ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः
गतांक से आगे--------
भगवान महावीर ने स्कंदक सन्यासी से कहा था--'स्कंदक !ऐसा कोई छण न था, न है, और ना होगा जिसमें इस जगत का अस्तित्व ना हो'। यह अस्तित्व की दृष्टि से जगत की शाश्वतता का प्रतिपादन है।
भगवान ने जमालि से कहा था--जमालि !इस जगत में कालचक्र गतिशील रहता है--अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी का क्रम चालू रहता है।फलत: जगत का आंचलिक स्वरूप बदलता रहता है। और यह परिवर्तन की दृष्टि से जगत की अशाश्वतता का प्रतिपादन है। ऐतिहासिक अध्ययन के लिए जगत का परिवर्तनशील रूप ही हमारे लिए उपयोगी है।
कालचक्र
कालचक्र जागतिक ह्रास और विकास के क्रम का प्रतीक है। काल का पहिया नीचे की ओर जाता है तब भौगोलिक परिस्थिति तथा मानवीय सभ्यता और संस्कृती ह्रासोनमुखी होती है । काल का पहिया जब ऊपर की और जाता है तब वे विकासोन्मुखी होते हैं
काल की इस ह्रासोनामुखी गति को अवसर्पिणी और विकासोन्मुखी गति को उत्सर्पिणी कहां जाता है।
अवसर्पिणी में वर्ण, गंध ,रस, स्पर्श ,सहनन, संस्थान,
आयुष्य,शरीर,सुख आदि पर्यायों की क्रमशः अवनति होती है।
उत्सर्पिणी में उक्त पर्यायों क्रमशः उन्नति होती है। वह अवनति और उन्नति सामूहिक होती है, वैयक्तिक नहीं होती ।
अवसर्पिणी की चरम सीमा ही उत्सर्पिणी का आरंभ है और उत्त्सर्पिणी का अंत हीअवसर्पिणी का जन्म है। प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्त्सर्पिणी के छह -छह विभाग(पर्व) होते हैं।
अवसर्पिणी के छह विभाग
1. सुषम -सुषमा 2. सुषमा
3. सुषमा -दुषमा 4. दुषम-
सुषमा
5. दुषमा 6. दुषम-दुषमा।
उत्त्सर्पिणी के छह विभाग इस व्यतिक्रम से होते हैं।
1. दुषम - दुषमा 2.दुषमा
3. दुषम-सुषमा। 4. सुषम-
दुषमा
5. सुषमा। 6. सुषमा- सुषमा।
1. सुषमा -सुषमा
आज हम अवसर्पिणी के पांचवे पर्व -दुषमा मे जी रहे हैं । हमारे जीवन का क्रम सुषम- सुषमा से शुरू होता है। उस समय भूमि स्निग्ध थी।वर्ण ,गंध, रस और स्पर्श अत्यंत मनोज्ञ थे। मिट्टी की मिठास आज की चीनी से अनंत गुना अधिक थी। कर्मभूमि थी, किंतु अभी कर्मयुग का प्रवर्तन नहीं हुआ था। पदार्थ अति स्निग्ध थे। इस युग के मनुष्य 3 दिन के अंतर पर अरहर की दाल जितनी सी वनस्पति खाते और तृप्त हो जाते। खाद्य पदार्थ अप्राकृतिक नहीं थे। विकास बहुत कम थे इसलिए उनका जीवनकाल बहुत लंबा होता था। वे तीन पल्य तक जीते थे। उनका शरीर तीन गांउ ऊंचा था। वे स्वभाव से शांत और संतुष्ट होते थे। यह चार कोटि-कोटि सागर(काल का काल्पनिक परिमाण) का एकान्तक सुखमय पर्व बीत गया।
आगे का अंश अगली पोस्ट में....
आगम असम्मत् कुछ गवलिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं |
"मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"
विषय - जैन इतिहास
वार- बुधवार, 16/08/2017
प्रश्न पत्र :40
Q:1. अम्बड परिव्राजक के समक्ष भगवान महावीर ने किसकी प्रशंसा की ?
Ans.
Q:2. श्रुत की आशातना करके किसने रूप बदला ?
Ans.
Q:3. तीर फेंक कर कौन तिरे?
Ans.
Q:4. हरिणगमेषी देव ने साधु का रूप धारण कर किसकी परिक्षा ली ?
Ans.
Q:5. समुद्र मे जन्म लेकर मोक्ष कौन गये ?"
Ans.
आगम असम्मत्त कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।????????????????????????
???????? -MMBG परिवार????????
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