ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
18. सूर्य मुद्रा
अनामिका तीसरी अंगुली को मोड़कर अंगूठे की जड़ में लगाएं तथा अंगूठे से दबाए l शेष अंगुलिया सीधी रहे l
19.हंसी मुद्रा
प्रथम तीन अंगुलियों के पोर अंगूठे के अग्रभाग से मिलाए l कनिष्ठा अंगुली सीधी रहेगी
आगे का अंश अगली पोस्टमें
आगम असम्मत् कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं |
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
17.सुरभि मुद्रा
इसे धेनु मुद्रा भी कहते हैं l
बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली को दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली से स्पर्श कराएं l दाएं हाथ की तर्जनी अंगुली को बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली से मिलाए l
बाएं हाथ की कनिष्ठा को दाएं हाथ की अनामिका अंगुली तथा बाएं हाथ की अनामिका अंगुली को दाएं हाथ की कनिष्ठा से मिलाए l
अंगूठे स्वतंत्र रहेंगे l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
15.व्यान मुद्रा
मध्यमा अंगुली के अग्रभाग के अंगूठे के अग्रभाग से मिलाए l तर्जनी अंगुली के अग्रभाग को मध्यमा के नख से स्पर्श कराएं l शेष अंगुलिया सीधी रहे l
16.शंख मुद्रा
बाएं हाथ के अंगूठे को दाएं हाथ की हथेली में स्थापित कर मुट्ठी बंद करें l
बाएं हाथ की शेष अंगुलियों को दाएं हाथ के अंगूठे से स्पर्श कराएं l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
13.वरुण मुद्रा
कनिष्ठा (छोटी अंगुली) के अग्रभाग से अंगूठे के अग्रभाग का स्पर्श करें l शेष अंगुलियां सीधी रहे l
14. वायु मुद्रा
तर्जनी अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के मूल में स्थापित करें l अंगूठा तर्जनी अंगुली का स्पर्श करेगा l शेष अंगुलिया सीधी रहेगी l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
9.पृथ्वी मुद्रा
अनामिका (तीसरी अंगुली) के अग्रभाग से अंगूठे के अग्रभाग का स्पर्श करें l शेष अंगुलियां सीधी रहे l
10.प्राण मुद्रा
कनिष्ठा अंगुली और अनामिका अंगुली का अग्रभाग अंगूठे के अग्रभाग का स्पर्श करें l शेष अंगुलिया सीधी रहे l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
8. परिवर्तन मुद्रा
दोनों हाथों की अंगुलियां एक दूसरे में फंसाए l
बाएं हाथ के पृष्ठ भाग को दाएं हाथ की अंगुलियों से दबाएं l बाएं हाथ की अंगुलियां सीधी रहे l फिर बाए हाथ की अंगुलियों से दाएं हाथ का पृष्ठ भाग दबाएं l दाएं हाथ की अंगुलियां सीधी रहे l यही अभ्यास बार-बार करें l
आगे का अंश अगली पोस्टमें
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
6. खेचरी मुद्रा
मुंह को बंद कर जिह्वा के अग्रभाग से तालु का स्पर्श करें l
7.ज्ञान मुद्रा
दोनों हाथों को घुटनों पर रखें l तर्जनी अंगुली के ऊपर वाले पोर को अंगूठे के ऊपर वाले पोर से मिलाए, हल्का सा दबाव दें l शेष तीनों अंगुलियां परस्पर सटी हुई सीधी रहे l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
4.आकाश मुद्रा
अंगूठे के अग्रभाग को मध्यमा (दूसरी अंगुली) के अग्रभाग से मिलाए l हल्का सा दबाव दें l
5.उदान मुद्रा
तर्जनी अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के माध्यम से मिलाए l मध्यमा अंगुली से तर्जनी अंगुली के नख का स्पर्श कराएं l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
2.अभय मुद्रा
ज्ञान मुद्रा में दोनों हाथों की हथेलियों को कंधे के पास रखें l हथेलियों को सामने रखें l
3.अश्विनी मुद्रा
पद्मासन, वज्रासन या सुखासन में बैठें l
शरीर को शिथिल करें l
गुदाद्वार की मांसपेशियों को भीतर खींचे l फिर ढ़ीला छोड़ दे l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
5.मुद्रा
1.अपान मुद्रा 11.मृगी मुद्रा
2.अभय मुद्रा 12.अंगुष्ठ मुद्रा
3.अश्विनी मुद्रा 13.वरुण मुद्रा
4.आकाश मुद्रा 14.वाय मुद्रा
5.उदान मुद्रा 15.व्यान मुद्रा
6.खेचरी मुद्रा 16.शंख मुद्रा
7.ज्ञान मुद्रा 17.सुरभि मुद्रा
8.परिवर्तन मुद्रा 18.सूर्य मुद्रा
9.पृथ्वी मुद्रा 19.हंसी मुद्रा
10.प्राण मुद्रा
1.अपान मुद्रा
मध्यमा(दूसरी अंगुली)तथा अनामिका(तीसरी अंगुली)तथा अंगूठे के अग्रभाग मिलाकर दबाएं
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
2.जालंधर बंध
पद्मासन, वज्रासन अथवा सुखासन में बैठें l
शरीर शिथिल एवं आंखे बंद l
दीर्घ श्वास लें l श्वास संयम करें l सिर को झुका कर ठुड्डी को कंठकूप में लगाए l
कुछ देर इस स्थिति में रहे l
सिर को सीधा करें l
धीरे-धीरे श्वास छोड़ें l
1.उड्डियान बंध
पद्मासन, वज्रासन अथवा सुखासन में बैठे l
धीरे-धीरे पूरा श्वास छोड़ दे l
श्वास संयम करें l
पेट की मांसपेशियों को अधिक से अधिक ऊपर तथा भीतर की ओर संकुचित करें l
कुछ क्षण इस स्थिति में रहे l धीरे-धीरे पेट की मांसपेशियों को शिथिल करें l श्वास लें l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
8.सूर्यभेदी प्राणायाम
पद्मासन, सुखासन अथवा वज्रासन में बैठें l
दांयी नासिका (सूर्यस्वर)से धीरे-धीरे श्वास ले l
श्वास संयम करें l
बांयी नासिका (चंद्रस्वर) से धीरे धीरे श्वास छोड़े l श्वास संयम करें l इसी प्रकार कई आवृत्तियां करें l
सूर्यभेदी प्राणायाम के दूसरे प्रकार में दाईं नासिका से पूरक पर कुंभक करे l रेचन कर बाह्य कुंभक करें l पुनः सूर्य स्वर से पूरक करें l कुंभक का रेचन करें l इस प्रकार केवल सूर्य स्वर से आवृत्तियां करते रहे l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
7.शीतकारी प्राणायाम पद्मासन, सुखासन या वज्रासन में बैठे l
जीभ के अग्रभाग पर दांतों के तले हल्का सा दबाव दे l धीरे-धीरे सीत्कार शब्द करते हुए मुख से श्वास लें l श्वास संयम करें l नाक से श्वास छोड़ दें l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
6. शीतली प्राणायाम पद्मासन, सुखासन या वज्रासन में बैठे l जीभ को मुख से बाहर निकालकर कौवे की चोंच के समान बनाएं l जीभ के किनारों को मोड़कर गोलाकार बनाने से वह पोली नली सी बन जाती है l इस नली से धीरे-धीरे श्वास लें l श्वास संयम करें फिर दोनों नासिकाओं से धीरे-धीरे श्वास निकाल दे l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
5.महाप्राण ध्वनि
पूरा श्वास भरे l होठ बंद रहे l नाक से भ्रमर की तरह गुंजन की ध्वनि करते हुए धीरे-धीरे श्वास छोड़ें l
पुनः श्वास को भर कर इस प्रयोग को दोहराए l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
यह एक आवृत्ति पूर्ण हुई l दूसरी आवृत्ति में चंद्र स्वर से श्वास ले l श्वास संयम करें l फिर चंद्र स्वर से ही श्वास छोड़े l श्वास संयम के समय नाभि पर चंद्रमा का ध्यान करें l इस प्रक्रिया को 5 बार दोहराएं l
तत्पश्चात सूर्य स्वर से श्वास लें l श्वास संयम करें तथा सूर्य स्वर से ही श्वास छोड़ें l श्वास संयम के समय नाभि पर उगते हुए सूर्य का ध्यान l इस प्रक्रिया को भी 5 बार दोहराएं l इस प्रकार दूसरी आवृत्ति भी पूर्ण हुई l
4.नाड़ी शोधन प्राणायाम सुविधानुसार आसन में बैठ जाएं l
अनुलोम विलोम प्राणायाम की भांति दाहिने हाथ के सहयोग से चंद्र स्वर (बाईं नासिका) से श्वास लें l कुछ क्षण भीतर रोकें (श्वास संयम), सूर्य स्वर (दाईं नासिका) से धीरे-धीरे छोड़ दें l
श्वास संयम के समय नाभि पर चंद्रमा का ध्यान करें l
5 बार यही क्रम दोहराएं l
पुनः सूर्य स्वर से श्वास ले lकुछ क्षण रोकें फिर चंद्रस्वर से छोड़ दे l श्वास संयम के समय नाभि पर उगते हुए सूर्य का ध्यान करें l पांच बार यही क्रम दोहराएं l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
3.चंद्रभेदी प्राणायाम पद्मासन, सुखासन, वज्रासन या अन्य किसी आसन का चुनाव करें l
बांयी नासिका का (चंद्र स्वर) से धीरे-धीरे श्वास लें l श्वास संयम करें l दाईं नासिका (सूर्य स्वर) से श्वास छोड़ें l पुनः श्वास संयम करें l
चंद्रभेदी प्राणायाम के दूसरे प्रकार में (चंद्र स्वर) से पूरक कर कुंभक करें l रेचक का बाह्य कुंभक करें l पुनः चंद्रस्वर से कुम्भक करें l कुम्भक कर रेचन करे l इस प्रकार केवल चंद्रस्वर से पूरक कुम्भक रेचन कुम्भक का प्रयोग चलता रहे l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
2.उज्जाई प्राणायाम वज्रासन, सुखासन या पद्मासन में बैठे l
मुंह को बंद करना नाक से श्वास-प्रश्वास करें l
श्वास लेते और छोड़ते समय कंठ पर दबाव रहे l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
मध्यमा को दाईं नासिका पर रखें एवं अंगूठे को बाएं नासिका पर रखें अंगुलियों और अंगूठे के सहयोग से प्राणायाम करें l
गर्मी के मौसम में चंद्र स्वर (बाईं नासिका) से श्वास लें, भीतर रोकें l सूर्य स्वर (दांयी नासिका) से सांस छोड़ें,बाहर रोकें l
पुनः सूर्य स्वर से सांस लें, भीतर रोकें, चंद्र स्वर से छोड़े, बाहर रोकें l
जिस स्वर से श्वास, छोड़े उसी से ले l
सर्दी के मौसम में सूर्यस्वर से प्रारंभ करें l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
3.प्राणायाम
1.अनुलोम विलोम प्राणायाम 2.उज्जायी प्राणायाम
3.चंद्रभेदी प्राणायाम
4.नाड़ी शोधन प्राणायाम 5.महाप्राण ध्वनि
6.शीतली प्राणायाम
7.शीतकारी प्राणायाम
8.सूर्यभेदी प्राणायाम
9.सूक्ष्म भस्त्रिका प्राणायाम
1. अनुलोम विलोम प्राणायाम
पद्मासन सुखासन या वज्रासन का चुनाव करें l
स्थिरतापूर्वक सीधे बैठे l
तर्जनी (पहली अंगुली) को दोनों भृकुटियों के मध्य, दर्शन केंद्र पर रखें l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
9.सीने की क्रिया
श्वास ले फिर श्वास को छोड़ते हुए दोनों हाथों को शेर के पंजे की तरह सामने की ओर झटके के साथ में फैलाएं l श्वास लेते हुए हाथों को सीने की तरह ऐसे लाएं जैसे की पूरी ताकत पर कोई रस्सी खींच रहे हो l फिर इसी प्रकार हाथों को सीने से कंधे तक फैलाएं l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
7.श्वास भरते हुए कमर और नितंब के भाग को भूमि से ऊपर उठाकर तेजी से भूमि पर गिराए l फिर ऐडी से लेकर कंधे तक शरीर को ऊपर उठाएं l एक साथ तीव्र गति से भूमि पर गिराए l
8.श्वास भरते हुए सिर की ओर फैलाए l बांयी ओर शरीर को गोलाकर बेलन की तरह घुमाएं l दूसरी तरफ से भी इस क्रिया को दोहराएं l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
6.दोनों पैरों के घुटने को मोड़ कर पावं तल भूमि पर सीधा रखें l पैर नितंबों से सटे रहे l श्वास भरते हुए दोनों घुटनों को बांयी ओर भूमि तल की ओर ले जाएं शरीर बांयी ओर करवट ले तथा गर्दन दाई और घुमाए l श्वास छोड़ते हुए मूल स्थिति में आ जाए l दूसरी ओर से भी इस क्रिया को दोहराएं l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः l
5.दोनों पैरों के घुटनों को मोड़े l दोनों पैरों के बीच इतना फासला रहे कि एक पैर का घुटना दूसरे पैर के तलवे में ला सके l श्वास भरते हुए दाएं पैर के घुटने को बाएं पैर के तलवे लगाए l शरीर बांयी और करवट लेगा जबकि गर्दन दाई और घुमाए l श्वास छोड़ते हुए मूल स्थिति में आ जाए इस क्रिया को दूसरे पैर से भी दोहराएं l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
4.बाएं पैर को सीधा रखें l दाएं पैर को मोड़कर पाँव तल को घुटने के पास स्थापित करे l श्वास भरते हुए बाएं पैर के ऊपर से दाएं घुटने को बांयी ओर भूमि से स्पर्श कराएं l दाहिना कंधा बाई और करवट लेगा l गर्दन को दाहिनी ओर घुमाए l श्वास छोड़ते हुए मूल स्थिति में आ जाए l इस क्रिया को दूसरे पैर से भी दोहराए l
सर्वांगासन
पेट के बल लेट जाइए l
हाथ शरीर के बराबर फैलाये l हथेलियां भूमि पर शरीर से सटी हुई रहे l
श्वास भरते हुए पैरों को धीरे-धीरे ऊपर उठाएं l पंजों का सीधा 90 डिग्री का कोण बनाएं l श्वास छोड़े, कुछ क्षण ठहरे l
श्वास भरते हुए कमर को उठाएं l हथेलियों को सहारा देते हुए दोनों हाथों को कोहनी से मोड़कर धड़ और पैरों को सीधा रखें l ठुड्डी कंठकूप से लगी रहे l दृष्टि पैर के अंगूठे पर रहे l कुछ समय तक इस अवस्था में रहे l मूल स्थिति में आते समय श्वास को छोड़ते हुए धीरे-धीरे 90 डिग्री के कोण तक लाएं l
श्वास भरें, कुछ देर रुकें, पुनः श्वास छोड़ते हुए धीरे धीरे पैरों को भूमि की ओर ले आएं l
सिंहासन
घुटनों को दूर-दूर तक वज्रासन में बैठे l हथेलियों को घुटनों के मध्य टिकाएं l अंगुलियां शरीर की और रहेंगी l हाथों के सहारे थोड़ा आगे की ओर झुके l
सिर पीछे की ओर ले जाए, मुंह खोले तथा जितना संभव हो जीभ को बाहर निकाले l आंखों को पूरा खोलकर दृष्टि दर्शन केंद्र पर टिकाएं l
नाक से श्वास लीजिए l धीरे-धीरे श्वास को छोड़ते हुए गले से स्पष्ट और स्थिर आवाज निकाले l
इस जीभ को निकालकर तथा दाएं बाएं घुमा कर भी किया जा सकता है
.सिद्धासन
सुखासन में बैठें l
बाएं पैर की एड़ी को गुदा तथा मूत्रेन्द्रिय के मध्य रिक्त स्थान पर लगाएं l
पैर के पंजे नितंब तथा पिंडलियों के बीच में रहेंगे l
दाएं पांव को उठाकर बाएं पैर के ऊपर वाले टखने पर टिकाएं l मेरुदंड सीधा, दृष्टि नासाग्र पर या मुंदी हुई तथा हाथों की ज्ञान मुद्रा या वितराग मुद्रा l
.सुखासन
पैरों को सामने से फैलाइए l दाएं पैर को मोड़कर पंजे को बांयी जांघ के नीचे रखें l
बाएं पैर को मोड़कर पंजे को दाई जांघ के नीचे रखें l
हाथों को घुटने पर अथवा ध्यान मुद्रा में रखें l
सिर गर्दन और पीठ सीधी रहे l
.हृदयस्तम्भनासन
पीठ के बल लेट जाएं l
श्वास भरते हुए हाथों को सिर की और सीधा फैला दें l
हाथों एवं पैरों को तानकर श्वास छोड़ते हुए 45 डिग्री के कोण तक भूमि से ऊपर उठाएं l सिर एवं कंधे भी हाथों के ऊपर उठेंगे l
श्वास रोकें l दृष्टि को हृदय पर केंद्रित करें l फिर धीरे-धीरे श्वास भरें l
श्वास छोड़ते हुए पूर्व स्थिति में आकर विश्राम करें l
1. अग्निसार क्रिया पद्मासन,वज्रासन अथवा सुखासन में बैठें l
पूरा श्वास बाहर निकाल दें
श्वास-संयम की स्थिति में पेट को भीतर बाहर संचालित करें l
अर्ध-शंख प्रक्षालन
यह अभ्यास अनुभवी प्रशिक्षक के निर्देशन में ही करें l
पीने लायक गर्म पानी 4 किलो लेकर उसमें उतना नमक मिलाएं जो पानी को पीने लायक नमकीन कर दें l अब खाली पेट उकड़ू बैठकर 1 किलो पानी पीकर
1. ताड़ासन
2.तिर्यक् ताड़ासन
3.कोटि-चक्रासन
4.तिर्यक भुजंगासन
5.उदाराकर्षणासन
प्रत्येक की नौ-नौआवृत्ति करें l पानी पीकर आसनों को पुनः क्रमशः प्रयोग करें l ऐसा तब तक करें जब तक शंका न हो l शंका होने पर तुरंत मल विसर्जित करें l मल विसर्जन करते वक्त भी पेट को ऊंचे-नीचे करके दाएं-बाएं पैरों को घुमा कर आसन करें l शौच हो जाने पर पुनः पानी पीकर उसी क्रम से आसन करें l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
त्रियंक ताड़ासन ताड़ासन में पंजों के बल खड़े हो जाइए l शरीर को कमर से दाएं ओर मोड़े, फिर बांयी ओर मोड़े l
हाथों की अंगुलियों को आपस में फंसाकर हाथों को सिर के ऊपर ले जाएं l हथेलियों को ऊपर उलट दे l शरीर को 90 डिग्री के कोण तक सामने झुकाए l दृष्टि हाथों पर, पैर प्रायः सीधे l धीरे-धीरे धड़ को दाएं और घूमाए फिर पूर्ण बांयी ओर l इसी प्रकार शरीर को दाएं- बाएं घुमाते हुए आवृत्तिया करें l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
त्रियंक भुजंगासन भुजंगासन की अवस्था में आए l सिर ओर कंधे को दांयी ओर मोड़कर बाएं पैर की एड़ी को देखें l फिर सीधे होकर विपरीत दिशा में इसी क्रम को दोहराए l
शौच जाने पर जब तक शुद्ध पानी न निकले लगे तब तक पानी पीकर पुनः आसन करें l जब शौच में साफ पानी निकलने लगे तब बिना नमक का गर्म पानी पीकर क्रिया बंद कर दे l कुंजल क्रिया करें l
जीभ की मूल गहराई में तीन अंगुलियां ले जाकर पानी को अमाशय से बाहर कर दें l तत्पश्चात एक घंटा कायोत्सर्ग करें l नींद ना ले l 1 घंटे बाद मूंग की दाल और चावल की खिचड़ी घी (अधिक मात्रा) के साथ ले सकते हैं दूध तथा अन्य खाद्य पदार्थों का वर्जन करें
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
4.श्वास भरते हुए दोनों गोलको को बांए कोण में ऊपर ले जाए l श्वास छोड़ते हुए गोलकों को दांए कोण में ले जाएं l
5. सांस भरकर उसे रोके l आंखों के गोलको को गोलाकार दाएं से बाएं से दाएं घुमाए l
6.श्वास छोड़कर उसे रोके l आंखों को तेजी से टिमटिमाये l
7.दोनों हथेलियों को परस्पर रगड़कर गर्म करें l हल्के स्पर्श से हथेलियों द्वारा आंखों पर मालिश करें l हथेलियों से आंखों को ऐसे ढके, जिससे अंदर सघन अंधेरा हो जाए l आंखों को खुली रखकर अंधेरे में तेजी से टिमटिमाये l धीरे-धीरे अंगुलियों को ऐसे खोलते जाएं जिससे पूरा प्रकाश हो जाए l
गर्दन की क्रिया
1.श्वास को भरते हुए गर्दन को पीछे पीठ की ओर ले जाए l श्वास को छोड़ते हुए ठुड्डी को सीने से लगाए l
2. श्वास छोड़ते हुए गर्दन को दाएं कंधे की ओर घुमाएं l श्वास भरें l श्वास छोड़ते हुए गर्दन को बाएं कंधे की ओर घुमाएं l
3.गर्दन को दाएं बाएं दोनों से गोल घुमाएं l श्वास भरते हुए ठुड्डी को कंठ कूप में लगाएं, दाहिने कंधे की ओर ठुड्डी का स्पर्श करते हुए पीठ की ओर गर्दन ले जाए, बाएं कान को दाएं कंधे से छूते हुए ठुड्डी को कंठ कूप में लगाए l इसी क्रिया को बांयी ओर से भी दोहराएं l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
5.श्वास को भरते हुए सिर और गर्दन को दाहिने और झुकाए, कान कंधे का स्पर्श करें l श्वास छोड़ते हुए सिर को सीधा करें l श्वास भरते हुए बांयी ओर झुकाए, कान कंधे का स्पर्श करें l श्वास छोड़ते हुए सिर को सीधा करें l
.पेट की क्रिया
1.गर्दन को सीधा रखें l दृष्टि सामने रखते हुए धीरे-धीरे दस बार श्वास-प्रश्वास करें l
2. पूर्व आकृति में दस बार तीव्रता से श्वास-प्रश्वास करें l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
3.ऊपर आकाश की ओर अपलक देखते हुए 10 बार श्वास-प्रश्वास की क्रिया करें l
4.दृष्टि को सामने शरीर से 5 फुट की दूरी पर रखें l10 बार तीव्रता से श्वास-प्रश्वास करें l
5.श्वास बाहर निकालकर मुँह को कौवे की चोंच के सामान बनाकर श्वास को भरे l पेट फेफड़े, गला एवं कपोलों(गालों) को फुलाकर आंख बंद करें l ठुड्डी को कंठ कूप में लगाएं l मूलबंध लगाकर श्वास को रोके l फिर गर्दन ऊपर कर नाक से श्वास छोड़ें l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
6.हाथों को कमर पर रखे l अंगुलियां पीछे की ओर, अंगूठा आगे की ओर रखें l दृष्टि सामने रहे l 30 डिग्री का कोण बना कर शरीर को स्थिर रखें l दस बार तेजी से श्वास-प्रश्वास करें l 7. छठी क्रिया की तरह अंगुलियों कमर पर रखकर 90 डिग्री तक झुकें l 10 बार तेजी से श्वास-प्रश्वास करें l
8. श्वास छोड़ते हुए छठी क्रिया की तरह शरीर आगे की ओर झुकाएं l श्वास- संयम की स्थिति में पेट को तेजी से भीतर-बाहर संचालित करें l
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
9.श्वास छोड़ते हुए 90 डिग्री के कोण तक शरीर को झुकाएं l इसी अवस्था में श्वास को रोककर पेट को तेजी से भीतर बाहर संचालित करें l
10. दोनों पैरों के बीच डेट फुट का फासला रख कर पैरों को कुर्सी की तरह मोड़े l हथेलियां घुटनों पर स्थापित करें l श्वास को छोड़े l पेट को पीठ की ओर खींच कर उड्डियान करें l
पैर की क्रिया
श्वास लेते हुए पैर के पंजों पर खड़े हो, श्वास छोड़ते हुए एड़ी को जमीन पर रखें l फिर श्वास लेते हुए एड़ी पर खड़े हो, पंजे जमीन से ऊपर रहे l श्वास छोड़ते हुए पंजों को भूमि पर रखें l
मुख्य की क्रिया
1.मुख में श्वास को पूरा भरे जिससे कपोल (गाल) फूल जाए l दो-तीन बार इस क्रिया को दोहराएं l
2.दोनों तरफ से दांतो और जबड़ों को परस्पर सटाकर दबाएं l
3.मुख को खोलें l दाहिने हाथ की 3-3 उंगलियों को दांतो के बीच से भीतर की ओर ले जाए l
आ... आ... आ... आ... की ध्वनि करें l
मेरुदंड की क्रिया
स्थिति-भूमि पर पीठ के बल लेटें l दोनों पैरों को सीधे रखें l हाथों को कंधे के समानांतर सीधे फैलाएं l हथेलिया भूमि का स्पर्श करें l सभी क्रियाओं में यही स्थिति रहेगी l
1.दोनों पैरों के बीच अपने पांव तल की लंबाई जितनी दूरी रखें l श्वास भरते हुए बाएं पैर के अंगूठे को दाई एडी से स्पर्श करें l दाई और करवट ले l गर्दन को बाई ओर घुमाए l श्वास को छोड़ते हुए मूल स्थिति में आ जाए l दूसरी ओर से भी इस क्रिया को दोहराएं
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
2.दाहिने पैर को सीधा ऊपर उठाकर एड़ी को बाएं पैर के अंगूठे और अंगुलियों के बीच स्थापित करें l श्वास भरते हुए दोनों पैरों के बीच को दाहिनी ओर ले जाकर भूमि का स्पर्श करें l दांयी ओर करवट ले l गर्दन बांयी ओर घुमाएं l श्वास छोड़ते हुए मूल स्थिति में आ जाए l दूसरी ओर से भी इस क्रिया को दोहराएं l
3.बाएं पैर के टखने पर दाएं पैर के टखने को स्थापित करे l श्वास भरते हुए दोनों पैरों को बांयी ओर घुमाकर पैर को स्पर्श करायें l शरीर बांयी ओर करवट लेगा l गर्दन को दाहिनी ओर घुमाएं l श्वास छोड़ते हुए मूल स्थिति में आ जाए इस क्रिया को दूसरे पैर से भी दोहराए l
त्रियंक भुजंगासन
भुजंगासन की स्थिति में आएं l कुंभक की अवस्था में सिर और धड़ को दाँयी दिशा में मोड़कर बाएं पैर की एड़ी को देखें इसकी तीन आवृतियां करें l
दूसरी ओर से भी इसी क्रिया को दोहराएं l
दूसरी बार सिर और धड़ को बांयी दिशा में मोड़ कर दाएं पैर की एड़ी को देखें l
.त्रिकोणासन
दोनों पैर फैलाकर सीधे खड़े हो जाए l
श्वास छोड़ते हुए बांयी ओर झुके l
बाँया हाथ नीचे पंजे की ओर ले जाएं l
दांया हाथ कान पर सीधा रहे l
पूरे अभ्यास के दौरान घुटने सीधे रहेंगे l
कुछ क्षण ठहरकर श्वास भरते हुए मूल अवस्था में आ जाएं l
धनुरासन
पेट के बल लेट जाइये l
दोनों घुटनों को मोड़ें l
पैर नितंब पर टिकाए l
दोनों हाथों से पैरों के टखनों को पकड़े l
मुँह बंद रखे l
पैरों को जमीन की ओर लाने की कोशिश करें इससे सीना,घुटने और जंघा तक का भाग ऊपर उठेगा l
सिर्फ नाभि के आसपास का हिस्सा जमीन से सटा रहेगा l
नौकासन
पेट के बल लेट जाएं l
हाथों को मस्तक के पार्श्व के आगे फैलाएं l
श्वास भरकर हाथों और पैरों को तानते हुए ऊपर उठाएं l हाथों के साथ साथ सिर और कंधे भी ऊपर उठेंगे l
केवल पेट का हिस्सा जमीन पर टिका रहेगा l
कुछ देर इस स्थिति में रहकर धीरे धीरे पूर्व स्थिति में आ जाएं l
पद्मासन
पैर फैलाकर बैठें l
दांए पैर को मोड़कर बांयी साथल पर रखें l
बांए पैर को मोड़कर दांयी पिंडली के ऊपर से लाते हुए दांयी साथल पर रखें l
दोनों एड़ियों का पिछला भाग कूल्हे की हड्डी का स्पर्श करेगा l
मेरुदंड एवं गर्दन सीधी रहे l
हाथ की ज्ञानमुद्रा या ब्रह्मामुद्रा बनाएं l
पश्चिमोत्तानासन
पैरों को सामने फैला कर बैठें l मेरुदंड सीधा l
श्वास भरते हुए हाथों को ऊपर ले जाएं l
श्वास छोड़ते हुए नीचे झुकें तथा हाथों से पांव के अंगूठो को पकड़े l
नाक को घुटनों से लगाने का प्रयत्न करें l
सुविधानुसार रुके l श्वास भरते हुए सीधे हो जाएं l
नाक को घुटने से लगाकर ज्यादा देर रुकना हो तो सामान्य श्वास-प्रश्वास करें l
.बद्धपद्मासन
पद्मासन में बैठे l
दाहिने हाथ को पीठ के पीछे से ले जाकर, बांये पार्श्व से निकालते हुए दाहिने पैर के अंगूठे को पकड़े l
बाएं हाथ को पीठ के पीछे से लाकर, दाएं पार्श्व से निकालते हुए बाएं पैर के अंगूठे को पकड़े l
श्वास भरें l भीतर रोकें, आराम से जितना रुक सकते हैं, रूके l श्वास छोड़े, बाहर रोकें, जितना रुक सकते हैं रुके l दृष्टि नासाग्र पर रखें
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आगम असम्मत् कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं |
. ब्रह्मचर्यासन
दोनों घुटनों को मोड़कर पीछे पैरों को नितंब के पार्श्व में स्थापित करें l
नितंब और मलद्वार के पास का भाग भूमि से सटा रहेगा l
हाथों को घुटनों के ऊपर रखे l मूलबंध लगाएं
वीर्य नाड़ी पर संकल्प पूर्वक मन को केंद्रित कर उध्र्वरता की भावना करें l
'वीर्य ओज में परिणि हो' हो यह चिंतन करें l
भुजंगासन
1.पेट के बल लेट जाइए l पैरों के अंगूठे भूमि का स्पष्ट करते हुए परस्पर सटे रहेंगे दोनों हाथों की हथेलियों कंधे से 1 फुट दूर रहेंगी l
2. नाक से श्वास भरते हुए सीने और गर्दन को धीरे-धीरे आधा फुट ऊपर उठाएं l
3. मुख से सर्प की तरह फुफकार करते हुए श्वास छोड़ते हुए पूर्व स्थिति में आ जाए l
4.श्वास को बढ़ते हुए सीने और गर्दन को ऊपर ले जाए l नाभी तक का भाग ऊपर उठाएं गर्दन को जितना पीछे ले जा सकते हैं ले जाएं l आकाश दर्शन करें l श्वास जितनी देर तक रोक सकें,रोके l
5. मुंह से फुफकार करते हुए श्वास छोड़े और गर्दन एवं सीना भूमि की ओर ले जाए l
हाथ सीने से आधा फुट दूर रहे शेष प्रयोग भुजंगासन के पहले प्रकार की तरह करें l
1.पेट के बल लेट जाइए l हाथ सीने व बगल के पास सटाए 2.नाक से श्वास भरते हुए सीने को आधा फुट पर ऊपर उठाए l 3.मुंह से फुफकार करते हुए श्वास छोड़ें l
4.श्वास भरते हुए सीने और गर्दन को ऊपर उठाएं जितना पीछे ले जा सके ले जाएं l छाती तक का भाग ऊपर रहेगा श्वास जितनी देर रोक सके रोके l
5.फुफकार करते हुए मुख से श्वास छोड़े l सीने और मुख की भूमि पर ले आए l
मकरासन
पेट के बल लेट जाइए l
कुहनियों के सहारे सिर और कंधों को उठाएं तथा 20 और जबड़ों के सहारे हथेलियों को टिका दे l
आंखों को बंद करके पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें l
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आगम असम्मत् कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं |
मत्स्यासन
पद्मासन की स्थिति में लेटें l कोहानियों के सहारे शरीर को टिकाते हुए धीरे-धीरे लेटने की मुद्रा में जाएँ l हथेलियों को कंधों के पास स्थापित करें उनके सहारे पीठ और गर्दन को ऊपर उठाएं l पीठ का मध्य भाग भूमि से सटा रहेगा l हाथों को वहां से हटाकर बांये पैर का अंगूठा दाएं हाथ से दाएं पैर का अंगूठा बाएं हाथ से पकड़े l कमर का हिस्सा भूमि से ऊपर रहेगा l आंखें खुली रहेगी l
.महावीरासन
दोनों पैरों के बीच दो फुट का फासला रख कर खड़े हो जाए l
हाथों को पीठ के पीछे ले जाकर कोहनियों के पास से हथेलियों से कसकर बांधे l
बांये पैर को एक फुट और आगे बढ़ाए l
श्वास छोड़ते हुए थोड़ा बांयी ओर नीचे झुकें तथा बांये पैर के पंजे को ललाट तक छुए l
कुछ क्षण तक श्वास संयम करें l
धीरे धीरे श्वास भरते हुए सीधे हो जाए l
इसी क्रिया को दाँयी ओर से भी करें l
योग मुद्रा
पद्मासन में सीधे बैठे l
बाएं हाथ की मुट्ठी बांधकर शक्ति केंद्र (रीढ़ की हड्डी के निचले सिरे) पर स्थापित करें l
दाएं हाथ से बाएं हाथ की कलाई पकड़े l
श्वास छोड़ते हुए आगे झुके तथा ललाट से भूमि का स्पर्श करें l दोनों हाथों को उसी मुद्रा में सीधा ऊपर उठाएं l
कुछ देर इसी अवस्था में रहे श्वास-प्रश्वास सहज l
श्वास भरते हुए शरीर को ऊपर उठाएं l
दाएं हाथ को शक्ति केंद्र पर स्थापित करें
कलाई की स्थिति बदल कर इसी क्रिया को दोहराएं l
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आगम असम्मत् कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं |
वज्रासन
घुटनों के बल बैठें l
पंजो को पीछे फैलाकर एक पैर के अंगूठे को दूसरे पैर को अंगूठे पर रखें l
घुटने पास-पास तथा एड़िया खुली हुई रहे l
नितंबों को पंजों के बीच रखें
एड़िया कूल्हों की ओर रहेंगी l हथेलियों को घुटनों पर रखें l
शलभासन
पेट के बल लेट जाइए l
दोनों पैर सीधे रखे l हथेलियां शरीर के बगल में जमीन पर रखें l
श्वास भरते हुए एक पैर को धीरे-धीरे ऊपर उठाएं l
श्वास छोड़ते हुए उसे नीचे ले आए l
श्वास भरते हुए दूसरे पैर को धीरे-धीरे ऊपर उठाए l
श्वास को छोड़ते हुए उसे नीचे ले लाएं l
दोनों पैरों को श्वास भरते हुए उठाएं l
श्वास छोड़ते हुए पैरों को धीरे-धीरे नीचे लाएं l
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आगम असम्मत् कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं |
शशांकासन
वज्रासन की स्थिति में पंजों के बल पर बैठे l
श्वास भरते हुए हाथों को आकाश की ओर उठाएं l हथेलियां परस्पर सटी हुई रहेंगी l
श्वास को छोड़ते हुए नीचे झुके, हाथ एवं ललाट को भूमि से लगाए l
भुजाएं कानो के पार्श्व से सटकर जाते हुए सिर के आगे भूमि पर स्पर्श करती रहे l बसुविधानुसार कुछ देर रुके l
श्वास भरते हुए धीरे-धीरे ऊपर उठे l
श्वास छोड़ते हुए हाथों को पूर्व स्थिति में लाएं l
दीर्घ अवधि तक शशांकासन में रुकना हो तो श्वास की गति सहज रहेगी l
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वज्रासन की स्थिति में पंजों के बल पर बैठे l
श्वास भरते हुए हाथों को आकाश की ओर उठाएं l हथेलियां परस्पर सटी हुई रहेंगी l
श्वास को छोड़ते हुए नीचे झुके, हाथ एवं ललाट को भूमि से लगाए l
भुजाएं कानो के पार्श्व से सटकर जाते हुए सिर के आगे भूमि पर स्पर्श करती रहे l बसुविधानुसार कुछ देर रुके l
श्वास भरते हुए धीरे-धीरे ऊपर उठे l
श्वास छोड़ते हुए हाथों को पूर्व स्थिति में लाएं l
दीर्घ अवधि तक शशांकासन में रुकना हो तो श्वास की गति सहज रहेगी l
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
7. ताड़ासन
भूमि पर सीधे खड़े हो जाएं l
पंजे एड़ियां मिली हुई, हाथ साथल से सटे हुए l
दृष्टि सामने रहेगी l श्वास भरते हुए दोनों हाथों को ऊपर मस्तक की ओर ले जाएं l पंजों के बल खड़े रहे श्वास को छोड़ते हुए हाथों को नीचे लाएं l एड़ियां जमीन से लगाएं l
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
6.गोदुहासन
पंजों के बल बैठे l इस स्थिति में घुटने जमीन की ओर झुके रहेंगे l
दोनों घुटनों के मध्य आधे फुट का फैसला रखें l गाय को दुहने की मुद्रा ग्रहण करें इस प्रकार रखें मानव दोनों घुटनों के बीच दूध की बाल्टी धामी हुई हो l हाथों की मुट्ठियां बांधकर घुटनों के ऊपर रखे l
अंगूठे अंगुलियों के भीतर रहेंगे l
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
4. उदराकर्षण
हाथों को घुटनों पर रखते हुए मोड़ें, पंजों के बल उकड़ू बैठे।जितना संभव हो धड़ को दाहिनी ओर मोड़ते हुए पीछे की तरफ देखें, साथ ही साथ बाएं घुटने को जमीन की ओर झूकाएं।
हथेलियां घूटनों पर रहें।
धीरे धीरे प्रारंभिक स्थिति में लौट आए।
यही क्रिया शरीर को विपरीत दिशा में मोड़ कर करें।
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
3. उत्तानपादासन
जमीन पर पीठ के बल लेट जाएं।
दोनों पैर परस्पर सटे रहेंगे। हथेलियां भूमि पर टिकाए।
श्वास भरते हुए दाएं पैर को धीरे- धीरे आकाश की ओर उठाएं। भूमि से 30 डिग्री कोण तक ले जाकर श्वास-संयम करें। सुविधानुसार रुके।
श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे पैर नीचे की ओर ले जाएं।
दूसरी बार बायें पैर से तथा तीसरी बार दोनों पैरों से एक साथ इसी तरह क्रिया को दोहराएं। पुनः इसी क्रिया को 60 डिग्री कोण तक क्रमशः दायें बायें ओर दोनों पैरों से करें।
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
2. इष्टवंदनासन
नमस्कार की मुद्रा में खड़े रहें l पंजे परस्पर सटे रहें l
हाथों को कंधों के समानांतर फैलाएं l पैरों को बिना मोड़े पीछे की ओर झुके l गर्दन पीछे मोड़ें l दृष्टि आकाश में स्थिर रहे l श्वास भरें l
दोनों हाथों को ऊपर ले जाकर परस्पर सटाएं l शरीर को ऊपर की ओर ताने l श्वास छोड़ते हुए आगे l झुके, घुटनों पर मस्तक से स्पर्श करें l हथेलियों को पांव के पास रखें l
दाएं पांव को पीछे सीधा ले जाएं l बाएं पांव को मोड़ते हुए मस्तक से भूमि पर स्पर्श करें l श्वास छोड़े l
श्वास भरते हुए गर्दन को पीछे मोड़ें l दृष्टि आकाश की ओर रहेगी l बाएं पैर को भी पीछे ले जाएं l श्वास छोड़े l पैरों के पंजों पर शरीर को समरेखा में रखें l हथेलियां पूर्ववत रहेंगी l दृष्टि सामने l सहज श्वास प्रश्वास l
घुटना, सीना और ललाट भूमि को स्पर्श करें l पेट व नितंब उठे रहेंगे दृष्टि आकाश की ओर रहे l
श्वास छोड़ते हुए शरीर को ऊपर उठाएं l हथेलियां एवं पैर के पंजे जमीन पर टिके रहेंगे l सिर दोनों हाथों के मध्य थोड़ा झुका रहेगा l गर्दन को मोड़कर ठुड्डी को कंठ कूप से लगाएं, दृष्टि नाभि पर केंद्रित करें l
दाहिने पांव को मोड़कर पंजे को हथेलियों के मध्य स्थापित करें l बाया पैर पीछे फैला रहे l श्वास छोड़ते हुए मस्तक से भूमि को छूएं l फिर श्वास छोड़ते हुए सिर को ऊपर उठाएं l दृष्टि आकाश की ओर रहे l
बायां पांव दाएं पैर के पास ले आए l हथेलियां भूमि पर टिकी रहेंगी दोनों पैर सीधे l श्वास छोड़ते हुए नाक से घुटनों का स्पर्श करें l
धीरे-धीरे श्वास भरते हुए मूल स्थिति में आ जाए l
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
1. अर्धमत्स्येंद्रासन बैठकर दोनों पैर फैला दें l
बाएं पैर को मोड़कर एडी को गुदा के पास रिक्त-स्थान पर स्थापित करें l यहां एडी का स्पर्श बना रहे l
दाहिने पैर को बाएं पैर के ऊपर से ले जाकर बाएं पैर के मुड़े हुए घुटने के पास भूमि पर पंजे को स्थापित करें l
सीधे बैठी हुई स्थिति में इसी मुद्रा में दाहिने घुटने के ऊपर पैर को स्थापित कर हाथ से इस पंजे को पकड़े l
दूसरे हाथ को पीठ के पीछे से ले ले जाकर नाभि तक लाएं l हथेली का पृष्ठ भाग पेट को छुता रहे l नाखूनों से नाभि का स्पर्श करें l
कंधे और गर्दन को पृष्ठ रज्जू की ओर घुमाएं l दृष्टि कोहनी पर रहे l
कुछ समय इस अवस्था में रहे l पैरों को बदल कर दूसरी ओर से यही क्रिया करें l
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
22.घृणा
आसन भुजंगासन, धनुरासन, शशांकासन, कायोत्सर्ग l
प्राणायाम चंद्रभेदी,अनुलोम-विलोम। 5 मिनट
प्रेक्षा आनंद पर हरे रंग का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा अशौच की अनुप्रेक्षा
जप जहा अन्तो तहा बाहि, जहा बाहिं तहा अन्तो' 10 मिनट
मुद्रा शून्य मुद्रा
23.चिड़चिड़ापन
आसन शशांकासन, मेरुदंड की क्रियाएं,कायोत्सर्ग l प्राणायाम शीतली, अनुलोम-विलोम, नाड़ी- शोधन l 5 मिनट
प्रेक्षा ज्योति केंद्र पर श्वेत रंग का ध्यान, आनंद केंद्र पर हरे रंग का ध्यान l 10 मिनट अनुप्रेक्षा मृदुता की अनुप्रेक्षा 15 मिनट
जप हूँ ह्रदय पर ध्यान 10 मिनट
तप भोजन में विटामिन ए और खनिज लोह के प्रयोग से स्वभाव में परिवर्तन घटित होता है l
मुद्रा नमस्कार मुद्रा 24.अमंगल भाव
आसन सुखासन, पद्मासन प्राणायाम दीर्घश्वास l 5 मिनट
प्रेक्षा तैजस केंद्र विशुद्धि केंद्र 10 मिनट
अनुप्रेक्षा अभय की अनुप्रेक्षा 15 मिनट
जप अरहंता मंगलमं 10 मिनट
मुद्रा नमस्कार मुद्रा 25.मानसिक असंतुलन आसन उत्तानपादासन, पवनमुक्तासन, पद्मासन, योग मुद्रा और योग क्रियाएं प्राणायाम अनुलोम- विलोम,भ्रामरी l 5 मिनट
प्रेक्षा समवृत्तिश्वास प्रेक्षा श्वास के साथ 10 मिनट
अनुप्रेक्षा मानसिक संतुलन की अनुप्रेक्षा 15 मिनट
जप 'धारेज्जा पियमप्पियं' 10 मिनट
मुद्रा नमस्कार मुद्रा
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आगम असम्मत् कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं |
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
परिशिष्ट
1.आसन
2. क्रिया
3.प्राणायाम
4.बंध
5.मुद्रा
1.आसन
1.अर्धमत्स्येंद्रासन
2.इष्टवंदनासन
3.उत्तानपादासन
4.उदराकर्षणासन
5.उष्ट्रासन
6. गोदुहासन
7.ताड़ासन
8.त्रियंक् भुजंगासन 9.त्रिकोणासन
10.धनुरासन
11.नौकासन
12.पद्मासन
13.पवनमुक्तासन 14.पश्चिमोत्तानासन
15.बद्धपद्मासन
16.ब्रह्मचर्यासन
17.भुजंगासन
18.मकरासन
19.मत्स्यासन
20.महावीरासन
21.योग मुद्रा
22.वज्रासन
23.विपरीत करणी मुद्रा
24.शलभासन
25.शंशाकासन
26.सर्वांगासन
27.सिंहासन
28.सिद्धासन
29.सुखासन
30.सुप्त ताड़ासन
31.सुप्त वज्रासन
32.ह्रदयस्तंभनासन
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आगम असम्मत् कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कड…
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
20.संग्रह- मनोवृति
आसन मत्स्येन्द्रासन, सिद्धासन, पद्मासन,वज्रासन प्राणायाम लयबद्ध दीर्घश्वास,लयबद्ध अनुलोम- विलोम
प्रेक्षा अंतर्यात्रा,आनंद केंद्र दर्शन केंद्र 10 मिनट
अनुप्रेक्षा मुक्ति की अनुप्रेक्षा 15 मिनट
जप लोभं संतोसओ जिणे
10 मिनट
मुद्रा नमस्कार मुद्रा l
21.ईर्ष्या
आसन शशांकासन, पेट की क्रियाएँ, योग मुद्रा कायोत्सर्ग l प्राणायाम शीतली,चंद्रभेदी 5 मिनट
प्रेक्षा आनंद केंद्र पर हरे रंग का ध्यान 10 मिनट
अनुप्रेक्षा प्रमोद भाव की अनुप्रेक्षा 15 मिनट
जप 'आयतुले पयासु' 10 मिनट
मुद्रा वरुण मुद्रा
22.घृणा
आसन भुजंगासन, धनुरासन,शंशाकासन,
कायोत्सर्ग
प्राणायाम चंद्रभेदी, अनुलोम विलोम 5 मिनट
प्रेक्षा आनंद केंद्र पर हरे रंग का ध्यान 10 मिनट
अनुप्रेक्षा अशौच की अनुप्रेक्षा 15 मिनट
जप 'जहा अन्तो तहा बाहि, जहा बाहिं तहा अन्तो'
10 मिनट
मुद्रा शून्य मुद्रा
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
17.अविनय
आसन भुजंगासन, शशांकासन,ईष्टवंदन, मेरुदंड की क्रियाएं l
प्राणायाम अनुलोम-विलोम 5 मिनट
प्रेक्षा अंतर्यात्रा, विशुद्धि केंद्र पर ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा मृदुता की अनुप्रेक्षा 15 मिनट
जप विणुओ धमस्स मूलं l मुद्रा नमस्कार मुद्रा l
18.असामंजस्य आसन योगमुद्रा, पश्चिमोत्तानासन
प्राणायाम नाड़ी शोधन, लयबद्ध दीर्घश्वास 5 मिनट
प्रेक्षा आनंद केंद्र पर हरे रंग का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा सहअस्तित्व और सामंजस्य की अनुप्रेक्षा
15 मिनट
जप परस्परोपग्रहो जीवानाम 10 मिनट
मुद्रा नमस्कार मुद्रा
19.प्रवंचना
आसन मेरुदंड की क्रियाएं। 5 मिनट
प्राणायाम अनुलोम-विलोम
5 मिनट
प्रेक्षा प्राण केंद्र का ध्यान 10 मिनट
अनुप्रेक्षा ऋजुता की अनुप्रेक्षा 15 मिनट
जप 'सोही उज्जुयभूयस्स' 10 मिनट
मुद्रा सुरभि मुद्रा
बंध जालंधर बंध
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14.अधीरता
आसन इष्टवंदन, गोद हासन, सिद्धासन l
प्राणायाम नाड़ी-शोधन, अनुलोम-विलोम l 5 मिनट प्रेक्षा प्राण केंद्र पर अरुण का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा धैर्य की अनुप्रेक्षा l 15 मिनट
जप 'निः शेषम' 10 मिनट मुद्रा पंचतत्व मुद्रा, सुरभि मुद्रा
15.दुः स्वप्न
आसन सुप्तवज्रासन, मत्स्यासन, विपरीतकरणी, नौकासन, हृदयस्तंभनासन l प्राणायाम दीर्घ श्वास, उज्जाई, सुप्तभस्त्रिका l 5 मिनट
प्रेक्षा दर्शन केंद्र पर हरे रंग का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा संकल्प सोने से पहले चार लोगग्स का ध्यान,सोते समय योग निद्रा का प्रयोग
जप 'चंदेसु निम्मलयरा' 10 मिनट
मुद्रा नमस्कार मुद्रा l
16.चिंता
आसन शशांकासन, योग मुद्रा,अर्धमत्स्येंद्रासन, कायोत्सर्ग
प्राणायाम श्वास नाक से ले, मुंह से रेचन करें, चंद्रभेदी 5 मिनट
प्रेक्षा विशुद्धि केंद्र पर नीले रंग का ध्यान 10 मिनट अनुप्रेक्षा चिंता के परिणामों का अनुचिंतन l 15 मिनट
जप 'ॐ ही श्रीं भगवते पार्श्वदेवाय हर-हर स्वाहा' 10 मिनट
मुद्रा आकाश मुद्रा
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
11.घुटन
आसन यौगिक क्रियाएं, भुजंगासन, मत्स्यासन, कायोत्सर्ग l
प्राणायाम सूक्ष्म-भस्त्रिका, अनुलोम-विलोम l 5 मिनट प्रेक्षा शरीर प्रेक्षा 10 मिनट अनुप्रेक्षा एकत्व अनुप्रेक्षा, प्रसन्नता का संकल्प और सुझाव 'मैं हर स्थिति में प्रसन्न रहूंगा l' 15 मिनट
जप 'अप्पणा सच्चमेसेज्जा,मेत्तिं भूएसु कप्पए' 10 मिनट
मुद्रा वरुण मुद्रा, प्राण मुद्रा 12.क्रूरता
आसन पश्चिमोत्तानासन, शशांकासन, योगमुद्रा l प्राणायाम शीतली और चंद्रभेदी l 5 मिनट
प्रेक्षा अंतर्यात्रा, ज्योति केंद्र पर सफेद रंग का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा करुणा की अनुप्रेक्षा l 5 मिनट
जप 'तुमंसि,नाम,सच्चेव,हंतव्वं ति मनसि'
मुद्रा वरुण मुद्रा
13. असहिष्णुता
आसन मेरुदंड की क्रियाएं, शशांकासन l
प्राणायाम शीतली, अनुलोम-विलोम चंद्रभेदी l
5 मिनट
प्रेक्षा विशुद्धि केंद्र पर नीले रंग का ध्यान 10 मिनट
अनुप्रेक्षा सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा 15 मिनट
जप 'धारेज्जा पियमप्पियं' 10 मिनट
मुद्रा वरुण मुद्रा, प्राण मुद्रा
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
8.कामवृति आसन पवनमुक्तासन, सिद्धासन, बद्धपद्मासन, त्रिबंध, ब्रह्मचर्यासन,शक्तिचालनी मुद्रा l प्राणायाम अनुलोम-विलोम 5 मिनट प्रेक्षा अंतर्यात्रा, आनंद केंद्र और ब्रह्म केंद्र पर ध्यान
कंठ पर नीले रंग का ध्यान। 10 मिनट
अनुप्रेक्षा प्रतिसलींनता की अनुप्रेक्षा, ब्रह्मचर्य के गुणों तथा अब्रह्मचर्य के दोषों का चिंतन l 15 मिनट
जप 'असासया भोगपिवास जंतुणाे' 10 मिनट
स्वाध्याय सद् साहित्यि का नियमित स्वाध्याय, वासना को उदिप्त वाले दृश्य, साहित्य आदि का वर्जन
विशेष अपान शुद्धि का ध्यान रखा जाए l अधिक मात्रा में भोजन और गरिष्ठ वस्तुएं खान अपान को दूषित करना है l
मुद्रा वरुण मुद्रा,वायु मुद्रा l
9. निराशा
आसन यौगिक क्रियाएं, शशांकासन, सर्वांगासन, मत्स्यासन,कायोत्सर्ग l
प्राणायाम अनुलोम- विलोम, उज्जायी l 5 मिनट
प्रेक्षा तैजस केंद्र पर अरुण का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा शक्ति, आत्म-विश्वास की अनुप्रेक्षा l 15 मिनट
जप 'अनंतवीर्येभ्यो नमः' 10 मिनट
मुद्रा प्राण मुद्रा l
10. वैमनस्य
आसन शशांकासन, योग मुद्रा, पद्मासन, भुजंगासन, शलभासन
प्राणायाम शीतली 5 मिनट
प्रेक्षा शांति केंद्र पर श्वेत रंग का ध्यान 10 मिनट
अनुप्रेक्षा मैत्री की अनुप्रेक्षा 15 मिनट
जप ॐ ह्वींश्रीं..... साधय साधय अ सि आ उ सा नमः 31 दिन तक प्रतिदिन। 10 मिनट
(रिक्त स्थान में जिस व्यक्ति के साथ वैमनस्य हो उसका नाम लिया जाए)
मुद्रा पृथ्वी मुद्रा, वरुण मुद्रा
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
5.आत्म-ख्यापन आसन मेरुदंड की क्रिया प्राणायाम अनुलोम- विलोम 5 मिनट
प्रेक्षा आनंद केंद्र पर हरे रंग का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा आत्मनिरीक्षण की अनुप्रेक्षा
जप 'णो हीणे णो अइरिते' 10 मिनट
विशेष वाणी संयम l
मुद्रा आकाश मुद्रा
6.आलस्य
आसन प्रातः उठते ही नमस्कार मुद्रा, बद्ध पद्मासन, भुजंगासन, मत्स्यासन,इष्ट वंदन
प्राणायाम उज्जायी, सूक्ष्म भस्त्रिका l 5 मिनट
प्रेक्षा दर्शन केंद्र पर अरुण का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा स्वावलंबन की अनुप्रेक्षा l 5 मिनट
जप 'उटिठए णो पमायए' 10 मिनट
विशेष भोजन की मात्रा में कमी, भैंस के दही का वर्जन l मुद्रा वायु मुद्रा,प्राण मुद्रा l
7.परदोष दर्शन से मुक्ति आसन योगमुद्रा,पद्मासन, मेरुदंड की क्रिया l
प्राणायाम लयबद्ध दीर्घ श्वास 5 मिनट
प्रेक्षा आनंद केंद्र पर हरे रंग का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा प्रमोद भाव की अनुप्रेक्षा 15 मिनट
जप खलः सर्षपमात्राणि,परछिद्राणि,
पश्यति
आत्मनो बिल्वमात्राणि पश्यनपि न पश्यति l 10 मिनट
मुद्रा अपान मुद्रा, प्राण मुद्रा
आगे का अंश अगली पोस्टमें
आगम असम्मत् कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं |
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
2.क्रोध
आसन शशांकासन, योग मुद्रा, कायोत्सर्ग l
प्राणायाम खेचरीमुद्रा पूर्वक दीर्घश्वास, केवल कुंभक l 5 मिनट
प्रेक्षा ज्योति केंद्र और पूरे ललाट पर सफेद रंग का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा सहिष्णुता और धैर्य की अनुप्रेक्षा l 15 मिनट
जप 'ॐ शांते प्रशांते सर्वक्रोधोपशमनी स्वाहा'
(32 बार बोल कर हथेली को मुख पर फेरे )
मुद्रा खेचरी मुद्रा लगाकर मस्तिष्क को सुझाव दें 'हर परिस्थिति में शांत रहूंगा l'
मुद्रा ज्ञान मुद्रा,मृगी,हंसी मुद्रा l
3.आसक्ति
आसन सर्वांगासन, मत्स्यासन, शशांकासन, कायोत्सर्ग l
प्राणायाम खेचरी मुद्रा पूर्वक दीर्घश्वास l 5 मिनट
प्रेक्षा शरीर प्रेक्षा का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा अनित्य और अनासक्ति की अनुप्रेक्षा 15 मिनट
जप एगो मे सासओ अप्पा, नाणदंसणसंजुओ l
सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोगलक्खाणा l 10 मिनट मुद्रा पंचतत्व मुद्रा l
4.भय
आसन महावीरासन, पद्मासन, शशांकासन,कायोत्सर्ग
प्राणायाम दीर्घश्वास, केवल कुंभक l 5 मिनट
प्रेक्षा आनंद केंद्र पर गुलाबी रंग का ध्यान l 15 मिनट अनुप्रेक्षा अभय की अनुप्रेक्षा l 15 मिनट
जप णमो अभयदयाणं 10 मिनट
मुद्रा अभय मुद्रा
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आगम असम्मत् कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं |
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
1. तनाव
शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तनाव शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को नष्ट करते हैं l इन आंतरिक तनावों के अतिरिक्त कुछ तनाव बाह्य तनाव से भी उत्पन्न होते हैं, 1.भौतिक समस्या से उत्पन्न तनाव
2.आर्थिक समस्या से उत्पन्न तनाव
तनाव के हेत
1. एड्रीनलाइन का अधिक स्त्राव
2.थायरोक्सिन का अधिक स्त्राव
3.श्वास में ऑक्सीजन की कमी 4.सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम का अधिक सक्रिय होना
5.प्रवृत्ति की अधिकता
6.संवेग की अधिकता
तनाव मुक्ति के प्रयोग
आसन ताड़ासन, नौकासन सुप्त कायोत्सर्ग 20 मिनट
परिवर्तन मुद्रा, कायोत्सर्ग, कंठ का कायोत्सर्ग।
प्राणायाम दीर्घश्वास, केवल रेचन,सूक्ष्म भस्त्रिका, महाप्राण ध्वनि l 5 मिनट
प्रेक्षा समवर्ति श्वास प्रेक्षा,संपूर्ण शरीर पर श्वेत रंग का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा मैत्री और सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा l 15 मिनट
जप 'ॐ ह्वीं भगवते पार्श्वनाथाय हर हर स्वाहा' 10 मिनट
मुद्रा ज्ञान मुद्रा,सुरभि मुद्रा,सूर्य मुद्रा,सर्वेन्द्रिय संयम मुद्रा दस मिनट
रोग प्रतिरोधक क्षमता आसन भुजंगासन, मत्स्यासन, शशांकासन l प्राणायाम सूर्यभेदन, कपालभाती,चंद्रभेदी,उज्जायी, समवर्ती l
प्रेक्षा तेजस केंद्र प्रेक्षा, विशुद्धि केंद्र प्रेक्षा l
अनुप्रेक्षा प्राण की अनुप्रेक्षा जप ह्वां,ह्णीं। 10 मिनट मुद्रा प्राण मुद्रा, अपान मुद्रा
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आगम असम्मत् कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं |
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
29.बवासीर आसन सर्वांगासन, इष्ट वंदन, अश्विनीमुद्रा, मूलबंध, मत्स्यासन l
प्राणायाम नाड़ी-शोधन, भस्त्रिका l 5 मिनट
प्रेक्षा आंतों की प्रेक्षा 10 मिनट
अनुप्रेक्षा बड़ी आंत को सुझाव- 'मेरी बड़ी आंत सक्रिय हो रही है l' 15 मिनट
जप ' हूँ ' 10 मिनट
तप गरिष्ठ पदार्थ, मिर्च मसाले और तले हुए पदार्थों का वर्जन l
मुद्रा शंख मुद्रा l
2.मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य
1.तनाव
2.क्रोध
3.आसक्ति
4.भय
5.आत्मख्यापन
6.आलस्य
7.परदोष दर्शन
8.कामवृति
9.निराशा
10.वैमनस्य
11.घुटन
12.क्रूरता
13.असहिष्णुता
14.अधीरता
15.दुःस्वप्न
16.चिंता
17.अविनय
18.असामंजस्य
19.प्रवंचना
20.संग्रह मनोवृत्ति
21.ईर्ष्या
22.घृणा
23.चिड़चिड़ापन
24.अमंगल भावना
25.मानसिक असंतुलन
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आगम असम्मत् कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं |
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
27. हर्निया
आसन उत्तानपादासन, सर्वांगासन, वज्रासन, पश्चिमोत्तानासन l
प्राणायाम बिना कुंभक के अनुलोम-विलोम 5 मिनट
प्रेक्षा आंतों की प्रेक्षा 10 मिनट
अनुप्रेक्षा हर्निया के स्वस्थ होने का सुझाव- 'मेरी आंत अपने स्थान पर स्थित हो रही है l चमड़ी का छिद्र सिकुड़ रहा है l' 15 मिनट
जप 'ह्वां' 10 मिनट
तप गरिष्ठ और तले पदार्थों का वर्जन l
मुद्रा वायु मुद्रा,प्राण मुद्रा,अपान मुद्रा
28.साइटिका आसन उत्तानपादासन,पवनमुक्तासन शलभासन,भुजंगासन, मत्स्यासन,बद्ध पद्मासन, सुप्त वज्रासन l
प्राणायाम दीर्घश्वास,अनुलोम-विलोम, नाड़ी-शोधन
प्रेक्षा कटि भाग से लेकर पूरे पैर की प्रेक्षा। 10 मिनट
अनुप्रेक्षा साइटिका नाड़ी की स्वस्थता का सुझाव-मेरी साइटिका की नाड़ी स्वस्थ हो रही है l। 10 मिनट
जप कटि से अंगुष्ठ तक अर्हं का न्यास l 10 मिनट
तप खट्टे पदार्थ और मिठाई का वर्जन l
मुद्रा वायु मुद्रा, प्राण मुद्रा
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आगम असम्मत् कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं |
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
25.अस्वास्थ्य निवारण आसन प्रौढ़ व्यक्ति के लिए यौगिक क्रियाएं, मेरुदंड की क्रियाएं, पेट और श्वास की क्रियाएं, बदलते क्रम में तीनों में से एक करें l
प्राणायाम प्रौढ़ व्यक्ति के लिए दीर्घश्वास, अनुलोम-विलोम उज्जायी l
आसन युवा व्यक्ति के लिए उत्तानपादासन, पवनमुक्तासन, योगमुद्रा, पश्चिमोत्तानासन, अर्ध मत्स्येन्द्रासन, सर्वांगासन, मत्स्यासन, हलासन, भुजंगासन,इष्टवन्दन, कायोत्सर्ग प्राणायाम युवा व्यक्ति के लिए दीर्घश्वास, अनुलोम- विलोम, भस्त्रिका, केवल कुंभक प्रेक्षा प्रेक्षाध्यान 30 मिनट अनुप्रेक्षा स्वास्थ्य,अनित्य, एकत्व और अभय 15 मिनट जप ह्वां,ह्वीं,हूं,ह्नौं,हः 10 मिनट
तप तामसिक और असंतुलित भोजन का वर्जन मुद्रा पृथ्वी मुद्रा, प्राण मुद्रा
26.मधुमेह
आसन श्वास और पेट की दस क्रियाएं, उत्तानपादासन, इष्ट वंदन, अर्धमत्स्येंन्द्रासन,तिर्यंग भुजंगासन, मत्स्यासन कटि आसन l
प्राणायाम नाड़ी शोधन, अनुलोम-विलोम सूर्यभेदी l
5 मिनट
प्रेक्षा अग्नाशय (पैंक्रियाज) की प्रेक्षा l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा अग्नाशय की स्वस्थता का सुझाव मेरा अग्नाशय स्वस्थ हो रहा है l। 15 मिनट
जप ॐ णमो लोए सव्व साहूणं 10 मिनट
तप चीनी और चीनी से बने पदार्थों का वर्जन l आलू, चावल और स्टार्च बनाने वाले पदार्थों का वर्जन l मीठेफलों का वर्जन l
मुद्रा प्राण मुद्रा,अपान मुद्रा l
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
23.गर्दन का दर्द
आसन गर्दन की क्रियाएं, भुजंगासन, शलभासन, पश्चिमोत्तानासन, उष्ट्रासन l प्राणायाम सूर्यभेदी, व दीर्घ रेचन का अभ्यास
प्रेक्षा गर्दन तथा उसमें होने वाली वेदना की प्रेक्षा l। 10 मिनट
अनुप्रेक्षा गर्दन की स्वस्थता का सुझाव- 'मेरी गर्दन स्वस्थ हो रही है l 15 मिनट
जप 'ह्याँ' 10 मिनट
तप चीनी और चिकनाई का वर्जन
मुद्रा वायु मुद्रा, नमस्कार मुद्रा l
24. पायरिया और मसूढ़े आसन योगमुद्रा, यौगिक क्रिया, सिंहासन, शंशाकासन,सुप्त वज्रासन, सर्वांगासन l
प्राणायाम नाड़ी शोधन, शीतकारी, शीतली(दस-दस आवृति) l 10 मिनट
प्रेक्षा दांत और मसूढ़ो की प्रेक्षा l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा दांत और मसूढ़ो की स्वस्थता का सुझाव- 'मेरे दांत और मसूढ़े स्वस्थ हो रहे हैं l' 10 मिनट
जप 'लृ लृ' 10 मिनट
तप चीनी, चीनी से बने पदार्थों का वर्जन
मुद्रा वरुण मुद्रा, नमस्कार मुद्रा l
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
20.नाड़ी तंत्र दौर्बल्य आसन यौगिक क्रियाएं, सुप्त वज्रासन और वज्रासन में मूलबंध l
प्राणायाम प्रत्येक अवयव पर ध्यान केंद्रित कर मूलबंध के साथ सूक्ष्म भस्त्रिका ,नासामुख- प्राणायाम (नाक से पूरक मुख से रेचन) 5 मिनट
प्रेक्षा कायोत्सर्ग में पीले रंग के प्रवाह की अवधारणा करते हुए पूरे शरीर की प्रेक्षा करना l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा नाड़ी तंत्र की स्वस्थता का सुझाव 'मेरी नाड़ी तंत्र शक्तिशाली हो रहा है l' 15 मिनट
जप 'ॐ हंसः' 10 मिनट तप मौन, कोलाहल के प्रदूषण से बचाव
मुद्रा प्राण मुद्रा, ज्ञान मुद्रा 22.यकृत दोष
आसन
पश्चिमोत्तानासन, त्रिकोणासन मत्स्यासन, योग मुद्रा, दक्षिण पार्श्वशयन l
प्राणायाम सूक्ष्म भस्त्रिका,दीर्घ श्वास l 5 मिनट प्रेक्षा यकृत पर पीले रंग का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा यकृत की स्वस्थता का सुझाव 'मेरा यकृत स्वस्थ हो रहा है l' 15 मिनट
जप 'हूँ' 10 मिनट
तप गरिष्ठ, मावा, मैदा और तले हुए पदार्थों वर्जन
मुद्रा सूर्य मुद्रा,शंख मुद्रा l
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19. श्वास रोग
आसन पश्चिमोत्तानासन, भुजंगासन, मत्स्यासन, हृदय स्तंभासन, नौकासन, सीने की क्रिया, सुप्त वज्रासन, इष्ट वंदन l
प्राणायाम सूर्यभेदी, उज्जाई, अनुलोम-विलोम, नाड़ी- शोधन,सूक्ष्म भस्त्रिका (कुंभक ना करें)
प्रेक्षा फुफ्फुस पर नारंगी रंग का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा श्वास नली और फुफ्फुस की स्वस्थता का सुझाव- 'मेरी श्वास नली और फेफड़े स्वस्थ हो रहे हैं l 15 मिनट
जप 'ह्नीं'
तप शीतल पदार्थों का वर्जन l
मुद्रा वायु मुद्रा, प्राण मुद्रा l
20.स्मृति दौर्बल्य
आसन योग मुद्रा, सर्वांगासन,मत्स्यासन,
कायोत्सर्ग,जालंधर बंध l
प्राणायाम अनुलोम- विलोम। 5 मिनट
प्रेक्षा ध्यान केंद्र पर पीले रंग का ध्यान l 20 मिनट
अनुप्रेक्षा मस्तक पर ध्यान केंद्रित कर सुझाव 'मेरी स्मरण शक्ति विकसित हो रही है l' 15 मिनट
जप 'ॐ नमो नाणस्स' अथवा 'ॐ ऐं ॐ नमः l'
20 मिनट
तप रोग और अपच की स्थिति में लंघन अथवा उपवास l
मुद्रा ज्ञान मुद्रा नमस्कार मुद्रा l
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17.अम्लता
आसन कायोत्सर्ग, उत्तानपादासन, भोजन के बाद वज्रासन l
प्राणायाम शीतली, महाप्राण ध्वनि, भ्रामरी l
प्रेक्षा संपूर्ण शरीर पर श्वेत रंग का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा आमाशय की स्वस्थता का सुझाव मेरी अम्लता संतुलित हो रही है l 15 मिनट
जप 'वं' 10 मिनट
तप चाय, चीनी, अम्लीय और तले पदार्थों का वर्जन l
मुद्रा अपान मुद्रा
18.पैर व घुटने का दर्द
आसन पवनमुक्तासन, पश्चिमोत्तानासन,पैर की यौगिक क्रिया-13 वीं
प्राणायाम घुटने पर ध्यान केंद्रित कर सुक्ष्म भस्त्रिका, दीर्घ श्वास अथवा प्राण संचार का प्रयोग l
प्रेक्षा दर्द के स्थान की प्रेक्षा।
10 मिनट
अनुप्रेक्षा पैर और घुटने की स्वस्थता का सुझाव मेरे- 'पैर और घुटने स्वस्थ हो रहे हैं l '
15 मिनट
जप 'लां लां लां लां ' का दीर्घ उच्चारण फुफ्फुस पर l
10 मिनट
तप चीनी,मिठाई और खट्टे पदार्थों का वर्जन l
मुद्रा वायु मुद्रा, अपान मुद्रा
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15.अनिद्रा
आसन ताड़ासन, सर्वांगासन, मत्स्यासन, पश्चिमोत्तान आसन कायोत्सर्ग l प्राणायाम उज्जाई, श्वास-प्रश्वास की सौ तक विपरीत क्रम से गणना, भोजन के पश्चात सीधे सोकर आठ दाँयी करवट लेकर लेटकर सोलह और बाई करवट लेकर बत्तीस श्वास-प्रश्वास लें l
प्रेक्षा मस्तक पर नीले रंग का, शक्ति केंद्र पर पीले रंग का, पेट पर नीले रंग का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा कायोत्सर्ग में शांति की भावना, योग निद्रा l 15 मिनट
जप ॐ 'हूं' 'हृं' विशुद्धि केंद्र पर l 10 मिनट
तप चाय कॉफी एवं उत्तेजक पदार्थों का वर्जन l
मुद्रा ज्ञान मुद्रा, प्राण मुद्रा l
16.कब्ज
आसन पेट की दस क्रियाएं,अग्निसार, उदराकर्षण, इष्ट वंदन l
विशेष प्रयोग अर्धशंख-प्रक्षालन,ताड़ासन, स्कंधासन,तिर्यग् भुजंगासन,शंखासन l
प्राणायाम दीर्घ श्वास, अनुलोम- विलोम 5 मिनट दाहिने स्वर को खुला रखकर मूलबंध कर 100 कदम चलना l
प्रेक्षा ठुड्डी के नीचे के भाग को हथेली से दबाएं उस पर ध्यान करें l 5 मिनट अनुप्रेक्षा बड़ी आंत को सुझाव 'मेरी बड़ी आंत सक्रिय हो रही है l' 5 मिनट
जप 'हुं' 10 मिनट
तप भोजन के बाद साढ़े तीन घंटे तक कुछ नहीं खाना, गरिष्ठ,मैदा,मावा, तले हुए पदार्थ और चाय का वर्जन l
मुद्रा सूर्य मुद्रा, शंख मुद्रा, नमस्कार मुद्रा l
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13.पाचन तंत्र की अस्वस्थता
आसन पेट के दस क्रियाएं, अग्निसार, उत्तानपादासन, पवनमुक्तासन, भुजंगासन, मत्स्यासन,ईष्ठवंदन l
प्राणायाम अनुलोम-विलोम, सूर्यभेदी, नसामुख (नाक से पूरक,मुँह से रेचक), भोजन के पश्चात सीधे सोकर आठ, दांईं करवट लेटकर सोलह और बाँई करवट लेटकर बत्तीस श्वास-प्रश्वास लें l
प्रेक्षा पाचन तंत्र पर पीले रंग का ध्यान 10 मिनट
अनुप्रेक्षा पाचन तंत्र की स्वस्थता का सुझाव- 'मेरा पाचन तंत्र स्वस्थ हो रहा है l' 10 मिनट
जप 'ॐ नमो भगवती गुणवती महामानसी स्वाहा l' 10 मिनट
तप प्रातः 8 बजे तक नाश्ता वर्जन, गरिष्ठ और तली हुई वस्तुओं का वर्जन l
मुद्रा सूर्य मुद्रा, लिंग मुद्रा
सुरभि मुद्रा
14.नयन दौर्बल्य
आसन गर्दन और नेत्र की योगिक क्रियाएं, सिंहासन, सर्वांगासन,मत्स्यासन l
प्राणायाम नाड़ी शोधन,दीर्घ श्वास,शीतली l 5 मिनट
प्रेक्षा आंख पर हरे रंग तथा जामुनी रंग का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा आंख की स्वस्थता का सुझाव-'मेरी आंख स्वस्थ हो रही है l' 15 मिनट
जप 'णमोसव्वोसहिजिणाणं'
10 मिनट
तप उत्तेजक एवं तामसिक भोजन का वर्जन
विशेष अधिक समय तक टीवी देखने का वर्जन l
मुद्रा प्राण मुद्रा, नमस्कार मुद्रा l
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11.कमर दर्द
आसन मेरुदंड के क्रियाएं, उत्तानपादासन, भुजंगासन, मकरासन, मत्स्रासन, मत्स्यासन प्राणायाम सूर्यभेदी, दर्द के स्थान पर ध्यान केंद्रित कर सुक्ष्मभस्त्रिका l 5 मिनट
प्रेक्षा कमर तथा वहां होने वाली वेदना की प्रेक्षा l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा कमर की स्वस्थता का सुझाव- 'मेरी कमर का दर्द शांत ठीक हो रहा है l' 25 मिनट जप 'ह्वां' 10 मिनट
तप अनामिका और अगुंष्ठ को सटाकर दबाव दें l 15 मिनट विशेष भोजन में चीनी और चिकनाई का अल्पीकरण
मुद्रा सहनशंख मुद्रा,वायु मुद्रा l
10.चर्म रोग
आसन पेट और श्वास की दस क्रियाएं भुजंगासन, सर्वांगासन, पश्चिमोत्तानासन, मत्स्यासन, इष्ट वंदन
प्राणायाम नाड़ी- शोधन, अनुलोम-विलोम, ग्रीष्म ऋतु में शीतली, सूक्ष्म भस्त्रिका l 5 मिनट
प्रेक्षा पूरे शरीर पर हरे रंग का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा अनित्य अनुप्रेक्षा, रोग के वियोग का सुझाव 'मेरी रक्त शुद्धि हो रही है, त्वचा शुद्ध हो रही है l
जप 'क्षिप ॐ स्वाहा' 10 मिनट
तप भोजन की मात्रा में कमी, चावल का आयम्बिल, नमक का अल्पीकरण l
विशेष साबुन एवं प्रसाधन सामग्री का वर्जन l
मुद्रा वरुण मुद्रा l
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9.ज्वर
आसन कायोत्सर्ग l
प्राणायाम स्वर-परिवर्तन, पित्त के प्रकोप से आए ज्वर में चंद्र स्वर का प्रयोग l
प्रेक्षा तेजस केंद्र पर ध्यान l 20 अथवा 30 मिनट विशुद्धि केंद्र पर ध्यान l 10 मिनट अनुप्रेक्षा कायोत्सर्ग की अवस्था में सुझाव- 'मेरा ज्वर दूर हो रहा है l' 15 मिनट जप 'ॐ' 10 मिनट तप लघंन अथवा उपवास
10. रीड की हड्डी की बीमारी
आसन मेरुदंड की क्रियाएं, भुजंगासन, मत्स्यासन, सुप्त वज्रासन l 10 मिनट प्राणायाम नाड़ी शोधन, सूक्ष्म भस्त्रिका l 5 मिनट
प्रेक्षा अंतर्यात्रा शरीर प्रेक्षा का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा मेरुदंड की स्वस्थता का सुझाव- 'मेरा मेरुदंड स्वस्थ हो रहा है l' 15 मिनट
जप 'ॐ ह्णीं नमो लोए सव्व साहूणं' 10 मिनट
तप गरिष्ठ एवं तली हुई वस्तुओं का वर्जन
विशेष सामने झुककर किए जाने वाले आसन का वर्जन l मुद्रा वायु मुद्रा, नमस्कार मुद्रा,व्यान मुद्रा l नमस्कार मुद्रा में अर्हत, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय मुनि ये पांचों मुद्राएं हैं l
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7.टॉन्सिल
आसन सुप्तवज्रासन, सर्वांगासन, मत्स्यासन,सिंहासन यौगिक क्रिया की चौथी एवं पांचवी क्रिया l
प्राणायाम उज्जायी, भ्रामरी, महाप्राण ध्वनि l
5 मिनट
प्रेक्षा विशुद्धि पर नीले रंग का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा टॉन्सिल की स्वस्थता का सुझाव- 'मेरा टॉन्सिल स्वस्थ हो रहा है l' 20 मिनट
जप 'ह्याँ' 10 मिनट
तप अतिशीत, अतिउष्ण भोजन का वर्जन l मिठाई एवं तली हुई वस्तुओं का वर्जन l
मुद्रा उदान मुद्रा,शंख मुद्रा
8.हृदय दौर्बल्य
आसन हृदयस्तंभासन,योग मुद्रा, पवनमुक्तासन, विपरीत करणी मुद्रा, सीने की योगिक क्रिया,कायोत्सर्ग l
प्राणायाम अनुलोम विलोम (कुंभक ना करें) उज्जायी प्राणायाम
प्रेक्षा दीर्घश्वास प्रेक्षा, समवृति श्वास प्रेक्षा, फेफड़ों और हृदय रक्तवाहिनी पर ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा अभय एवं सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा l हृदय की स्वस्थता का सुझाव- मेरा हृदय स्वस्थ हो रहा है l' 15 मिनट
जप 'ह्याँ' हृदय एवं सीने पर लक्ष्य कर,ह्नीं,ऊँ ह्रीं नमः ॐ जूं सः की प्रतिदिन एक माला 10 मिनट
तप घृत एवं लवण युक्त पदार्थों की मात्रा का अल्पीकरण विशेष कायोत्सर्ग 30 मिनट l तनाव और भावेश से मुक्त रहने का अभ्यास l
मुद्रा अपान - वायु मुद्रा, वायु मुद्रा, अपान मुद्रा, प्राण मुद्रा
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
5.मस्तिष्क दौर्बल्य (सिर दर्द)
आसन पवनमुक्तासन, सर्वांगासन, शशांकासन l प्राणायाम नाड़ी शोधन, स्वर परिवर्तन, शीतली, शीतकारी, (सर्दी के मौसम में वर्जित) l 5 मिनट
प्रेक्षा ललाट पर सफेद रंग का ध्यान 10 मिनट
अनुप्रेक्षा मस्तिष्क की स्वास्थता का सुझाव - 'मेरे सिर की वेदना शांत हो रही है l मस्तिष्क के स्नायु शक्तिशाली हो रहे हैं l' 15 मिनट
जप 'ॐ' 10 मिनट
तप परिमित भोजन का विशेष अभ्यास और मिर्च मसालों का अल्पीकरण
मुद्रा अपान मुद्रा l
6. जुकाम
आसन उत्तानपादासन, सिंहासन,भुजंगासन,, मत्स्यासन
प्राणायाम नाड़ीशोधन,सूर्य भेदी l 5 मिनट
प्रेक्षा मुख पर पीले रंग का ध्यान 10 मिनट
अनुप्रेक्षा जुकाम की स्वस्थता का सुझाव-'मेरा जुकाम ठीक हो रहा है l' 25 मिनट
जप 'ह्याँ' वज्रासन में l
10 मिनट
तप गरिष्ठ एवं तली हुई वस्तुओं का वर्जन, उपवास l उदर शुद्धि के लिए एनिमा आदि का प्रयोग तथा आवश्यकतानुसार कफ शुद्धि के लिए कुंजल का प्रयोग, नेति क्रिया l
मुद्रा प्राण मुद्रा,सूर्य मुद्रा,लिंग मुद्रा l
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
3.उच्च रक्तचाप कायोत्सर्ग दक्षिण पार्श्वशयन l
आसन सुप्त ताड़ासन, दाएं पार्श्व से सुप्त कायोत्सर्ग 10 मिनट
प्राणायाम चंद्रभेदी l 10 मिनट
प्रेक्षा दीर्घश्वास प्रेक्षा, शरीर पर नीले रंग का ध्यान l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा शांति की अनुप्रेक्षाl रक्तचाप के संतुलन का सुझाव- 'मेरा रक्तचाप संतुलित हो रहा है' l 15 मिनट
जप 'ॐ ' 10 मिनट तप भोजन मात्रा में कमी l अति स्निग्ध, वरिष्ठ एवं लवण प्रधान वस्तुओं का अल्पीकरण l मुद्रा अपान वायु मुद्रा l
4.निम्न रक्तचाप
कायोत्सर्ग वामपार्श्वशयन l
आसन उत्तानपादासन, शशांकासन, पद्मासन, सिद्धासन l 5 मिनट प्राणायाम कपालभाती, उज्जायी और सूर्यभेदी,भस्त्रिका l 5 मिनट
भोजन से पूर्व सूर्य स्वर का प्रारंभ l
भोजन के पश्चात सीधे सोकर आठ दाईं करवट लेकर सोलह और बाईं करवट लेकर 32 श्वास प्रश्वास लें l
प्रेक्षा दर्शन केंद्र पर लाल रंग का ध्यान शरीर प्रेक्षा l 10 मिनट
अनुप्रेक्षा शरीर में प्राण की सक्रियता का सुझाव- 'मेरा प्राण- प्रवाह संतुलित हो रहा है l 25 मिनट
जप 'ॐ' 10 मिनट जप गरिष्ठ और तली हुई वस्तुओं का वर्जन l
मुद्रा प्राण मुद्रा l
आगे का अंश अगली पोस्टमें
आगम असम्मत् कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं |
ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
1. शारीरिक दौर्बल्य
आसन उत्तानपादासन, मकरासन, वज्रासन ,ताड़ासन
प्राणायाम लयबद्ध दीर्घ श्वास l 10 मिनट
प्रेक्षा प्राण संचार का प्रयोग l
सर्वांग शरीर प्रेक्षा का ध्यान 10 मिनट
अनुप्रेक्षा शक्ति की अनुप्रेक्षा 15 मिनट
जप 'आरोग्ग बोहिलाभं समाहिवरमुतमं दिंतु' 10 मिनट तप गरिष्ठ और तली हुई वस्तुओं का वर्जन l
मुद्रा पृथ्वी मुद्रा, प्राण मुद्रा
2.वायु विकार
आसन पेट की क्रियाएं-6,7,8,9वीं वज्रासन, पवन मुक्तासन
प्राणायाम अनुलोम विलोम
9-9आवर्तिया दो बार स्वर का प्रयोग भोजन के समय सूर्य स्वर का प्रयोग
प्रेक्षा तैजस केंद्र पर ध्यान 10 मिनट
अनु प्रेक्षा पेट को सम्यक क्रिया का सुझाव-'पेट की क्रियाएं ठीक हो रही हैं l मेरा वायु विकार ठीक हो रहा है 25 मिनट
जप 'रं' सर्दी के दिनों में 10 मिनट गर्मी के दिनों में अधिक गर्मी ना बढ़े l इसका ध्यान रखकर समय का निर्धारण किया जाए l
तप परिमित भोजन l मैदा, मावा और तले हुए पदार्थों का वर्जन
मुद्रा वायु मुद्रा, अपान मुद्रा अपानवायु मुद्रा l
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
भाग-2
अमृत पिटक
1.शारिरिक स्वास्थ्य
1.शारीरिक दौर्बल्य
2.वायु विकार
3. उच्च रक्तचाप
4.निम्न रक्तचाप
5.मस्तिष्क दौर्बल्य (सिर दर्द) 6.जुकाम
7.टॉन्सिल
8.ह्रदय दौर्बल्य
9.ज्वर
10.रीढ़ की हड्डी की बीमारी
11.कमर दर्द
12.चर्म रोग
13.पाचन दौर्बल्य
14.नयन दौर्बल्य
15.अनिद्रा
16.कब्ज
17.अम्लता
18. पैर व घुटने का दर्द
19.श्वास रोग
20.स्मृति दौर्बल्य
21. नाड़ी तंत्र दौर्बल्य
22.यकृत दोष
23.गर्दन का दोष
24.पायरिया और मसूढ़े
25.अस्वास्थ्य निवारण
26.मधुमेह
27.हार्निया
28.साइटिका
29.बवासीर
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
6.ध्वनि चिकित्सा : प्रयोग और परिणाम
1.
1.वज्रासन के मुद्रा
2.लयबद्ध दीर्घश्वास का प्रयोग 5 मिनट
3. ॐ का लयबद्ध उच्चारण 20 मिनट
परिणाम 1. रक्तचाप संतुलित
2.मिरगी के रोग में लाभ
2.
1. वज्रासन की मुद्रा
2.लयबद्ध दीर्घश्वास का प्रयोग 5 मिनट
3.'अर्हम' का लयबद्ध उच्चारण 20 मिनट
परिणाम गला, श्वास रोग,और खांसी पर प्रभाव
3.
1.वज्रासन की मुद्रा
2.लयबद्ध दीर्घ श्वास का प्रयोग 5 मिनट
3.ह्रां का लयबद्ध उच्चारण
20 मिनट
परिणाम गला, श्वास रोग और खांसी पर प्रभाव
4.
1.वज्रासन की मुद्रा
2.लयबद्ध दीर्घ श्वास का प्रयोग 5 मिनट
3. हीं का लयबद्ध उच्चारण 20 मिनट
परिणाम तालु,गला,फुफ्फुस,ह्दय और पाचन तंत्र पर प्रभाव
5.
1.वज्रासन की मुद्रा
2.लयबद्ध दीर्घ श्वास का प्रयोग 5 मिनट
3.हूं का लयबद्ध उच्चारण 20 मिनट
परिणाम पेट,यकृत, तिल्ली आंतों व गुर्दों पर प्रभाव
6.
1.वज्रासन की मुद्रा
2.लयबद्ध दीर्घश्वास का प्रयोग 5 मिनट
3.ह्नै'का लयबद्ध उच्चारण
20 मिनट
परिणाम
गुर्दा और मूत्र रोग पर प्रभाव
7.
1.वज्रासन की मुद्रा
2.लयबद्ध दीर्घश्वास का प्रयोग 5मिनट
3.ह्णौ का लयबद्ध उच्चारण
20 मिनट
परिणाम पेट के विकार, आमाश्य,पक्वाशय, मूत्राशय, उपस्थ और कोष्ठबद्धता पर प्रभाव
8.
1. वज्रासन की मुद्रा
2.लयबद्ध दीर्घश्वास का प्रयोग
5 मिनट
3.ह्ण:का लयबद्ध उच्चारण
20 मिनट
परिणाम
कंठ, फुफ्फुस, अन्ननली पर प्रभाव
9.
1.वज्रासन की मुद्रा
2.लयबद्ध दीर्घश्वास का प्रयोग 5 मिनट
3. वं का लयबद्ध उच्चारण
20 मिनट
परिणाम
वात- पित्त-श्लेष्म रोगनाशक
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रंगों को संतुलित करने के लिए निम्न निर्दिष्ट साधनों का उपयोग किया जा सकता है l
1.जिस रंग की कमी हो उसकी पूर्ति के लिए उसी रंग का श्वास लें l जिस रंग का श्वास लेना हो उसका मानसिक संकल्प करें, वैसे वातावरण की कल्पना करें फिर वैसा श्वास लें l
2.लाल रंग बढ़ाने से नीले रंग के उत्पन्न विकार उपशांत हो जाते हैं l
3.हरा रंग बढ़ाने से लाल रंग के उत्पन्न विकार उपशांत हो सकते हैं l
4.पीले रंग को बढ़ाने के लिए लाल और नीले रंग के मिश्रण से होने वाले विकार मिट सकते हैं l किस रंग की कमी और किस रंग की वृद्धि होने से स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है ?रश्मि चिकित्सा में इसका सम्यक विवेचन करना आवश्यक है l जिस रंग की कमी हो उस रंग का ध्यान करने से उसकी पूर्ति हो जाती है रंग की वृद्धि को कम करने के लिए निर्दिष्ट रंगों का ध्यान करना उपयोगी होता है l इसी प्रकार सुर्य आतप लेना, सूर्य-रश्मि से सिद्ध पानी,तेल आदि का प्रयोग भी किया जा सकता है इस विषय की जानकारी के लिए 'सूर्य रश्मि चिकित्सा' पुस्तक का अवलोकन उपयोगी होगा l
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
रंगों की कमी और अधिकता से उत्पन्न होने वाले रोगों की जानकारी के लिए देखें निम्न तालिका
रंग की कमी
1. हल्का नीला
2.गहरा पीला
3. पीला
4.हरा
5.
6.
7.
8. लाल
9.नीला
10.पीला
11.आसमानी
12.
रंग की अधिकता
1.लाल
2.लाल
3.हल्का नीला
4.लाल
5.नीला
6.लाल
7.सुनहरा
8.
9.
10.
11.
12.लाल
परिणाम
1. ज्वर, अतिसार, उदय रोग
2.संधियो की अकड़न,दर्द होना, प्रमेह, पथरी, दाह, खट्टी व कड़वी डकार, गर्दन अकड़ना, उबकाई आना, बाल गिरना, आंखों के रोग
3. मेद के रोग, गुल्म रोग, पसली और मसूड़ों का दर्द फेफड़े के रोग,कोष्ठबद्धता, सूजन
4. फोड़े फुंसी, खुजली, दाद नासूर आदि त्वचा रोग
5.वातजन्य रोग
6.त्वचा में सूजन, गरमी के विकार
7.शरीर में चीखें उठना
8.सुस्ती, आलस्य, नींद, कमजोरी, मंदाग्नि, कब्ज
9.क्रोध, चंचलता, उतेजना
10.मंदाग्नि, अरुचि, शरीर दर्द, अनिद्रा, त्वचा में खुश्की
11.अतिसार, पित्तज्वर, है जो पेशाब में जलन, पीलिया, पसीना अधिक
12. कामोतेजना
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5. भाव चिकित्सा
भाव और रोग
अध्यात्म चिकित्सा रोग- प्रतिरोधक शक्ति को सुदृढ़ बनाने वाले पद्धति है l उसके सुदृढ़ होने पर नए सिरे से रोग पैदा नहीं होते और पुराने रोग समाप्त हो जाते हैं इसलिए उसे चिकित्सा की पद्धति भी कहा जाता है l क्रोध आदि भाव मनुष्य की जैव रसायन प्रणाली को कमजोर बना देते हैं इसलिए भाव रोग के हेतु बन जाते हैं l भाव-शुद्धि के द्वारा आरोग्य को स्थाई बनाया जा सकता है l
क्रोध, अहंकार, माया और लोभ ये सब रोग के हेतु है l भाव की तरतमता के आधार पर रोग की तरतमता होती है l
मौलिक भाव कषाय- क्रोध, अहंकार,माया और लोभ हैं l भय, शोक, घृणा, कामवासनाहृये सब कषाय के उपजीवी है l
कौन सा भाव किस प्रकार के रोग को उत्पन्न करता है ? इस विषय में गहन शोध की अपेक्षा है भाव और रोग के संबंध में हमें प्राथमिक जानकारी प्राप्त है l उसके आधार निम्नवर्ती निर्देश किया जा सकता है l
भाव रोग
क्रोध- उच्च रक्तचाप,
हृदय दौर्बल्य
मारने की वृत्ति- शूल,हाथ का दर्द
विरोध करने की इच्छा का सातत्य- बार-बार उत्सर्ग
अपने जीवनसाथी या अधिकारी द्वारा तिरस्कृत -पाचनतंत्र की गड़बड़ी
काम की उद्दीप्त भावना-छाती का दर्द
उच्श्रृंखल मनोवृति- चर्म रोग
मानसिक घुटन- सिरदर्द(आधा सीसी)
शोक - शरीर मे जलन
ईर्ष्या- अल्सर
अति महत्वकांक्षा- शुगर
रंगों का संतुलन स्वास्थ्य है l कोई रंग कम या अधिक होता है l तब शरीर और मन दोनों प्रभावित हो जाते हैं,शारीरिक और मानसिक रोग पैदा होते हैं l
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लोभ चिकित्सा के प्रयोग लोभ चिकित्सा के लिए क्रोध चिकित्सा में निर्दिष्ट प्रयोगों का अनुसरण करना है
1.ज्योतिकेंद्र पर सफेद रंग का ध्यान
2.शशांकआसन
3.दीर्घश्वास
4.मंत्र
5.अनुप्रेक्षा
लोभ की उपशमन के लिए इस प्रकार अनुचिंतन किया जाए
(l)
1.मैं लोभ नहीं हूं, लोभ मेरा स्वभाव नहीं है
2.मैंने लोग का आचरण किया हो, उसका प्रायश्चित करता/ करती हूं l
3.मैं लोभ नहीं करूंगा/करूंगी l (ll)अनासक्ति की अनुप्रेक्षा 1.महाप्राण ध्वनि
2.कायोत्सर्ग
3. नीले रंग का श्वास लें l अनुभव करें श्वास के साथ नीले रंग के परमाणु भीतर प्रवेश कर रहे हैं l
4.विशुद्धि केंद्र पर नीले रंग का ध्यान करें l
5.शांति केंद्र पर ध्यान केंद्रित कर अनुप्रेक्षा करें
'अनाशक्ति का विकास हो रहा है पदार्थ के प्रति मूर्च्छा का भाव क्षीण हो रहा है इस शब्दावली का नौ बार उच्चारण करें फिर इसका नौ बार मानसिक जप करें l
अनु चिंतन करें मैं पदार्थ की प्रकृति को जानता हूं वह मेरे लिए उपयोगी है उससे मुझे सुविधा मिलती है किंतु सुख और शांति नहीं l ये मेरे आंतरिक गुण हैं l
मैं संकल्प करता हूं कि मैं पदार्थ के प्रति मूर्छित नहीं बनूंगा सदा अपने प्रति जागरूक रहूंगा l
6.महाप्राण ध्वनि के साथ प्रयोग संपन्न करें l
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4.लोभ चिकित्सा
मनुष्य और पदार्थ में भेदरेखा खींचना असंभव नहीं है पर असंभव से कम भी नहीं है l मनुष्य पदार्थ के बीच रहता है, पदार्थ के द्वारा जीता है पदार्थ को अपना स्व मानता है इसलिए वह पदार्थ को अपने से भी भिन्न नहीं मानता l 'पदार्थ मेरा है' यह संस्कार जितना पुष्ट है, उतना यह संस्कार पुष्ट नहीं है कि 'पदार्थ मेरा नहीं है'
'पदार्थ मेरा है' यह संस्कार तृष्णा, लोभ और आसक्ति पैदा करता है l लोभ की अति मात्रा अनेक रूपों को जन्म देती है l
लोभ का तारतम्य
लोभ का वेग समान नहीं होता l कभी मंद होता है, कभी मंदतर, कभी तीव्र और कभी तीव्रतर l इस आधार पर इस के चार भेद किए गए हैं
1.कृमिरेशम के रंग के बसामान 2.कीचड़ के रंग के समान
3.गाड़ी के खंजन के समान 4.हल्दी के रंग के समान
लोभ एक प्रकार का कृमिरेशम के समान है l अन्य रंग प्रयत्न करने पर उतर जाते हैं l कृमि रेशम का रंग पक्का होता है l किसी भी उपाय से उतरता नहीं है l इस प्रकार यह लोभ असाध्य हैं l
यह लोभ की तीव्रतर अवस्था है l
वस्त्र पर लगा हुआ कीचड़ का दाग परिश्रम करने पर भी मुश्किल से मिटता है l इसी प्रकार लोभ का यह प्रकार अत्यधिक प्रयत्न करने से दूर होता है l
यह लोभ की तीव्र अवस्था है l गाड़ी का खंजन वस्त्र को विद्रूप बनाता है फिर भी वह केरोसिन आदि तेज के प्रयोग से जल्दी ही साफ हो जाता है इसी प्रकार लोभ का यह प्रकार सामान्य प्रयत्न से दूर हो जाता है l
यह लोभ ही मंद अवस्था है l
हल्दी का रंग वस्त्र पर चढ़ता है पर पानी, साबुन से धुलाई कर धूप दिखाते ही उड़ जाता है इसी प्रकार लोभ का यह प्रकार विशेष प्रयत्न किए बिना ही हम अपने तत्काल अपने आप दूर हो जाता है l
यह लोभ की मंद अवस्था है l
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3.माया चिकित्सा
माया और तनाव को किसी अर्थ में एकार्थक कहा जा सकता है l ऋजुता (सरलता) और तनाव मुक्ति समानार्थक बन जाती है l तनाव मुक्ति के लिए माया के चिकित्सा बहुत जरूरी है l मनुष्य अपनी भूल को छुपाने के लिए माया का ताना-बाना बुनता है l
मायाजाल का प्रमुख हेतु है लोभ, आसक्ति l लोभ की चिकित्सा होने पर माया के चिकित्सा सहज ही हो जाती है l फिर भी उसके लिए प्रेक्षा, अनुप्रेक्षा, मंत्र आदि के प्रयोग बहुत उपयोगी है l
माया का तारतम्य
माया का वेग समान नहीं होता l कभी वह मंद, कभी मंदतर,कभी तीव्र और कभी तीव्रतर
1. बांस की जड़ के समान
2.मेंढे के सींग के समान
3. चलते बैल के मूत्रधारा के समान
4. छिलते हुए बांस की छाल के समान
बांस की जड़ वक्र होती है कि वहां टेढ़ापन अतिरिक्त कुछ नहीं होता l ऐसी माया व्यक्ति को धूर्त्तता के शिखर पर पहुंचा देती है l यह माया असाध्य है
यह माया की तीव्रतर अवस्था है मेंढे का सींग बांस की जड़ की अपेक्षा कम टेढ़ा होता है l इस प्रकार की माया को सरलता से बदलना कठिन है पर यह साध्य है l
चलते हुए बैल की मूत्रधारा टेढ़ी-मेढ़ी होती है l पवन आदि से मिट जाती है वैसे ही यह माया सरलता से मिट जाती है l यह माया की तीव्र अवस्था है l छिलते हुए बांस की छाल टेढ़ी होती है पर वह सहज ही सीधी हो जाती है वैसे ही यह माया अपने आप ही दूर हो जाती है l यह माया की मंदतर अवस्था है l
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अहंकार चिकित्सा के प्रयोग
अहंकार चिकित्सा के लिए क्रोध चिकित्सा में निर्दिष्ट प्रयोगों का अनुसरण करना है
1.ज्योति केंद्र पर सफेद रंग का ध्यान
2.शशांकआसन
3.दीर्घश्वास
4.मंत्र
5.अनुप्रेक्षा
अहंकार के उपशमन के लिए इस प्रकार अनुचिंतन किया जाए
(l)
1. मैं अहंकार नहीं हूं, अहंकार मेरा स्वभाव नहीं है l 5 मिनट 2.मैंने अहंकार किया हो,उसका प्रायश्चित करता/करती हूं l
5 मिनट
3. मैं अहंकार नहीं करूंगा/ करूंगी l 5 मिनट
मृदुता की अनुप्रेक्षा
1.महाप्राण ध्वनि
2.कायोत्सर्ग
3.अनुभव करें अपने चारों और हरे रंग के परमाणु फैले हुए हैं पन्ने की भांति चमकता हुआ रंगl अब हरे रंग का श्वास लें l अनुभव करें प्रत्येक श्वास के साथ हरे रंग के परमाणु भीतर प्रवेश कर रहे हैं l
4.दर्शन केंद्र पर हरे रंग का ध्यान करें l
5.शांति केंद्र पर चित्त को केंद्रित कर अनुप्रेक्षा करें 'मृदुता का भाव पुष्ट हो रहा है' यह शब्दावली का 9 बार उच्चारण करें l फिर इसका 9 बार मानसिक जप करें
5.अनुचिंतन करें
व्यक्ति और वस्तु के प्रति मेरा व्यवहार विनम्र होना चाहिए सत्य के प्रति विनम्र भाव जो मैं कहता हूं वही सत्य है इस आग्रह से बचने का मनोभाव l
मुझे अपने अहंकार का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए l
कृतज्ञता- ज्ञापन के लिए साधुवाद धन्यवाद देना, सत्य प्रकृति का अनुमोदन करना जीवन की सफलता का एक आवश्यक तत्व है
अपनी भूल के लिए खेद प्रकट करना, अपने अप्रिय व्यवहार हो जाने पर क्षमा याचना करना, अपने आप को बड़ा बनाने का उपाय है l
इन सब के प्रति मैं जागरूक रहूंगा l
7.महाप्राण ध्वनि के साथ प्रयोग संपन्न करें l
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2.अहंकार चिकित्सा
क्रोध की उत्पत्ति का बहुत बड़ा कारण है अहंकार l प्रेक्षा, अनुप्रेक्षा, आसन आदि प्रयोगों द्वारा इसका नियमन किया जा सकता है l
अहंकार का तारतम्य
अहंकार का वेग समान नहीं होता है l कभी वह मंद होता है, कभी मंदतर,कभी तीव्र और कभी तीव्रतर l इस आधार पर उसके चार भेद किए गए हैं 1.पत्थर के स्तंभ के समान 2.अस्थि के स्तंभ के समान 3.काष्ठ के स्तंभ के समान
4.लता के स्तंभ के समान
पत्थर के खंभों को झुकना प्रयत्न साध्य नहीं है l वह टूट जाता है पर झुकता नहीं l
इसी प्रकार तीव्र अहंकारी व्यक्ति किसी भी परिस्थिति के साथ समझौता नहीं कर सकता l
यह अहंकार की तीव्रतर अवस्था है l
अस्थि- स्तंभ पत्थर के खंभे से कुछ लचीला होता है l विशेष प्रयत्न के द्वारा इसे इधर-उधर मोड़ा जा सकता है l
यह अहंकार की तीव्र अवस्था है l
कांठ- स्तंभ को प्रयत्न से झुकाया जा सकता है वैसे ही अहंकार को साधारण उपायों से मिटाया जा सकता है l
यह अहंकार की मंद अवस्था है l लता या तिनकों का खंभा बिना परिश्रम किए सहज ही झुक जाता है l लता स्तंभ में स्तब्धता नाम का कोई तत्व ही नहीं है वैसे ही इस प्रकार का अहंकार सहज ही छूट जाता है l
यह अहंकार की मंदतर अवस्था है l
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(1)
1.मैं क्रोध नहीं हूं l क्रोध मेरा स्वभाव नहीं है 5 मिनट 2.मैंने क्रोध किया हो, उसका प्रस्तुतकर्ता करता/ करती हूं 5 मिनट
3.मैं क्रोध नहीं करूँगा/करूंगी 5 मिनट
असहिष्णुता का प्रथम परिणाम है क्रोधका उपशमन करने के लिए उसका नियमन करना आवश्यक है l सहिष्णुता अनुप्रेक्षा उसके लिए बहुत उपयोगी है
(ll)सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा
1.महाप्राण ध्वनि
2. कायोत्सर्ग
3.अनुभव करें अपने चारों और नीले रंग के परमाणु फैले हुए हैं मयूर की गर्दन के भांति चमकता हुआ नीला रंग l अब इस नीले रंग का श्वास लें l अनुभव करें प्रत्येक श्वास के साथ नीले रंग के परमाणु शरीर के भीतर प्रवेश कर रहे हैं l
4.विशुद्धि केंद्र पर नीले रंग का ध्यान करें l
5.ज्योति केंद्र पर चित्त को केंद्रित कर अनुप्रेक्षा करें l सहिष्णुता का भाव पुष्ट हो रहा है l
मानसिक संतुलन बढ़ रहा है l
6.अनुचिंतन करें
1.शारीरिक संवेदन
(क)ऋतु जनित संवेदन
(ख)रोगजनित संवेदन
2.मानसिक संवेदन
(क)सुख- दु:ख
(ख)अनुकूलता-प्रतिकूलता 3.भावनात्मक संवेदन
(क) विरोधी विचार
(ख) विरोधी स्वभाव
(ग) विरोधी रुचि
तीनों प्रकार के संवेदन मुझे प्रभावित करते हैं, किंतु उनके प्रभाव को कम करना है l यदि इनका प्रभाव बढ़ा तो मेरी शक्तियां क्षीण होंगी l जितना इनसे कम प्रभावित होऊंगा, उतनी मेरी शक्तियां बढ़ेंगी l इसलिए सहिष्णुता का विकास मेरे जीवन की सफलता का महामंत्र है l
7.महाप्राण ध्वनि के साथ प्रयोग सम्पन्न करें l
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क्रोध चिकित्सा के प्रयोग
1.पीनियल ग्रंथि का हार्मोन मेलाटोनिन भवन भावनात्मक परिवर्तन- क्रोध, भय आदि के लिए उत्तरदायी है l पीनियल ग्रंथि (ज्योति केंद्र) पर सफेद रंग का ध्यान करने से क्रोध पर नियंत्रण पाया किया जा सकता है l
2.शशांक आसन क्रोध की उत्तेजना एड्रीनल ग्लैंड के माध्यम से व्यक्त होती है l शशांक आसन एड्रीनल के स्त्राव का नियमन करता है इसलिए शशांकशासन क्रोध के आवेश पर नियंत्रण पाने का एक उपाय है l
3.दीर्घ श्वास सामान्यतः एक व्यस्क व्यक्ति एक मिनट में 25 श्वास लेता है भावनात्मक आवेश, शारिरिक पीड़ा और तापमान की न्यूनाधिकता आदि कारणों में स्वास्थ की संख्या बढ़ती है श्वास की संख्या बढ़ती है l क्रोध भावनात्मक आवेश है l उस अवस्था में श्वास की संख्या 20,30 अथवा 40 से 60 तक हो जाती है
श्वास और क्रोध का परस्पर गहरा संबंध है l श्वास छोटा होता है l उस अवस्था मे आवेश अधिक होता है l क्रोध का आवेश अधिक होता है उस अवस्था में श्वास छोटा होता है lउसकी संख्या बढ़ जाती है l
दीर्घ या लंबे श्वास की स्थिति में क्रोध को उभरने का अवसर नहीं मिलता l क्रोध का आवेश बढ़ जाने पर यदि दीर्घश्वास का प्रयोग अथवा का संयम(कुंभक) किया जाए तो तत्काल क्रोध का पारा नीचे गिर जाता है l क्रोध के आवेश पर नियंत्रण पाने के लिए खेचरी मुद्रा पूर्वक 10 मिनट दीर्घ श्वास का प्रयोग करें l
4.मंत्र-क्रोध को उपशांत करने का संकल्प करें l 'ॐ शांति' के मंत्र का एकश्वास में 32 बार जप करें l उसकी तीन से नौ आवृत्तियां करें l क्रोध का आवेश शांत न हो रहा हो, मन अशांत और उद्विग्न हो, तनाव बढ़ रहा है इस अवस्था में ॐ क्षौं क्षौं का 108 जाप करें l
अनुप्रेक्षा-क्रोध के उपशमन के लिए इस प्रकार अनुचिंतन किया जाए l
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क्रोध का तारतम्य
क्रोध का वेग समान
नहीं होता l कभी वह मंद होता है,कभी मंदतर, कभी तीव्र कभी तीव्रतर
1. पत्थर की रेखा के सामान 2.मिट्टी की रेखा के समान
3.बालू की रेखा के समान
4.जल की रेखा के समान
चट्टान की रेखा अति दीर्घकाल तक बनी रहती है, मिटती नहीं है l वैसे ही क्रोध जनित शारीरिक चेष्टा के मिट जाने पर मस्तिष्क में उसका लंबे समय तक प्रभाव रहता है l
यह क्रोध की तीव्र अवस्था है l बालू की रेखा अल्पकाल तक टिकती है वैसे ही क्रोध जनित शारीरिक चेष्टा के मिट जाने पर भी मस्तिष्क में उसका प्रभाव एक क्षण के लिए रहता है यह क्रोध की मंद अवस्था है l
हमारे मस्तिष्क में क्रोध की उत्पत्ति का केंद्र है वैसे ही क्रोध पर नियंत्रण करने का केंद्र भी है l
क्रोध एक भाव है उसका उत्पत्ति केंद्र हाइपोथैलेमस है उस पर सेरेबल कोर्टेक्स (Cerebral Cortex) का नियंत्रण है वह सामान्य परिस्थिति में चिंतनपूर्वक सूचना प्रेषित करता है कि क्रोध का प्रदर्शन न किया जाए वह विशेष परिस्थिति में क्रोध करने की सूचना देता है l इसलिए सामान्य स्थिति में मनुष्य शांत रहता है l विशेष परिस्थिति में वह क्रोध करता है
क्रोध का प्रभाव
श्वसनतंत्र,ह्रदय,पाचन तंत्र तंत्रिकातंत्र,कंठ और मांसपेशियां इन सब पर क्रोध का प्रभाव पड़ता है,ह्रदय पर उसका विशेष प्रभाव होता है हृदय- रोगी के लिए क्रोध के आवेश से बचना अत्यंत आवश्यक है l
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4.अध्यात्म चिकित्सा के प्रयोग
अध्यात्म चिकित्सा के दो पहलू हैं l
1. रोग से बचाव (Prevention)
2.रोग का उपचार (cure)
इसमें रोग से बचाव के प्राथमिकता है l रोग प्रतिरोधक शक्ति का विकास करना, आंतरिक प्रणालियों को संतुलित करना रोगोत्पत्ति के प्रमुख बिंदु भावधारा को कैसे स्वस्थ और संतुलित बनाना है
भावधारा को स्वस्थ और संतुलित बनाने के प्रयोग चिकित्सा के भी महत्वपूर्ण प्रयोग बन जाते हैं l
1.क्रोध चिकित्सा
2.अहंकार चिकित्सा
3.माया चिकित्सा
4.लोभ चिकित्सा
5.भाव चिकित्सा
6.ध्वनि चिकित्सा
1.क्रोध-चिकित्सा
मस्तिष्क मानवीय प्रवृतियों का संचालन करने वाला है l उसका एक भाग है - लिम्बिक सिस्टम(Lymbic System) थैलेमस (Thalamus) और हाइपोथैलेमस(Hypothalamus) ये दोनों लिम्बिक क्षेत्र में स्थित है lक्रोधका स्थान नहीं है l
क्रोध मानसिक घटना नहीं है उसका संबंध भावतंत्र से है l उसकी उत्पत्ति के दो कारण हैं
1.अंतरंग-क्रोध के परमाणुओं का फल
2.बाह्य परिस्थिति और वातावरण
विस्तार से समझने का प्रयत्न करें तो क्रोध की उत्पत्ति के चार हेतु बन जाते हैं l
1.भूमि क्रोध की उत्पत्ति का कारण है l
2.घर क्रोध की उत्पत्ति का कारण है l
3.शरीर क्रोध की उत्पत्ति का कारण है l
4.पदार्थ क्रोध की उत्पत्ति का कारण है l
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
5.जप
1.जप के मन को नासिका के अग्रभाग पर केंद्रित करें l
2.नासिका का सीधा संबंध शक्तिकेंद्र (मूलाधार) से है l
3.आंखों को स्थिर रखें और मृदुता से मंद करें l
4.मन को श्वास के साथ जोड़ें l प्रत्येक श्वास के प्रति सजग रहें l
6.आसन
आसन सोने,बैठने अथवा खड़ा होने की विशेष विधि है इसका आधार जीवन का क्रमिक विकास है l एक बच्चा सबसे पहला सोया रहता है l फिर बैठने का अभ्यास करता है lउसके बाद खड़े रहने और चलने का प्रयत्न करता है l आसन करने का यही क्रम उचित है
1.सबसे पहले सुप्त (लेटकर लिखकर किए जाने वाले) आसन करें
2।फिर स्थित (बैठकर किए जाने वाले) आसन करें
3.तत्पश्चात उत्वित (खड़े खड़े किए जाने वाले) आसन करें l
7.प्राणायाम
प्राणायाम श्वास-संयम नियम का प्रयोग है l पूरक और रेचक उसके गौण अंग है l उसका मुख्य अंग है श्वास- संयम (कुंभक)
श्वास का संयम पूरक के बाद भीतर और रेचक के बाद बाहर किया जाता है स्वयं का श्वास- संयम अधिक उपयोगी है l
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4.भावना, सम्मोहन, स्वसम्मोहन
भावना-
आदत बदलने,दर्द कम करने, मनोबल बढ़ाने, स्वास्थ्य अच्छा करने के लिए भावना या सम्मोहन का प्रयोग महत्वपूर्ण है l भावनात्मक प्रयोग से पौधे बदल सकते हैं तो मनुष्य का शरीर क्यों नहीं बदल सकता ? इस पद्धति का पहला चरण है ध्यान
रोगी तीन बार ध्यान करें
प्रातः दीर्घ श्वास प्रेक्षा 15मिनट
मध्यान्ह समवर्ती श्वास प्रेक्षा15 मिनट
सायं दीर्घश्वास प्रेक्षा 15 मिनट
1.शिथिलीकरण
2. आत्मनिरीक्षण (अपनी दैनिक चर्या और क्रिया का निरीक्षण)
सम्मोहन
1.शिथिलीकरण के लिए प्रारंभ में कायोत्सर्ग का प्रयोग करें l 2.ध्यानकाल में रोगी भावना (आत्मसम्मोहन) का अभ्यास करें
मेरा मन शांत हो रहा है l
मेरा मन संतुलित हो रहा है l
मेरा मन स्वस्थ हो रहा है
3.रोगग्रस्त स्थान पर ध्यान केंद्रित करें l
4.ध्यान में वह प्रबल भावना का आरोपण करता है l
शरीर के स्वेतकण रुग्ण भाग में एकत्रित हो रहे हैं l रुग्ण कोशिकाओं को शरीर से बाहर निकाल रहे हैं l
प्राण ऊर्जा का संचय हो रहा है, वह रुग्ण स्थान की कोशिकाओं को प्राणवान बना रहा है l
रोगी को निर्देश दें
1.सदा प्रसन्नचित्त रहें l
2.जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण अपनाएं l
3.विधायक/ रचनात्मक दृष्टिकोण रखें l
4.मनोबल को बढ़ाएं
स्वसम्मोहन
1सुप्त कायोत्सर्ग करें l
2.सुप्त कायोत्सर्ग की मुद्रा में अर्हम का जप, 1 मिनट में 80 या 90 बार करें l
3.तीन मिनट के अंतराल बढ़ाते जाएं और जप की संख्या घटाते घटाते 10 या 5 तक ले आए l अंतराल काल में निर्विचार रहे l
इस स्थिति में स्वसम्मोहन होता है l अब जिस शारीरिक और मानसिक व्याधि की चिकित्सा करनी हो उसके प्रतिपक्ष की आकृति का निर्माण करें l जैसे मेरा घुटना स्वस्थ है अथवा में अभय हूं l
एकाग्र मन से उस आकृति को स्थिर कर भूल जाए व स्वसम्मोहन की स्थिति में रहे l
1 सप्ताह के प्रयोग से आप अपना साध्य पा लेंगे l
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
3.अनुप्रेक्षा
अध्यात्म चिकित्सा में शरीर, मन और भाव- इन तीनों के रहस्यों को जानना आवश्यक है l शरीर के दो प्रमुख तंत्र हैं नाड़ी तंत्र और ग्रंथि तंत्र l चिकित्सा की दृष्टि से इन दोनों के विषयों में जाना अपेक्षित है शरीर में दो प्रकार की नियंत्रण प्रणालियां है 1.रासायनिक नियंत्रण प्रणाली 2.विद्युत नियंत्रण प्रणाली
रासायनिक नियंत्रण प्रणाली का संचालन अंतः स्रावी ग्रंथियों द्वारा होता है l ग्रंथियों का स्त्राव सीधा रक्त में मिलता है और वह शरीर को प्रभावित करता है कभी-कभी ये स्त्राव असंतुलित हो जाते हैं l उस समय शरीर में व्याधि उत्पन्न हो जाती है l आसन, प्राणायाम,प्रेक्षाध्यान और अनुप्रेक्षा के द्वारा इन्हें संतुलित किया जाता है l
विद्युत नियंत्रण प्रणाली में स्नायु संस्थान के विद्युत शक्ति द्वारा शरीर को नियंत्रित किया जाता है l
स्वास्थ्य की अनुप्रेक्षा
(l)
1.संकल्प
मैं स्वस्थ होने के लिए प्रयोग कर रहा हूं l मेरी आंतरिक शक्तियां मुझे सफल बनायेंगी l 2.कायोत्सर्ग
(तीन बार तनाव, भारीपन, हल्केपन का अनुभव, शिथिलीकरण )
3.स्वतःसुझाव
मेरा मन शांत हो रहा है l
मेरा मन संतुलित हो रहा है l
मेरा मन स्वस्थ हो रहा है l
तीन बार सुझाव को दोहराएं फिर मानसिक संकल्प करें l 4.दीर्घश्वास
1.(अ)पूरक के समय अनुभव करें स्वास्थ्य के परमाणु चारों ओर फैले हुए हैं l
(ब) प्रत्येक श्वास के साथ वे भीतर प्रवेश कर रहे हैं l
(स)पोषक परमाणु शरीर के भीतर जा रहे हैं l
2.अंतः कुंभक करें,सुझाव दें शरीर शक्तिशाली हो रहा है l
3.रेचन करते समय अनुभव करें रोग के परमाणु बाहर जा रहे हैं l
(l l)
1.संकल्प मैं स्वस्थ होने के लिए प्रयोग कर रहा हूं मेरी आंतरिक शक्तियां मुझे सफल बनायेंगी l
2.कायोत्सर्ग
3.रुग्ण स्थान पर चित्त को केंद्रित करें l
4.भावना करें शरीर के श्वेत कण रुग्ण भाग में एकत्रित हो रहे हैं l रुग्ण कोशिकाओं को शरीर से बाहर निकाल रहे हैं l
5.प्राण ऊर्जा का संचय हो रहा है l रुग्ण स्थान की कोशिकाएं प्राणवान बन रही है l
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ज्योतिकेंद्र पर श्वेत रंग का ध्यान
अनुभव करें- अपने चारों ओर पूर्णिमा के चंद्रमा की भांति चमकते हुए श्वेत रंग का प्रकाश फैल रहा है l श्वेत रंग के परमाणु फैल रहे हैं l अब इस श्वेत रंग का श्वास लें l अनुभव करें प्रत्येक श्वास के साथ श्वेत रंग के परमाणु शरीर के भीतर प्रवेश कर रहे हैं l चित्त को ज्योतिकेंद्र पर केंद्रित करें l वहां पर चमकते हुए श्वेत रंग का ध्यान करें l
(कुछ समय बाद) अनुभव करें ज्योतिकेंद्र से श्वेत रंग के परमाणु निकलकर शरीर के चारों ओर फैल रहे हैं l पूरा आभामंडल श्वेत रंग के परमाणुओं से भर रहा है l उन्हें देखें, अनुभव करें अभी और आवेश शांत हो रहे हैं, वासनाएं शांत हो रही हैं, क्रोध शांत हो रहा है, पूर्ण शांति मिल रही है l अनुभव करें पूर्ण शांति मिल रही है पूर्ण शांति मिल रही है l
5. विचार प्रेक्षा
पांच मिनट का कायोत्सर्ग, पांच मिनट दीर्घश्वास का प्रयोग l कायोत्सर्ग की मुद्रा बनी रहे l ध्यान मस्तिष्क पर केंद्रित करें l सकारात्मक, नकारात्मक जो भी विचार आए उसे रोके नहीं, तटस्थ भाव से देखते रहें l कुछ समय बाद विचार का प्रवाह अपने आप रुक जाता है l निर्विकार ध्यान की स्थिति आ जाती है l
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ज्ञान केंद्र पर पीले रंग का ध्यान
अनुभव करे अपने चारों ओर सूरजमुखी के फूल या स्वर्ण की भांति चमकते हुए पीले रंग का प्रकाश फैल रहा है पीले रंग के परमाणु फैल रहे हैं l अब इसे पीले रंग का श्वास लें l अनुभव करें- प्रत्येक श्वास के साथ पीले रंग के परमाणु शरीर के भीतर प्रवेश कर रहे हैं l चित्त को ज्ञानकेंद्र पर केंद्रित करें l वहां पर चमकते हुए पीले रंग का ध्यान करें l
(कुछ समय बाद) ज्ञान केंद्र से पीले रंग के परमाणु निकलकर शरीर की चारों ओर फैल रहे हैं l पूरा आभामंडल पीले रंग के परमाणुओं से भर रहा है l उन्हें देखें, अनुभव करें l....अनुभव करें-ज्ञान तंतु विकसित हो रहे हैं, ज्ञान तंतु विकसित हो रहे हैं, ज्ञान तंतु विकसित हो रहे हैं l
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विशुद्धि केंद्र पर नीले रंग का ध्यान
अनुभव करें अपने चारों ओर मयूर की गर्दन की भांति चमकते हुए नीले रंग का प्रकाश फैल रहा है नीले रंग के परमाणु फैल रहे हैं l अब इस नीले रंग का श्वास ले l अनुभव करें प्रत्येक श्वास के साथ नीले रंग के परमाणु शरीर के भीतर प्रवेश कर रहे हैं चित्त को विशुद्धि केंद्र पर केंद्रित करें l वहां पर चमकते हुए नीले रंग का ध्यान करें l
(कुछ समय बाद) अनुभव करें विशुद्धि केंद्र से नीले रंग के परमाणु निकलकर शरीर के चारों ओर फैल रहे हैं l पूरा आभामंडल अरुण रंग के परमाणुओं से भर रहा है lउन्हें देखें, अनुभव करें l ....अनुभव करें अंतर्दृष्टि जागृत हो रही है l अंतर्दृष्टि जागृत हो रही है, अंतर्दृष्टि जागृत हो रही है l आनंद जाग रहा है, आनंद जाग रहा है, आनंद जाग रहा है l
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4. रंग प्रेक्षा (लेश्या ध्यान) प्रत्येक मनुष्य के शरीर के चारों ओर एक आभामंडल होता है l उसके रंग भाव परिवर्तन के साथ बदलते रहते हैं l भाव और आभा मंडल का गहरा संबंध है l हम भाव- शुद्धि के द्वारा आभामंडल को विशुद्ध बना सकते हैं और आभा मंडल की विशुद्धि से भाव की विशुद्धि को जाना जा सकता है l
आनंद केंद्र पर हरे रंग का ध्यान
अनुभव करें अपने चारों और पन्ने की भांति चमकते हुए हरे रंग का प्रकाश फैल रहा है हरे रंग के परमाणु फैल रहे हैं l अब इस हरे रंग का श्वास लें l अनुभव करें प्रत्येक श्वास के साथ हरे रंग के परमाणु शरीर के भीतर प्रवेश कर रहे हैं l चित्त को आनंद केंद्र पर केंद्रित करें l वहां पर चमकते हुए हरे रंग का ध्यान करें l
(कुछ समय बाद) अनुभव करें- आनंद केंद्र से हरे रंग के परमाणु निकलकर शरीर के चारों और फैल रहे हैं l पूरा आभामंडल हरे रंग के परमाणुओं से भर रहा है l उन्हें देखें, अनुभव करें l ...अनुभव करें - भावधारा निर्मल हो रही है, भावधारा निर्मल हो रही है, भावधारा निर्मल हो रही है l
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8. अप्रमाद केंद्र
चित्त को अप्रमाद केंद्र दोनों कानों पर, भीतरी मध्य और बाहरी भाग पर तथा आस-पास के भाग पर केंद्रित करें l वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें l
9.चाक्षुष केंद्र
चित को चाक्षुष केंद्र दोनों आंखों के भीतर केंद्र भीतर केंद्रित करें l वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें l
10.दर्शन केंद्र
दर्शन केंद्र दोनों आंखों और भृकुटियों के मध्य भाग पर केंद्रित करें l भीतर गहराई तक ले जाएं lआगे से पीछे- मस्तिष्क से पीछे की दीवार तक चित्त को फैला दें l वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें l गहरी एकाग्रता और पूरी जागरूकता के साथ केवल अनुभव करें, प्रेक्षा करें l बीच- बीच में श्वास संयम का प्रयोग करें l
11.ज्योति केंद्र
चित्त को ज्योतिकेंद्र ललाट के मध्य भाग पर केंद्रित करें l भीतर गहराई तक चित्त को ले जाएं l आगे से पीछे मस्तक के पीछे के भाग में चित्त के के प्रकाश को फैलाएं l वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें l बीच-बीच में श्वास संयम का प्रयोग करें l
12. शांति केंद्र
चित्त को शांतिकेंद्र सिर के अग्रभाग पर केंद्रित करें, जैसे दिये का प्रकाश चारों दिशाओं में फैलता है उसी तरह चित्त को फैलाएं l भीतर गहराई तक चित्त को ले जाएं l वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें l
13.ज्ञान केंद्र
चित्त को ज्ञान केंद्र सिर के ऊपर के भाग, चोटी के स्थान पर केंद्रित करें l दीये के प्रकाश की भांति पूरे भाग में चित्त के प्रकाश को फैलाएं l गहराई तक चित्त को ले जाएं l वहां पर होने वाले प्राण की प्रकम्पनों का अनुभव करें l
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चैतन्यकेंद्र प्रेक्षा
चैतन्य केंद्र प्रेक्षा सुप्त चैतन्य केंद्रों को जागृत करने की प्रक्रिया है l
1. शक्ति केंद्र
चित्त को शक्ति केंद्र पुष्ठरज्जु के निचले सिरे पर केंद्रित करें वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें l गहरी एकाग्रता और पूरी जागरूकता के साथ शक्ति केंद्र की प्रेक्षा करें l पूरी एकाग्रता बनी रहे l
2. स्वास्थ्य केंद्र
चित्त को स्वास्थ्य केंद्र पेडू के मध्य भाग पर केंद्रित करें lआगे से पीछे सुषुम्ना चित के प्रकाश को फैलाए l वहां पर होने वाले प्राण के प्रकरणों का अनुभव करें l
3.तैजस केंद्र
चित्त को तैजस केंद्र नाभि के स्थान पर केंद्रित करें l आगे से पीछे सुषुम्ना तक पूरे भाग में चित्त को फैलाए जैसे टॉर्च का प्रकाश सीधी रेखा में फैलता है, वैसे ही चित्त के प्रकाश को सीधी रेखा में आगे से पीछे तक फैलाएं l वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें l गहरी एकाग्रता और पूरी जागरूकता के साथ प्रेक्षा करें, जिससे स्वतः ही श्वास संयम हो जाए l
4.आनंद केंद्र
चित्त को आनंद केंद्र के पास (दोनों फुप्फुस के बीच में) जो गड्ढा है, वहां पर केंद्रित करें l आगे से पीछे सुषुम्ना तक टॉर्च के प्रकाश की भांति चित्त के प्रकाश को फैलाएं और वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें l बीच-बीच में श्वास संयम का प्रयोग करें l
5.विशुद्धि केंद्र
चित्त को विशुद्धि केंद्र के मध्य भाग पर केंद्रित करें l आगे से पीछे सुषुम्ना तक चित्त के प्रकाश को पृष्ठ भाग में फैलाएं l वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें l बीच-बीच में श्वास संयम का प्रयोग करें
6.ब्रह्म केंद्र
चित्त को ब्रह्म केंद्र जीभ के अग्र भाग पर केंद्रित करें l जीभ अधर में रहे l वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें l
7.प्राण केंद्र
चित्त को प्राण केंद्र नासाग्र पर केंद्रित करें वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें l
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कायाकल्प का प्रयोग
यह स्वास्थ्य और अवयव शक्ति के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयोग है l यह शरीर प्रेक्षा का वैकल्पिक प्रयोग है l
प्रत्येक अवयव पर ध्यान दें, शोधन का सुझाव, फिर पोषण का सुझाव दें
1.सिर 2.ललाट
3.दांया नेत्र 4.बांया नेत्र 5.दांया कान 6.बांया कान 7.नाक 8.मुख
9.जीभ 10. कंठ
11.दांया कंधा 12.बायाकंधा 13.दाँयी भुजा 14.बांयीभुजा 15.दांया हाथ 16.बांया हाथ 17.फुफ्फुस 18.ह्रदय
19. मध्य भाग 20. पेट
21.नाभि 22.कटि
23.दाँयी साथल
24.बांयी साथल
25.दांया घुटना 26.बांया घुटना 27.दाँयी जंघा 28.बांयी जंघा
29.दांया टखना 30.बांयाटखना
31.दाँयी एड़ी 32.बांईएड़ी
33.दांया पंजा, तलवा
34.बांया पंजा तलवा
35.दायें पैर का अंगूठा, अंगुलियां
36.बायें पैर का अंगूठा, अंगुलियां
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2.शरीर प्रेक्षा
शरीर प्रेक्षा में हमें शरीर को देखना है l खुली आंखों से नहीं, चित्त से l आँखे बंद रहेंगी l चित्त को शरीर के प्रत्येक अवयव पर ले जाकर वहां होने वाले परिणमन,स्पंदन,प्रकंपन या संवेदन आदि को द्रष्टाभाव से देखना है l कपड़े का स्पर्श, पसीना, खुजली,दर्द आदि जो कुछ अनुभव हो, उसे देखना है , केवल देखना है, उसका अनुभव करना है l
प्रत्येक अवयव पर आधा से एक मिनट की प्रेक्षा करें l
इसी प्रकार बाएं पैर की प्रेक्षा करें l
शरीर के मध्य भाग की यात्रा प्रारंभ करें l पेडू के पूरे भाग में चित्त की यात्रा करें- दाएं- बाएं, आगे- पीछे, बाहर और भीतर- प्रत्येक भाग में चित्त को केंद्रित करें और वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें l केवल द्रष्टाभाव देखें l
अब पेट के प्रत्येक भीतरी अवयव की प्रेक्षा करें दोनों गुर्दे... बड़ी आंत.... छोटी आंत.... अग्नाशय (पैंक्रियाज)....पक्वाशय (डियोडिनम) आमाशय (स्टॉमक).... तिल्ली (स्प्लीन)...यकृत (लिवर)और तनपुट (डायफाम)...प्रत्येक अवयव पर 20 से 30 सैकिंड रुकें l
वक्षस्थल (छाती) के पूरे भाग की यात्रा करें दांए-बांए, आगे-पीछे, बाहर और भीतर,
प्रत्येक भाग में चित्त को केंद्रित करें और वहां पर होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें l
अब वक्ष स्थल के प्रत्येक अवयव की प्रेक्षा करें- ह्रदय...दाँयी पसलियां बाईँ पसलियां... दाया फेफड़ा... बाया फेफड़ा.... l
पीठ का पूरा भाग मेरुदंड, सुषुम्ना, सुषुम्नाशीर्ष, गर्दन l
दायां हाथ... अंगूठा... अंगुलियां... हथेली... मणिबंध (कलाई)... कलाई से कोहनी तक कोहनी से कंधे तक प्रेक्षा करें l
कंठ... स्वर यंत्र... प्रत्येक भाग पर क्रमशः चित्त की यात्रा करें और प्रेक्षा करें l मध्यलोक की यात्रा संपन्न l
अब शरीर के ऊपरी भाग यात्रा प्रारंभ करें ठुड्डी...ओष्ठ... मुंह... मुंह के भीतर के मसूढ़े....जीभ... तालु...दांया कपोल... नाक... दाई कनपटी, दांया कांन... बाया कनपटी, बांया कान... दाँयी आंख... बाई आंख...ललाट और सिर l प्रत्येक भाग की प्रेक्षा करें l
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लयबद्ध दीर्घश्वास प्रेक्षा
श्वास को लयबद्ध करें lपहली बार श्वास को लेने और छोड़ने में जितना समय लगे, दूसरी बार भी उतना ही समय लगे, तीसरी बार भी उतना ही समय लगे l प्रत्येक श्वास को जानते हुए ले, जानते हुए छोड़े l केवल श्वास का अनुभव करें l
समवृति श्वास प्रेक्षा
श्वास की गति को मंद करें l धीरे-धीरे लंबा श्वास लें, धीरे-धीरे लंबा श्वास छोड़ें l बाएं नथुने से श्वास लें, दाएं से निकालें, फिर दाएं से लें और बाएं से निकालें l संकल्प- शक्ति के द्वारा ऐसा करें l यदि संकल्प- शक्ति के सहारे ना कर सकें, तो अंगुली और अंगूठे के सहारे करें l श्वास के साथ चित्त को जोड़ें l चित्त और श्वास दोनों साथ-साथ चलें l केवल श्वास का ही अनुभव करें l
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1.श्वास प्रेक्षा
श्वास प्रेक्षा के तीन प्रकार हैं-
1. निम्न श्वास पेट के नीचे का भाग फूले l छाती ना फूले lकंधे अपनी मूल स्थिति में रहें l
2. मध्य श्वास लंबा श्वास l पसलियों से छाती तक का भाग फूले l पेट स्वाभाविक रहे l
3.उत्कृष्ट श्वास पेट फूले l छाती स्वाभाविक रहे l
श्वास प्रेक्षा में दीर्घश्वास का प्रयोग किया जाता है l दीर्घश्वास और मंदश्वास दोनों एक ही है l श्वास प्रेक्षा में पूरक के समय दीर्घश्वास और रेचन के समय भी दीर्घश्वास का प्रयोग किया जाता है l
श्वासप्रेक्षा के तीन रूप है l
1.दीर्घश्वास प्रेक्षा
2.लयबद्ध दीर्घ श्वास प्रेक्षा
3.समावृत्ति श्वासप्रेक्षा
श्वास की गति को मंद करें l धीरे-धीरे लंबा श्वास धीरे-धीरे लंबा श्वास छोड़ें l श्वास के कंपन नाभि तक पहुंचे l श्वास लेते समय पेट की मांसपेशियां फूलती है, श्वास छोड़ते समय सिकुड़ती है l चित्त को नाभि पर केंद्रित करें और पेट की मांसपेशियों के फूलने और सिकुड़ने का अनुभव करें l(3 मिनट के बाद) चित्त को नाभि से हटाकर दोनों नथुनों के भीतर संधि- स्थल पर केंद्रित करें l आते- जाते प्रत्येक श्वास का अनुभव करें l
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3.अध्यात्म चिकित्सा की प्रविधि
अध्यात्म चिकित्सा की कार्य पद्धति के सात सूत्र हैं-
1. शिथिलीकरण
2.प्रेक्षा
3.अनुप्रेक्षा
4.भावना,सम्मोहन,स्वसम्मोहन
5.जप
6.आसन
7.प्राणायाम
1.शिथिलीकरण
कायोत्सर्ग की मुद्रा,आंखें बंद,श्वास मंद l शरीर को स्थिर, शिथिल और तनाव मुक्त करें l मेरुदंड और गर्दन को सीधा रखें, अकड़न न हो l मांसपेशियों को ढीला छोड़ें l शरीर की पकड़ को छोड़ें l
प्रत्येक अवयव में शीशे की भांति भारीपन का अनुभव करें l प्रत्येक अवयव में रुई की भांति हल्के पन का अनुभव करें l
शरीर के प्रत्येक अवयव को शिथिल करें और प्रत्येक भाग पर ले जाएं l
पूरे भाग में चित की यात्रा करें l शिथिलता का सुझाव दें और उसका अनुभव करें l प्रत्येक मांसपेशी और प्रत्येक स्नायु शिथिल हो जाए l पूरे शरीर की शिथिलता को साधें l गहरी एकाग्रता, पूरी जागरूकता l
2. प्रेक्षा
प्रेक्षा के अनेक अंग है-
1. श्वास प्रेक्षा
2.शरीर प्रेक्षा
3. चैतन्य केंद्र प्रेक्षा
4.रंग प्रेक्षा
5. विचार प्रेक्षा
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8.रंग चिकित्सा
लेश्याध्यान सूर्य रश्मियों या रंगों का ध्यान है l रंग हमारे शरीर, मन और भाव को प्रभावित करते हैं l शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य में भी इनका महत्वपूर्ण योग है l इनकी पूर्ति रंगीन श्वास, आतापना तथा सूर्य- रश्मि चिकित्सा के द्वारा की जा सकती है l
9.भावविशुद्धि
मनुष्य के स्वरूप को समझने और उसकी व्याख्या करने का सर्वोच्च माध्यम है- भाव l
1.अवचेतक(Hypothalamus) भावना के प्रति बहुत संवेदनशील है l वह भावना के द्वारा प्रभावित होता है l
2.भावना अनैच्छिक स्नायु(Involuntary Nerve) और अंतः स्त्रावी ग्रंथियों द्वारा शरीर को प्रभावित करती है l
3. अनैच्छिक स्नायुओं पर हमारा नियंत्रण नहीं होता l भावना द्वारा उनको प्रभावित किया जा सकता है l
4.अवचेतन को प्रभावित कर भाग तरंग को बदला जा सकता है l
5.भाव बदलकर चिकित्सा की जा सकती है l
हर भाव के साथ परमाणु-स्कंधों का ग्रहण होता है l अनिष्ट भाव के समय अनिष्ट पुद्गलों का ग्रहण होता है l वे शरीर और मन को रुग्ण बनाते हैं l रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है l
इष्ट भाव के समय इष्ट पुद्गलों का ग्रहण होता है l वे शरीर और मन को स्वस्थ बनाते हैं l रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, प्रतिरोधक प्रणाली(Immunity System)शक्तिशाली बनती है l
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7.उपवास
उपवास अपने आप में पूर्ण चिकित्सा पद्धति है l अध्यात्म चिकित्सा के साथ भी इसका विवेकपूर्ण प्रयोग करना आवश्यक है l एक दिन या कुछ दिनों तक भोजन का परिहार करने से पाचन तंत्र को विश्राम मिलता है lशरीर में जमे हुए विषों का शोधन होता है l शोधन के लिए अनेक प्रकार के प्रयोग किए जा सकते हैं -
1. एक या दो बार से अधिक नहीं खाना l
2. प्रातः काल के नाश्ते में अन्न या गरिष्ठ वस्तुओं का प्रयोग ना करना l
3.प्रतिदिन गरिष्ठ भोजन न करना l
स्वस्थ रहने के लिए उदर शुद्धि अनिवार्य है lइसलिए चिकित्सा से पूर्व उदर शुद्धि पर ध्यान देना बहुत जरूरी है l उदर शुद्धि का विवेक किए बिना जो औषधि दी जाती है उसका यथेष्ट लाभ नहीं होता l
परिमित संतुलित आहार अध्यात्म चिकित्सा का महत्वपूर्ण अंग है l कम कैलोरी का भोजन करने पर चयापचय की क्रिया व्यवस्थित होती है l आवारा रसायनों की मात्रा घट जाती है यह रोग-मुक्ति का एक उत्तम उपाय है l
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6. कायोत्सर्ग
कायोत्सर्ग शरीर के शिथिलीकरण और ममत्व के विसर्जन का प्रयोग है l स्थिरीकरण से शरीर शिक्षित होता है lवह मन की आज्ञा का पालन करता है यह ध्यान की आधार भूमि है lतनाव-मुक्ति और व्याधि- चिकित्सा में भी इसका बहुत अधिक महत्व है l
शरीर की प्रवृत्ति के लिए मस्तिष्क को सक्रिय होना पड़ता है l वह ज्ञान- तंतुओं (Sensory Nerves )के द्वारा अपेक्षा का संदेश पाकर उसकी पूर्ति के लिए कर्म-तंतुओं (Motor-Nerver) के माध्यम से अपना संदेश मांसपेशियों तक पहुंचाता है शिथिलीकरण से मस्तिष्क को विश्राम मिलता है, नाड़ी संस्थान को विश्राम मिलता है l शिथिलीकरण का गहन अभ्यास होने पर प्रत्येक कोशिका को विश्राम की स्थिति में लाया जा सकता है l
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ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
संकल्प शक्ति
संकल्प-शक्ति का प्रयोग अनुप्रेक्षा का एक अंग है l इसके द्वारा अनेक कार्यों की सिद्धि की जा सकती है l तेजस् केंद्र पर ध्यान कर जो संकल्प किया जाता है वह शीघ्र सफल होता है इसका चिकित्सात्मक पक्ष भी बहुत मजबूत बहुत उपयोगी होता है l इसके द्वारा अपने रोगों की चिकित्सा भी की जा सकती है और दूसरे के रोगों का उपचार भी किया जा सकता है l
अपना रोग दूर करने की विधि-
शरीर को शिथिल कर लयबद्ध श्वास लो l श्वास द्वारा अधिक प्राण खींचने का संकल्प करो l निः श्वास के साथ प्राण को रुग्ण स्थान पर भेजो l सिर से लेकर रुग्ण भाग तक हाथ फेरो l कल्पना करो कि प्राण भुजाओं में प्रवाहित होता हुआ अंगुलियों के छोरों से शरीर में प्रवेश कर रहा है रुग्ण अंग को स्वस्थ कर रहा है
5. ध्वनि के प्रकंपन
ध्वनि के प्रकंपन भावना के प्रकंपनों के साथ मिलकर नई स्थिति का निर्माण करने में सक्षम हो जाते हैं lध्वनि-प्रकंपन विकार को बाहर निकाल देते हैं और प्रतिरोधक प्रणाली(Immunity System) को शक्तिशाली बनाते हैं l
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3.शरीर प्रेक्षा
हम जिस वस्तु को ध्यान से देखते हैं जिसमें उसमें परिवर्तन शुरू हो जाता है l शरीर प्रेक्षा के समय रसायन बदलने लग जाते हैं l शरीर के जिस भाग पर ध्यान केंद्रित करते हैं उस भाग में प्राण का प्रवाह अधिक हो जाता है l रक्त संचार और प्राण प्रवाह इन दोनों का सम्यक् योग होने से सहज ही स्वास्थ्य की समस्या का समाधान हो जाता है l
अनुप्रेक्षा
अनुप्रेक्षा आदतों को बदलने का एक महत्वपूर्ण प्रयोग है lइसके द्वारा पुरानी आदतों में काट छांट और नई आदतों का निर्माण किया जा सकता है lइसका प्रमुख साधन है आत्मसूचन (Auto- suggestion) l निद्रा या हिप्टोनिक अवस्था में दिए जाने वाले सुझावों की अपेक्षा जागरूक अवस्था में दिए जाने वाले सुझाव शक्तिशाली होते हैं l शरीर के किसी भी अवयव में रोग हो तो उसका संवादी मस्तिष्क का अवयव रोग ग्रस्त हो जाता है यदि हम मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं तो रोग नष्ट हो जाता है l ओटो-सजेशन इसका सबसे उत्तम उपाय है l
काल्पनिक प्रतिबिंबों द्वारा शारीरिक क्रियाओं का नियंत्रित किया जा सकता है lपीड़ा को अधिकाधिक मूर्त रूप (जैसे खूंखार कुत्ता आदि) देने की कल्पना करना, फिर उससे मैत्री करना l इस प्रकार पीड़ा पर नियंत्रण पाया जा सकता है किया जा सकता है l
भावना के द्वारा शरीर में अनेक रसायन उत्पन्न होते हैं -कुछ अमृत तुल्य, कुछ विष तुल्य l मस्तिष्कीय विद्या के अनुसार स्नायु तंत्र के संचालन में मस्तिष्कीय विद्युत् तरंग और रासायनिक तत्व का महत्वपूर्ण स्थान है l
रासायनिक संतुलन और असंतुलन में भावना का बहुत बड़ा योग है l
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2.एकाग्रता
मन की चंचलता का अतिरेक रोग का हेतु है l किसी एक बिंदु पर मन को केंद्रित करना स्वास्थ्य का हेतु है l अभ्यास के द्वारा ही उसकी सिद्धि की जा सकती है l
मन की एकाग्रता के लिए आवश्यक है दीर्घश्वास l दीर्घश्वास के साथ स्वास्थ्य का गहरा संबंध है l श्वास से प्रश्वास दुगुना या चौगुना करने पर मस्तिष्क को विश्राम मिलता है l श्वास की मात्रा चार हो,प्रश्वास की मात्रा आठ या सोलह हो तो सहज मस्तिष्कीय शिथिलीकरण हो जाता है l श्वास छोड़ते समय मांसपेशीय तनाव नहीं होता और प्रश्वास की अवस्था में स्वभावतः ह्रदय - दर निम्न रहती है l इस अभ्यास से मस्तिष्कीय तरंगों को प्रभावित किया जा सकता है lइससे शरीर के अंग और प्रणालियां भी प्रभावित होती हैं l इस प्रकार का अभ्यास स्वास्थ्य का प्रमुख अंग है l
छोटे श्वास से ह्रदय की गति अव्यवस्थित हो जाती है l इस अवस्था में हृदय को अतिरिक्त श्रम करना पड़ता है l
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2.अध्यात्म चिकित्सा के मूल तत्व
प्राण धारा का प्रवाह समय और कहां ?
समय अवयव
सुबह
3 बजे से 5 बजे तक फेफड़े
5 बजे से 7 बजे तक बड़ी आंत
7 बजे से 1 बजे तक पेट
1बजे से11बजेतक तिल्ली, अग्न्याश्य
दोपहर
11 बजे 1बजे तक ह्रदय
1 बजे से 3 बजेतक छोटी आंत
3बजे से 5 बजेतक उत्सर्जनतंत्र
5 बजे से 7 तक गुर्दे
सायंकाल
7 बजे से1बजेतक ह्रदय की झिल्ली
1बजे से 11 बजे तक श्वसन तंत्र, पाचनतंत्र,उत्सर्जन तंत्र
11बजे से 1 बजे तक मूत्राशय
1 बजे से 3 बजे तक यकृत
प्राण प्रेक्षा प्राण शक्ति को बढ़ाने और उसका स्वास्थ्य के लिए उपयोग करने में प्राण-प्रेक्षा का प्रयोग बहुत महत्वपूर्ण है l
प्राण अवयव
प्राण ह्रदय
अपान गुदा
समान नाभि
उदान कंठ
वयान पूर्ण शरीर
रंग समय
गुलाबी 3 मिनट
पीला 5 मिनट
लाल 5 मिनट
नीला 5 मिनट
श्वेत 5 मिनट
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प्राण का असंतुलन रोग उत्पन्न करता है l प्राण का संतुलन शरीर को स्वस्थ रखता है l प्राण संतुलन के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय है प्राण संतुलन के लिए प्राण पर विजय पाना आवश्यक है l समवृत्ति श्वास प्रेक्षा का प्रयोग प्राण संतुलन के लिए महत्वपूर्ण उपाय है l जिस प्राण पर नियंत्रण करना हो उसके केंद्र पर ध्यान कर दीर्घश्वास का प्रयोग करें l
प्राण संचार के द्वारा पीड़ा का शमन किया जा सकता है l पीड़ा शामक औषध के रूप में इसका प्रयोग हो सकता है l
पीड़ा शमन प्राण- जय का लक्षण है शरीर के किसी भी हिस्से में रोग या पीड़ा हो वहां कुंभक करें l कुछ समय के बाद रोग या पीड़ा शांत हो तो जानना चाहिए कि प्राण- विजय हुआ है l
जिस समय जिस अवयव पर प्राणधारा का प्रवाह हो उस समय उस अवयव पर ध्यान करने से वह पुष्ट होता है, सक्रिय होता है और उस अवयव के रोग का निवारण होता है l
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2.अध्यात्म चिकित्सा के मूल तत्व
आयुर्वेद और हठयोग के अनुसार प्राण के पांच प्रकार हैं - प्राण केंद्र
1. प्राण नासाग्र और ह्रदय
2.अपान गुदा
3.समान नाभि
4.उदान कंठ और औष्ठ
5.व्यान त्वचा
प्राण का संबंध सूर्य से, ज्ञान का ज्ञान का चंद्रमा से, अपान का अग्नि तत्व से, समान का जल तत्व से और उदान का वायु तत्व से है l नेत्र में प्राण, स्रोत में व्यान, वाणी में अपान, मन में समान, ओज में उदान प्राणी की मात्रा प्रचुर होती है l
प्राण के प्रवाह
प्राण के मुख्य प्रवाह तीन हैं -
1. ईडा
2.पिंगला
3.सुषुम्ना
ईडा का संबंध ज्ञानवाही धाराओं से, मानसिक क्रियाकलाप से है l पिंगला का संबंध शारीरिक क्रिया से है l सुषुम्ना का संबंध केंद्रीय नाड़ी तंत्र से (Central Nervous System) से है l ईड़ा शक्ति का आंतरिक रुप है और पिंगला शक्ति का बाह्य रूप है l सुषुम्ना केंद्रीय शक्ति है l
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2.अध्यात्म चिकित्सा के मूल तत्व
श्वास, भाव और मन की गति के नियम-
1. ध्यान में श्वास मंद हो जाता है l यदि श्वास को मंद करें तो ध्यान हो जाता है l
2. क्रोध का भाव उभरता है तब एक प्रकार का श्वास होता है l शांति का भाव उभरने पर दूसरे प्रकार का श्वास होता है l
3. श्वास एक प्राण शक्ति है l प्राण शक्ति चेतना से जुड़ी हुई है l इसलिए श्वास को देखने का अर्थ है श्वास के साथ जुड़ी हुई प्राणधारा का अनुभव करना और प्राण धारा के अनुभव का अर्थ है उसकी आधारभूत चेतना का अनुभव करना l
4. श्वास को देखने से "मैं कौन हूं" यह उलझा हुआ प्रश्न सुलझता है l श्वास दर्शन के लंबे अभ्यास से प्राण और चैतन्य का स्पष्ट अनुभव हो जाता है l 5.दीर्घ श्वास और सहज श्वास दो नहीं हैं l वास्तव में दीर्घ श्वास ही सहज श्वास है l केवल छाती फूले यह सहज श्वास नहीं है l पेट फुले और सिकुड़े वह सहज श्वास है, वही दीर्घ श्वास है l
प्राण ऊर्जा का सम्यक् प्रयोग
प्राण सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर के बीच का संबंध सूत्र है l यह स्थूल शरीर को सूक्ष्म शरीर से जोड़ता है l
जैन दर्शन के अनुसार प्राण के पांच प्रकार हैं -
1. शरीर प्राण
2.इंद्रिय प्राण
3.श्वासोच्छवास प्राण
4.भाषा प्राण
5. मन प्राण
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अध्यात्म चिकित्सा के आधारभूत तत्व नौं है -
1.श्वास और प्राण ऊर्जा का सम्यक् प्रयोग
2.एकाग्रता
3.शरीर प्रेक्षा
4. अनुप्रेक्षा
5. ध्वनि के प्रकंपन
6.कायोत्सर्ग
7.उपवास
8.रंग-चिकित्सा
9.भाव विशुद्धि
1. श्वास और प्राण ऊर्जा का सम्यक् प्रयोग
श्वास का सम्यक् प्रयोग श्वास की गति बदलने पर भाव बदलता है l भाव बदलने पर श्वास की गति बदल जाती है l आवेश का भाव उभरता है तब श्वास की गति तेज हो जाती है, उसकी संख्या बढ़ जाती है l शांति का भाव उभरने पर श्वास की गति मंद हो जाती है, उसकी संख्या घट जाती है l
श्वास आंतरिक भावों का मापक यंत्र है l श्वास के प्रति जागने वाला व्यक्ति अंतरंग में उभरने वाले भाव के प्रति सहज ही जागरूक हो जाता है l वह उभरते हुए आवेश के भाव को बदल सकता है, निष्क्रिय कर सकता है l
भाव और स्वास्थ्य का संबंध जानने के लिए श्वास, भाव और मन के नियमों को जानना आवश्यक है l
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शुद्ध भाव मस्तिष्क की कार्य प्रणाली को बल देता है, मन को एकाग्र बनाता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है l इस प्रकार वह आरोग्य का हेतु बनता है l
क्रोध, अहंकार, कपट, लोभ, भय, घृणा,वासना,ईर्ष्या, निंदा और चुगली- ये सब अध्यात्मिक चिकित्सा में बाधा डालने वाले तत्व हैं l
क्षमा,विनम्रता,ऋजुता, संतोष, अभय, सौहार्द, सहज,आनंद, प्रमोद,भावना, परगुण दर्शन और मैत्री ये सब अध्यात्म चिकित्सा के साधक तत्व हैं l
स्वास्थ्य का बहुत महत्व है, उससे भी ज्यादा महत्व है स्वास्थ्य चेतना का l यदि स्वास्थ्य की चेतना जागृत है तो निश्चित ही आप जाने-अनजाने अध्यात्मिक है l आध्यात्मिक चिकित्सा स्वास्थ्य चेतना का अगला चरण है l
अस्वस्थ मनुष्य चिकित्सा कराता है -
एलोपैथिक चिकित्सा में विश्वास करने वाले डॉक्टर की दवा लेता है l
आयुर्वेदिक चिकित्सा में विश्वास करने वाला वैद्य की दवा लेता हैं l
होम्योपैथिक चिकित्सा में विश्वास करने वाला होम्योपैथिक दवा लेता है l
यूनानी चिकित्सा में विश्वास करने वाला हकीम की दवा देता है l
दवा लेने वाले रोगी को दवा लेने से नहीं रोका जा सकता l किंतु दवा लेने के साथ आध्यात्मिक चिकित्सा अथवा भाव चिकित्सा का मार्ग सुझाया जा सकता है l दवा के साथ इसका प्रयोग करने से स्वास्थ्य में शीघ्र सुधार होता है और स्थाई सुधार होता है l
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अध्यात्म की परिपार्श्व में होने वाली प्रवृत्ति अध्यात्म है l वह मानवीय चेतना का सर्वोत्तम विकास है l उसका प्रयोग आत्मोपलब्धि के लिए किया जाता है l
आत्मा अरुज है l वह कभी रोग से आक्रांत नहीं होती l जो स्वयं अरुज है उसका उपयोग रोग निवारण के लिए सहजतया किया जा सकता है ।
आध्यात्मिक चिकित्सा का मूल आधार है - आत्मा के अरूज स्वभाव का चिंतन करना और तैजस केंद्र पर ध्यान केंद्रित करना ।
आत्मा की प्रकाश रश्मियों का निस्सरण अनेक रूपों में होता है - इन्द्रिय चेतना के द्वारा बाह्य जगत से संपर्क स्थापित होता हैl
मन की चेतना के द्वारा इंद्रिय का संचालन होता है वह बाह्य जगत से दूर है, आत्मा से अधिक निकट है इसलिए अध्यात्मिक चिकित्सा का अर्थ है -भाव चिकित्सा ।
भाव शुद्ध और अशुद्ध प्रकार के होते हैं । अशुद्ध भाव मस्तिष्क में विकृति पैदा करता है, मन को चंचल बनाता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को कम करता है । इस प्रकार वह रोग पैदा करने का हेतु बनता है ।
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