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Karyasala

25 बोल की चतुर्भंगी

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Prepared By:-

”मेरे महावीर भगवान ग्रुप”
MMBG Aatma Centre
Facebook Page- https://www.facebook.com/mmbgnews

25. पच्चीसवां बोल :- चारित्र पांच-

तुम्हारे में चारित्र कौनसा?
श्रावक हूं तो देश चारित्र, साधु हूं तो सामायिक, छेदोपस्थाप्य चारित्र ।

चारित्र जीव या अजीव?
जीव ।

किस चारित्र वाले जीव कम, किस चारित्र वाले जीव अधिक?
सूक्ष्मसम्पराय वाले जीव कम, सामायिक चारित्र वाले जीव अधिक ।

चारित्र किस कर्म का उदय?
उदय नहीं ।

सूक्ष्मसंपराय वाले सबसे कम हैं, क्योंकि यह गुणस्थान श्रेणी लेने पर ही आता है । सामायिक चारित्र महाविदेह की अपेक्षा शाश्वत है इसलिए इस चारित्रवाले सबसे अधिक हैं । चारित्र उदय नहीं, मोहनीय कर्म का उपशम, क्षायिक, क्षायोपशमिक भाव है ।


नोट:- अगर इससे सम्बंधित कोई भी जिज्ञासा या आप को समझ में नहीं आया हो तो आप ग्रुप में कभी भी पुछ सकते है। यथासम्भव जब भी समय मिलेगा या रात्रि में एक साथ सभी जिज्ञासाओं का समाधान देने का हमारा पुरा पुरा प्रयास रहेगा।

24. चौबीसवां बोल :- भांगा उनपचास-

तुम्हारे में भांगा कितने?
त्याग के आधार पर पाते हैं ।

भांगा जीव या अजीव?
जीव ।

किस भांगा वाले जीव कम, किस भांगा वाले जीव अधिक?
33वें अंक के कम, 11 वें अंक के अधिक ।

भांगा किस कर्म का उदय?
उदय नहीं ।

भांगा त्याग से संबंध रखते हैं । अतः उदय भाव नहीं हैं । चारित्र मोहनीय कर्म का क्षायोपशमिक भाव है । इनका मूलतः संबंध श्रावक से है ।

नोट:- अगर इससे सम्बंधित कोई भी जिज्ञासा या आप को समझ में नहीं आया हो तो आप ग्रुप में कभी भी पुछ सकते है। यथासम्भव जब भी समय मिलेगा या रात्रि में एक साथ सभी जिज्ञासाओं का समाधान देने का हमारा पुरा पुरा प्रयास रहेगा।

23. तेईसवां बोल :- पांच महाव्रत-

महाव्रत किसमें पाते है?
साधु में ।

महाव्रत जीव या अजीव?
जीव ।

किस महाव्रत के जीव कम, किस महाव्रत के जीव अधिक?
महाव्रतों में कम अधिक नहीं, सब परस्पर संबंद्ध है ।

महाव्रत किस कर्म का उदय?
उदय नहीं ।

साधु के महाव्रत चारित्र मोह का उपशम, क्षायिक, क्षायोपशमिक भाव हैं । छठे से दसवें गुणस्थान तक क्षयोपशम भाव है । ग्यारहवें गुणस्थान में उपशम भाव और बारहवें गुणस्थान से क्षायिक भाव है ।


नोट:- अगर इससे सम्बंधित कोई भी जिज्ञासा या आप को समझ में नहीं आया हो तो आप ग्रुप में कभी भी पुछ सकते है। यथासम्भव जब भी समय मिलेगा या रात्रि में एक साथ सभी जिज्ञासाओं का समाधान देने का हमारा पुरा पुरा प्रयास रहेगा।

22. बाईसवां बोल :- श्रावक के बारह व्रत –

तुममें कितने व्रत?
मैं श्रावक हूं, मुझमें बारह ही व्रत पाते है ।

व्रत जीव या अजीव?
जीव ।

किस व्रत वाले जीव कम, किस व्रत वाले जीव अधिक?
व्रतों में कम अधिक नहीं, सभी व्रत परस्पर संबंद्ध है ।

व्रत किस कर्म का उदय?
उदय नहीं । (श्रावक के व्रत चारित्र मोह का क्षायोपशमिक भाव है । )


नोट:- अगर इससे सम्बंधित कोई भी जिज्ञासा या आप को समझ में नहीं आया हो तो आप ग्रुप में कभी भी पुछ सकते है। यथासम्भव जब भी समय मिलेगा या रात्रि में एक साथ सभी जिज्ञासाओं का समाधान देने का हमारा पुरा पुरा प्रयास रहेगा।

21. इक्कीसवां बोल :- राशि दो-

तुम किस राशि में?
जीव राशि में ।

राशि जीव या अजीव?
जीव राशि जीव, अजीव राशि अजीव ।
कौनसी राशि कम, कौनसी राशि अधिक?
जीव राशि कम, अजीव राशि अधिक ।
राशि किस कर्म का उदय?
उदय नहीं ।

जीव राशि से अजीव राशि अनंतगुण अधिक है । एक एक जीव के अनन्त अनन्त कर्म पुद्गल चिपके हुए हैं । राशि उदयभाव नहीं, पारिणामिक भाव है ।

नोट:- अगर इससे सम्बंधित कोई भी जिज्ञासा या आप को समझ में नहीं आया हो तो आप ग्रुप में कभी भी पुछ सकते है। यथासम्भव जब भी समय मिलेगा या रात्रि में एक साथ सभी जिज्ञासाओं का समाधान देने का हमारा पुरा पुरा प्रयास रहेगा।

20. बीसवां बोल :- षड्द्रव्यों की चर्चा –

तुम किस द्रव्य में आते हो?
जीव द्रव्य में ।

द्रव्य जीव या अजीव?
पांच द्रव्य अजीव, जीवास्तिकाय जीव ।

कौन-सा द्रव्य कम, कौन-सा द्रव्य अधिक?
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय कम, काल अधिक ।

षड्द्रव्य किस कर्म का उदय?
उदय भाव नहीं ।

काल सब पदार्थों पर वर्तन करता है, अतः वह सर्वाधिक है । छहों ही द्रव्य उदय भाव नहीं हैं, पारिणामिक भाव है ।


नोट:- अगर इससे सम्बंधित कोई भी जिज्ञासा या आप को समझ में नहीं आया हो तो आप ग्रुप में कभी भी पुछ सकते है। यथासम्भव जब भी समय मिलेगा या रात्रि में एक साथ सभी जिज्ञासाओं का समाधान देने का हमारा पुरा पुरा प्रयास रहेगा।

19. उन्नीसवां बोल :- ध्यान चार-

तुम्हारे में ध्यान कितने?
श्रावक की अपेक्षा तीन, साधु की अपेक्षा चार ।

ध्यान जीव या अजीव?
जीव ।

किस ध्यान वाले जीव कम, किस ध्यान वाले जीव अधिक?
शुक्ल ध्यान वाले कम, आर्त्त, रौद्र ध्यान वाले अधिक ।

ध्यान किस कर्म का उदय?
आर्त्त ध्यान, रौद्रध्यान मोहनीय कर्म का उदय । धर्म्य ध्यान, शुक्ल ध्यान उदय नहीं।

शुक्ल ध्यान साधु में ही पाता है, वह भी सातवें गुणस्थान से । अतः शुक्लध्यान वाले सबसे कम है । आर्त्तध्यान , रौद्रध्यान चारों गतियों में पाते हैं, अतः अधिक हैं । धर्मध्यान और शुक्लध्यान उदय भाव नहीं, मोह कर्म का उपशम,क्षायिक,क्षायोपशमिक भाव है।

नोट:- अगर इससे सम्बंधित कोई भी जिज्ञासा या आप को समझ में नहीं आया हो तो आप ग्रुप में कभी भी पुछ सकते है। यथासम्भव जब भी समय मिलेगा या रात्रि में एक साथ सभी जिज्ञासाओं का समाधान देने का हमारा पुरा पुरा प्रयास रहेगा।

18. अठारहवां बोल :- दृष्टि तीन-

तुम्हारे में दृष्टि कौन –सी?
सम्यक् दृष्टि ।

दृष्टि जीव या अजीव?
जीव ।

किस दृष्टि वाले जीव कम, किस दृष्टि वाले जीव अधिक?
मिश्रदृष्टि वाले जीव कम, मिथ्यादृष्टि वाले जीव अधिक ।

दृष्टि किस कर्म का उदय?
उदय नहीं ।

तत्त्व के प्रति होनेवाली श्रद्धा को दृष्टि कहते हैं । दृष्टि जीव के ही होती है । अतः जीव है । मिश्रदृष्टि केवल संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त के ही होती है । अतः मिश्रदृष्टि वाले सबसे कम है । मिथ्यादृष्टि संज्ञी, असंज्ञी सब जीवों के हो सकती है । अतः मिथ्यादृष्टि वाले अधिक हैं । दृष्टि उदय भाव नहीं । दर्शन मोहनीय कर्म का उपशम, क्षायिक, क्षायोपशमिक भाव है ।


नोट:- अगर इससे सम्बंधित कोई भी जिज्ञासा या आप को समझ में नहीं आया हो तो आप ग्रुप में कभी भी पुछ सकते है। यथासम्भव जब भी समय मिलेगा या रात्रि में एक साथ सभी जिज्ञासाओं का समाधान देने का हमारा पुरा पुरा प्रयास रहेगा।

17. सतरहवां बोल :- लेश्या छ्ह-

तुम्हारे में लेश्या कितनी?
छह ।

लेश्या जीव या अजीव?
द्रव्य लेश्या अजीव, भाव लेश्या जीव ।

किस लेश्या के जीव कम, किस लेश्या के जीव अधिक?
शुक्ल लेश्या के जीव कम, कृष्ण लेश्या के जीव अधिक ।

दण्डक किस कर्म का उदय?
लेश्या नाम कर्म और मोहनीय कर्म का उदय ।

द्रव्य लेश्या पौद्गलिक है । पुद्गलों के संयोग से आत्मा के जो परिणाम बनते हैं, वह भाव लेश्या है । कृष्णलेश्या और शुक्ललेश्या दोनों ही चारों गति वाले जीवों में पाई जाती है । पर शुक्ललेश्या केवल विशुद्ध परिणाम वाले जीवों के ही होती है । कृष्णलेश्या छठे गुणस्थान तक होती है । छठे गुणस्थान से आगे केवल शुक्ललेश्या होती है । अतः शुक्ललेश्या वाले जीव कम होते है । कृष्णलेश्या वाले अधिक होते हैं । निगोद की अपेक्षा से भी कृष्णलेश्या वाले जीव सबसे अधिक हैं । योग की तरह लेश्या भी शुभ अशुभ दोनों प्रकार की है । अशुभ लेश्या मोहनीय कर्म का उदय है, शुभ लेश्या नाम कर्म का उदय है ।


नोट:- अगर इससे सम्बंधित कोई भी जिज्ञासा या आप को समझ में नहीं आया हो तो आप ग्रुप में कभी भी पुछ सकते है। यथासम्भव जब भी समय मिलेगा या रात्रि में एक साथ सभी जिज्ञासाओं का समाधान देने का हमारा पुरा पुरा प्रयास रहेगा।

16. सोलहवां बोल :- दण्डक चौबीस-

तुम्हारे में दण्डक कौन-सा?
21 वां मनुष्य पंचेन्द्रिय का ।

दण्डक जीव या अजीव?
जीव ।

किस दण्डक के जीव कम, किस दण्डक के जीव अधिक?
21वें दण्डक वाले कम, द्रव्य, 16 वें दण्डक वाले अधिक ।

दण्डक किस कर्म का उदय?
नाम कर्म का उदय ।

21वां दण्डक मनुष्य का है । वे सबसे कम हैं । 16वां दण्डक वनस्पति का है, उसमें निगोद के जीव अनन्त होने के कारण अधिक है । दण्डक नाम कर्म का उदय है ।



नोट:- अगर इससे सम्बंधित कोई भी जिज्ञासा या आप को समझ में नहीं आया हो तो आप ग्रुप में कभी भी पुछ सकते है। यथासम्भव जब भी समय मिलेगा या रात्रि में एक साथ सभी जिज्ञासाओं का समाधान देने का हमारा पुरा पुरा प्रयास रहेगा।

15. पन्द्रहवां बोल :- आत्मा आठ-

तुम्हारे में आत्मा कितनी?
श्रावक की अपेक्षा सात (चारित्र को छोड़कर),
साधु की अपेक्षा आठ ।

आत्मा जीव या अजीव?
जीव ।

किस आत्मा के जीव कम, किस आत्मा के जीव अधिक?
चारित्र के कम, द्रव्य, उपयोग व दर्शन आत्मा के जीव अधिक ।

आत्मा किस कर्म का उदय?
कषाय आत्मा मोहनीय कर्म का उदय । योग आत्मा नाम और मोहनीय कर्म का उदय। शेष आत्मा उदय भाव नहीं।

चारित्र आत्मा केवल साधु में ही होती है । अतः चारित्र आत्मा वाले सबसे कम होते हैं । द्रव्य, उपयोग, दर्शन -- ये तीन आत्माएं सब जीवों के होतीं हैं । अतः अधिक हैं ।

कषाय आत्मा -- चारित्र मोहनीय कर्म का उदय भाव है । योग आत्मा नाम कर्म और मोहनीय कर्म का उदयभाव है ।


चौदहवां बोल :- नौ तत्त्व के 115 भेद-

5. मोक्ष में जाने के 4 कारण –

तुम्हारे में मोक्ष तत्त्व के भेद कितने?
श्रावक की अपेक्षा तीन, साधु की अपेक्षा चार ।

मोक्ष तत्त्व जीव या अजीव?
जीव ।

किस मोक्ष तत्त्व के जीव कम, किस मोक्ष तत्त्व के जीव अधिक?
चारित्र के कम, तप के अधिक ।

मोक्ष किस कर्म का उदय?
उदय भाव नहीं ।

मोक्ष तत्व के चार कारण हैं -- ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप । चारित्र केवल साधु में ही पाता है । साधु संख्यात ही होते हैं, इसलिए चारित्र वाले जीव कम हैं । तप सब जीवों में पाता है । अतः तप वाले सबसे अधिक ।

मोक्ष उदय भाव नहीं है । आठों कर्मों का क्षायिक भाव है ।

नोट:- अगर इससे सम्बंधित कोई भी जिज्ञासा या आप को समझ में नहीं आया हो तो आप ग्रुप में कभी भी पुछ सकते है। यथासम्भव जब भी समय मिलेगा या रात्रि में एक साथ सभी जिज्ञासाओं का समाधान देने का हमारा पुरा पुरा प्रयास रहेगा।

चौदहवां बोल :- नौ तत्त्व के 115 भेद-

4. निर्जरा के 12 भेद-

तुम्हारे में निर्जरा के भेद कितने?
बारह ।

निर्जरा तत्त्व जीव या अजीव?
जीव ।

किस निर्जरा के जीव कम, किस निर्जरा के जीव अधिक?
व्युत्सर्ग वाले कम, कायक्लेश वाले अधिक ।

निर्जरा किस कर्म का उदय?
उदयभाव नहीं ।

व्युत्सर्ग संज्ञी जीवो के ही होता है । वह भी विशिष्ट ज्ञान वाला ही कर सकता है । विशिष्ट ज्ञान वाले कम होते है । कायक्लेश सभी जीवो के होता है । निर्जरा किसी कर्म के उदय से नही होती । वह शुभ योग की प्रवुत्ति से होती है । वह अंतराय कर्म का क्षायिक, क्षायोपशमिक भाव है । उससे कर्म कटते हैं ।

continue.........


नोट:- अगर इससे सम्बंधित कोई भी जिज्ञासा या आप को समझ में नहीं आया हो तो आप ग्रुप में कभी भी पुछ सकते है। यथासम्भव जब भी समय मिलेगा या रात्रि में एक साथ सभी जिज्ञासाओं का समाधान देने का हमारा पुरा पुरा प्रयास रहेगा।

चौदहवां बोल :- नौ तत्त्व के 115 भेद-

3. संवर के 20 भेद-

तुम्हारे में संवर के भेद कितने?
श्रावक की अपेक्षा पहला (सम्यक्त्व)
साधु की अपेक्षा 18 (सम्यक्त्व , व्रत)

संवर तत्त्व जीव या अजीव?
जीव ।

किस संवर के जीव कम, किस संवर के जीव अधिक?
अयोग संवर के जीव कम, सम्यक्त्व संवर के जीव अधिक

संवर किस कर्म का उदय?
उदय नहीं ।

श्रावक में मिथ्यात्व का त्याग होने से सम्यक्त्व संवर पाता है । यह पांचवें गुणस्थान में होता है । यह गुणस्थान मनुष्य और तिर्यंच दोनों में पा सकता है । व्रतधारी तिर्यंच परिमाण में असंख्य हो सकते है । इसलिए सम्यक्त्व संवर वाले अधिक है । संवर के शेष बोल साधु में पाये जाते है । उसमें भी अयोग संवर केवल चौदहवें गुणस्थान में ही होता है । अतः उसके जीव सबसे कम है ।

संवर किसी कर्म का उदय भाव नहीं, चारित्र मोहनीय कर्म का औपशमीक, क्षायिक, क्षायोपशमीक भाव है ।

continue........


नोट:- अगर इससे सम्बंधित कोई भी जिज्ञासा या आप को समझ में नहीं आया हो तो आप ग्रुप में कभी भी पुछ सकते है। यथासम्भव जब भी समय मिलेगा या रात्रि में एक साथ सभी जिज्ञासाओं का समाधान देने का हमारा पुरा पुरा प्रयास रहेगा।

चौदहवां बोल :- नौ तत्त्व के 115 भेद-

2. आश्रव के 20 भेद-

तुम्हारे में आश्रव के भेद कितने?
श्रावक की अपेक्षा 19 (मिथ्यात्व को छोड़कर)
साधु की अपेक्षा 18 (मिथ्यात्व और अव्रत को छोड़कर)

आश्रव तत्त्व जीव या अजीव?
जीव ।

किस आश्रव के जीव कम, किस आश्रव के जीव अधिक?
मिथ्यात्व आश्रव के जीव कम, योग आश्रव के जीव अधिक

आश्रव किस कर्म का उदय?
नाम कर्म तथा मोहनीय कर्म का उदय।

श्रावक में मिथ्यात्व आश्रव छूट जाने से आश्रव के 19 भेद पाते हैं । साधु में मिथ्यात्व, अव्रत दोनों छूट जाने से आश्रव के भेद 18 पाते है । ये 18 भेद छठे गुणस्थान के साधु की अपेक्षा से है । योग आश्रव के जीव अधिक लेने का कारण है कि योग आश्रव तेरहवें गुणस्थान तक सभी जीवों के है, चाहे सम्यक्त्वी हो या मिथ्यात्वी । आश्रव मोहनीय और नामकर्म का उदय भाव है । अशुभ प्रवृति में मोहनीय कर्म का उदयभाव है और शुभ प्रवृति में नाम कर्म का उदय भाव है ।

continue.....


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चौदहवां बोल :- नौ तत्त्व के 115 भेद-

1. जीव-

तुम्हारे में जीव का भेद कौन-सा?
चौदहवां ।

जीव तत्त्व जीव या अजीव?
जीव ।

किस भेद के जीव कम, किस भेद के जीव अधिक?
तेरहवें भेद के कम, दूसरे के अधिक ।

जीव भेद किस कर्म का उदय?
नाम कर्म का उदय ।

तेरहवां जीव का भेद संज्ञी अपर्याप्त का है । चारो गति में संज्ञी अपर्याप्त जीव कम होते है । दूसरा जीव का भेद सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त का है । सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा दूसरों से नहीं होती । वे अपने आयुष्य के बल से ही जीते है, मरते है । वे अपर्याप्त कम मरते है, अधिक जीव पर्याप्त होकर ही मरते है । इसलिए दूसरे भेद वाले जीव अधिक लिए गए है । जीव के भेद नाम कर्म का उदय है ।


Continue...........


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तेरहवां बोल :- मिथ्यात्व के दस प्रकार

तुम्हारे में मिथ्यात्व के बोल कितने?
व्यवहार से नहीं ।

मिथ्यात्व जीव या अजीव?
जीव ।

किस मिथ्यात्व के जीव कम, किस मिथ्यात्व के जीव अधिक?
मिथ्यात्व के बोलों में कम अधिक नहीं।

मिथ्यात्व किस कर्म का उदय?
मोहनीय कर्म का उदय ।

मोहनीय कर्म के उदय से जीव की श्रद्धा मिथ्या होती है ।


बारहवां बोल :- इंद्रियों के 23 विषय

तुम्हारे में कितने विषय?
तेईस ।

विषय जीव या अजीव?
अजीव है । पुद्गल है ।

किस विषय के जीव कम, किस विषय के जीव अधिक?
श्रोत्रेंद्रिय विषय वाले कम, स्पर्शनेंद्रिय विषय वाले अधिक ।

विषय किस कर्म का उदय?
उदय नहीं ।

विषय इन्द्रियों द्वारा जानने योग्य होते है । विषय अजीव है । श्रोत्रेन्द्रिय के विषय केवल पंचेन्द्रिय जीवों के ही होते है । अतः श्रोत्रेन्द्रिय विषय वाले जीव कम है ।



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ग्यारहवां बोल :- ग़ुणस्थान चौदह

तुम्हारे में ग़ुणस्थान कौन-सा?
श्रावक की अपेक्षा पांचवां, साधु की अपेक्षा छ्ठा ।

ग़ुणस्थान जीव या अजीव?
जीव ।

किस ग़ुणस्थान के जीव कम, किस ग़ुणस्थान के जीव अधिक?
उपशांत मोह गुणस्थान (11वां) वाले कम, मिथ्यादृष्टि ग़ुणस्थान (प्रथम) वाले अधिक ।

ग़ुणस्थान किस कर्म का उदय?
उदय नहीं ।

गुणस्थान संसारी जीवों के विकास की श्रेणियां है, अतः जीव है । उपशांत मोह का केवल एक ग्यारहवां गुणस्थान है, इसके जीव सबसे कम होते है । मिथ्यादृष्टि के जीव चारों गतियों में होते है, इसलिए सबसे अधिक है । गुणस्थान उदय भाव नहीं, मोहनीय कर्म का उपशम, क्षायिक, क्षयोपशम भाव है ।


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दसवां बोल :- कर्म आठ

तुम्हारे में कर्म कितने?
आठ ।

कर्म जीव या अजीव?
अजीव ।

किस कर्म के जीव कम, किस कर्म के जीव अधिक?
मोहनीय कर्म के जीव कम, वेदनीय, नाम, गोत्र व आयुष्य कर्म के जीव अधिक ।

कर्म किस कर्म का उदय?
अपने अपने कर्म का ।

कर्म पुद्गल है, अतः अजीव है ।
मोहनीय कर्म बारहवें गुणस्थान में समाप्त हो जाता है, इसलिए मोहनीय कर्म वाले जीव कम है । वेदनीय आदि चार कर्म जब तक जीव संसार में रहता है, तब तक पाए जाते है, इसलिए इन कर्मो वाले जीव अधिक है । उदय सब कर्मो का अपना अपना है ।


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नौवां बोल :- उपयोग बारह

तुम्हारे में उपयोग कितने?
चार- मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन ।

उपयोग जीव या अजीव?
जीव ।

किस उपयोग के जीव कम, किस उपयोग के जीव अधिक?
मन:पर्यवज्ञान वाले कम, अचक्षुदर्शन वाले अधिक ।

उपयोग किस कर्म का उदय?
उदय नहीं ।

उपयोग जीव का लक्षण है, अतः जीव है । मनः पर्यव ज्ञान केवल साधु के ही होता है । अतः मनःपर्यवज्ञान वाले सबसे कम है । अचक्षुदर्शन चारों गति के जीवों के होता है । वह संज्ञी, असंज्ञी.ज्ञानी, अज्ञानी सबके होता है । अतः अचक्षुदर्शन वाले अधिक है ।

उपयोग उदय भाव नहीं, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय कर्म का क्षायिक, क्षयोपशम भाव है ।

 

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आठवां बोल :- योग पंन्द्रह

तुम्हारे में योग कितने?
नौ- चार मनोयोग, चार वचन योग, एक औदारिक काययोग ।

योग जीव या अजीव?
द्रव्य योग अजीव, भाव योग जीव ।

किस योग के जीव कम, किस योग के जीव अधिक?
आहारक, आहारक मिश्र वाले कम, औदारिक, औदारिक मिश्र वाले अधिक ।

योग किस कर्म का उदय?
नाम कर्म का उदय ।

योग के दो प्रकार है-द्रव्ययोग, भावयोग। योग की प्रवृत्ति में जिन पुद्गलों को ग्रहण किया जाता है, वह द्रव्ययोग है । प्राप्ति नाम कर्म से होती है । द्रव्ययोग अजीव है । योग की प्रवृत्ति भावयोग है, वह जीव है ।

आहारक, आहारक मिश्र साधु के ही होता है । औदारिक योग नारक और देव को छोड़कर सबके होता है, अतः औदारिक योग वाले अधिक है ।



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सातवां बोल :- शरीर पांच

तुम्हारे में शरीर कितने?
तीन- औदारिक, तैजस, कार्मण ।

शरीर जीव या अजीव?
अजीव ।

किस शरीर के जीव कम, किस शरीर के जीव अधिक?
आहारक शरीर के जीव कम, तैजस, कार्मण शरीर के जीव अधिक ।

शरीर किस कर्म का उदय?
नाम कर्म का उदय ।

शरीर की प्राप्ति नामकर्म के उदय से होती है । शरीर पौद्गलिक है अतः अजीव है ।

आहारक शरीर केवल साधु के ही हो सकता है, वह भी चौदह पूर्वधर के । अतः आहरक शरीर वाले सबसे कम होते है । तैजस, कार्मण शरीर हर संसारी जीव में होते है । अतः तैजस, कार्मण शरीर वाले सबसे अधिक हैं ।



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छ्ठा बोल :- प्राण दस

तुम्हारे में प्राण कितने?
दस ।

प्राण जीव या अजीव?
जीव ।

किस प्राण के जीव कम, किस प्राण के जीव अधिक?
मनोबल के जीव कम, आयुष्य के जीव अधिक ।

प्राण किस कर्म का उदय?
उदय नहीं ।

प्राण अर्थात् जीवनी शक्ति, जीवनी शक्ति जीव है । मनोबल प्राण केवल संज्ञी प्राणियों में ही पाता है । इसलिए दस प्राणों में सबसे कम जीव मनोबल प्राणवाले हैं ।

दस प्राण बारहवें गुणस्थान तक पाते हैं। तेरहवें गुणस्थान में पांच प्राण (इन्द्रिय प्राण छोड़कर) पाते हैं । आयुष्य प्राण चौदहवें गुणस्थान तक पाता है । यानि सभी संसारी प्राणियों में आयुष्य बल प्राण पाता ही है । इसलिए आयुष्य बल प्राण वाले अधिक है ।
प्राण उदय भाव नहीं, अंतराय कर्म का क्षायिक, क्षायोपशमिक भाव है ।


पांचवा बोल :- पर्याप्ति छ्ह

तुम्हारे में पर्याप्तियां कितनी?
छह ।

पर्याप्ति जीव या अजीव?
अजीव ।

किस पर्याप्ति के जीव कम, किस पर्याप्ति के जीव अधिक?
मन:पर्याप्ति के जीव कम, आहार पर्याप्ति के जीव अधिक ।

पर्याप्ति किस कर्म का उदय?
नाम कर्म का उदय ।

पर्याप्ति अर्थात् जीवन धारण में उपयोगी पौद्गलिक शक्ति । यह अजीव है । नाम कर्म के उदय से प्राप्त होती है । मनः पर्याप्ति केवल संज्ञी प्राणियों के ही होती है । आहार पर्याप्ति सब जीवों के होती है । इसलिए आहार पर्याप्ति के जीव सबसे अधिक होते है ।


चौथा बोल :- इंद्रिय पांच

तुम्हारे में इंद्रिय कितनी?
पांच ।

इंद्रिय जीव या अजीव?
द्रव्य इंद्रिय अजीव, भाव इंद्रिय जीव ।

किस इन्द्रिय के जीव कम, किस इन्द्रिय के जीव अधिक?
श्रोत्रेन्द्रिय के जीव कम, स्पर्शनेन्द्रिय के जीव अधिक ।

इंद्रिय किस कर्म का उदय?
द्रव्येन्द्रिय नाम कर्म का उदय, भावेन्द्रिय उदय नहीं ।

एक निश्चित विषय का ज्ञान करने वाली आत्म-चेतना इन्द्रिय है । इन्द्रिय के दो प्रकार है-द्रव्येन्द्रिय, भावेन्द्रिय । द्रव्येन्द्रिय-कान, नाक, जीभ आदि जो दृश्य पौद्गलिक इन्द्रियां है, वे द्रव्येन्द्रियां कहलाती है । द्रव्येन्द्रिय बाहरी और भीतरी आकार रचना है । यह नाम कर्म के उदय से मिलती है ।

श्रोत्रेन्द्रिय के जीव कम है, क्योंकि वह केवल पंचेन्द्रिय जीवों के ही होती है । स्पर्शनेन्द्रिय सब जीवों के होती है, अतः अधिक है । जानने का गुण भावेन्द्रिय है । भावेन्द्रिय दर्शनावरणीय कर्म का क्षयोपशम भाव है ।


तीसरा बोल :- काय छह

तुम्हारी काय कौन-सी?

त्रसकाय ।

 

काय जीव या अजीव?

जीव ।

 

किस काय के जीव कम,  किस काय के जीव अधिक?

त्रसकाय के जीव कम,  वनस्पति के जीव अधिक ।

 

काय किस कर्म का उदय?

नाम कर्म का उदय ।

 

काय नामकर्म का उदय है । इसको भोगनेवाला जीव है । त्रसकाय में जीव असंख्य हैं ।

वनस्पति में निगोद की अपेक्षा जीव अनन्त हैं ।

 

          

दूसरा बोल :- जाति पांच

तुम्हारी जाति कौन-सी?

पंचेंद्रिय ।

 

जाति जीव या अजीव?

द्रव्य जाति अजीव,  भाव जाति जीव ।

 

किस जाति के जीव कम,  किस जाति के जीव अधिक?

पंचेन्द्रिय जाति के जीव कम,  एकेंद्रिय जाति के जीव अधिक ।

 

जाति किस कर्म का उदय?

नाम कर्म का उदय ।

 

गति की भांति जाति भी नामकर्म की प्रकृति है । जब तक बंधी हुई है, तब तक द्रव्य जाति है, अजीव है । जब उदय में आती है अर्थात् प्राणी उस जाति को भोगता है, तब भाव जाति कहलाती है, वह जीव है । पंचेन्द्रिय में असंख्य जीव है । एकेन्द्रिय में निगोद की अपेक्षा अनंत जीव है ।

 

          

पहला बोल :- गति चार

तुम्हारी गति कौन-सी?

मनुष्य गति ।

 

गति जीव या अजीव?

द्रव्य गति अजीव,  भाव गति जीव ।

 

किस गति के जीव कम,  किस गति के जीव अधिक?

मनुष्य गति के जीव कम,  तिर्यंच गति के जीव अधिक ।

 

गति किस कर्म का उदय?

नाम कर्म का उदय ।

 

जब तक गति बंधी हुई रहती है,  तब तक द्रव्य गति कहलाती है ।  द्रव्यगति कर्म प्रकृति है । पोद्गलिक है,  अजीव है ।  जब उदय में आती है अर्थात् प्राणी उस गति को भोगता है, तब वह भाव गति कहलाती है ।  भाव गति जीव है । मनुष्य गति,  नरक गति और देव गति-तीनों में असंख्य असंख्य जीव है । उनमें भी मनुष्य की संख्या सबसे कम है । मनुष्य भी असंख्य असंज्ञी मनुष्य की अपेक्षा से लिए गए है ।  संज्ञी मनुष्य तो संख्यात ही है ।  तिर्यंच जीव निगोद की अपेक्षा अनंत है ।

 

          

 

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