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Karyasala

बारह व्रत कार्यशाल

”मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  03/09/2017 / रविवार
क्र्मांक – 26

अनर्थदण्ड विरमण व्रत

सीमा पहचान है मनुष्य की
       जो व्यक्ति अपनी पहचान सीमा, व्रत और त्याग से बनाता है वास्तव में वह दुनिया का एक विशिष्ट व्यक्ति है। जिसकी पहचान असीम होती है, सब कुछ आ सकता है, कहीं कोई निषेध नहीं, कही कोई प्रतिषेध नहीं - वह विशिष्ट नहीं हो सकता। अध्यात्म की दृष्टि से विचार करें तो जो निषेध करना नहीं जानता, वह दुनिया का जधन्य प्राणी है। जैन आगम में श्रेणियां मानी जाती हैं- जधन्य, मध्यम, उत्कृष्ट।  जो सीमा करना नहीं जानता, वह न उत्कृष्ट कोटि का मनुष्य है, न मध्यम कोटि का मनुष्य है किन्तु वह जधन्य कोटि का मनुष्य है। जिसके जीवन में कोई व्रत नहीं, कोई अस्वीकार की शक्ति नहीं, कोई त्याग नहीं, कोई सीमा नहीं, वह कैसा आदमी होगा?

आओ हम सीमा कर अपनी पहचान बनाए, सच्चे श्रावक का धर्म निभांए या अपनाएं। 

पन्द्रह कर्मादान (अधिक हिंसाजन्य व्यवसाय)

श्रमणोपासक के लिए मर्यादा के उपरांत पन्द्रह कर्मादान अनाचरणीय हैं। 

1. अंगारकर्म- अग्निकाय के महाआरंभ वाला कार्य। 

2. वनकर्म- जंगल को काटने का व्यवसाय। 

3. शाकटकर्म- वाहन चलाने का व्यवसाय।
जैसे:- 3 शाटककर्म: लोहे या लकड़ी की सामान बनाकर बेचने का त्याग की बात आती है जैसे मोटर साईकिल, रिक्शा आदि के उद्योग लगाने का त्याग।

4. भाटककर्म- किराये का व्यवसाय।

5. स्फोटकर्म- खदान,पत्थर आदि फोडने का व्यापार। 

6. दन्तवाणिज्य- हाथीदांत, मोती, सींग, चर्म, अस्थि आदि का व्यापार। 

7. लाक्षावाणिज्य- लाख, मोम आदि का व्यापार। 

8. रसवाणिज्य- घी, दूध, दही तथा मद्य, मांस आदि का व्यापार। 

9. विषवाणिज्य- कच्ची धातु, संखिया, अफीम आदि विषैली वस्तु तथा अस्त्र-शस्त्र आदि का व्यापार। 

10. केशवाणिज्य- चमरी गाय , घोडा, हाथी तथा ऊन एवं रेशम आदि का व्यापार। 

11. यन्त्रपीलनकर्म- ईख , तिल आदि को कोल्हू में पीलने का धंधा। 

12. निर्लाछनकर्म- बैल आदि को नपुंसक करने का धंधा।

13. दावानलकर्म- खेत या भूमि को साफ करने के लिए आग लगाना तथा जंगलों में आग लगाना। 

14. सरद्रहतडाग शोषण- झील, नदी, तलाब आदि को सुखाना। 

15. असतीजन पोषण- दास, दासी, पशु, पक्षी आदि का व्यापारार्थ पोषण करना। 

मैं इन कर्मादानों का निश्चित सीमा के साथ प्रत्याख्यान करती हूं.......करण......योग से।

अगर आप बारह व्रती नहीं है तो आप बारह व्रती बने। अगर जीवन भर नहीं बन सकते हो तो कम से कम एक वर्ष का सौंगध/त्याग जरुर लेवें।
आगम असम्मत्त कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।????????????????????????

???????? MMBG परिवार ????????

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नोट :-आप से निवेदन है कि इस Post को ज्यादा से ज्यादा share कर धर्म संघ की प्रभावना में अपना योगदान दें। अगर आप MMBG परिवार से जुडना या अपने सुझाव देना चाहते है तो Whatsapp (9016861873) पर सम्पर्क करें। और MMBG Facebook Page  से जुड़ने के लिये इस link को like करें
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बारह व्रत कार्यशाल

???????? ”मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"????????

विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक – 13/08/2017 / रविवार
क्र्मांक – 25

भोगोपभोग परिमाण व्रत

14) एक दिन में....प्रकार मिठाई.....प्रकार की नमकीन से अधिक त्याग।

15) एक दिन में......प्रकार के धान्य से अधिक का प्रयोग करने का त्याग।

16) एक दिन में...प्रकार की दाल.....सूप, सलाद आदि से अधिक का उपयोग करने का त्याग।

17) एक दिन में......विगय से अधिक लेने का त्याग।

18) जमीकंद खाने का त्याग या दिन में.....से अधिक जमीकंद एवं......से अधिक हरी सब्जी, फल खाने का त्याग।

20) एक दिन में.....बार से अधिक अपने या दूसरे के घर खाने का त्याग

21) एक दिन में.....तरह के पानी से अधिक या.....किलो से अधिक पीने का त्याग

22) एक दिन में मुखवास के.....पदार्थ.....बार से अधिक खाने का त्याग

23) एक दिन में ...से अधिक सवारी करने का त्याग।

24) एक दिन में......से अधिक जूते या चप्पल खरीदने तथ.......से अधिक पहनने का त्याग।

25) सोने के लिए....से अधिक पलगं, गद्या, तकिया, चदर आदि के प्रयोग का त्याग।

26) एक दिन में.....द्रव्य से अधिक खाने का त्याग व एक दिन में.....से अधिक सचित्त का प्रयोग करने का त्याग।

27) शराब, मास, अण्डे एवं समस्त प्रकार के मादक द्रव्यों का आजीवन त्याग।

निम्नोत्तसे व्रत भंग नहीं-

• बीमारी, यात्रा या पदार्थ के गुम हो जाने पर दूसरा काम में लेना पडे
• अनजान में किसी वस्तु की मिलावट हो जाए।
• भूल से किसी दूसरे के जूते पहन लिए जाएँ।
• खरीदते समय कई कपड़े पहन कर देखने पडे आदि -- आदि।
• अनजान में परिणाम का अतिक्रमण हो जाए।

अगर आप बारह व्रती नहीं है तो आप बारह व्रती बने। अगर जीवन भर नहीं बन सकते हो तो कम से कम एक वर्ष का सौंगध/त्याग जरुर लेवें।
आगम असम्मत्त कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। ????????????????????????

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नोट:-आप से निवेदन है कि इस Post को ज्यादा से ज्यादा share कर धर्म संघ की प्रभावना में अपना योगदान दें। अगर आप *MMBG परिवार* से जुडना या अपने सुझाव देना चाहते है तो Whatsapp (9016861873) पर सम्पर्क करें। और *MMBG Facebook Page* से जुड़ने के लिये इस link को like करें
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बारह व्रत कार्यशाल

”मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  06/08/2017 / रविवार
क्र्मांक – 24

भोगोपभोग परिमाण व्रत

1) अपने शरीर पर पहनने के लिए साल भर में ----- ड्रेसों से अधिक नये बनवाने व खरीदने का त्याग तथा---- मीटर से अधिक नया वस्त्र खरीदने का त्याग। 

2) हाथ व शरीर पोंछने के लिए प्रतिदिन----- रुमाल --- तोलिया से अधिक काम में लेने का त्याग। 

3) दांत साफ करने के लिए प्रतिदिन--- प्रकार के दतौन, मंजन आदि ---- से अधिक काम में लेने का त्याग। 

4) स्नान के लिए एक दिन में ------ तरह के साबुन----- पाउडर ---- शैंपू, आंवला आदि का ---- बार से अधिक प्रयोग करने का त्याग। 

5) मालिश के लिए---- प्रकार के तेलों से अधिक काम में लेने का त्याग। 

6) शरीर पर पीठी करने के लिए एक दिन में----बार दही , मिट्टी आदि----प्रकार के पदार्थों से अधिक काम में लेने का त्याग। 

7) एक दिन में------बार से अधिक स्नान करने का त्याग या-----किलोग्राम से अधिक पानी के उपयोग का त्याग। 

8) एक दिन में------जोड़ी कपड़ों से अधिक पहनने का त्याग-----करण------योग से। 

9) शौक के निमित्त----से अधिक खुसबूदार पदार्थ के विलेपन का त्याग 

10) एक दिन में-----जाति से अधिक किस्म के फूल सूंघने का त्याग 

11) एक दिन में----तोला सोना----तोला चांदी से अधिक पहनने का त्याग

12) एक दिन में पानी के अतिरिक्त------ प्रकार के पेय से अधिक लेने का त्याग। 

13) एक दिन में---- प्रकार से अधिक धूप या अगरबत्ती आादि काम में लेने का त्याग। 

शेष अगले रविवार को।

अगर आप बारह व्रती नहीं है तो आप बारह व्रती बने। अगर जीवन भर नहीं बन सकते हो तो कम से कम एक वर्ष का सौंगध/त्याग जरुर लेवें।
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बारह व्रत कार्यशाल

”मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  06/08/2017 / रविवार
क्र्मांक – 23

वध बंधन अंग भंग अतिचार नहीं हो,
विच्छेद वृति का क्यों बेकार कहीं हो?
क्यों रहे क्रूरता? करुणा कोमलता हो,
श्रावक जीवन में मैत्री, निर्मलता हो।

अंहिसा और मैत्री:-

' न मारे ' -- यह अंहिसा का निषेधात्मक स्वरुप है। अंहिसा का विधेयात्मक स्वरुप है मैत्री और करुणा का विकास।  'मित्ती में सव्वभूएसु ' -- सब जीवो के मेरी मैत्री हो। 
और मैत्री भाव के विकास में सहायक है , अगार धर्म। भगवान महावीर ने श्रावकों के लिए बहुत सुंदर व स्पष्ट बारह व्रत का वरदान दिया। ताकि जो जीव पांच महाव्रत का पालन न कर सके , तो कम से कम बारह व्रत धारण कर , स्वंय के लिए सीमा निर्धारित कर ले। यानि अपनी इन्द्रियों को अपने वश में कर धर्म को अपने भीतर स्थापित कर सके। 

आज के युग में धर्म की परिभाष को समझाना व समझना कठिन होता जा रहा है। 
हम तो बहुत सौभाग्य शाली है , दो भ. महावीर के अनुयायी व तेरापंथ संध के सदस्य है , पर मात्र सदस्य बनने से हमारा उद्धार नहीं हैं। इसलिए हमे सर्वप्रथम बारह व्रती बन कर , इस पथ पर चलने योग्य बनाना है। बाकि मार्ग दर्शन मिलता रहेगा।वर्तमान आचार्य महाश्रमण जी जो अहिंसा यात्रा पर चल पडे है , कितने सौभाग्य शाली है हम जो ऐसे आचार्य मिले जो ना केवल अपने साधु व साध्वियों की सारसंभाल करते है बल्कि अपने पुरे श्रावक समाज के लिए चिंतित है। 

भाईयो व बहनो हमे भी ऐसे गुरु के लिए आभार व्यक्त करने में संकोच नहीं रहना चाहिए, उनके दिखाए मार्ग पर नि:संकोच चलते चलना है।

अगर आप बारह व्रती नहीं है तो आप बारह व्रती बने। अगर जीवन भर नहीं बन सकते हो तो कम से कम एक वर्ष का सौंगध/त्याग जरुर लेवें।
आगम असम्मत्त कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। ????????????????????????

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बारह व्रत कार्यशाल

”मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  30/07/2017 / रविवार
क्र्मांक – 22

दिग्व्रत

मैं दिशाओं का परिणाम करता / करती हुं।  

1) मैं अपने निवास स्थान या व्यापार क्षेत्र जहां भी रहूं, वहां से एक दिन में........कि.मी. से अधिक पूर्व में .......कि.मी से अधिक पश्चिम में......कि.मी. से अधिक पाताल में....कि.मी से अधिक आकाश में जाने का त्याग.....करण.....योग से।  

2) विश्व भ्रमण की दृष्टि से वर्ष भर में .....कि.मी. या .......देशों से अधिक में जाने का त्याग। 

3) मर्यादित क्षेत्र में एक दिशा के परिमाण को घटा कर दूसरी दिशा के परिणाम को बढाते का त्याग.....करण....योग से। 

4) मर्यादा क्षेत्र में संशय होने पर भी उसका अतिक्रमण किया हो। जैसे- 100 कि.मी की मर्यादा रखी या 200 की, इस स्थिति में 100 से आगे जाना।


निम्नोक्त से व्रत भंग नहीं-

धर्मप्रचार, चिकित्सा, संघीय सेवा, गुरुदर्शन, कोर्ट- केस आदि विशेष स्थिति में जाना पड़े।

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बारह व्रत कार्यशाल

”मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  16/07/2017 / रविवार
क्र्मांक – 21

जैनी कैसे होते है-

मैं जैनी हूं जनता में धाक जमाए, खोकर भी लाख , न अपनी साख गमाए। 
श्रमणोपासक होना सौभाग्य- घड़ी है, धार्मिक संस्कृति की संजीवनी जड़ी है।।

'मैं जैन हूं 'मैं श्रमणोपासक हूं- यह अहसास उसके सौभाग्य और गौरव का सूचक है। इस अहसास के साथ। वह जैनत्व को जीने के लिए भी संकल्पिक होता है। इससे अगले चरण में वह अपने जैन होने का प्रभाव जनता पर छोडता है। उससे बढते हुए प्रभाव से कुछ लोग ईष्यालु हो उठते हैं। उस समय उनकी कड़ी कसौटी हो सकती है। कसौटी के क्षणों में कभी-कभी उसे नुकसान भी उठाना पड़ता है। किन्तु उसके सामने एक ही लक्ष्य रहता है- ' जाए लाख, रहे साख' 

प्रामाणिकता पर एक कथा-
सेठ के कपड़े का व्यापार था। सेठ की प्रामाणिकता और नीतिमत्ता की शहर में छाप थी। किसी भी ग्राहक के साथ उसका व्यवहार छलनापूर्ण नहीं था। 
एक बार राजा को रेशमी वस्त्र की जरुरत पड़ी राजा से पहली बार बात करने के अवसर पर हडबडाट में पुछने पर कह दिया नहीं है। 
राजा से कुछ व्यक्तियों ने शिकायत की कपडा है। राजा ने कहा कल दुकान की तलाशी लेगे।  उधर सेठ को ख्याल आया, पुत्र से पुछा अपनी दुकान में रेशमी माल कितना है। पुत्र ने कहा एक लाख का, पिता ने कहा सारा जला दो। पुत्र ने आश्चर्य से पुछा क्यों। सेठ ने सारी बात बताई अंत में कहा 'जाए लाख रहे साख '  
अगले दिन दुकान की तलाशी पर कुछ नहीं मिला।  राजा ने उन व्यक्तियों की जीभ काटने का आदेश दिया जिन्होने शिकायत की। इधर सेठ को पता चलते ही,  दरबार में गया और सच्चाई कबूल की और क्षमा मांगी। राजा बहुत प्रसन्न हुआ और पुरे नुकसान की भरपाई कर दी।

अगर आप बारह व्रती नहीं है तो आप बारह व्रती बने। अगर जीवन भर नहीं बन सकते हो तो कम से कम एक वर्ष का सौंगध/त्याग जरुर लेवें।
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बारह व्रत कार्यशाल

”मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  09/07/2017 / रविवार
क्र्मांक – 20

इच्छापरिमाण व्रत-

मैं स्थूल परिग्रह का प्रत्याख्यान करता हूं/ करती हूं। 

1) खुली जमीन, मकान व खेती के लिए.....एकड़ से अधिक रखने का त्याग.....करण......योग से। 

2) मेरे खुद के नाम से........मकान से अधिक रखने का त्याग.....करण .....योग से। 

3) सोना.....तोला, चाँदी.....तोला से अधिक रखने का त्याग.....करण....योग से 

4) साल में.......से अधिक पशु रखने का त्याग....करण......योग से। 

5) नकद रुपये, हीरा, माणक, मोती आदि परिणाम से अधिक रखने का त्याग....करण....योग से।  

6) आँफिस, दुकान, गोदाम, फैक्ट्री, गैरेज, गेस्ट हाउस.....से अधिक अपने नाम पर रखने का त्याग.....करण .....योग से। 

7) घर खर्च के लिए एक वर्ष में......क्विंटल से अधिक अनाज आदि रखने का त्याग......करण.....योग से। 

8) ......बर्तन........घरेलु सामान आादि वर्तमान कीमत के हिसाब से......लाख से अधिक कीमत का एक साल में अपने हाथ से खरीदने का त्याग....करण......योग से। 


9) संतान की सगाई, विवाह के उपलक्ष्य में रुपये आदि लेने का ठहराव करने का त्याग....करण......योग से। 

निम्नोक्त से व्रत भंग नहीं-

• कोई सुरक्षा के लिए अपनी सम्पत्ति रख जाए। 
• किसी को देने का निर्णय होने के बाद मेरे पास पड़ा रहे। 
• कानून विधि से बचाव के लिए जमा खर्च करना पड़े। 
• विवाह आदि प्रसंग , सामाजिक प्रसंग या विशेष परिस्थितिवश करना पडे।

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बारह व्रत कार्यशाल

”मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  02/07/2017 / रविवार
क्र्मांक – 19

इच्छापरिणाम अणुव्रत अपरिग्रह का,
हो जाता स्वयं शमन आर्थिक विग्रह का।
आवश्यकता आकांक्षा एक नहीं है,
आकांक्षा पर हो अंकुश, यही सही है।।

इच्छाओं को सीमित करना पांचवां अपरिग्रह अणुव्रत है। इससे आर्थिक झंझट अपने - आप शांत हो जाते हैं। आवश्यकता और आकांक्षा एक नहीं है। आवश्यकता की पुर्ति हो सकती है, किन्तु आकांक्षा की पुर्ति असंभव है। अत: आकांक्षाओं पर अंकुश लगे, यही सिद्धांत सही है। 

समय बदलता है। उसके साथ कुछ अवधारणाएं भी बदल जाती हैं। आज का अर्थशास्त्रीय दृष्टिकोण इच्छाओं के विस्तार को महत्व देता है। उसके अनुसार विकास के लिए इच्छा बढ़ाना जरुरी है। इच्छा बढ़ेगी तो उत्पादन बढ़ेगा और उत्पादन बढ़ेगा तो देश का विकास होगा। यह बीसवीं सदी का चिन्तन है। 

भ.महावीर के युग में झांकने के लिए लगभग पचीस सदी पूर्व अतीत में देखे। साधु व श्रावक धर्म का वर्गीकरण भ.महावीर का मौलिक अवदान था। एक महत्वपूर्ण सूत्र इच्छा का परिणाम करो, इच्छा की सीमा करो।  

एक कथा याद आती है। 
एक सेठ था बहुत कुछ मेहनत करके धन दौलक कमाया दान वीर था, पर इच्छाओं की सीमा नहीं थी। एक दिन भगवान ने प्रसन्न होकर कहा, कोई एक वरदान मांगो। उसने कहा जिस वस्तु को हाथ लगाऊ सोना बन जाए। 
उस के इच्छाओं की सीमा न होने के कारण समझ भी हल्की पड़ गई। 
भ. ने कहा तथास्तु। अब तो घर की हर वस्तु सोने की यहां तक पत्नी, बेटा, बेटी, खाना और पीना भी। 
रो रोकर उसका बुरा हाल। इच्छाओं की सीमा न करने वालो का अंतिम परिणाम आंसु ही होता है। क्योकि गुजरा वक्त वापिस नहीं आता। 
फिर भी कहावत है, जब आंख खुले तभी सवेरा।

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बारह व्रत कार्यशाल

”मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  25/06/2017 / रविवार
क्र्मांक – 18

स्थूल संतोष व्रत

मैं स्थूल मैथुन का प्रत्याख्यान करता हूं / करती हुं 

1) स्वपति/ स्वपत्नी के सिवाय किसी के साथ मैथुन सेवन का त्याग....करण....योग से। 

2) अप्राकृतिक मैथुन सेवन का त्याग....करण.....योग से। 

3) स्वपति/ स्वपत्नी के साथ.....महीने में.....दिन उपरांत अब्रह्मचर्य सेवन का त्याग.....करण...योग से।  

4) किसी क्लब या रंगमंच पर परपुरुष/ परस्त्री के साथ अश्लील नृत्य करने का त्याग....करण ....योग से। 

5) बेमेल विवाह (उम्र से दो तिहाई( 30/10) का त्याग.....करण……..योग से। 

निम्नोत्त से व्रत भंग नहीं

विशेष परिस्थिति या विस्मृति से मर्यादा का लोप हो जाए।

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बारह व्रत कार्यशाल

”मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  25/06/2017 / रविवार
क्र्मांक – 17

श्रमणोपासक और श्रावक

इस श्रेणी में जो मनुष्य आता हैं , उसके दो नाम हैं श्रमणोपासक और श्रावक। श्रमणों की उपासना करता है इसलिए वह श्रमणोपासक है। धर्म को सुनता है इसलिए उसका नाम श्रावक है। श्रावक का अर्थ है सुनने वाला। मुनि भी श्रावक होता है। मुनियों के लिए भी श्रावक शब्द का प्रयोग हुआ हैं। मुनि श्रमणोपासक नहीं हैं। श्रमणोपासक गृहस्थ ही होता है। 

श्रमणों की समुपासना, श्रमणोपासक नाम।
शास्त्रों का श्रोता सजग, श्रावक नाम ललाम ।।
फल उपासना का श्रवण , मिले श्रवण से ज्ञान।
फिर विज्ञान विवेचना, उससे प्रत्याख्यान।।
संयम प्रतत्याख्यान से , हो आश्रव- अवरोध।
तप वोदाणे - निर्जरा, उससे अन्त: शोध।।
तत: अतुल एकाग्रता अक्रिय बने अयोग।
शाश्वत सिद्धि, उपासना से दस बोल अमोघ।।

गृहस्थ धर्म का पालन करने वाले व्यक्ति के लिए शास्त्रों में चार शब्द प्रयुक्त होते हैं - श्रमणोपासक, उपासक, श्राद्ध और श्रावक। श्रमणों की उपासना करने के कारण वह श्रमणोपासक कहलाता हैं। आत्मा धर्म या मोक्ष की उपासना करने के कारण वह उपासक कहलाता है। श्रद्धाशील होने के कारण श्राद्ध कहलाता है। शास्त्रों या सन्त- वाणी का श्रवण करने के कारण श्रावक कहलाता है।

अगर आप बारह व्रती नहीं है तो आप बारह व्रती बने। अगर जीवन भर नहीं बन सकते हो तो कम से कम एक वर्ष का सौंगध/त्याग जरुर लेवें।
आगम असम्मत्त कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।????????????????????????

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बारह व्रत कार्यशाल

”मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  11/06/2017 / रविवार
क्र्मांक – 16

स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत

मैं स्थूल अदत्तादान( चोरी ) का प्रत्याख्यान करता हूं/ करती हूं। 

1) किसी के मकान की दीवार , ताला आदि तोड़कर चोरी करने का त्याग......करण.....योग से। 

2) किसी की पड़ी वस्तु मालिक की जानकारी होने के बाद रखने का त्याग.....करण......योग से ।

3) राज्य निषिद्ध वस्तु रखने एवं चोर में सहायता देने का त्याग......करण ....योग से। 

4) जानबूझकर कम तोल- माप करने, बेमेल मिलावट करने व नकली को असली बताकर बेचने का त्याग.....करण ...योग से। 

5) अशक्य परिस्थिति के सिवाय कर चोरी करने का त्याग करण ....योग से। 

6) जानबूझकर बिना टिकिट यात्रा करने का त्याग.....करण ....योग से। 

7) रिश्वत लेने का त्याग.....करण...योग से। 

निम्नोत्त से व्रत भंग नहीं-

• बेटे-बहू आदि को सावधान करने हेतु कोई वस्तु छिपानी पड़े। 

• सोने - चांदी आदि में खाद जो सामान्यतया मिलती है। 

• नई-पुरानी वस्तु मिलानी पड़े।

• अनजान में चोरी की वस्तु रह जाए।


अगर आप बारह व्रती नहीं है तो आप बारह व्रती बने। अगर जीवन भर नहीं बन सकते हो तो कम से कम एक वर्ष का सौंगध/त्याग जरुर लेवें।
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बारह व्रत कार्यशाल

???????? ”मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"????????

विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  11/06/2017 / रविवार
क्र्मांक – 16

स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत

मैं स्थूल अदत्तादान( चोरी ) का प्रत्याख्यान करता हूं/ करती हूं। 

1) किसी के मकान की दीवार , ताला आदि तोड़कर चोरी करने का त्याग......करण.....योग से। 

2) किसी की पड़ी वस्तु मालिक की जानकारी होने के बाद रखने का त्याग.....करण......योग से ।

3) राज्य निषिद्ध वस्तु रखने एवं चोर में सहायता देने का त्याग......करण ....योग से। 

4) जानबूझकर कम तोल- माप करने, बेमेल मिलावट करने व नकली को असली बताकर बेचने का त्याग.....करण ...योग से। 

5) अशक्य परिस्थिति के सिवाय कर चोरी करने का त्याग करण ....योग से। 

6) जानबूझकर बिना टिकिट यात्रा करने का त्याग.....करण ....योग से। 

7) रिश्वत लेने का त्याग.....करण...योग से। 

निम्नोत्त से व्रत भंग नहीं-

• बेटे-बहू आदि को सावधान करने हेतु कोई वस्तु छिपानी पड़े। 

• सोने - चांदी आदि में खाद जो सामान्यतया मिलती है। 

• नई-पुरानी वस्तु मिलानी पड़े।

• अनजान में चोरी की वस्तु रह जाए।


अगर आप बारह व्रती नहीं है तो आप बारह व्रती बने। अगर जीवन भर नहीं बन सकते हो तो कम से कम एक वर्ष का सौंगध/त्याग जरुर लेवें।
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बारह व्रत कार्यशाल

"मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  04/06/2017 / रविवार
क्र्मांक – 15

स्थूल मृषावाद विरमण व्रत

मैं स्थूल मृषावाद का प्रत्याख्यान करता हूं/ करती हुं। 

1. लड़के/ लड़कियों के विवाह- शादी के संबंध में असत्य बोलने का त्याग.....करण.....योग से। 

2. पशुओं के क्रय-- विक्रय के संबंध।में असत्य बोलने का त्याग......करण.....योग से। 

3. खुली जमीन या मकान के संबंध में असत्य बोलने का त्याग....करण ....योग से। 

4. धरोहर को वापस लौटने से इन्कार करने का त्याग......करण...योग से। 
5. झूठी गवाही देने का त्याग.....करण......योग से। 

6. जानबूझकर किसी पर दोषारोपण करने या किसी का मर्म प्रकाशन करने का त्याग......करण.....योग से।  

निम्नोत्त से व्रत भंग नहीं

• हँसी- मजाक में या सुनी - सुनाई बात को लेकर कुछ कह दिया जाए। 

• विशेष कानूनी अडचन आने पर हस्ताक्षर करना पड़े। 

• कोई व्यक्ति परिवार से छुपाकर गिरवी रखकर गया हो।

अगर आप बारह व्रती नहीं है तो आप बारह व्रती बने। अगर जीवन भर नहीं बन सकते हो तो कम से कम एक वर्ष का सौंगध/त्याग जरुर लेवें।

आगम असम्मत्त कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं

MMBG परिवार


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बारह व्रत कार्यशाल

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विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  28/05/2017 / रविवार
क्र्मांक – 14

व्रत से बनता है धर्मी
जब तक व्रत नहीं हैं तब तक व्यक्ति को धार्मिक नहीं कहा जाता। पण्डित और धर्मी- इन दोनों का प्रारम्भ कहां से होता हैं? आगम का बहुत स्पष्ट मत है- व्रत के साथ होता हैं। अविरइं पडुच्च बालेत्ति आहिज्जई। जब तक अविरति है, तब तक बाल है और तब तक अधर्मी हैं। चतुर्थ गुणस्थान में है,  सम्यक् दृष्टि है फिर भी धर्मी नहीं है। व्रत का प्रारम्भ हुआ , धर्मी हो गया , पण्डित हो गया और व्रताव्रती होगया। यह अगार धर्म व्रताव्रती की, धर्माधर्मी की श्रेणी है। यदि आध्यात्मिक हिमालय की चढ़ाई करनी है, एवरेस्ट की चोटी पर चढना है तो इस नि:श्रेणी पर आरोहण करते चले जाओ, यह तुम्हें ऊपर तक पहुँचा देगी। 

जानूं जीव अजीव मैं , पुण्य पाप की बात।
आश्रव संवर निर्जरा बंध मोक्ष विख्यात।।

नौ तत्त्वों का अनुशीलन प्रतिदिन किया जा सकता है। यह आवाज बार-बार उठती रहे- मैं जीव- अजीव को जानता हूं। मैं पुण्य पाप को जानता हूं। मैं आश्रव , संवर और निर्जरा को जानता हूं। मैं बंध और मोक्ष को जानता हूं। 

उठो जागो सच्चे अनुयायी बनो,  महावीर के दिखाए पथ बारह व्रत को धारण कर,  मोक्ष मार्ग की ओर बढे चलो। 

जीवन की सच्चाई है, आत्मा- कर्म  की हर समय लडाई हैं। इस युद्ध में पुरुषार्थ द्वारा ही जीत निश्चित हमारी है। यह व्रत वो हथियार है,  जिसके प्रयोग से बंध नहीं बल्कि मोक्ष निश्चित है। 

अगर आप बारह व्रती नहीं है तो आप बारह व्रती बने। अगर जीवन भर नहीं बन सकते हो तो कम से कम एक वर्ष का सौंगध/त्याग जरुर लेवें।

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बारह व्रत कार्यशाल

"मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  21/05/2017 / रविवार
क्र्मांक – 13

वनस्पतिकाय
1. अपनी हाथ में आए उससे बड़ा या वृक्ष हाथ से काटने का त्याग....करण.....योग से।

2. जमीकंद का छेदन- भेदन एक दिन में.....किलोग्राम से अधिक करने का त्याग.......करण......योग से। 

3. जमीकंद खाने का त्याग या ...से अधिक एक दिन में खरीदने का त्याग.....करण.....योग से। 

4. एक दिन में......से अधिक हरी सब्जी एवं फल के आरंभ समारंभ का त्याग.....करण।.....योग से।  

5. एक दिन में......प्रकार के फल एवं.....प्रकार की सब्जियों से अधिक खाने का त्याग......करण.....योग से।  
6. घर में लगे पौधौं को अपने हाथ से महीने में.....बार से अधिक काटने- छाटनें का त्याग.....करण......योग से। 

7. साल में अपने हाथ से अपने घर के निमित्त.....किलोग्राम से अधिक आचार डालने का त्याग.....करण.....योग से। 

8. शौकिया रुप से दूब आदि पर चलने का त्याग.....करण.....योग से।
 
9. एक दिन मे.....किलोग्राम से अधिक धान्य पीसने- पिसाने का त्याग....करण.....योग से।  

निम्नोत्त से व्रत भंग नहीं-
• पडौसी, संबधी या सामाजिक समारोह आदि के लिए हरियारी का छेदन भेदन करना पडे। 
• समारोह आदि के प्रसंग में सब्जी आदि में जमीकंद मिला हो वह खाने का काम पडे।

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"महासभा-मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  14/05/2017 / रविवार
क्र्मांक – 12

श्रावक हैं श्रद्धाशील विमल विश्वासी,
श्रावक जीवन जागरणा का अभ्यासी।
श्रावक ने अपना सही लक्ष्य पहचाना,
मानवता का प्रतिमान स्वयं को माना।।

जो श्रावक होता है,  वह श्रद्धाशील और विश्वासी होता है। यह बड़ी महत्त्व की बात है। जो श्रद्धालु नहीं है वह श्रावक नहीं हो सकता।  उसमें श्रद्धा का भाव होना चाहिए। श्रद्धा,  आस्था के बिना जीवन सूना-सूना सा लगता है। जिसके जीवन में आस्था का बल नहीं उसका जीवन रुखा - सा बन जाता है, चिकनाई नहीं आती।  जैसे लूखा फुलका है, चुपडा हुआ नहीं है, थोडी देर बाद कड़ा- कड़ा हो जाता है। जहाँ श्रद्धा वहा चिकनाहट है, स्निग्धता हैं, मधुरता है, सरसता है। उसके बल पर आदमी बड़ी-बडीं घटना झेल लेता है। 
जब तक व्रत की चेतना नहीं जागती तब तक संकल्प भी नहीं होता। सबसे बड़ी बात है व्रत की चेतना का जाग जाना। व्रत की चेतना जागना मतलब श्रावक अपना सही लक्ष्य पहचान लिया। 

जागो भाईयो व बहनो बारह व्रत धारण कर भ. महावीर के सच्चे अनुयायी बनो।

अगर आप बारह व्रती नहीं है तो आप बारह व्रती बने। अगर जीवन भर नहीं बन सकते हो तो कम से कम एक वर्ष का सौंगध/त्याग जरुर लेवें।

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"महासभा-मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  07/05/2017 / रविवार
क्र्मांक – 11

वायुकाय :-

1. पंखे एक दिन में अपने हाथ से.....से अधिक चलाने का त्याग .........करण.....योग से।  

2. एक दिन में......बार से अधिक झुला झुलने का त्याग.....करण.....योग से 

3. पतंग उड़ाने का त्याग या......से अधिक उडानें का त्याग.....करण......योग से ।

निम्नोक्त् से व्रत भंग नहीं:-

• एक स्विच से अनेक पंखे चलने लग जाएं।

• रोगी, मेहमान आदि के लिए पंखे चलाने पड़े। 

• सभा, संस्थान आदि में आवश्यक सेवा देते समय चलाना पड़े। 

• असावधानी या विस्मृति हो जाए।

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"महासभा-मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  30/04/2017 / रविवार
क्र्मांक – 10

अब तक हमने स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत ,पृथवीकाय , व अप्काय के पोस्ट देखे। 

आज :- तेजसकाय
1. होली हाथ से जलाने का त्याग है.....करण....योग से।
2. आतिशबाजी करने का त्याग.....करण.....योग से 
3. दीवाली, लग्नप्रंसग, आँपनिंग, आदि प्रसंगो में लाईटिंग.....बार से अधिक करने का त्याग.....करण....योग से।
4. चूल्हा, गैस चूल्हा, स्टोव, हीटर, एयरकंडीशनर, कूलर आदि एक दिन में......संख्या से अधिक जलाने का त्याग।......करण.....योग से।
5. लालटेन, टाँर्च , मोमबत्ती, अगरबत्ती। धूपिया , बिजली , पंखे आदि एक दिन में ...से अधिक जलाने /चलाने का त्याग.....करण....योग से।

निम्नोत्तम से व्रत भंग नहीं:-
• एक ही साधन को अनेक बार काम में लेना।
• एक ही स्विच से अनेक बिजली जल उठे।
• असावधानी या विस्मृति हो जाए।

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"महासभा-मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  23/04/2017 / रविवार
क्र्मांक – 09 

समर्पण और श्रावक धर्म के विकास का इतिहास- आचार्य श्री तुलसी कहते हैं:- 
जो हो संभव अनगार धर्म का पालन।
तों करें उसी पथ में अपना संचालन।
क्षमता यदि अल्प इनल्प धर्म में आस्था।
साभार अगार धर्म का पकड़े रास्ता।।
रहे भक्ति में शक्ति- संतुलन , बारह व्रत का आभार ।
जिनशासन की यह व्यापकता , युनिवर्सल श्री वीर - विचार ।।

एक कथा:-
वह एक युग था,  जब बहुत बड़े-बड़े लोग साधु बनते थे। जब वे देखते कि मस्तक पर सफेद केश आ गया तो साधु बनने की बात सोचते। रामचरित मानस का प्रसंग है। 
महारानी राजा का केश श्रृंगार कर रही थी,  करते- करते बोली- ' महाराज! यमदूत आ गया।' 
राजा- ' मेरे महल में कोई दूत कैसे आगया?
'महाराज!  आ गया।' 
' महारानी!  आ नहीं सकता।' 
' महाराज! मुझे दिखाई दे रहा हैं।
महारानी ने केश को नोंचा,  राजा के हाथ मैं दिया और कहा - ' यह लो यमदूत" 
राजा ने कहा- ' अरे सच में यमदूत आगया। बस अब साधु बनने की तैयारी करो। 

आज एक नहीं हजारों यमदूत आ जाए तो भी डर नहीं लगता। आज केश काला करने की विधियां चल पडीं हैं।
पर कहते है जब कबूतर के सामने बिल्ली आ जाए आंखे बंध कर लेता हैं।  आँख बंध करने से थोडे छोड देगी। 
वह उसका स्वभाव है,  वह करेगी। 
चाहे केश काला कर लो,  उससे आयुष्य बढेगी नहीं आसक्ति का घेरा बढता जाऐगा। 

इसलिए बंधुओं भ. महावीर ने अगार धर्म  (बारह व्रत) बताया है,  सच्चाई को इनकार नहीं सकते। 
बारह व्रत की विशेषताएँ बहुत है।

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विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  02/04/2017 / रविवार
क्र्मांक – 08
भ. महावीर महान् वैज्ञानिक थे जिन्होंने षड् जीव निकाय के हिंसा से बचने की सलाह देकर पर्यावरण सुरक्षा का बहुत बड़ा सुत्र दिया। 
अब तक बारह व्रत कार्यशाला में
स्थूल प्राणातिपात का व पृथ्वीकाय 
के त्याग पढे। 
आज अपकाय :- जो आज धिरे धिरे समय बढ़ रहीं पानी की कमी हो रही है। इस त्याग पर ध्यान देने से व ऐसे त्याग लेने से , समस्या का हल निकल सकता है। 

1. बिना छना हुआ पानी पीने का त्याग.......करण .......योग से। 
(घर के बाहर या विशेष परिस्थिति अपवाद है।)

2. एक दिन में अपने निमित्त नहाने व कपड़ा धोने में...... घडा/बाल्टीपानी से अधिक काम में लेने का त्याग .....करण......योग से। 
(रोज का त्याग ले सकते है।, इसमें ऐसे भी मेरे घर की टंकी के अलावा त्याग, विशेष परिस्थिति में आगार, किसी के घर जाने पर पानी पिना या कोई पानी का काम में उपयोग लिया।) 

3. नदी, तलाब, समुद्र, स्विमिंग पुल आदि में.....बार से अधिक स्नान करने का त्याग.....करण.....योग से। 

4. नदी, समुद्र या तलाब की यात्रा करने का त्याग या ....बार से अधिक करने का त्याग....करण..योग से। 

5. घर की टूंटियों के अतिरिक्त एक दिन में......टूंटी से अधिक चलाने का त्याग.....करण.....योग से। 

6. गंगा में फूल घालने का त्याग।

निम्नोक्त् से व्रत भंग नहीं 


विवाह - शादी आदि के प्रसंग, सार्वजनिक उपयोगिता या विशेष परिस्थितिवश, अलावधानीवश, विस्मृतिवश या चिकित्सा वश अधिक पानी का उपयोग करना पडे या हो जाए। 
त्याग से आसक्ति पर नियंत्रण किया जा सकता है।  

अगर आप बारह व्रती नहीं है तो आप बारह व्रती बने। अगर जीवन भर नहीं बन सकते हो तो कम से कम एक वर्ष का सौंगध/त्याग जरुर लेवें।
चलो सभी भाई, बहन बारह व्रत की महिमा जाने, और हम सब मिलकर अपने सागर जितने पाप को लोटे जितना बनाने का प्रयास करे। MMBG परिवार आपके लिए आध्यात्मिक मंगलकामनाएं करता है।

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विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  02/04/2017 / रविवार
क्र्मांक – 07

अभी बारह व्रत कार्यशाला चल रही है। जीवन में उसका कितना उपयोग है, वह अनमोल उपहार भ. महावीर ने श्रावको के लिए दिया। क्या कारण आज 2500 वर्ष बाद भी हम , महान् पुरुष भ. महावीर को याद करते है।   

उनकी प्रत्यक्ष वाणी जीवन बदल देती थी , आज उनकी जीवनी पढने सुनने से भी जीवन परिवर्तन हो जाता है। 
उनका पुरुषार्थ बहुत गहन था। 

हमारे जैन धर्म की सबसे बडी शिक्षा 
यहां लेने से ज्यादा देने में धर्म बताया है। 

भ.महावीर के प्रमुख श्रावको में आंनद का नाम आता है। 
उसके पास बारह करोड़ स्वर्ण मुद्राए और चालीस हजार गायें थी। जब भगवान महावीर का प्रवचन सुना। 
उनके मन में निग्रन्थ प्रवचन के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हुई , और उन्होंने बारह व्रत स्वीकार किए। उनकी पत्नी शिवानन्दा भी बारह व्रती श्राविका बन गई। 


आज हमे भी चिन्तन कर भ.महावीर के दिखाए मार्ग पर चल कर मोक्ष के मार्ग की और प्रस्थान करे 
हम बारह व्रत स्वीकार करे , कम से कम एक साल के लिए ,फिर आपको स्वंय अनुभव होगा कितना सहीं वह आंनद पुर्वक है । जो जीवन की सही दिशा प्रदान करता है। 
हम सब संकल्प करे , हमे बारह व्रत स्वीकार करना है। 

अगर आप बारह व्रती नहीं है तो आप बारह व्रती बने। अगर जीवन भर नहीं बन सकते हो तो कम से कम एक वर्ष का सौंगध/त्याग जरुर लेवें।

चलो सभी भाई, बहन बारह व्रत की महिमा जाने, और हम सब मिलकर अपने सागर जितने पाप को लोटे जितना बनाने का प्रयास करे। MMBG परिवार आपके लिए आध्यात्मिक मंगलकामनाएं करता है

आगम असम्मत्त कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। ????????????????????????

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नोट :-आप से निवेदन है कि इस Post को ज्यादा से ज्यादा share कर धर्म संघ की प्रभावना में अपना योगदान दें।

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विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  26/03/2017 / रविवार
क्र्मांक – 06

पृथ्वी काय:-

1. नया मकान अपने परिवार के लिए नींव लगाकर......के उपरांत मेरे आदेश से बनाने का त्याग....करण..योग से।  
3. शिला -लोढ़ा, चक्की आदि को एक वर्ष मे...बार से अधिक टंचाने का त्याग....करण .....योग से। 
4. वर्ष में घर खर्च के लिए नमक.....किलोग्राम से अधिक खरीदने का त्याग.....करण .....योग से।  
5. खेती, बाग आदि मेरे हाथ से......एकड़ जमीन से अधिक लगाने का त्याग.....करण....योग से। 
6. कुंड, हौद, टंकी, कुआँ , बावडी आदि......से अधिक बनाने का त्याग....करण....योग।
7. मकानों की मरम्मत एक वर्ष में......बार से अधिक कराने का त्याग....करण......योग से।  

निम्नोत्त से व्रत भंग नहीं:--

• सार्वजनिक स्थान बनाना पडे या चंदा देना पडे। 
• विवाह, शादी आदि प्रसंगो में नमक आदि अधिक मंगाना पडे।  


अगर आप बारह व्रती नहीं है तो आप बारह व्रती बने। अगर जीवन भर नहीं बन सकते हो तो कम से कम एक वर्ष का सौंगध/त्याग जरुर लेवें।

चलो सभी भाई, बहन बारह व्रत की महिमा जाने, और हम सब मिलकर अपने सागर जितने पाप को लोटे जितना बनाने का प्रयास करे। MMBG परिवार आपके लिए आध्यात्मिक मंगलकामनाएं करता है।

आगम असम्मत्त कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। ????????????????????????

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नोट :-आप से निवेदन है कि इस Post को ज्यादा से ज्यादा share कर धर्म संघ की प्रभावना में अपना योगदान दें।

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बारह व्रत कार्यशाल

"महासभा-मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"????????
 
 
विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  19/03/2017 / रविवार
क्र्मांक – 05
 
श्रावक चूंकि पूर्ण अहिंसक नहीं हो सकता। उसने निरपराध को संकल्पपूर्वक न मारने का व्रत लिया है। जो प्राणी उसकी जीवनचर्या में बाधक बनते हैं उनकी हिंसा का उसके त्याग नहीं है अत: श्रावक के निम्नलिखित प्रवृत्तियों से व्रत भंग नहीं होता-
 
1. मक्खी, मच्छर, खटमल, दीपक,  जाला, चूहे आदि हटाने के लिए फ्लिट करना, दवा छिडकना, धुआँ छोडना आदि करना पडे। 
 
2. धान्य, मिर्च, मसाले आदि साफ करना पडे। 
 
3. डाक्टरी सीखते - सिखाते समय हिंसा का प्रयोग करना. कराना पडे। 
 
4. किसी व्यवस्था विशेष जुडे होने के कारण कोई हिंसात्मक आदेश देना पडे।
 
5. क्रोधवश, लोभवश, विशेष परिस्थितिवश, असावधानीवश जीव हिंसा हो जाए। 
 
6. किसी की आदत सुधारने की दृष्टि से कठोर अनुशासन करना पडे। 
 
7. मैं स्थूल स्थावर जीवों की हिंसा का निम्न प्रकार से त्याग करता हुं / करती हूं।
 
अगर आप बारह व्रती नहीं है तो आप बारह व्रती बने। अगर जीवन भर नहीं बन सकते हो तो कम से कम एक वर्ष का सौंगध/त्याग जरुर लेवें। MMBG परिवार आपके लिए आध्यात्मिक मंगलकामनाएं करता है।
 
चलो सभी भाई, बहन बारह व्रत की महिमा जाने, और हम सब मिलकर अपने सागर जितने पाप को लोटे जितना बनाने का प्रयास करे।
 
आगम असम्मत्त कुछ लिखा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। ????????????????????????
 
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बारह व्रत कार्यशाल

???????? "महासभा-मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप" ????????


विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  19/03/2017 / रविवार
क्र्मांक – 04

व्रत दीक्षा

श्रावक की पहली भूमिका है -सम्यक्त्व दीक्षा।  सम्यक्त्व की पुष्टि के बाद दूसरी भूमिका  व्रत- दीक्षा स्वीकार की जाती है। भ.महावीर ने उसके लिए बारह व्रत रुप संयम धर्म का निरुपण किया।

प्रथम :-  मैं स्थूल प्रणातिपात का प्रत्याख्यान करता हूं/ करती हूं - 

1. आजीवन निरपराध त्रस प्राणी का संकल्पपूर्वक वध करने का त्याग .......करण ......योग से। 

2. अपराधी प्राणी को भी पानी में डुबोकर, आग में डालकर, विष प्रयोग कर मारने का त्याग.....करण...योग से

3. क्रोधवश, लोभवश किसी प्राणी को कठोर प्रहार करने, उस पर अधिक भार लाधने, नाक, कान आदि काटने, डाम लगाने, खाल उतारने का त्याग.....करण....योग से 

4. किसी मनुष्य को बलात अनुशासित करने, उस पर आक्रमण करने, उसे पराधीन करने, अस्पृश्य मानने का त्याग.....करण.....योग से। 

5. अपने आश्रित नौकर, चाकर आदि तथा गाय, भैंस, बैल, घोड़े आदि के काम न करने पर आवश्यक खानपान बंद करने का त्याग......करण ....योग से।

6. आत्महत्या करने का त्याग। 

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बारह व्रत कार्यशाल

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विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  12/03/2017 / रविवार
क्र्मांक – 03

बारह व्रत कार्यशाला में विशेष जानकारी।

भगवान महावीर ने सब जीवों की तीन श्रेणियां बतलाई है 
1. अव्रती की श्रेणी:- पुरा खुलापन 
2. व्रताव्रती की श्रेणी:- व्रत भी अव्रत भी , आंशिक त्याग श्रावक की कोटि 
3. महाव्रती की श्रेणी:- पूर्ण व्रती, महाव्रती साधू की कोटि|

व्रत क्यों?

इसके लिए सबसे पहले अव्रती क्या है ? जानने का प्रयास करते है। 
इस श्रेणी का आदमी मुक्त रहता है। बंधन कहा ? वह जो चाहे करता है,  मन में आए तब खाता है,  मन में आए, वह आचरण करता है। 
फिर किस बात की समस्या, जब वह भी मुक्त है, 

एक उदाहरण:- एक बार एक आदमी व्यापार के लिए दुसरे गांव जाता है। काम करते करते रात होगई , रात के समय जंगल से कैसे जाए,  तो वही सोने का सोचा।  अब वह एक घर पर गया सोने के लिए स्थान की इच्छा रखी। सेठ ने कहा,  देखो भाई खाट पर सोने के 2 रुपये और आगंन में सोने के 10 रुपये। उसे आश्चर्य हुआ,  पुछा ऐसे कैसे। सेठ ने कहा खाट पर सीमा है,  इसलिए 2 रुपये,  आंगन  का नीद में कितना उपयोग करोगे सीमा नहीं। 

यानि व्रत होते ही सीमा, तो सागर जितना पाप लोटे मे बदल जाऐगा , यानि सीमा हो गई। 
इससे अव्रत की समस्या जाने। व्रत से मुक्त तो संसार में परिभ्रमण चलता रहेगा कब तक कैवल्य गम्य।

अगर आप बारह व्रती नहीं है तो आप बारह व्रती बने। अगर जीवन भर नहीं बन सकते हो तो कम से कम एक वर्ष का सौंगध/त्याग जरुर लेवें। MMBG परिवार आपके लिए आध्यात्मिक मंगलकामनाएं करता है।

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बारह व्रत कार्यशाल

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विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक – 05/03/2017 / रविवार
क्र्मांक – 02

बारह व्रत क्या है?

उसकी आवश्यकता क्यों है यह जानना जरुरी है। 
भ. महावीर द्वारा श्रावको के लिए गृहस्थ में रहते हुए , संसारी अनावश्यक क्रियाओं से कैसे बच सकते है। 

एक उदाहरण देके समझाते है :- जैसे हमे त्याग नहीं या सीमा नहीं तो कितना गहरा पाप लगता है , अनजाने में।  
जीविका के हेतु जो व्यवसाय अनिवार्य है 
किन्तु श्रावक के लिए अतिवाद अव्यवहारिय है। 

हम घर पर अचार बनाते है , आवश्यकता है, पर यदि सीमा नहीं तो नरकायुष्य का बंध होता है। 
एक कच्ची केरी को सुधार कर , उस पर नमक व हल्दि मिर्च , लगाकर कितना स्वाद लेले के खाते है। अगर सीमा कर ले तो सागर जितना पाप लौटे जितना हो सकता है। सीमा नहीं होने से संसार में जितना आचार बन रहा उसके हम भागीरदार है , आप विचार करे कितना पाप लग रहा है।

श्रावक के बारह व्रत

त्याग ले पर आगार के साथ जिससे हम दोष ना लगे। और पालना भी अच्छे से हो सकती है। 
आपत्ति काल में , रोग आदि में , परिवार के दबाब में लिए गये व्रतो के विपरीत मानना पड़े तो आगार। 

1...अहिंसा व्रत
त्रसकाय , पृथ्वीकाय, अप्पकाय ,तेजसकाय , वनस्पतिकाय. 
2..सत्य व्रत
3..अचौर्य व्रत
4..ब्रह्मचार्य व्रत
5..अपरिग्रह व्रत
6..दिग व्रत
7..उपभोग - परिभोग परिमाण व्रत
8..अनर्थ दंड विरमण व्रत
9...सामायिक व्रत 
10..देशावकाशिक व्रत
11..पोषधोपवास व्रत
12..अतिथिसंविभाग व्रत 

यानि एक वर्ष में अठपहरी पौषध करना अनिवार्य है। 

एक एक पाइट समझाने का भाव रहेगा।

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विषय- बारहव्रत कार्यशाला
दिनांक –  05/03/2017 / रविवार
क्र्मांक – 01

व्रत क्यों लेना?

अनावश्यक क्रिया लग रही है उससे बचने का प्रयास। 
व्रत से इन्द्रियों को वश में किया जा सकता है 
इन्द्रियों को वश में करना अच्छी साधना है। 

ख्वाहिश ऐसी करो कि, 
मोक्ष तक जा सको, 
प्रार्थना ऐसी करो कि प्रभु को पा सको, यूँ तो जीने के लिए पल बहुत कम हैं, 
जीयो ऐसे कि हल पल में , 
जिन आज्ञा को पाल सकें 

बारह व्रत जिन आज्ञा ही है।

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