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Karyasala

"मर्यादा-अनुशासन प्रतियोगिता"

MMBG" द्वारा 

"मर्यादा-अनुशासन प्रतियोगिता"

का आयोजन।

निबंध का विषय:-

 “मर्यादा और अनुशासन” 

♦ महत्वपुर्ण बिंदु:-♦

1. आपको निबंध के लिए हमारे तेरापंथ धर्मसंघ की मर्यादा और अनुशासन से सम्बंधित कोई एक घटना को चुनना है और उसका “शीर्षक” तय कर सर्वप्रथम उस घटना को लिखना है, उसके बाद उसी घटना के आधार पर आपको अपने भावों के मोतियों से पिरोह कर उस पर टिप्पणी/लेख/निबंध लिखना है। प्रेरणादायक घटना, आपका उचित एवं आकर्षक शीर्षक और रचनात्मक निबंध कला के आधार पर जज किया जायेगा।

2. भाग लेने की उम्र सीमा:-15 से ऊपर सभी
शब्द सीमा:- 300 शब्द

3. प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त कर्त्ताओं को पुरस्कृत किया जायेगा।

4. प्रतियोगी का निबंध स्वलिखित होना चाहिये।

5. प्रतियोगिता की अंतिम तिथि दिनांक 15 मार्च, 2019 है।

6. एक सदस्य एक निबंध ही भेज सकता है।

7. निबंध प्रतियोगिता संबंधित किसी भी विषय में अंतिम निर्णय निर्णायक का होगा।

8. प्रतियोगिता सम्बंधित अन्य किसी भी जानकारी के लिए आप हेल्पलाइन नम्बर:- 7894137611/982128212 से सम्पर्क कर सकते है।

9. निबंध भेजने का स्थान

आप हमें पेज पर लिखकर उसका फोटो या type कर e-mail /प्रतियोगिता संयोजक के Whatsapp पर भेजे।

E-Mail id:-:- mmbg101@gmail.com
Whatsapp no.

प्रतियोगिता संयोजक

धनराज लोढा, मदुरै
Mob. 94436 31775

सरोज लोढा, मदुरै
Mob. 9486141565


"MMBG" निबन्ध प्रतियोगिता फार्म"

निबंध के साथ फॉर्म भरना अनिवार्य है। और निबंध के हर पेज पर पेज न. व अपना नाम लिखे।

1. प्रतियोगी का नाम:- ..............
2. पिता या पति का नाम:- .........
3. शैक्षणिक योग्यता:- ......
4. आयु:- ..........
5. पूरा पता:- ................................
6. गाँव/शहर का नाम:- ...........
7. राज्य:- ...........
8. पिन कोड:- ...........
9. मो.नं.:- .............

धन्यवाद! !

MMBG Founder

Rahul K Bafna, Udhna (Surat)
M:- +91 9016861873

MMBG Competition Head

Bindu Jain, Bhubaneswar

Ajay Dangi, Mumbai


-: आयोजक :-
"मेरे महावीर भगवान ग्रुप"

"मर्यादा-अनुशासन प्रतियोगिता"

"मर्यादा-अनुशासन प्रतियोगिता"

का आयोजन।

निबंध का विषय:-

 “मर्यादा और अनुशासन” 

♦ महत्वपुर्ण बिंदु:-♦

1. आपको निबंध के लिए हमारे तेरापंथ धर्मसंघ की मर्यादा और अनुशासन से सम्बंधित कोई एक घटना को चुनना है और उसका “शीर्षक” तय कर सर्वप्रथम उस घटना को लिखना है, उसके बाद उसी घटना के आधार पर आपको अपने भावों के मोतियों से पिरोह कर उस पर टिप्पणी/लेख/निबंध लिखना है। प्रेरणादायक घटना, आपका उचित एवं आकर्षक शीर्षक और रचनात्मक निबंध कला के आधार पर जज किया जायेगा।

2. भाग लेने की उम्र सीमा:-15 से ऊपर सभी
शब्द सीमा:- 300 शब्द

3. प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त कर्त्ताओं को पुरस्कृत किया जायेगा।

4. प्रतियोगी का निबंध स्वलिखित होना चाहिये।

5. प्रतियोगिता की अंतिम तिथि दिनांक 28 अप्रेल, 2019 है।
6. एक सदस्य एक निबंध ही भेज सकता है।

7. निबंध प्रतियोगिता संबंधित किसी भी विषय में अंतिम निर्णय निर्णायक का होगा।

8. प्रतियोगिता सम्बंधित अन्य किसी भी जानकारी के लिए आप हेल्पलाइन नम्बर:- 7894137611/982128212 से सम्पर्क कर सकते है।

9. निबंध भेजने का स्थान

आप हमें पेज पर लिखकर उसका फोटो या type कर e-mail /प्रतियोगिता संयोजक के Whatsapp पर भेजे।

E-Mail id:-:- mmbg101@gmail.com
Whatsapp no.

प्रतियोगिता संयोजक

धनराज लोढा, मदुरै
Mob. 94436 31775

सरोज लोढा, मदुरै
Mob. 9486141565


"MMBG" निबन्ध प्रतियोगिता फार्म"

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3. शैक्षणिक योग्यता:- ......
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7. राज्य:- ...........
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MMBG Founder

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M:- +91 9016861873

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"मर्यादा-अनुशासन प्रतियोगिता"

"मर्यादा-अनुशासन प्रतियोगिता"

का आयोजन।

निबंध का विषय:-

 “मर्यादा और अनुशासन” 

♦ महत्वपुर्ण बिंदु:-♦

1. आपको निबंध के लिए हमारे तेरापंथ धर्मसंघ की मर्यादा और अनुशासन से सम्बंधित कोई एक घटना को चुनना है और उसका “शीर्षक” तय कर सर्वप्रथम उस घटना को लिखना है, उसके बाद उसी घटना के आधार पर आपको अपने भावों के मोतियों से पिरोह कर उस पर टिप्पणी/लेख/निबंध लिखना है। प्रेरणादायक घटना, आपका उचित एवं आकर्षक शीर्षक और रचनात्मक निबंध कला के आधार पर जज किया जायेगा।

2. भाग लेने की उम्र सीमा:-15 से ऊपर सभी
शब्द सीमा:- 300 शब्द

3. प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त कर्त्ताओं को पुरस्कृत किया जायेगा।

4. प्रतियोगी का निबंध स्वलिखित होना चाहिये।

5. प्रतियोगिता की अंतिम तिथि दिनांक 28 अप्रेल, 2019 है।
6. एक सदस्य एक निबंध ही भेज सकता है।

7. निबंध प्रतियोगिता संबंधित किसी भी विषय में अंतिम निर्णय निर्णायक का होगा।

8. प्रतियोगिता सम्बंधित अन्य किसी भी जानकारी के लिए आप हेल्पलाइन नम्बर:- 7894137611/982128212 से सम्पर्क कर सकते है।

9. निबंध भेजने का स्थान

आप हमें पेज पर लिखकर उसका फोटो या type कर e-mail /प्रतियोगिता संयोजक के Whatsapp पर भेजे।

E-Mail id:-:- mmbg101@gmail.com
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प्रतियोगिता संयोजक

धनराज लोढा, मदुरै
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-: आयोजक :-
"मेरे महावीर भगवान ग्रुप" 
Facebook Page :- https://www.facebook.com/mmbgnews

"मर्यादा-अनुशासन प्रतियोगिता"

"मर्यादा-अनुशासन प्रतियोगिता"

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निबंध का विषय:-

 “मर्यादा और अनुशासन” 

♦ महत्वपुर्ण बिंदु:-♦

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2. भाग लेने की उम्र सीमा:-15 से ऊपर सभी
शब्द सीमा:- 300 शब्द

3. प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त कर्त्ताओं को पुरस्कृत किया जायेगा।

4. प्रतियोगी का निबंध स्वलिखित होना चाहिये।

5. प्रतियोगिता की अंतिम तिथि दिनांक 28 अप्रेल, 2019 है।
6. एक सदस्य एक निबंध ही भेज सकता है।

7. निबंध प्रतियोगिता संबंधित किसी भी विषय में अंतिम निर्णय निर्णायक का होगा।

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9. निबंध भेजने का स्थान

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सरोज लोढा, मदुरै
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"MMBG" निबन्ध प्रतियोगिता फार्म"

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3. शैक्षणिक योग्यता:- ......
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7. राज्य:- ...........
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MMBG Founder

Rahul K Bafna, Udhna (Surat)
M:- +91 9016861873

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Bindu Jain, Bhubaneswar

Ajay Dangi, Mumbai

-: आयोजक :-
"मेरे महावीर भगवान ग्रुप" 
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मर्यादा और अनुशासन

 test

मर्यादा/अनुशासन

???????? "मेरे महावीर भगवान ग्रुप" ????????

विषय- मर्यादा और अनुशासन 
वार- गुरुवार, 25/01/2018
क्रमांक- 75

गण वृद्धि गण वृद्धि का दूसरा पद 

प्रस्तुत पद में आचार्य के पास रहने वाली साध्वियों के बारे में विधान किया गया है। 

आचार्य के पास अनेक साध्वियां रहती हैं। उन्हें विशेष कारण के बिना एक 'साझ' में मत रखो। यदि अधिक साध्वियां हो तो अधिक साझ की व्यवस्था करो।

इमजं गणी...........................................................................................................देखी जेह॥

आचार्य के पास अनेक साध्वियां रहती हैं। विशेष कारण के बिना उन्हें एक 'साझ' में मत रखो।*

आचार्य के पास अधिक साध्वियां रहे तो बहुत 'साझ' की व्यवस्था करो। किन्तु एक 'साझ' में बहुत साध्वियों को स्थाई रूप में मत दो।

कोई साध्वी प्रकृति की रोगी है, शरीर से रुग्ण है उसका निर्वाह करने के लिए आचार्य अवसर के अनुसार अधिक भी दे तो दिया जा सकता है।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

???????? MMBG परिवार ????????

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नोट :-आप से निवेदन है कि इस Post को ज्यादा से ज्यादा share कर धर्म संघ की प्रभावना में अपना योगदान दें। अगर आप MMBG परिवार से जुडना या अपने सुझाव देना चाहते है तो Whatsapp (9016861873) पर सम्पर्क करें। और MMBG Facebook Page से जुड़ने के लिये इस link को like करें 
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मर्यादा/अनुशासन

???????? "मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप" ????????

विषय- मर्यादा और अनुशासन 
वार- गुरुवार, 04/01/2018
क्रमांक- 74

गण वृद्धि का पहला पद

जयाचार्य ने आचार्य भिक्षुकृत मर्यादा, अनुशासन और व्यवस्था को समृद्ध बनाने के लिए अनेक शिक्षा-पदों का निर्माण किया| उनमें एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा-पद है 'गणपति-सिखावण'| उसका प्रथम पद है व्यवस्था। इस प्रकरण में आचार्य के लिए उपयोगी पदों का निर्देश किया गया है।

गण वृद्धि ...........................................................................................................करणी ताय॥

सुगणपति ! यदि गण की वृद्धि करना चाहो तो स्थाई रूप में एक अग्रणी को पांच से अधिक साध्वियां मत दो।
किसी साध्वी को आचार्य अधिक साध्वियां दे तो दुसरे साधु अथवा साध्वियां उस विषय में तर्क न करें।


- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

???????? MMBG परिवार ????????

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मर्यादा/अनुशासन

???????? "मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप" ????????

विषय- मर्यादा और अनुशासन 
वार- गुरुवार, 28/12/2017
क्रमांक- 73

व्यवहार – विश्लेषण

आचार्य भिक्षु ने साधुओं के व्यवहारों का गंभीर अध्ययन किया। उससे प्रतीत होता है कि प्रशिक्षण के अभाव में साधुजन भी पारस्परिक संबंधों में ऋजुता नहीं ला पाते। इस विषय में आचार्य भिक्षु रचित कुछ पद ध्यातव्य हैं।

इसरी करै अविनां..........................................................................................कहै तिण पास॥'

अविनीत साधु इस अविनय की स्थापना करता है और परस्पर मेल-मिलाप करता है, दलबंदी करने के लिए क्या-क्या अकरणीय कार्य करता है, वह आगे बताया जा रहा है।

दलबंदी में लिप्त व्यक्ति परस्पर मिलकर चोरी करते हैं, गण में तोड़फोड़ करते हैं। यह धर्मसंघ की चोरी है। एक व्यक्ति की बात दुसरे के सामने करता है जिससे परस्पर कलह हो जाए।

गुरु से भी टेढ़ा चलता है।उसने मुनि का वेश लेकर आत्मा को अवमानित किया है। दलबंदी करने वाला अविनीत के सामने ऐसी बात कहता है जिससे वह गुरु के प्रति उदासीन हो जाए।


- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

???????? MMBG परिवार ????????

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मर्यादा/अनुशासन

???????? "मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप" ????????

विषय- मर्यादा और अनुशासन 
वार- गुरुवार, 21/12/2017
क्रमांक- 72

सौमनस्य का सूत्र
 
अपने साथी के प्रति शालीन व्यवहार होना चाहिए। दूसरे की त्रुटि को सुनने में प्रकृति सिद्ध रस होता है। आचार्य भिक्षु ने उससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं को ध्यान में रखकर निर्देश दिया, वह परस्पर सौमनस्य बनाए रखने के लिए बहुत कारगर निर्देश है।

'कोई साध-........................न मानै।‘

कोई व्यक्ति साधु-साध्वियों के अवगुण निकाले तो सुनने का त्याग है। इतना कहना-'स्वामीजी को कहो।' जिसका गण में रहने का भाव हो, वह गण में रहे। किन्तु गण से बाहर होने के बाद साधु-साध्वियों के अवगुण बोलने का अनंत सिद्धों की साक्षी से त्याग है। गण से बहिर्भूत होने वाली साध्वी की बात उसके समान चरित्र वाला व्यक्ति मान सकता है। भेषधारी, व्रत भंग करने वाला और जो जिन धर्म का द्वेषी होगा वह मान सकता है किन्तु उत्तम जीव उसे नहीं मानेगा।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

???????? MMBG परिवार ????????

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मर्यादा/अनुशासन

???????? "मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप" ????????

विषय- मर्यादा और अनुशासन 
वार- गुरुवार, 14/12/2017
क्रमांक- 71

पारस्परिक व्यवहार के सूत्र (४)

पारस्परिक व्यवहार का एक अमूल्य सूत्र है सौमनस्य।एक साथ रहने वालों में यदि सौमनस्य रहता है तो जीवन समाधिपूर्ण रहता है। आचार्य भिक्षु ने मनश्चिकित्सक की भांति अनुत्तर निर्देश और संकल्प दिए, जो शांतिपूर्ण सहवास को चिरजीवी बनाते हैं।

'जिण आर्य्यां साथै..............................................................................................घणाइज छै॥‘

जिन साध्वियों के साथ भेजा उन साध्वियों के साथ रहे अथवा परस्पर शेष काल में रहे अथवा चातुर्मास में साथ रहे उनमें दोष हो तो आचार्यका दर्शन करने पर कह दे। यदि न कहे तो उतना ही प्रायश्चित उसको है।

उसके बाद बहुत दिन का अंतराल डालकर कहे तो सच कहा या झूठा कहा वह तो वही जाने अथवा केवली जाने, किंतु छ्द्दस्थ के व्यवहार में बहुत दिनों की बात राग द्वेष वश सामने लाए। अपना स्वार्थ सधता हो तो उसे सामने नहीं लाती। अपना स्वार्थ न सधता हो तो उसे सामने लाती है। उसकी प्रतीति न की जाए।

गृहस्थों को संकेत जताकर परस्पर एक दुसरे की आस्था में कमी करे, उसमें तो अनेक अवगुण हैं।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

???????? MMBG परिवार ????????

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मर्यादा/अनुशासन

???????? "मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप" ????????

विषय- मर्यादा और अनुशासन 
वार- गुरुवार, 07/12/2017
क्रमांक- 70

पारस्परिक व्यवहार के सूत्र (३)
गतांक से आगे...
पुन: साध्वियां परस्पर जो साधु-साध्वियों के लिए योग्य नहीं हैं, शोभा नहीं देता. लोगों को अप्रिय लगे, इस प्रकार जाति के आधार पर किसी की अवमानना न करे। यदि अवमानना की भाषा का प्रयोग करे तो आचार्य जितना उचित समझे उतने दिन विगय वर्जना का प्रायश्चित दें। वह सर्व कबूल करे।

जिस साध्वी को किसी दूसरी साध्वी के साथ भेजे तो मना न करे, साथ जाए। जितने दिन न जाए उतने दिन पांच विगय खाने का त्याग। और दूसरा प्रायश्चित उसके अतिरिक्त दिया जा सकता है।

आचार्य के बिना भेजें साध्वियां किसी दुसरे के साथ जाएं तो जितने दिन रहें उतने दिन पांच विगय का त्याग है और उसके अतिरिक्त भारी प्रायश्चित भी दिया जा सकता है।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

???????? MMBG परिवार ????????

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मर्यादा/अनुशासन

???????? "मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप" ????????

विषय- मर्यादा और अनुशासन 
वार- गुरुवार, 30/11/2017
क्रमांक- 69

पारस्परिक व्यवहार के सूत्र (३)

आचार्य भिक्षु के समय साध्वियों की व्यवस्था संतोषजनक नहीं थी। उस अवस्था में स्वच्छन्दता भी पनपी थी और पारस्परिक व्यवहार भी मधुर नहीं था। परिस्थिति के अध्ययन के बाद उन्होंने जो व्यवस्था दी उसके कुछ सूत्र निम्नलिखित हैं-

आंसू काढै जितरी......................जठा बारै॥

आंसू निकाले उतनी बार १० दिन विगय का त्याग है या १५ दिन में बेला (२ उपवास) करना। इस प्रकार कठोर वचन कहे उसके लिए यथायोग्य प्रायश्चित का विधान है।

यह विगय वर्जन उसकी इच्छा हो तब आचार्य के पास आए उससे पहले विगय का वर्जन करना है। यदि विगय नहीं छोड़े तो दूसरी साध्वी उसे यह कह नहीं सकती कि तुझे विगय छोड़नी पड़ेगी।

आचार्य के पास आकर आचार्य को बता दे। आचार्य की इच्छा हो तो द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव जानकर उसे और अधिक दंड देंगे और आचार्य की इच्छा होगी तो अधिक दिन विगय का त्याग कराएंगे।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

???????? MMBG परिवार ????????

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मर्यादा/अनुशासन

          ???????? "मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"????????

विषय- मर्यादा और अनुशासन 
वार- गुरुवार, 16/11/2017
क्रमांक- 68

पारस्परिक व्यवहार के सूत्र (२)

साधु जीवन का व्यवहार सहज शालीन होना चाहिए। किन्तु प्रकृति की विचित्रता के कारण अशालीन व्यवहार भी हो जाता है। आचार्य भिक्षु ने इस स्थिति का गंभीरतापूर्वक अध्ययन किया और उसे बदलने के लिए अनेक व्यवस्था सूत्र दिए।

'प्रायछित आयो.........रा त्याग छै।'

किसी को प्रायश्चित्त आए, उसके विषय में जितनी बार व्यंग्य करे उतने दिन पांच-पांच विगय का त्याग।

गृहस्थ के सामने गण में साधु-साध्वी की निंदा करे, वह बहुत अयोग्य है,  ऐसा जाने। उसे एक महीने तक पांच विगय का त्याग |जितनी बार करे उतने महीने तक पांच विगय का त्याग।

साध्वियों के परस्पर की बातों को कराए और एक की उतरती बात दूसरी को कहे, उसका मन भेद हो ऐसी बात कहे। वैसा कह यदि मन-भेद करे तो १५ दिन पांच विगय का त्याग।

परस्पर कहे कि तूं त्याग का भंग करने वाली-ऐसा कहे उसे १५ दिन विगय के त्याग हैं। जितनी बारे कहे उतनी ही बार (प्रत्येक बार) १५-१५ दिन विगय का त्याग है।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

???????? MMBG परिवार ????????

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मर्यादा/अनुशासन

                                      ???????? "मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"????????

विषय- मर्यादा और अनुशासन 
वार- गुरुवार, 09/11/2017
क्रमांक- 67

पारस्परिक संबंध (१)

साधु-साध्वियों के परस्पर संबंध के विषय में सं. १८५० के लिखत में साधुओं के लिए मर्यादा का विधान है। साध्वियों के लिखत में पारस्परिक संबंध का निर्देश साध्वियों के लिए दिया गया है।

'गुरां री आज्ञा ................री बात न्यारी।'

कोई भी साध्वी गुरु की आज्ञा बिना साधुओं के स्थान पर न रहे, न बैठे, खड़ी भी न रहे। उपकरण का लेना देना नहीं करे। जिस गांव में पहले से साधु हैं, यह पता लगने पर उस गांव में न जाए।

कदाचित् बिना जानकारी के जाए अथवा मार्ग में गांव हो तो एक रात से अधिक न रहे। कारणवश रहना पड़े तो गोचरी के घर बांट ले किंतु प्रतिदिन गोचरी की पूछताछ न करे।

वंदना करने जाए तो दूर से वंदना करे, वंदना करके शीघ्र मुंड जाए, वहां खड़ी न रहे।

गुरु के कोई समाचार पूछना हो तो दूर से पूछकर शीघ्र वापस मुड़ जाए किन्तु वहां खड़ी न रहे। गुरु के कहने से अथवा विशेष कारण की बात न्यारी है।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

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मर्यादा/अनुशासन

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विषय- मर्यादा और अनुशासन 
वार- गुरुवार, 02/11/2017
क्रमांक- 66

दलबंदी : एक नया विकल्प

आचार्य भिक्षु ने साधुओं की दलबंदी के बारे में काफी चिंतन किया। इस विषय में उन्होंने एक नया विकल्प दिया। वह अध्यात्म चिंतन से अनुप्राणित है।

'गण में रहूं..........नहीं करूं बिगाडो।'

मैं गण में अप्रतिबद्ध होकर अकेला रहूंगा। किसी से मिलकर दलबंदी नहीं करूंगा। किसी को अपना रागी बनाकर रखूं, ऐसा विकृत कार्य भी नहीं करूंगा।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

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मर्यादा/अनुशासन

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विषय- मर्यादा और अनुशासन 
वार- गुरुवार, 26/10/2017
क्रमांक- 65

दलबंदी

दलबंदी के विषय में आचार्य भिक्षु ने विस्तृत चिन्तन किया, इसके विषय में एक विस्तृत व्यवस्था की और एक महत्त्वपूर्ण मर्यादा सूत्र दिया-

टोला मांहे पिण................सिरै छै। 

गण में साधुओं का मन भेद कर अपना-अपना दल बनाता है तो उसे महान भारी कर्म वाला जानें, विश्वाघाती जानें, ऐसा छल कपट करता है वह तो अनंत संसार की निशानी है।

इस मर्यादा के अनुसार जो चल नहीं सके उसके लिए श्रेय है-संलेखना स्वीकार करना।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

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मर्यादा/अनुशासन

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विषय- मर्यादा और अनुशासन 
वार- गुरुवार, 19/10/2017
क्रमांक- 64

संगठन का बाधक तत्त्व : दलबन्दी (२)

सरल व्यक्ति दलबंदी नहीं कर सकता। जो मायाचार जानता है, जो अपने चेहरे को बदलना जानता है, उसके आगे का चेहरा अलग होता है और पीछे का चेहरा अलग होता है, वह दलबंदी करता है। आचार्य भिक्षु ने ऐसे व्यक्ति के चरित्र का बहुत मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया।

एहवा गेंरी.........................मैला  परिणाम।।

ऐसा भिन्न (विरोधी) विचार वाला साधु गण में रहता है पर गुरु को उसकी कोई खबर नहीं होती। मुख के सामने तो गुणग्राम करता है और छिप-छिप कर ऐसे काम करता है।

गुरु के सामने गुरु के गुण गाता है, छिप-छिप कर अवगुण दिखाता है। मुख के सामने तो राजी-राजी बोलता रहता है और छिपकर दगेबाजी करता है।

गुरु को हाथ जोड़कर वंदना करता है, प्रतिदिन चरणों में सिर झुकाता है, वंदना के समय गुणग्राम करता है, सबसे पहले गुरु का नाम लेता है।

लोगों को वंदना व्यवहार सिखाता है, उसमें गुरु के नाम का समावेश करता है, लोगों के आगे गुणग्राम करता है पर मन का परिणाम-मानसिक चिंतन मलिन रहता है।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

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मर्यादा/अनुशासन

"मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार, 07/09/2017
क्रमांक- 60

दोष - विशुद्धि का उपाय

आचार्य भिक्षु का दोष - विशुद्धि के प्रति स्पष्ट चिंतन था। यह उनका सिद्धांत था-'दोष को दबाओ मत और फैलाओ मत। उनका सम्यक् प्रतिकार करो।' सम्यक् प्रतिकार का तरीका यह था-'जिसका भुल हो उसको बता दो, उसे सावधान कर दो।' यह विधान केवल साधु-साध्वियों पर ही नहीं, आचार्य पर भी लागू होता था।

आचार्य छद् मस्त है। उनके द्वारा कहीं कोई प्रमादाचरण भी हो सकता है। किसी साधु, साध्वी अथवा श्रावक को पता लगे तो उस स्थिति में उसी सिद्धांत का अनुसरण करें, जिसका प्रयोग साधु - साध्वियों के लिए निर्दिष्ट किया है।

कदा गुरु ने पिण दोषण लागे, तो कहणों नहीं ओरां आगे।
गुर नें इज कहिणों सताब, घणा दिन नहीं राखणो दाब॥

कदाचित् गुरु भी किसी दोष का सेवन करे तो किसी के सामने मत कहो। तत्काल गुरु को ही बताओ। उसे अधिक दिन छिपा कर मत रखो।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

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मर्यादा/अनुशासन

"मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार, 17/08/2017
क्रमांक- 59

दोष : समस्या और समाधान

आचार्य भिक्षु ने संघ को निर्दोष रखने के लिए अनेक दृष्टियों से विमर्श किया।

पारस्परिक कलह संगठन के लिए व्रण जैसा होता है। उससे बचने के लिए एक उपाय सूत्र का निर्देश किया गया। उसका फलितार्थ यह है- दोष को छिपाओ मत और उसके आधार पर विग्रह बढ़ाने का प्रयत्न भी मत करो। इस विषय का निर्देश सूत्र यह है-

एक-एक नै चूक............. बीती बात कहि देणी।'

किसी की गलती हो तो एक दूसरे को तुरंत कह देना। मेरे तक कलह को मत आने देना, वहीं का वहीं उसे निपटा देना, पूछे अथवा बिना पूछे आप बीती बात कह देनी।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

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मर्यादा/अनुशासन

"मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार, 10/08/2017
क्रमांक- 58

दोषकथन : संगठन की समस्या (3)

गृहस्थ भी धर्मसंघ का सदस्य होता है। वह साधु साध्वियों के साधुत्व पालन में सहयोगी बनता है। अनेक श्रावक संरक्षण देने का काम करते हैं। कुछ व्यक्ति भद्र स्वभाव वाले नहीं होते। वे छिद्रान्वेषण भी करते हैं। यह छिद्रान्वेषण की प्रवत्ति संगठन को कमजोर बनाती है। इस प्रवृत्ति के प्रति जागरूक रहने का दृष्टिकोण सं. 1850 के लिखित में मिलता है।

"कोई ग्रहस्थ साध साधवियां...............एकंत मृषावादी, अन्याइ छै।"

 कोई गृहस्थ साधु- साध्वियों के स्वभाव अथवा दोष कहे, बताए उसको ऐसे कहा जाए- मुझे क्यों कहते हो, कहना हो तो 'धणी' (दोषी) को कहो अथवा स्वामीजी को कहो ताकि वे उसे प्रायश्चित देकर शुद्ध करें। यदि नहीं कहोगे तो तुम भी दोषी गुरु मानने वाले हो। यदि स्वामीजी को नहीं कहोगे तो तुम्हारे मन में भी वक्रता है। आपने हमको कहा, उससे क्या लाभ हुआ- ऐसा कहकर वह उससे अलग हो जाए, किंतु झगड़े में क्यों जाएं।

जो दूसरे के दोष को धारण कर इकट्ठा करता है वह तो एकांत मृषावादी और अन्यायी है।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

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मर्यादा/अनुशासन

"मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार, 10/08/2017
क्रमांक- 58

दोषकथन : संगठन की समस्या (3)

गृहस्थ भी धर्मसंघ का सदस्य होता है। वह साधु साध्वियों के साधुत्व पालन में सहयोगी बनता है। अनेक श्रावक संरक्षण देने का काम करते हैं। कुछ व्यक्ति भद्र स्वभाव वाले नहीं होते। वे छिद्रान्वेषण भी करते हैं। यह छिद्रान्वेषण की प्रवत्ति संगठन को कमजोर बनाती है। इस प्रवृत्ति के प्रति जागरूक रहने का दृष्टिकोण सं. 1850 के लिखित में मिलता है।

"कोई ग्रहस्थ साध साधवियां...............एकंत मृषावादी, अन्याइ छै।"

 कोई गृहस्थ साधु- साध्वियों के स्वभाव अथवा दोष कहे, बताए उसको ऐसे कहा जाए- मुझे क्यों कहते हो, कहना हो तो 'धणी' (दोषी) को कहो अथवा स्वामीजी को कहो ताकि वे उसे प्रायश्चित देकर शुद्ध करें। यदि नहीं कहोगे तो तुम भी दोषी गुरु मानने वाले हो। यदि स्वामीजी को नहीं कहोगे तो तुम्हारे मन में भी वक्रता है। आपने हमको कहा, उससे क्या लाभ हुआ- ऐसा कहकर वह उससे अलग हो जाए, किंतु झगड़े में क्यों जाएं।

जो दूसरे के दोष को धारण कर इकट्ठा करता है वह तो एकांत मृषावादी और अन्यायी है।

- अनुशासन संहिता
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मर्यादा/अनुशासन

"मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार, 03/08/2017
क्रमांक- 57

दोषकथन : संगठन की समस्या (2)

ईर्ष्या, द्वेष, कलह -ये सब नकारात्मक भाव है। ये आत्मा को कलुषित और मन को मलिन बनाने वाले है। ये संगठन के लिए भी बहुत अहितकार है। इस सचाई का आचार्य श्री भिक्षु ने अनुभव किया। उसका साक्ष्य है वि. सं 1850 के लिखत का एक विधान।

"कोई टोला मां सु टल...............जीवां रा काम छै।"

कोई साधु गण से अलग होकर साधु-साध्वियों के दोष बताए, अवर्णवाद बोले तो उसकी बात न मानी जाए। वह झूठ बोलने वाला है ऐसा जानना चाहिये। वह सच्चा हो तो ज्ञानी जाने। किंतु छद्मस्थ के व्यवहार में उसे झूठा जानना चाहिए। एक दोष से दूसरा दोष इकठ्ठा करे तो वह अन्यायी है। जिसका परिणाम अच्छा नहीं है वह साधु-साध्वियों के छिद्र देख कर इकठ्ठा करे, वह तो भारी कर्मों वाले जीवों का कार्य है।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

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मर्यादा/अनुशासन

"मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार, 20/07/2017
क्रमांक- 57

दोषकथन : संगठन की समस्या (2)

ईर्ष्या, द्वेष, कलह -ये सब नकारात्मक भाव है। ये आत्मा को कलुषित और मन को मलिन बनाने वाले है। ये संगठन के लिए भी बहुत अहितकार है। इस सचाई का आचार्य श्री भिक्षु ने अनुभव किया। उसका साक्ष्य है वि. सं 1850 के लिखत का एक विधान।

"कोई टोला मां सु टल...............जीवां रा काम छै।"

कोई साधु गण से अलग होकर साधु-साध्वियों के दोष बताए, अवर्णवाद बोले तो उसकी बात न मानी जाए। वह झूठ बोलने वाला है ऐसा जानना चाहिये। वह सच्चा हो तो ज्ञानी जाने। किंतु छद्मस्थ के व्यवहार में उसे झूठा जानना चाहिए। एक दोष से दूसरा दोष इकठ्ठा करे तो वह अन्यायी है। जिसका परिणाम अच्छा नहीं है वह साधु-साध्वियों के छिद्र देख कर इकठ्ठा करे, वह तो भारी कर्मों वाले जीवों का कार्य है।

- अनुशासन संहिता
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मर्यादा/अनुशासन

"मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार, 13/07/2017
क्रमांक- 56

दोषकथन : संगठन की समस्या (1)

सामुदायिक जीवन की एक समस्या है दोषकथन। मुनि दीक्षा लेने वाला वीतराग नहीं होता, कभी उससे प्रमाद भी हो सकता है। उस दोष अथवा प्रमाद सेवन को लेकर परस्पर विसंवाद पैदा हो जाता है और संगठन के लिए वह एक समस्या बन जाता है। इस समस्या को सुलझाने के लिए आचार्य भिक्षु ने जो विधान किया, वह संगठन की एकता के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। सं 1850 के लिखत का विधान है-

"किण ही साध आर्य्या...........उण नै मुसकल छै।"

किसी साधु और साध्वी में कोई दोष देखे तो वह तत्काल धणी (दोष सेवन करने वाले) को बताए अथवा गुरु को बताए पर दूसरों को न बताए। बहुत दिनों का अंतराल डालकर कोई दोष बताता है तो बताने वाला भी प्रायश्चित का भागी है।

दोष सेवन करने वाले व्यक्ति को याद आए तो उसे भी प्रायश्चित लेना चाहिए। यदि वह न ले तो उसी के लिए हानि की बात है।

- अनुशासन संहिता
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मर्यादा/अनुशासन

"मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार, 06/07/2017
क्रमांक- 55

स्वार्थ : संगठन की समस्या

संगठन की एक समस्या है स्वार्थ। जब तक स्वार्थ सिद्ध होता है, व्यक्ति संगठन में रहता है और उसे महत्त्व देता है। स्वार्थ की पूर्ति न होने पर संगठन को छोड़ देता है और उसकी गरिमा को कम करने का प्रयत्न करता है। इस विषय में आचार्य भिक्षु ने व्यवस्था दी है-

"पेली तो गण में रहै...........एक लेखां में नहीं।"

पहले गण में रहता है, उस समय अनेक प्रकार का विनय और भक्ति करता है। गण की संपूर्ण रीति का अनुसरण करता है, मर्यादा का पालन करता है और शासन की महिमा का बखान करता है। बाद में स्वार्थ पूरा न होने पर गण से अलग होकर अनेक अवगुण बोलता है, मनगढंत बातें करता है, फिरती भाषा बोलता है, चलती और झूठी भाषा बोलता है, इत्यादि अनेक प्रकार से झूठ बोलता है। उसकी एक भी बात पर ध्यान न दिया जाए।

- अनुशासन संहिता
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मर्यादा/अनुशासन

"मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार, 29/06/2017
क्रमांक- 54

संगठन और अहंकार

गण में विद्यमान सब साधुओं की प्रकृति समान नहीं होती। कोई साधु विनम्र होता है तो कोई साधु अहंकारी। 
अहंकारी का चरित्र विचित्र होता है। प्रशंसा करने पर वह फूल जाता है। वर्जन करने वह गुरु का द्वेषी हो जाता है। ऐसे व्यक्ति के द्वारा संघ की श्रीवृद्धि नहीं होती।

"मद विषें कषाय वस........ज्यूं करे ओगाजी।"

जब आत्मा विषय और कषाय के वशीभूत हो जाती है तब वह विनय कैसे कर सकता है। उससे अत्यधिक खराबी होती है। उसे चित्त लगा कर सुनो।
 
गण में कोई साधु अहंकारी है, वह थोड़े में ही समस्या पैदा करता है। कोई व्यक्ति उसके गुण को बढ़ा चढ़ा कर कहता है तो वह थोड़े में ही फूल जाता है।

यदि गुरु और गुरुभाई उसकी सराहना करते हैं तो वह खुशी दिमाग में भी नहीं समाती। इस स्थिति में वह गण में राजी रहता है और खाली बादल की तरह गाजता रहता है।

- अनुशासन संहिता
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मर्यादा/अनुशासन

"मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार, 22/06/2017
क्रमांक- 53

संगठन और आस्था

अनुशासन और संगठन के लिए जरूरी है नि:शंकता। जो शंकित और संदिग्ध होकर संघ में रहता है वह अपना भी अहित करता है और संघ का भी हित नहीं करता। विक्रम संवत 1845 के लिखित में आचार्य भिक्षु द्वारा प्रदत्त निर्देश संगठन के लिए बहुत माननीय है।

"उणनै साधु किम........पिण महादोष छै।"

उसे साधु कैसे जाने-जिसमें अकेला होने का संकल्प हो, इस प्रकार का संकल्प धारण कर गण में रहता है-मेरी इच्छा होगी तो गण में रहूंगा, मेरी इच्छा होगी तब गण से अकेला हो जाऊंगा। इस प्रकार की श्रद्धा से जो गण में रहता है वह निश्चित ही असाधु है। वह अपने आप में साधुपन माने तो पहले गुणस्थान वाला है। दगाबाजी अथवा ठगाई से गण में रहे और उन्हें जानकर गण में रखें तो वे भी महान दोष के भागी हैं।

- अनुशासन संहिता
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मर्यादा/अनुशासन

"मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार /15/06/2017
क्रमांक- 52

संगठन और निस्पृहता

किसी साधु में शिथिलता आ जाती है। संघ की मर्यादा को पालने में अपने को असमर्थ पाता है। अकेला होकर सुविधा का जीवन जीना चाहता है। वह व्यक्ति संघ से पृथक होने के लिए जटिल प्रक्रिया अपनाता है। वह संघ के साधु साध्वियों को निम्न और अपने उच्च बताकर पृथक् होता है। इस जटिल मानसिकता के प्रति सतर्क रहने के लिए आचार्य भिक्षु ने निर्देश दिया-

"किण ही साध-साधव्यां........ रा त्याग छै।"

किसी साधु और साध्वी के अवगुण बोलकर, किसी को फंटा कर मन भेद कर साधु-साध्वियों के प्रति विपरित श्रद्धा पैदा करने का त्याग है। किसी की गण से अलग होने की इच्छा हो तो गृहस्थ के सामने दूसरों की उतरती करने का त्याग है।

- अनुशासन संहिता
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मर्यादा/अनुशासन

"मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार /08/06/2017
क्रमांक- 51

संगठन का सूत्र-4

वह संगठन कमजोर होता है, जिसमें सदस्यों की संख्या वृद्धि की आकांक्षा प्रमुख होती है और सिद्धांत गौण हो जाता है। आचार्य भिक्षु ने इस समस्या का गहराई से अनुभव किया और उसका समाधान करने के लिए दृढ़ता के साथ कहा- जिसमें संघ के प्रति आस्था हो वही संघ में रहे। शंकाशील होकर कोई संघ में न रहे। 

सं. 1850 के लेखक का विधान है-

"जिण रो मन रजाबंध हुवै चोखीतरै.........पचखांण छै।"

जिसका मन सहमत हो, अच्छी तरह साधुपन पलता जाने तो गण में रहे। अपने आप में अथवा दूसरों में साधुपन माने तो रहे। प्रवंचनापूर्वक गण में रहने का अनंत सिद्धों की साक्षी से त्याग है।

- अनुशासन संहिता
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विषय- मर्यादा और अनुशासन 
वार- गुरुवार /01/06/2017
क्रमांक- 50

संगठन का सूत्र-3

वही संगठन सुदृढ हो सकता है जिसके सदस्यों का अपने नेता के प्रति विश्वास होता है। उसी प्रकार अपने साथियों पर भी विश्वास होता है। इस विषय में लेखपत्र की कुछ पंक्तियां पठनीय हैं-

"मैं सविनय बद्धांजलि प्रार्थना करता हूं कि श्री भिक्षु, भारीमाल आदि पूर्वज आचार्य तथा वर्तमान आचार्य श्री महाश्रमण द्वारा रचित सर्व मर्यादाएं मुझे मान्य हैं, आजीवन उन्हें लोपने का त्याग है। आप संघ के प्राण हैं, श्रमण परंपरा के अभिनेता हैं। आप पर मुझे पूर्ण श्रद्धा है। आपकी आज्ञा में चलने वाले साधु साध्वियों को भगवान महावीर के साधु-साध्वियों के समान शुद्ध साधु मानता हूं। अपने आपको भी शुद्ध साधु मानता हूं।"

इस विषय में आचार्य भिक्षु का सं. 1850 का निर्देश इस प्रकार है-

"सर्व साधां नै सुध आचार............अनंत संसार बधै छै।" 

सब साधु शुद्ध आचार का पालन करें, परस्पर गहरा हेत रखें, इस पर मर्यादा का निर्माण किया है-

कोई गण के साधु साध्वियों में साधुपन  माने, अपने आप में साधुपन माने वही गण में रहे। 

कोई साधु कपट, ठगाईपूर्वक साधुओं के साथ रहे, उसे अनंत सिद्धों की 'आण' है। पांचों पदों की 'आण' हैं।

साधु का नाम धारण कर असाधु के साथ रहने से अनंत संसार की वृद्धि होती है।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

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मर्यादा/अनुशासन

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विषय- मर्यादा और अनुशासन 
वार- गुरुवार /25/05/2017
क्रमांक- 49

संगठन का सूत्र- 2

आचार्य भिक्षु के समय साधु-संघ में शिष्य बनाने की स्वतंत्रता थी। उसका दुरुपयोग होने लगा। एक साधु अध्ययन के बाद कुछ योग्य बनता और वह कुछ शिष्य बनाकर अपना मत चलाने की खोज में लग जाता। इससे संगठन मजबूत नहीं बन पाता।

सं. 1850 के लिखत का विधान संगठन के विघटन को रोकने के लिए सुंदर पथदर्शन है।

'कोई दिख्या लेतो...............करण रा त्याग छै।'

किसी को दीक्षा लेते देखकर अथवा जानकर स्वयं गण से अलग होकर, शिष्य बनाकर नया मार्ग स्थापित करने का, अपना मत जमाने का त्याग है।

इस श्रद्धा और आचार का अच्छी तरह पालन करना है। किसी साधु का गण से पृथक् होने का परिणाम हो तब गृहस्थ के सामने दूसरे साधु की उतरती करने का त्याग है।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

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मर्यादा/अनुशासन

"मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार /18/05/2017
क्रमांक- 48

संगठन का सूत्र- 1

आचार्य भिक्षु ने स्वभाव परिवर्तन पर बहुत ध्यान दिया। संगठन की दृढ़ता के लिए आवश्यक है स्वभाव की योग्यता और अयोग्यता पर विचार करना। कोई साधु रुग्ण हो जाता है, और उसकी सेवा करनी होती है, किंतु वह संघ के लिए हानिकारक नहीं होता। अयोग्य व्यक्ति संघ की व्यवस्था में बाधक बनता है। सं. 1845 के लिखत में इस विषय का समीचीन पथदर्शन मिलता है।

धनै अणगार तो नव मास..........मांहौ राख्यौ भूण्डो छै।

धन्य अनगार ने नव मास के भीतर अपनी आत्मा का कल्याण किया वैसे ही अयोग्य साधु भी आत्मा का सुधार करें, किंतु अप्रतीतिकारक कार्य न करें। रोगियों की अपेक्षा स्वभाव से अयोग्य को भीतर रखना अच्छा नहीं है।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

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मर्यादा/अनुशासन

"महासभा-मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार /11/05/2017
क्रमांक- 47

स्वच्छंदता : संगठन की बाधा

आचार्य भिक्षु स्वच्छंदता को संगठन के लिए बाधक मानते थे। जो स्वच्छंद होता है वह अनुशासन का सम्यक् पालन नहीं कर सकता। वह प्रतिक्षण गिरगिट के भांति रूप बदलता रहता है। कभी संघ में दोष देखने लग जाता है और कभी संघ को सर्वोपरि मानने लग जाता है। आचार्य भिक्षु ने वैसे व्यक्ति की बबूल के पेड़ से तुलना की है-

जब गुर कहे तूं......... करेला घणो विषवाद॥

गुरु ने कहा- अभी तू सीधा बोल रहा है और बिल्कुल विपरीत दिखाई नहीं दे रहा है। संभव है- तू बबूल के बीज जैसा विश्वासघाती हो जाए।

अभी तू गण में रहता है और बहुत विनय करता है। संभव है- तू साधु- साध्वियों का मन भेद करे और गुरु के प्रति उनकी आस्था को भंग कर दे।

बाद में 'आल' देकर बाहर निकलेगा, दूसरों को भी साथ ले जाएगा। गण में रहने वाले साधुओं को असाधु बताएगा और विसंवाद बढ़ाएगा।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

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मर्यादा/अनुशासन

"महासभा-मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार /04/05/2017
क्रमांक- 46

संगठन और एकल विहार (2)

प्राचीन काल में विशिष्ट साधना की दृष्टि से एकल विहार प्रतिमा का विधान था। उसके मानदण्ड निर्धारित थे। वर्तमान में वह मानदंड संभव नहीं है। 

वर्तमान में विशिष्ट साधना की दृष्टि से अकेला विहार करने की बात कोई सोच सकता होगा किंतु अधिकांश व्यक्ति अपने असंयम के कारण अकेले रहते हैं। आचार्य भिक्षु ने उन कारणों का निर्देश किया है।

कें कांसूं तो....................कदेय न भला रे।।

कोई-कोई दूसरों के साथ नहीं रह सकता, इसीलिए अकेला रहता है। शुद्ध साधुओं को असाधु बतलाता है और अकेले रहने की स्थापना करता है। 

जो क्रोधी, तीर्व कषाय वाला और लोलुप है वह अकेला ही रहेगा। कुछ साधु विषय के वशीभूत होकर अकेले घूमते हैं। ऐसा एकल बिहारी कभी भी अच्छा नहीं होता।


- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

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मर्यादा/अनुशासन

"महासभा-मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप"

विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार /27/04/2017
क्रमांक- 45

संगठन और एकल विहार (1)

आचार्य भिक्षु के समय में संघ, गण अथवा टोला से पृथक होकर अकेले रहने की परंपरा चल पड़ी। इस पर आचार्य भिक्षु ने काफी प्रहार किया। उनकी दृष्टि में वर्तमान समय में एकल विहार अवांछनीय है। संघ में रहने वाले सज्जन और असज्जन सब एक साथ रहते हैं। वे जिनाज्ञा को प्रधान मानकर वैसा करते हैं। जो आज्ञा का पालन नहीं कर पाता वह अकेला होकर विहार करता है। यह संगठन का बाधक है और जिनाज्ञा के प्रतिकूल है।

जिण सासण में आज्ञा....................पायो रह भोल।।

जिन शासन में आज्ञा बड़ी है। तीर्थंकरों ने शासन सुरक्षा के लिए यह सेतु बंध किया है। प्रभु के वचन को ध्यान में रखकर जिन-शासन में दीक्षित होने वाले सज्जन और असज्जन सब एक साथ रहते हैं, सब शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व करते हैं।

यदि अभिप्राय को रोके बिना संयम निष्पन्न होता हो तो दूसरों की आज्ञा को कौन मानेगा। सब अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार अकेला होते हैं। क्षण भर में मिल जाते हैं और क्षण भर में बिखर जाते हैं। 

यदि अपनी इच्छा के अनुसार अकेला हो तो शासन में अव्यवस्था हो जाती है। इस प्रकार के स्वच्छंद विहारी का जो समर्थन करते हैं वे भी भूले हुए हैं। उन्होंने सच्चाई को समझने का प्रयत्न नहीं किया।


- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

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मर्यादा/अनुशासन

"महासभा-मेरे महाश्रमण भगवान ग्रुप

विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार /20/04/2017
क्रमांक- 44

संगठन और प्रमोद भावना

संघीय विकास के लिए बहुत आवश्यक है प्रमोद भावना, गुणानुराग। विनीत मुनि अनुशासन को, दूसरे मुनियों के विकास को देखकर ईर्ष्या नहीं करता किंतु वह सबका हित चाहता है और संघ का विकास।

गुर गुर भाई नै.....................लोक मझार।।

गुरु, गुरु भाई और गण का अच्छी तरह गुणानुवाद करता है। दूसरे लोग गुणग्राम करते हैं, उन्हें सुन-सुनकर विनीत शिष्य हर्ष का अनुभव करता है।

किसी दूसरे साधु अथवा साध्वी को शिष्य, शिष्याएं मिलते हैं तथा औषध आदि अनेक द्रव्य मिलते हैं और किसी में विशिष्ट कण्ठ कला है, यह सब देखकर विशेष हर्ष का अनुभव करता है।

वह किसी साधु से ईर्ष्या नहीं करता, सब साधुओं का हित करने वाला होता है, ऐसे सुविनीत साधु की वंशावली तीनों लोक में फैलती है।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

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मर्यादा/अनुशासन

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विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार /13/04/2017
क्रमांक- 43

संगठन: योग्यता का विमर्श

योग्यता पर ध्यान देना संगठन का एक महत्वपूर्ण मंत्र है। अयोग्य व्यक्ति को  आगे लाना संगठन के पक्ष में हितकर नहीं होता। आचार्य भिक्षु ने इसे दो जागीरदारों के उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया है।

ज्यूं नीच ने ऊंच.......................मोटा सोया।।

जैसे निम्न वृत्ति के व्यक्ति को ऊंचा पद दिया जाए तो वह उसे पचा नहीं सकता। इस सचाई को लौकिक और लोकोत्तर दोनों क्षेत्रों में देखा जा सकता है। आचार्य भिक्षु ने इसे राजा के द्वारा पदोन्नत किए गए दो सामन्तों  के उदाहरण से स्पष्ट किया है।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

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मर्यादा/अनुशासन

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विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार /06/04/2017
क्रमांक- 42

संगठन और योग्यता

आचार्य भिक्षु की दृष्टी में संघ की सुव्यवस्था के लिए योग्यता एक अनिवार्य शर्त है।
पहली बात- अयोग्य व्यक्ति को दीक्षा मत दो।
दूसरी बात- यदि कोई अयोग्य व्यक्ति संघ में आ जाए तो उसे योग्य बनाने का प्रयत्न करो।
तीसरी बात- यदि प्रयत्न करने पर भी उसमें योग्यता न आए तो उसे  संघ से पृथक कर दो।
अयोग्य व्यक्ति को गण का दायित्व मत सौंपो।

उज्झिया भोगवती........................जमारो जीत।।

उज्झिता और भोगवती को घर सौंपने  पर वे खजाने को नष्ट कर देती हैं वैसे ही अविनीत को गण सौंपने पर गण की आब चली जाती है। 

जिस गण में अविनीत है, उससे गण का भला नहीं होगा। प्रयत्न कर उसे सुधार दो। अगर न सुधरे तो गण से अलग कर दो। जैसे अविनीत को गण से अलग करने पर ज्ञान आदि गुणों की वृद्धि होती है, क्लेश और कदाग्रह मिट जाता है, उनके लिए मोक्ष पथ निकट हो जाता है। जिनके शिष्यों का लोभ और लालच नहीं हैं वे अविनीत शिष्यों को दूर से ही छोड़ देते हैं। वे गर्गाचार्य के सम्मान हैं। वे जीवन में सफल हो जाते हैं।

- अनुशासन संहिता
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मर्यादा/अनुशासन

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विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार /29/03/2017
क्रमांक- 41

संगठन और बौद्धिक क्षमता

संगठन के लिए आवश्यक है बौद्धिक क्षमता का विकास।

1) छोटों को अपने अभिप्रायानुसार चलाने की बौद्धिक क्षमता।
2) बड़ों के अभिप्रायानुसार चलने की बौद्धिक क्षमता।

जिसमें दोनों में से एक क्षमता विकसित नहीं होती, वह संगठन में संक्लेश पैदा करने करता है

उण ने छोटां.........................राखे मूर्ख धेख।।

छोटों को अपने अभिप्राय के अनुसार चलाने की बुद्धि नहीं है, बड़ों के अभिप्राय के अनुसार वह चल नहीं सकता, उसके दिन दुःख में व्यतीत होते है।

पुस्तक, वस्त्र, पन्ने, पात्र आदि साधु के अनेक उपकरण है। गुरु दूसरे साधुओं को उन्हें देता है, यह देखकर वह अविनीत गुरु से द्वेष रखने लग जाता है।

- अनुशासन संहिता
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मर्यादा/अनुशासन

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विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार /22/03/2017
क्रमांक- 40
 
संगठन और श्रावक (1)
 
कोई साधु किसे श्रावक को कहता है- पहले मैं अकेला था। इसीलिए दोष बताते हुए डरता था। अब हम दो हो गए हैं इसलिए दोष बताने में डर नहीं है। यह बात सुनकर विनीत श्रावक कहता है- तुम साधु बन गए, फिर भी डरते रहे, यह अच्छा नहीं किया।
 
साधां ने डरतो......................एक एक॥
 
साधुओं को डरते हुए नहीं रहना चाहिए। दोष देखे तो तत्काल कह देना चाहिए। यदि तुमने डरते हुए दोष नहीं बताया तो तुम पूरे सियार हो। अब कैसे शूरवीर बनोगे?
 
कहीं मैं अकेला ना हो जाऊं, इस डर और संकोच तुम दोष नहीं बतलाते। अब तुम दो हो। परस्पर एक दूसरे के दोष को छुपाओगे, यह सोचकर कि हम दोनों पृथक-पृथक न हो जाएं।
 
- अनुशासन संहिता
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मर्यादा/अनुशासन

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विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार /16/03/2017
क्रमांक- 39

संगठन और श्रावक (1)

कुछ साधु अविनीत होते हैं। वैसे ही कुछ श्रावक भी अविनीत होते हैं।

विनीत श्रावक संगठन को मजबूत बनाते हैं और अविनीत श्रावक संगठन को कमजोर बनाते हैं। 

कोई अविनीत साधु संघ से पृथक होता है। वह श्रावकों को अपने पक्ष में करना चाहता है। उस समय विनीत अथवा अविनीत श्रावक का जो व्यवहार होता है उसका आचार्य भिक्षु ने सुंदर मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है।

ओगुण सुण-सुण......................यांरो बंक

सम्यक्दृष्टि श्रावक गण से पृथक साधुओं द्बारा कथित अवगुणों को सुन-सुन कर उनको धर्म से भ्रष्ट मानता है। उनके कथन पर प्रतीति नहीं करता। वह समझता है कि ये एक झूठ के बाद दूसरा झूठ बोलते जाते हैं।

सारे श्रावक एक जैसे नहीं होते। सबकी अलग अलग बुद्धि होती है। सम्यक्दृष्टि सही होती है। वह उन्हें थोड़े में ही निरुत्तर कर देता है।

उन्हें न्यायपूर्वक जवाब देता है। बहुत लोगों के मध्य उनकी आब को कम करता है। वह उनसे बिल्कुल भी आशंकित नहीं होता। उन्हें उनकी कुटिलता का अनुभव करा देता है।

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मर्यादा/अनुशासन

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विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार /09/03/2017
क्रमांक- 38

मर्यादा निष्ठा

मुनि अकिंचन होता है, असंग्रही होता है। वह उतना ही वस्त्र रख सकता है जितना मर्यादा-विहित होता है।

यदि कोई साधु-साध्वी मर्यादा से अधिक वस्त्र आदि उपकण रखे और उसका माप न करे तो उसे समझदार नहीं कहा जा सकता।

बलि मर्यादा.......................कहियै सैणा

मर्यादा और कल्प (वस्त्र, पात्र आदि रखने की सीमा) का लोप कर जो अधिक उपधि की अभिलाषा करता है वह तीर्थंकर का चोर कहलाता है और वह गुरु की भी चोरी है। ऐसा जिन भगवान ने कहा है।

वस्त्र का एक खंड और छोटा कपड़ा भी कल्प में गिनो। जो स्वयं उसका माप नहीं करता और दूसरों से माप नहीं करवाता, उसे कैसे सयाना कहा जाए?

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मर्यादा/अनुशासन

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विषय- मर्यादा और अनुशासन
वार- गुरुवार /02/03/2017
क्रमांक- 37

मर्यादा प्रबंधन का अधिकार

आचार्य भिक्षु है वर्तमान की समस्या का समाधान करने के लिए मर्यादाओं का प्रबंध किया। भविष्य में नई समस्याएं पैदा हो सकती है और नई मर्यादाओं के प्रबंधन की अपेक्षा हो सकती है। इस स्थिति को ध्यान में रखकर आचार्य भिक्षु ने विधान किया।


बलै कोई........................कबूल छै।


पुनः कोई बात याद आए तो उसे भी लिखा जाए और उसे भी सब स्वीकार करें।

आचार की शंका होने पर पुनः कोई याद आए तो लिखें और सब स्वीकार भी करें।

पुनः कोई बात याद आए तो उसे भी लिखा जाए, और कड़ी-कड़ी मर्यादा बनाएं तो उनके लिए भी अनंत सिद्धों की साक्षी से मना करने का त्याग है।

पुन: कोई बात याद आए तो उसे भी लिखा जाए, उसका भी मना करने का त्याग है। यह सब स्वीकार करें।

- अनुशासन संहिता
- आचार्य महाप्रज्ञ

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