कई बीमारियां भी नहीं होंगी। यही कारण है कि ठंड में खानपान पर विशेष रूप से ध्यान देने को आयुर्वेद में बहुत महत्व दिया गया है। सर्दियों में यदि खानपान पर विशेष ध्यान दिया जाए तो शरीर संतुलित रहता है और सर्दी कम लगती है।

आज हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसी ही चीजों के बारे में जानिए कुछ ऐसे ही खाने की चीजों के बारे में
 बाजरा
कुछ अनाज शरीर को सबसे ज्यादा गर्मी देते है। बाजरा एक ऐसा ही अनाज है। सर्दी के दिनों में बाजरे की रोटी बनाकर खाएं। छोटे बच्चों को बाजरा की रोटी जरूर खाना चाहिए। इसमें कई स्वास्थ्यवर्धक गुण भी होते है। दूसरे अनाजों की अपेक्षा बाजरा में सबसे ज्यादा प्रोटीन की मात्रा होती है। इसमें वह सभी गुण होते हैं, जिससे स्वास्थ्य ठीक रहता है। ग्रामीण इलाकों में बाजरा से बनी रोटी व टिक्की को सबसे ज्यादा जाड़ो में पसंद किया जाता है। बाजरा में शरीर के लिए आवश्यक तत्व जैसे मैग्नीशियम,कैल्शियम,मैग्नीज, ट्रिप्टोफेन, फाइबर, विटामिन- बी, एंटीऑक्सीडेंट आदि भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं।
बादाम
बादाम कई गुणों से भरपूर होते हैं। इसका नियमित सेवन अनेक बीमारियों से बचाव में मददगार है।अक्सर माना जाता है कि बादाम खाने से याददाश्त बढ़ती है, लेकिन यह ड्राय फ्रूट अन्य कई रोगों से हमारी रक्षा भी करता है। इसके सेवन से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है, जो सर्दियों में सबसे बड़ी दिक्कत होती है। बादाम में डायबिटीज को निंयत्रित करने का गुण होता है। इसमें विटामिन – ई भरपूर मात्रा में होता है।
 अदरक
क्या आप जानते हैं कि रोजाना के खाने में अदरक शामिल कर बहुत सी छोटी-बड़ी बीमारियों से बचा जा सकता है। सर्दियों में इसका किसी भी तरह से सेवन करने पर बहुत लाभ मिलता हैै। इससे शरीर को गर्मी मिलती है और डाइजेशन भी सही रहता है।
शहद
शरीर को स्वस्थ, निरोग और उर्जावान बनाए रखने के लिए शहद को आयुर्वेद में अमृत भी कहा गया है। यूं तो सभी मौसमों में शहद का सेवन लाभकारी है, लेकिन सर्दियों में तो शहद का उपयोग विशेष लाभकारी होता है। इन दिनों में अपने भोजन में शहद को जरूर शामिल करें। इससे पाचन क्रिया में सुधार होगा और इम्यून सिस्टम पर भी असर पड़ेगा।
 रसीले फल न खाएं
सर्दियों के दिनों में रसीले फलों का सेवन न करें। संतरा, रसभरी या मौसमी आपके शरीर को ठंडक देते है। जिससे आपको सर्दी या जुकाम जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
मूंगफली
100 ग्राम मूंगफली के भीतर ये तत्व मौजूद होते हैं: प्रोटीन- 25.3 ग्राम, नमी- 3 ग्राम, फैट्स- 40.1 ग्राम, मिनरल्स- 2.4 ग्राम, फाइबर- 3.1 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट- 26.1 ग्राम, ऊर्जा- 567 कैलोरी, कैल्शियम – 90 मिलीग्राम, फॉस्फोरस 350 मिलीग्राम, आयरन-2.5 मिलीग्राम, कैरोटीन- 37 मिलीग्राम, थाइमिन- 0.90 मिलीग्राम, फोलिक एसिड- 20मिलीग्राम। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन, मिनिरल्स आदि तत्व इसे बेहद फायदेमंद बनाते हैं। यकीनन इसके गुणों को जानने के बाद आप कम से कम इस सर्दियों में मूंगफली से टाइमपास करने का टाइम तो निकाल ही लेंगे।
सब्जियां
अपनी खुराक में हरी सब्जियों का सेवन करें। सब्जियां, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है और गर्मी प्रदान करती है। सर्दियों के दिनों में मेथी, गाजर, चुकंदर, पालक, लहसुन बथुआ आदि का सेवन करें। इनसे इम्यून सिस्टम मजबूत होता है।
तिल
सर्दियों के मौसम में तिल खाने से शरीर को ऊर्जा मिलती है। तिल के तेल की मालिश करने से ठंड से बचाव होता है। तिल और मिश्री का काढ़ा बनाकर खांसी में पीने से जमा हुआ कफ निकल जाता है। तिल में कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं जैसे, प्रोटीन, कैल्शियम, बी कॉम्प्लेक्स और कार्बोहाइट्रेड आदि। प्राचीन समय से खूबसूरती बनाए रखने के लिए तिल का उपयोग किया जाता रहा है।

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